जब संघी आरएसएस (रॉयल सीक्रेट सर्विस) में थे, तब अंग्रेजों की मुखबिरी करते थे और अब संघी आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक) होकर संवैधानिक पदों पर बैठकर लोकतंत्र (विपक्षियों और विरोधियों के अलावा जनता) की मुखबिरी करते हैं. ये भले ही ‘राष्ट्रवाद-राष्ट्रवाद’ चिल्लाये लेकिन दोगलापन इनके खून में है. ये तब भी देशद्रोही थे और अब भी देशद्रोही है.
दुनियाभर की 17 स्वतंत्र पत्रकारिता एजेंसियों के पत्रकारों ने मिलकर एक संयुक्त जांच से रिपोर्ट तैयार की है कि इजराइल की एक कम्पनी है, जिसने एक जासूसी करने वाला स्पाईवेयर बनाया है, जो वो सिर्फ विभिन्न देशों की सरकारों को बेचती है. और उसके खरीददारों की लिस्ट में भारत की मोदी सरकार भी है, जिसने इसकी खरीददारी की है.
इस स्पाईवेयर से किसी के फोन की निगरानी की जा सकती है और इसका नाम है पेगासस. इसके जरिये 300 खास नंबरों पर निगरानी करने के सबूत भी मिले हैं, जिसमें खुद केंद्र सरकार के कई मंत्री भी शामिल हैं. (अब आपको समझ आ गया होगा कि हालिया वाकये में 12 मंत्रियों के इस्तीफे जबरन क्यों लिये गये थे ? उन पर पेगासस के जरिये निगरानी रखी जा रही थी.
इसके अलावा अभी जो कानून सोशल मिडिया पर लागु किया गया था वह भी इसीलिये था कि विरोधियों की जासूसी फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्वीटर इत्यादि सोशल प्लेटफार्मो के जरिये करवाई जा सके. इसी से सरकार ने कहा था कि कोई भी वायरल पोस्ट के प्रथमकर्ता का विवरण उस सोशल प्लेटफॉर्म के अधिकारियों को देना पड़ेगा और अगर नहीं देंगे तो उसकी जवाबदेही उस सोशल प्लेटफॉर्म की होगी. (ऐसा इसलिये करना पड़ा क्योंकि 140 करोड़ लोगों की निगरानी या जासूसी करना पेगासस से भी संभव नहीं क्योंकि उसकी भी लिमिटेशन है.)
इस स्पाई वेयर को NSO ग्रुप ने डेवलप किया है, जिसके खिलाफ यूएसए के न्यायलय में मुकदमा भी दायर हुआ है. क्योंकि पेगासस स्पाइवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो उपयोगकर्त्ताओं के मोबाइल और कंप्यूटर से गोपनीय एवं व्यक्तिगत जानकारियां चोरी करता है एवं उन्हें नुकसान पहुंचाता है. इस तरह की जासूसी के लिये पेगासस ऑपरेटर एक खास लिंक उपयोगकर्त्ताओं के पास भेजता है, जिस पर क्लिक करते ही यह स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर उपयोगकर्त्ताओं की स्वीकृति के बिना स्वयं ही इंस्टाॅल हो जाता है. (इसका इंस्टालेशन ज्यादातर स्थितियों में व्हाट्सप्प के जरिये होता है और उसके बाद आप क्या टाइप कर रहे हैं, वह तक रिकॉर्ड हो जाता है.)
इसके न्यू वर्जन में लिंक की भी आवश्यकता नहीं होती, यह सिर्फ एक मिस्ड वीडियो काॅल के द्वारा ही इंस्टाॅल हो जाता है..पेगासस स्पाइवेयर इंस्टाॅल होने के बाद पेगासस ऑपरेटर को फोन से जुड़ी सारी जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं. पेगासस स्पाइवेयर की प्रमुख विशेषता यह है कि यह पासवर्ड द्वारा रक्षित उपकरणों को भी निशाना बना सकता है और यह मोबाइल के रोमिंग में होने पर डेटा नहीं भेजता.
पेगासस मोबाइल में संगृहित सूचनायें, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे कम्युनिकेशन एप के संदेश स्पाइवेयर ऑपरेटर को भेज सकता है. यह स्पाइवेयर, उपकरण की कुल मेमोरी का 5% से भी कम प्रयोग करता है, जिससे प्रयोगकर्त्ता को इसके होने का आभास भी नहीं होता.
पेगासस स्पाइवेयर ब्लैकबेरी, एंड्रॉयड, आईओएस (आईफोन) और सिंबियन-आधारित उपकरणों को प्रभावित कर सकता है. पेगासस स्पाइवेयर ऑपरेशन पर पहली रिपोर्ट वर्ष 2016 में सामने आयी थी (उस समय भी मैंने इसके बारे में लिखा था), जब संयुक्त अरब अमीरात में एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता को उनके आईफोन 6 पर एक एसएमएस लिंक के साथ निशाना बनाया गया था.
