‘तमस’ लिखते वक्त भीष्म साहनी ने यह नहीं सोचा होगा कि मंदिरों और मस्जिदों के आगे मांस के लोथड़े फेंक कर अंग्रेजों द्वारा दंगा भड़काने की जिस कवायद की वे जिक्र कर रहे हैं, वह सौ साल बाद भी उतना ही कारगर होगा. काले अंग्रेज, जो तब अंग्रेजों की जासूसी में लगे हुए थे, आज सत्ता हथियाने के बाद ठीक वही तरीका आजमा कर अयोध्या में दंगा भड़काने की कोशिश कर रहा है. आज भीष्म साहनी होते तो वे मूर्ख बनते इस समाज को देखकर अपना सर पीट लेते. रविश कुमार का भी आज कुछ ऐसी ही हालत है, जैसा भीष्म साहनी का होता. रविश कुमार लिखते हैं –
मैंने प्राइम टाइम के अनगिनत एपिसोड में कहा है कि ‘वे’ आपके बच्चों को दंगाई बना रहे हैं, तब मेरा विश्वास था कि हर मां-बाप और युवा भी, इतने स्वार्थी तो होते ही हैं कि अपना जीवन बर्बाद नहीं करेंगे. दंगाई नहीं बनेंगे लेकिन समाज ने मुझे ग़लत साबित किया. असल में ऐसा होने से कोई नहीं रोक सकता था. नफ़रत की विचारधारा की स्थापना राष्ट्र और धर्म के गौरव के बहाने आदर्श के रूप में प्रचलित कर दी गई है. इसके दो प्रकार के समर्थक हैं. अति सक्रिय समर्थक जो सड़कों पर उतरते हैं और सक्रिय समर्थक जो सोशल मीडिया से लेकर सामाजिक बैठकों में इसका समर्थन करते हैं. इसकी सामाजिक मान्यता इतनी बढ़ चुकी है कि कोई भी इसकी चपेट में आ सकता है और दंगाई बन सकता है.
यह बात केवल एक धर्म के लिए नहीं है, सभी धर्मों के लिए है. अयोध्या और गोरखपुर के केस में आपने देख लिया. यह भी मुमकिन है कि कोई बहुत पढ़ा-लिखा और शांत मन वाला इसकी चपेट में आ जाए और कोई मानसिक रुप से बीमार व्यक्ति भी हथियार उठा ले. लेकिन, अब इसका विस्तार इतना बढ़ चुका है कि इस समंदर को थामना मुश्किल है और ख़ास कर तब जब हिन्दी प्रदेश के युवाओं को इसमें आनंद आने लगे और वह अपनी पहचान का हिस्सा बना ले.
यही कारण है कि समय-समय पर धर्म को लेकर कोई न कोई मुद्दा खड़ा किया जाता है ताकि जो समाज तैयार किया गया है वह इसके पक्ष में लगातार उतरता रहे. उसे भी एक दिन का आराम नहीं दिया गया है. इसलिए, नहीं दिया जा रहा है क्योंकि इसकी रुपरेखा ही इस तरह से बनाई जाती है कि जो भी चपेट में आए, उसे कुछ और सोचने का मौक़ा न मिले. कश्मीर फाइल्स ख़त्म नहीं हुई कि यात्रा को लेकर विवाद हुआ, यात्रा ख़त्म नहीं हुई तो लाउडस्पीकर को लेकर झगड़ा होने लगा.
विगत सात वर्षों में लोगों को इस स्तर का मूर्ख बना दिया गया है कि अब दंगा कराने के लिए कुछ नया नहीं सोचना पड़ता है. वही पुराना तरीक़ा जो सौ साल से आज़माया जा रहा है – लाउडस्पीकर को लेकर झगड़ा और मंदिर-मस्जिद के आगे मांस फेंक देना. धर्म ग्रंथों की बेअदबी कर देना अब भी लोग इन सब पर प्रतिक्रिया करते हैं और यक़ीन करते हैं कि ऐसा करने से दंगा हो जाएगा. इस मूर्खता से लड़ना असंभव होता जा रहा है.
