उसने जैसे ही जेल गेट से अंदर कदम रखा, कुछ मुस्कराते हुए चेहरे उसे दिख रहे थे, एक सिपाही ने आकर उसकी कलाई में बंधी रस्सी का छोर अपने हाथ में ले लिया और आगे चल पड़ा. कुछ और भी गेट मिले जहां उसकी चेकिंग हुई, अब उसे फाइनली उसके कमरे तक पहुंचा दिया गया.
‘देखने से तो आप पढ़े-लिखे लगते हो, किस केस में आए हो ?’ एक सिपाही ने पूछा.
‘मैं लेखक हूं,’
उसने भौंचक्क होकर उसकी ओर देखा.
‘यहां आपको किसी चीज की दिक्कत नहीं होगी’,- लौटते हुए सिपाही ने कहा.
‘सुना है जेल का खाना अच्छा नहीं होता.’
वह मुस्कराया,- ‘यहां सब मिलता है.’
कहता हुआ वह चला गया.
सुबह जब उसके कमरे का ताला खोला गया और वह बाहर निकला कई कैदी उसे घेर कर बातें करने लगे.
‘नाम, पता, अपराध…..’ – कई तरह के सवालों की झड़ी.
जब उसने अपना सबकुछ बता दिया तो चर्चा का एक नया विषय पैदा हो गया.
‘साहब पढ़े लिखे हैं, गरीब लोग के लिए लिखते थे, इसलिए झूठे केस में फंसाए गए हैं. करप्ट सिस्टम में यही होगा, ईमानदार आदमी कहीं का न रहेगा.’ – पूरे जेल में यह बात फैल गई.
‘साहब सिस्टम के साथ टक्कर लोगे तो यही होगा.’ – सिपाही भी बोलते.
‘पर अफसोस किसे है, मैं कुछ गलत नहीं किया हूं.’ – वह भी कहता.
अब तो उसे वहीं रहना था सारे कैदियों के साथ, कुछ बहुत पैसे वाले थे तो कुछ गरीब, कोई लूट के मामले में अंदर आया था तो कोई धोखाधड़ी में, कोई ऐसा भी था जिसे करप्ट पुलिस वालों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़नी पड़ी थी. पर चाहे कैदी किसी भी तरह के थे, उसे सभी प्यार करते थे, उसका सम्मान करते थे.
‘हम तो अपनी करनी का भुगत रहे हैं, पर यह तो अपनी नेकनियती का भुगत रहे हैं’, – कई बार कैदियों के मुंह से ऐसी बातें सुनने को आती.
कुछ दिन गुजरा तो एक दिन उसने खाने का मेन्यू देखा. यह देखकर वह हैरान था कि खाने पर जेल मेन्युअल के हिसाब से कुछ भी नहीं था, खाना बिल्कुल बदतर था, जिसके कारण पूरे जेल में कैदियों का अपना चूल्हा जलता था, कैदी बड़ी-बड़ी रकम देकर स्वादिष्ट खाना खरीदते थे.
‘जेल मैन्युअल के हिसाब से खाना तो नहीं है.’ -कुछ दिन लगातार खाने के सिस्टम को देखकर एक दिन उसने सिपाही से कहा.
‘हमने कहा तो यहां सब मिलता है’ – सिपाही ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘थोड़ा पैसा लगेगा दोस्त, पर दिक्कत नहीं होगी.’ – एक कैदी साथी ने समझाया.
‘मैं पैसे नहीं दूंगा.’
उसके थाली में हर रोज सबसे बेस्वाद खाना आता था, जिसके कारण वह हर रोज एक विरोधी स्वभाव के खुद में पैदा होने का आभास पाता था.
‘हमें जेल मेन्युअल के हिसाब से खाना दिया जाए.’ -वह अक्सर सिपाहियों से कहता.
‘क्यों छोटी-सी बात को तूल देते हैं सर.’ – जेल सिपाही उसका बड़ा सम्मान करते थे.
‘यहां जेल मेन्युअल के हिसाब से खाना नहीं मिलता.’ – वह जब भी वकील से मिलता कहता.
‘देश में कौन सी जेल होगी, जहां जेल मेन्युअल के हिसाब से खाना मिलता है, कुछ पैसे देकर अच्छा खाना खाया कीजिए.’ – वकील सलाह देते.
‘आप इसके लिए कोर्ट में आवेदन दिजिए.’ – वह कहता.
‘यह बचकाना सोच है.’ -वकील समझाते, पर वह अपनी हठ से हिलता न था. दिन प्रतिदिन इसे लेकर वह गंभीर होता जा रहा था, कुछ ही दिनों में उसका हेल्थ गिरकर आधा हो चुका था. घर वाले जब भी उससे मुलाकात को आते उसकी सेहत को देखकर बहुत चिंतित होते, पर वे जिससे भी यह बात शेयर करते वे यही कहते यह फालतू की ज़िद्द है, जेल में अच्छा खाना सभी जानते हैं खरीदकर खाई जाती है, कुछ पैसे दे लेकर हर सुविधा उपलब्ध है वहां.’
कुछ ही दिनों बाद उसे कमजोरी महसूस होने लगी थी, उसने अपना मन बहलाने के लिए एक दिन सिपाही को कहा- ‘एक कलम और काॅपी मिलेगी ?.’
‘कॉपी-कलम ?’ – सिपाही भौंचक्का रहा.
इस बार फोन पर जब बात हुई, उसने घर वालों को कॉपी और कलम लाने को कह दिया था, जब मुलाकात हुई तो परिवार वालों ने बताया कि ‘कॉपी, कलम भेज दिए है उसके लिए सिपाही को पच्चास रूपये देने पड़े.’
“पैसै क्यों दिए ?”- वह गुस्साया.
