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पिछला दरवाज़ा

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अक्सर
पिछले दरवाज़े से
मैं दाख़िल होता हूं
अपने ही घर में
नहीं
चोरी कर
देर रात घर नहीं लौटता मैं
अक्सर
शाम ढलते ही
लौट आता हूं घर
जो दिन भर
व्यस्त रहते हैं
कमाने खाने में
दरअसल वे लौटते हैं घर
देर रात
सामने के दरवाज़े से
शोर मचाते हुए
उनके लौटने तक
एक नींद पूरी हो जाती है मेरी
संध्या
अपना मलिन वसन
जलकुंभी भरे तलैया के
किनारे उतार कर
कब का ढल चुकी होती है
निर्जन मंदिर के दीये में
जो लौटते हैं मैदान मार कर देर रात
घर में
उनसे मेरी कोई तुलना नहीं है
मेरी आवारगी का हासिल
न उन्हें है
न ही उनकी मसरुफियत का हासिल मुझे
बस एक इत्तेफाक है कि
उनके बनाए हुए मकानों के साए में
गुज़र जाती है रात
क्योंकि
वे मेरे कमरे में
आना जाना पसंद नहीं करते
उन्होंने कभी गिनकर रोटियां नहीं खाईं
अगर गिने होते तो पता होता
कि मेरा हिस्सा उनके निवाले में
कब और कैसे आ गया
दिन भर
उस तवा सा सिंकता हूं
जिस पर बनती हैं रोटियां
लेकिन
मेरे नसीब में रोटियां नहीं हैं
मेरा लोहा
जलता है
घिसता है
और दुबला होने पर
उनके घोड़ों के नाल के काम आता है
एक दिन
घोड़े के घिसे हुए नाल को
वे लगा लेंगे
अपने घरों के सामने के दरवाज़े पर
अपशगुन भगाने के अचूक उपाय की तरह
और
मैं देख नहीं सकूंगा
ज़िंदा रहते हुए
अख़बारों में अपनी ही मौत का विज्ञापन
इसलिए
अपने ही घर में
पिछले दरवाज़े से घुसने के लिए
अभिशप्त हूं मैं
सदा के लिए.

  • सुब्रतो चटर्जी

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