एक पैटर्न और है. धर्म को लेकर जो युद्ध चलाया जा रहा है, उसमें आपको लगता होगा कि आप धर्म युद्ध में हैं. धर्म के लिए युद्ध कर रहे हैं. लड़ना ही धर्म के बारे में जानना है जबकि ऐसा नहीं है. धर्म के नाम पर छोटा रास्ता लेने वालों को पता होना चाहिए कि नफ़रत के मुद्दों से धर्म के गौरव की स्थापना नहीं होती है. अगर आप वाक़ई धर्म को लेकर चिन्तित हैं तो अध्ययन कीजिए. बहुत सारे सुंदर ग्रंथ हैं, जिनके अध्ययन से आप ख़ुद को समृद्ध महसूस करेंगे. लेकिन, इसकी जगह लोग केवल लड़ने का बहाना खोज रहे हैं. उम्मीद है आप नफ़रत से दूर जाने का प्रयास करेंगे.
दैनिक भास्कर ने अयोध्या में दंगा फैलाने की साज़िश में गिरफ़्तार हुए सात युवाओं के बारे में विस्तार से छापा है. सभी साधारण घरों के युवा है. इनमें से कई अपने मां-बाप की परवाह तक नहीं करते. बेरोज़गार हैं या कम कमाते हैं लेकिन नफ़रत की दौलत से सराबोर हैं. महेश कुमार मिश्रा को मास्टर माइंड बताया जा रहा है. भास्कर ने लिखा है कि महेश कुमार मिश्रा पहले विश्व हिन्दू संगठन और बजरंग दल से जुड़ा था लेकिन बाद में उसने हिन्दू योद्धा संगठन बना लिया. ब्रिजेश पांडे, विमल पांडे, नितिन कुमार, प्रत्युष श्रीवास्तव, दीपक कुमार गौर और शत्रुध्न प्रजापति के घर और मोहल्ले तक जाकर भास्कर ने कई लोगों से बात की है.
इस रिपोर्ट को पढ़कर दुःख हुआ कि दंगाई बनाने की मेरी बात सच होती जा रही है. मुझे लगा था कि ग़लत साबित होगी (लेकिन) इस नफ़रत से निकलना आसान नहीं है. युवाओं को इसमें मज़ा आए, शक्ति का अहसास हो इसके लिए डीजे म्यूज़िक का इस्तेमाल होने लगा है, जिसके असर में भीड़ में शामिल युवाओं में कुछ कर गुज़रने का सौंदर्य जागता है. उन्हें लगता है कि वे गौरव की स्थापना जैसा महान काम कर रहे हैं और भारत को सोने की चिड़िया बना रहे हैं.
अगर हिन्दी प्रदेश के युवाओं ने धर्म के गौरव की आड़ में यही रास्ता चुना है तो क्या कर सकते हैं. एक और बार कह सकते हैं और कहेंगे ही कि नफ़रत के रास्ते पर मत चलिए.
अयोध्या की मस्जिदों में मांस फेंकने की पड़ताल
दैनिक भास्कर के देवांशु तिवारी ने अयोध्या में दंगा कराने की साजिश का बेहतरीन पड़ताल किया है, उसे हम यहां अपने पाठकों के लिए रख रहे हैं.
तारीखः 27 अप्रैल, जगहः अयोध्या, कश्मीरी मोहल्ला, समयः सुबह के 4 बजकर 1 मिनट. सहरी करके लोग फज्र की नमाज के लिए मस्जिद पहुंचे. तभी गेट पर कुरान शरीफ के फटे हुए पन्ने और मांस के लोथड़े दिखे.
