जब मैंने यह लिखा था कि सेना में रहने वाले लोग अक्सर मानसिक रूप से विकृत हो जाते है क्योंकि सेना का काम मूल मानव स्वभाव के विरूद्ध है तो बहुत से साथियों ने सवाल उठाए थे कि कैसे ? यह उसी का उत्तर देने का प्रयास है. नोट करें कि ये इस या उस की सेना के बारे में नहीं है. ये सेना की अवधारणा की बात हो रही है. कुछ सामान्य से सवालों के उत्तर दीजिए. वैसे तो 13 हैं, लेकिन यहां सिर्फ तीन पूछे जा रहे हैं. सबसे पहले और स्वाभाविक रूप से जो उत्तर मन में आए, उसको ठीक मानना.
- एक आदमी एक ऐसे व्यक्ति को जिसे वह जानता नहीं, अपना दोस्त मानता है, दुश्मन मानता है या तटस्थ रहता है ?
- एक सामान्य व्यक्ति आमतौर पर परिवार और दोस्त बंधुओं के साथ रहना चाहता है या दूर ?
- जब आम आदमी को कोई व्यक्ति घायल, पीड़ित या दुःख की अवस्था में मिलता है तो क्या उसकी मदद करने को जी करता है ?
आप में से 95 प्रतिशत के उत्तर स्वाभाविक रूप से क्रमश: होंगे – तटस्थ, साथ रहना, मदद करना. तीसरे मामले में आप में से बहुसंख्यक मदद करते भी होंगे या कम से कम मदद करने की कोशिश तो अवश्य ही करते होंगे.
अब सेना में देखिए, उस आदमी को आपका शत्रु बताया जाता है जिसे कभी आपने नहीं देखा, ना बात की और ना ही जिसे आप जानते हैं. घर परिवार से दूर रखा जाता है, सेक्स इच्छाओं का दमन किया जाता है. और तीसरे सवाल के संदर्भ में अगर आपको कहा जाए कि आप उसकी पीड़ा, वेदना, यंत्रणा को और बढ़ाओ, उसे मार डालो, तड़पा तड़पा कर, शायद आप में से 100 में से 99 आदमी ऐसा करने से इंकार कर दें.
इसीलिए सेना में शराब पिलाई जाती है, इसीलिए धर्मगुरु रखे जाते हैं, इसीलिए राष्ट्रवाद का नशा कराया जाता है, इसलिए मेडल दिए जाते हैं, इसीलिए स्मारक बनाए जाते हैं, इसीलिए आदेश आदेश हैं की घुट्टी पिलाई जाती है, भयंकर डर दिखाया जाता है. इतनी दिमागी धुलाई और इतनी भयंकर बेरोजगारी के बावजूद विश्व की सभी बड़ी सेनाओं में अधिकारियों के हज़ारों पद खाली हैं और बहुत से देशों में अनिवार्य और बाध्यकारी सैनिक सेवा लागू है. जबकि मानव के 3 लाख साल के इतिहास में सेनाएं अधिकतम 5000 वर्ष पुरानी है. यानी, सिर्फ 1.33 प्रतिशत समय और आज भी दुनिया के लगभग 50 देशों के पास या तो सेना नहीं है या फिर ना के बराबर.
- महेन्द्र सिंह
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