इतनी चमक दमक
के बावजूद
तुम्हारे दिन तुम्हारे जीवन
को सजीव बना देने के इतने सवालो
के बावजूद
तुम इतने अकेले क्यों हो
मेरे दोस्त
जिस नौजवान को
कविताएं लिखने और
बहसों में शामिल रहना था
वो आज सडकों पर लोगों से एक सवाल
पूछता फिर रहा है
कि महाशय आपके पास क्या मेरे लिए कोई
कोई काम है
वो नवयुवती जिसके हक में
जिंदगी की सारी खुशियां होनी चाहिए थी
वो इतनी सहमी सहमी
और नाराज क्यों है
अदम्य रौशनी के
बाकी विचार भी
जब अंधेरे बादलों
से आच्छादित है
जवाब मेरे दोस्त
हवाओं में तैर रहे हैं
जैसे
हर किसी को
रोज खाना चाहिए
नारी को चाहिए
अपना अधिकार
कलाकार को चाहिए
रंग और तुलिका
उसी तरह
हमारे समय के संकट को चाहिए
एक विचार और आह्वान
अंतहीन संघर्षो, अनंत उत्तेजनाओं
सपनों में बंधें
मत ढालो यथास्थिथि के अनुसार
मोडो दुनिया को अपनी ओर
समो लो अपने भीतर
समस्त ज्ञान
घुटनों के बल मत रैंगो
उठो
गीत, कला और सच्चाई की
तमाम गहराइयों की थाह लो.
- कार्ल मार्क्स
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