जब सामान रिसिव किया उसमें कॉपी और कलम न थी.
‘मेरी कॉपी और कलम ?’ उसने सिपाही से पूछा.
‘सर ने जाने से मना कर दिया है.’ – थोड़ी आनाकानी के बाद सिपाही ने बताया.
‘क्यों ?’
उसे क्यों का जवाब न मिला. दूसरे ही दिन उसकी जगह बदल दी गई. अब उसे सेल में डाल दिया गया था, जहां सात और लोग थे, जहां छोटा-सा उसका कमरा था और एक थोड़ा बड़ा बरामदा, वे उस बरामदे से बाहर अब नहीं जा सकते थे.
‘मुझे कलम और कॉपी चाहिए.’ – उसने जमादार से कहा पर कोई फर्क नहीं पड़ा. जब सिपाही खाना देने आए तो उसने कह दिया – ‘जब तक कॉपी, कलम नहीं मिलेगी मैं खाना नहीं खाऊंगा.’
एक दिन वह अनशन पर बैठा रहा, उसने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा कर दी थी. पर दूसरे दिन ही उसे कॉपी, कलम पहुंचा दी गयी।
जो सिपाही वह लेकर आया था, उसने कहा- ‘सर आप यह सब मत किया कीजिए, इससे आपको नुकसान होगा. आप अकेले इस सिस्टम को नहीं बदल सकते. क्यों प्रशासन के साथ दुश्मनी मोल रहे हैं. आप अच्छे इन्सान है इसलिए चाहता हूं आप को दिक्कत न हो.’ सिपाही की बात सुन वह मुस्कराया,
जब सिपाही खाना देने आए, उसने एक पेज सिपाही की ओर बढ़ाया- ‘यह एक आवेदन है जेलर के नाम.”
‘क्या है इसमें ?’
आवेदन, कुछ मांगों के लिए हैं. जेल मेन्युअल के हिसाब से खाना दिया जाए, पढ़ने-लिखने की सुविधा दी जाए, उचित चिकित्सकीय सुविधा … इस तरह की कुछ मांगे हैं.’
‘क्या ?’ – सिपाही चौंका.
‘सर, इससे कुछ नहीं होगा, आपकी समस्या बढ़ जाएगी’ – कहता हुआ वह उसे लेकर चला गया. यह पहला दिन था जब कॉपी और कलम मिली थी.
रात के समय जब हल्की रौशनी के साथ बल्ब जल रही थी, उसने कलम चलाई और लिखना शुरू किया –
‘हां मुझे पता है मैं जो मांगे रख रहा हूं वह बहुत ही सामान्य मानी जाती है क्योंकि यहां के भ्रष्ट सिस्टम में उसका महत्व नहीं रह जाता, पर मेरी नजर में वे विशेष है क्योंकि मैंने इसी कारावास में उन सूनी आंखों को देखा है, जिसे पुलिस वाले ने इसलिए पकड़ लिया कि उनके पास उनकी जेब गर्म करने को पैसे न थे, कि जेल में उनके थालियों में बद से बदतर खाना होता है क्योंकि उनके जेब में पैसे नहीं होते है, उनके अपने उनसे मिलने नहीं आ पाते, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं हैं, उन्हें वकील उपलब्ध नहीं है क्योंकि वकील की फीस वहन करने की उनकी क्षमता नहीं है, और वे जेल में सड़ते रहेंगे क्योंकि जेल का खाना आहिस्ता-आहिस्ता उनके शरीर को तोड़ने में अपना काम कर रहा है, खाना बदतर और सेहतमंद नहीं होने के कारण वे किसी बीमारी से आजीवन पीड़ित होने की पूरी संभावना में जी रहे है.
कल को यदि उनके लिए सलाखें खुल भी जाएंगी तो जेल का बदतर खाना, रहन, सहन, चिकित्सकीय सुविधा के अभाव के कारण सौगात के रूप में कोई भयानक बीमारी हमेशा के लिए उन्हें मिल जाएगा.
मैं जब इस चीज के बारे में सोचता हूं तो आंखें बंद नहीं कर पाता. उन जैसे लोगों के दर्द जो इन जेलों में कैद होकर रह जाती है, मैं अपनी क्षमता तक उसे बदलने का प्रयास तो कर सकता हूं, अगर सभी चुप रहेंगे तो क्या यह सिस्टम उनकी जिंदगी से खिलवाड़ कभी बंद करेगा ? मेरी लड़ाई अपने हिस्से की एक ईमान की रोटी की नहीं है, मेरी लड़ाई उनकी जिंदगी के साथ इस चारदिवारी में हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ है….’.
वह अभी लिख ही रहा था कि कुछ सिपाही आए साथ में उनके एक लिफाफा था – ‘आपको ट्रांसफर करने का ऑर्डर आया है, सुबह तैयार रहिएगा, सेंट्रल जेल भेजा जा रहा है.’
दूसरे दिन उसे कैदी वाहन वहां से लेकर दूसरी जगह चल पड़ी. शाम तक वह अपने ठिकाने पर था, जहां एक कमरा था छोटा सा और बहुत ही छोटा बरामदा, सिवाय उसके वहां और कोई नहीं था. शाम हो चुकी थी इसलिए कमरा बंद कर दिया गया था. सुबह सिपाही के ताला खोलने की आवाज से उसकी नींद खुली. सिपाही ने कमरे का दरवाजा खोल खाना दिया और फिर कमरा बंद करने लगे.
‘क्या यह नहीं खुलेगा ?’
‘नहीं’ – सिपाही ने जवाब दिया. यहां सिवाय उसके और कोई नहीं था. कुछ देर कमरे में चहलकदमी करने के बाद उसने काॅपी निकालने के लिए बैग में हाथ डाला, पर कॉपी गायब थी.
- इलिका
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