अल्लाह के सामने सिर झुकाने आए लोगों ने बद्दुआएं देनी शुरू कीं. मोहल्ला नफरती लफ्जों से गूंज गया. सूरज का पारा दोपहर 11 बजे 39 डिग्री पहुंचा, लेकिन टाटशाह मस्जिद, घोसियाना रामनगर मस्जिद, गुलाब शाह दरगाह और ईदगाह के आसपास का इलाका सुबह-ओ-सुबह तपने लगा.
एसएसपी शैलेश भागे आए. DIG कवींद्र प्रताप सिंह फोन पर फोन घुमाने लगे. उन्हें इस आग और लपट दोनों का अंदाजा था. पुलिस ने 12 घंटे के भीतर 7 आरोपी, वीडियो सबूत के साथ पेश किए. आरोपियों के नाम पूछे गए. पुलिस ने टाला. फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा- महेश, नितिन, विमल, प्रत्युष, बृजेश, शत्रुघ्न और दीपक.
साजिशकर्ता 1:
महेश कुमार मिश्रा, VHP और बजरंग दल का पूर्व सदस्य रहा है.
यह इस समूचे घटना का मास्टरमाइंड है..पता: खोजनपुर, अयोध्या बैकग्राउंड: 2008 में विश्व हिंदू परिषद का मेंबर रहा. साल 2012 से 2019 तक बजरंग दल में जिला संयोजक रहा. 2020 में हिंदू योद्धा संगठन बनाया.
पिता शीतला प्रसाद मिश्रा रिटायर्ड इनकम टैक्स इंस्पेक्टर हैं. इसलिए घर में खाने-रहने की कभी दिक्कत नहीं रही. महेश उनके चार बेटों में से सबसे छोटा है इसलिए भाइयों से भी सपोर्ट मिलता है.
शीतला बताते हैं, ‘महेश शुरू से ही RSS, VHP और बजरंग दल की विचारधारा से प्रेरित था. राम मंदिर कार सेवा के लिए हमेशा आगे रहता था. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल में काम करने के बाद दो साल पहले महेश ने अपना संगठन हिंदू योद्धा बनाया था. इन सब में वो बहुत बिजी रहने लगा और घर वालों से कटता गया.’
खोजनपुर के रहने वाले मोहम्मद सनव्वर ने बताया, ‘2016 में बंदूक चलाते हुए बच्चों का एक वीडियो वायरल हुआ. उसमें मुस्लिमों को मारने-काटने का नारा लग रहा था. वीडियो पुलिस तक पहुंचा तो महेश को गिरफ्तार किया गया. उस वीडियो के पीछे यही था.’
महेश की पेंट की दुकान के पास मिले राकेश ने बताया, ‘वह अयोध्या की मजारों पर हनुमान चालीसा का पाठ कर चुका है. तब भी बहुत विवाद हुआ था. असल में नवंबर 2020 में मथुरा में कुछ मुसलमानों ने मंदिरों में नमाज अदा की थी. महेश को मौका मिल गया. उसने हिंदू योद्धा संगठन बनाया. इसमें 200 से ज्यादा लोग जुड़ गए.’
2016 से अब तक महेश पर 4 FIR दर्ज हो चुकी हैं. साल 2016: धारा 153ए में धार्मिक हिंसा फैलाने के मामले में. साल 2016: धारा 188 में गैर-कानूनी तरह से भीड़ जुटाने और माहौल बिगाड़ने के लिए. साल 2017: धारा 406, 504, 506 में पैसा हड़पना, जान से मारने की धमकी देना और जाति सूचक गालीगलौज करने के लिए. साल 2017: फिर से धारा 188, वही माहौल बिगाड़ने के लिए.
साजिशकर्ता 2:
नितिन कुमार, सालभर पहले घर छोड़ा; मां बीमार, लेकिन देखने नहीं जाता है. इसने ही मांस और विवादित पोस्टर फेंके. पता: रीडगंज हमदानी कोठी, अयोध्या. बैकग्राउंड: 2017 में अयोध्या से असम गया. कुछ दिन ठेकेदारी की, लेकिन जमा नहीं तो वापस लौट आया. फिलहाल डेढ़ साल यानी 2020 के आखिरी महीने से परिवार वालों से लड़कर चौक में किराए के मकान में रह रहा है.
