2024 की लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे भाजपा के गृहमंत्री अमित शाह ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत अभी से ही कर दिया है. और इसकी शुरुआत उसने आदिवासी बहुल इलाका झारखंड के चायबासा से किया है, जिसका झारखण्ड की जनता की ओर से जबरदस्त विरोध हुआ. इस विरोध का सबसे जबरदस्त पहलू रहा हवा में छोड़ा गया काला गुब्बारा था, जिसने मोदी-शाह के काली आतंक (रोड और फौजी कैम्प) के खिलाफ शानदार प्रतिरोध दर्ज किया. जॉन सम्ब्रुई ने टि्वट कर बताया कि
‘आज (7 जनवरी) अमित साह के चाईबासा आने का विरोध काला बैलून उड़ा कर किया जाता है. विजय संकल्प लेने से पहले गृह मंत्री अमित शाह आदिवासियों पर डंडे और गोली चलवाना बंद करे. (झारखंड की जनता) आज याद दिलाना चाहती है कि चाईबासा समेत अन्य ज़िलों में सुरक्षा बलों द्वारा लगातार आदिवासी-वंचितों पर हिंसा व दमन किया किया जा रहा है.
‘ज़िला के चिरियाबेड़ा में जून 2020 और दिसम्बर 2022 में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों पर व्यापक हिंसा की गयी. आज तक किसी के विरुद्ध कार्यवाई नहीं हुई. अनेक निर्दोष आदिवासी-वंचितों के विरुद्ध फ़र्ज़ी मामले दर्ज किए जा रहे हैं. गावों में डर का माहौल है.
‘बिना ग्राम सभा की सहमति के सुरक्षा बलों के कैंप को जबरन स्थापित किया जा रहा है. यह पांचवी अनुसूची और पेसा का स्पष्ट उल्लंघन है. आदिवासियों पर डंडे और गोली चलाके उनके जंगल, ज़मीन और खनिज पर कब्ज़ा करने की मंशा को लोग अच्छे से समझ रहे हैं.’
आज अमित साह के चाईबासा आने का विरोध काला बैलून उड़ा कर किया जाता है ।*विजय संकल्प लेने से पहले गृह मंत्री अमित शाह आदिवासियों पर डंडे और गोली चलवाना बंद करे*
आज याद दिलाना चाहती है कि चाईबासा समेत अन्य ज़िलों में सुरक्षा बलों द्वारा लगातार आदिवासी-वंचितों पर हिंसा व दमन किया pic.twitter.com/xlOenVLNdx— JOHN SUMBRUI (@JSumbrui) January 7, 2023
देश के नाम पर केन्द्र की सत्ता पर काबिज भाजपा की मोदी सरकार देश को दीमक की तरह खोखला कर रही है. इसका एकमात्र देश को बेचना है और इसके लिए इसे सत्ता के तमाम निकायों पर जमे रहना है. इसके लिए एक ओर तो यह संविधान द्वारा निर्धारित चुनाव की बाध्यता को खत्म करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए है, लेकिन जब तक वह चुनावी बाध्यताओं को खत्म नहीं कर लेता तबतक उसके लिए ऐन-केन-प्रकारेण चुनाव में जीत हासिल करना उसकी प्राथमिकता है.
यही कारण है कि भाजपा के केवल नेता और कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि उसकी केन्द्र सरकार, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक सालों भर चौबीस घंटे चुनाव की तैयारी में जी-जान से जुटा रहता है. चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्था का यही कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि जैसे भी हो भाजपा की जीत सुनिश्चित की जाये. अगर कभी चुनाव से फुर्सत मिल जाता है तब वह विरोधी पार्टियों की सरकार को गिराने और खुद की सरकार बनाने के तिकरम में रहता है. ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग, सुप्रीम कोर्ट, पुलिसिया महकमाओं के लिए यही कार्यभार इसने निर्धारित किया है.
अभी-अभी सम्पन्न गुजरात चुनाव में चुनाव आयोग के खुला तमाशा के बीच दर्ज भाजपा की ‘जीत’ के अगले ही दिन 2024 के चुनाव की तैयारी में यह सम्पूर्ण महकमा जुट गया है. इसके साथ ही निकटवर्ती राज्यों में होने वाले चुनावों का दौड़ा भी शुरु हो गया है. इसी क्रम में भाजपा (देश नहीं) के गृहमंत्री अमित शाह ने झारखंड के चुनाव अभियान में दो दिन पहले एक सभा को सम्बोधित किया है. विदित हो कि झारखंड की सोरेन सरकार को अपने पालतू कुत्ते सीबीआई, ईडी, सुप्रीम कोर्ट के लाख प्रयास के बाद भी जब सोरेन सरकार न तो बिकी और न ही गिरी, तब जाकर यह चुनावी अभियान शुरु किया गया है.
झारखंड के चायबासा में ‘उड़न खटोला’ से पहुंचे अमित शाह अपने धस साल के तमाशाई कार्यकाल को भुलाते हुए सोरेन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप तो लगाये लेकिन देशभर में जगह-जगह लोगों के उजाड़े जा रहे आशियाना और लोगों के विरोध को कुचलने के लिए स्थापित किये जा रहे पुलिसिया कैम्प के बारे में ऐक शब्द भी कहने के बजाय उसने इसकी वैधता स्थापित करने की कोशिश की, मानो लोगों का घर उजाड़ना और पुलिस कैम्प लगाकर आदिवासियों की हत्या करना भाजपा सरकार की रणनीति का हिस्सा हो. और इसे वैधता प्रदान करने के लिए एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्म को मोहरा बनाया.
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