अयोध्या का रीडगंज हमदानी कोठी मुस्लिम बाहुल्य इलाका है. यहां की 80% आबादी मुस्लिम वर्ग की है. नितिन का घर आधा गिरा हुआ है. मेन गेट टूटा हुआ है.
नितिन की भाभी कहती हैं, ‘वह अब यहां नहीं रहता. वो हमसे लड़कर यहां से चला गया था. अब बात नहीं होती. घर पर मम्मी बहुत बीमार हैं, लेकिन उसको किसी की चिंता नहीं है.’ इतना कहते हुए वो दरवाजा बंद कर लेती हैं.
नितिन के घर से सटा चौथा मकान नूर मोहम्मद का है. नूर ने बताया, ‘वह पहले बहुत सुलझा लड़का था लेकिन जब से महेश के साथ उठने-बैठने लगा, पूरा नेचर ही बदल गया. घर के अंदर नहीं जाता. वो वाकई घरवालों से दूर है.’
2016 में नितिन पर नगर कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ था. साल 2016, अयोध्या की नगर कोतवाली में नितिन कुमार पर धारा 135 में विद्युत अधिनियम का उल्लंघन करने पर मुकदमा दर्ज हुआ था.
साजिशकर्ता 3:
विमल पांडेय, भाभी बोलीं- उसे फंसाया जा रहा है. इसने ही कुरान के फटे हुए पन्ने फेंके. पता: ऑफिसर हॉस्टल टाइप-14 सिविल लाइन, अयोध्या.
बैकग्राउंड: विमल की मां PWD डिपार्टमेंट में काम करती हैं. वह 3 भाइयों में सबसे छोटा है. विमल का बड़ा भाई कमल अपनी पत्नी को गोली मारने के मामले में जेल में है. दूसरा भाई किसी लोकल चैनल में पत्रकार है. विमल भी लोकल यूट्यूब चैनल के लिए काम करता था.
अयोध्या बस स्टैंड से 1 किलोमीटर दूरी पर ऑफिसर हॉस्टल है. यहीं 2 कमरों के मकान में विमल रहता है. विमल की भाभी ने बताया, ‘उसको फंसाया गया है. विमल अपने चैनल के काम से गया था, लेकिन उसे इस घटना में फर्जी तरीके से खींच लिया गया. अभी 27 तारीख की रात में पुलिस हमारे घर आई और बिना कुछ बताए उसे पकड़ के ले गई है.’
ऑफिसर हॉस्टल में रहने वाले हिमांशु ने बताया, ‘विमल बहुत एटीट्यूड में रहता था. रात के 12 बजे तक कॉलोनी में घूमना-फिरना, बाइक भगाना उसकी आदत थी. मुझे लगता है कि उसने किसी के बहकावे में आकर ये काम किया है.’
विमल पर 2016 में 3 धाराओं में केस दर्ज हो चुका है. विमल का नाम साल 2016 में पहली बार चर्चा में आया. विमल पर धारा 323, 325, 504 में मारपीट, सरेआम गालीगलौज और हिंसा के मामले में केस दर्ज हो चुका है.
बचे हुए प्रत्यूष, बृजेश, शत्रुघ्न और दीपक का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है. अयोध्या में धार्मिक हिंसा फैलाने के मामले में गिरफ्तार 7 लोगों में से प्रत्युष, बृजेश, शत्रुघ्न और दीपक को पहली बार किसी मामले में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस के मुताबिक, महेश के कहने पर इन लोगों ने साजिश रचने में उसका साथ दिया था. ये सभी अयोध्या के ही रहने वाले हैं और हिंदू योद्धा संगठन से जुड़े थे.
साजिश कैसे रची गई ?
रफीक की दुकान चौक से गुदड़ी बाजार की तरफ जाने वाले एकदर्रा पर पड़ती है. एकदर्रा अयोध्या की ऐतिहासिक विरासतों में से एक है. रफीक बुक स्टोर भी 100 साल पुराना है. यहां पर काम वाले रफीक ने बताया, ‘दोपहर 2:30 से 3 बजे के बीच सिर पर टोपी लगाए हुए एक लड़का आया था. उसने 2 कुरान शरीफ मांगी थीं. कुरान खरीदने के बाद वो चुपचाप चला गया था.’
रफीक बुक स्टोर के ठीक सामने वाली दुकान पम्मी टोपी वाले की है. दुकानदार ने बताया, ’26 तारीख को दोपहर में एक लड़का दुकान पर आया था. 2 दिन बाद अलविदा जुम्मा था, इसलिए दुकान पर भीड़ लगी थी. मुझे ठीक से नहीं पता कि उसने कितनी टोपियां खरीदी थीं, लेकिन वो जल्दी ही यहां से चला गया था.’ पुलिस ने पकड़े गए लोगों के पास से 7 सफेद टोपियां बरामद की हैं.
लालबाग की रेलवे क्रासिंग के बगल वाली मार्केट में आशीर्वाद फ्लेक्स नाम की प्रिंटिंग प्रेस है. यहां के मैनेजर रमेश कुमार ने बताया, ‘4 बजे के करीब एक मूंछ वाले भइया दुकान पर आए थे. उन्होंने कहा कि फ्लैक्स रोल चाहिए. हमने पूछा क्या काम है, इस पर उन्होंने कहा कि घर की दीवार टूटी है, उसे ढंकना है. करीब 15 मिनट तक वो दुकान पर थे. इसके बाद सादा फ्लैक्स रोल लेकर वो यहां से चले गए.’
अयोध्या के पुलिस कप्तान शैलेश पांडे ने दैनिक भास्कर को बताया, ‘पूरी घटना का मास्टरमाइंड महेश कुमार मिश्रा है, जिसने दिल्ली के जहांगीरपुरी में हुई घटना के विरोध में दंगा कराने की साजिश रची थी. इसी ने बाकी 6 लोगों को धार्मिक स्थलों के बाहर आपत्तिजनक चीजें फेंकने के लिए प्रेरित किया था. इस मामले में किसी दूसरे संगठन या किसी व्यक्ति विशेष के होने का कोई लिंक नहीं मिला है. बरामद हुए 3 मोबाइल फोन में भी ऐसी कोई चैट या कॉल हिस्ट्री नहीं मिली है.’
शैलेश कहते हैं, ‘इस मामले में 11 लोग शामिल थे. इनमें से 7 को वारदात के बाद दो से तीन घंटे में ही गिरफ्तार कर लिया गया. बाकी 4 लोगों को पकड़ने के लिए दबिश दी जा रही है. इन पर इनाम की घोषणा भी की गई है.’
घटना में खास जानवर का मांस होने की बात को अयोध्या के DIG कवींद्र प्रताप सिंह ने सिरे से नकार दिया. उन्होंने कहा, ‘यहां एक खास जानवर का मांस यूज हुआ कि नहीं ? इस पर फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि इन्वेस्टिगेशन अभी जारी है. सोशल मीडिया पर ऐसी खबरों का आना ठीक नहीं है.’
इन दंगाइयों का भविष्य क्या है ?
इन दंगाईयों ने जिस तरह दंगा भड़काने का प्रयास किया है, और सत्ता के राजनीतिक गलियारों में जिस हिन्दुत्व के नाम पर फासिस्ट ताकतें हमलावर है, इससे काफी हद तक यही लगता है कि इन दंगाइयों का विशाल स्वागत किया जायेगा और अदालतें थोड़े ही वक्त के बाद इसे रिहा करेगा और ये दंगाई सत्ता की गलियारों मे अपना मजबूत कदम रखेगा. अदालतों का कथन याद रखना चाहिए – मुस्कुराते हुए दंगा भड़काना अपराध नहीं होता.
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