इसे आसान भाषा में ऐसे समझिये कि स्पाइवेयर एक प्रकार का मैलवेयर है, जो डिज़िटल डिवाइस जैसे- कंप्यूटर, मोबाइल, टेबलेट से गुप्त एवं निजी जानकारियां चुराता है. यह जीमेल अकाउंट, बैंक डिटेल्स, सोशल मीडिया से लेकर टेक्स्ट मैसेज जैसी गतिविधियों पर नज़र रखता है एवं वहां से डेटा चोरी करके अपने ऑपरेटर तक पहुंचाता है. यह ज़्यादातर नवीनतम डिवाइस मॉडल और ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ जुड़ा होता है. इन्हें इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि डिवाइस यूज़र को डिवाइस में स्पाइवेयर के होने का पता न चल सके.
ऐसे स्पाई वेयर प्रोग्रामों से बचने के लिये किसी भी अनजान लिंक या अनजान वीडियोकॉल पर क्लिक न करे और ऐसी किसी डिजिटल जासूसी से बचने के लिये कंप्यूटर एवं मोबाइल में एंटी स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के साथ ही समय-समय पर उसे अपडेट करते रहें. इंटरनेट पर कोई जानकारी सर्च करते समय केवल विश्वसनीय वेबसाइट पर ही क्लिक करें. इंटरनेट बैंकिंग या किसी भी ज़रूरी अकाउंट को कार्य पूरा होने के पश्चात् तुरंत लॉग आउट करें.
पासवर्ड टाइप करने के बाद ‘रिमेंबर’ पासवर्ड या ‘कीप लॉगइन’ जैसे ऑप्शन पर क्लिक न करें. साइबर कैफे, ऑफिस या सार्वजनिक सिस्टम पर बैंकिंग लेन-देन न करें. जन्मतिथि या अपने नाम जैसे साधारण पासवर्ड न रखे, पासवर्ड में लेटर, नंबर और स्पेशल कैरेक्टर का मिश्रण रखें. सोशल मीडिया, e-Mail, बैंकिंग इत्यादि के पासवर्ड अलग-अलग रखें. बैंक के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन करें. बैंक की तरफ से आये किसी भी तरह के अलर्ट मेसेज को नज़रअंदाज़ न करें एवं डेबिट कार्ड का पिन नंबर नियमित अंतराल पर बदलते रहें.
क्या यह कोई नई ख़बर है ? नहीं. खुद मैंने महीनों पहले सरकारी जासूसी पर लिखा था लेकिन तब भगवा हिंदूवाद सिर चढ़कर बोल रहा था और लोगों ने इसे हंसकर हवा में उड़ा दिया था. अब क्या हुआ ? पेगासस के ज़रिए पत्रकारों, मंत्रियों, जजों, विपक्षी नेताओं की जासूसी पर इतना कोहराम क्यों ?
कौन नहीं जानता कि इसे किसने करवाया होगा ? कौन नहीं जानता कि मोदी सरकार क्यों जासूसी करवा रही है ? क्यों उसे देश के कुछ सच बोलने/लिखने वालों से डर है ?क्या प्रेस कौंसिल या एडिटर्स गिल्ड इस पर संज्ञान लेगा ? क्या सुप्रीम कोर्ट सरकार से जजों के फ़ोन टैप करने के मामले में मोदी सरकार से जवाब मांगेगी ? और क्या संसद खुद इस मामले की निष्पक्ष जांच का आदेश देगी ?
आप कहेंगे- नहीं, नहीं, नहीं. फिर भी लोकतंत्र की बात होती है. UPA राज में राडिया टेप कांड हुआ था, तब भी फ़ोन टैपिंग पर बवाल कटा था. दरअसल, आप एक जहरीले सांप को मुंह से पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इस सांप ने देश की तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं को जकड़ रखा है.
जब यह सब हो रहा था और सोशल मीडिया पर इसकी गूंज सुनाई पड़ रही थी, तब आपको देश में हिन्दू राज के लिए यही ज़रूरी लग रहा था. क्या आप गोदी मीडिया देखना छोड़ेंगे ? क्या मीडिया मोदी सरकार की प्रेस वार्ताओं का कवरेज करना छोड़ेगी ? एक बार फिर जवाब होगा- नहीं.
संसद में कुछ तृणमूल सदस्य साईकल पर आए. क्या आप पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर साईकल को विरोधस्वरूप अपनाएंगे ? जवाब होगा- नहीं. आप अपने कम्फर्ट ज़ोन में बैठकर विरोध करना चाहते हैं. आपको लगता है कि आप सुरक्षित हैं.
आपके मोबाइल/लैपटॉप में एक छोटा सा संदेश/ईमेल जासूसी की वजह बन सकता है. ये बीते 2 साल से हो रहा है. बहुतों को मालूम है. चुनाव के दौरान यह बढ़ जाता है. सिर्फ 40 नहीं, 200 से ज़्यादा पत्रकारों के फ़ोन टैप हुए.
नैरेटिव यह है कि मोदी सरकार तानाशाही से देश चला रही है. वह सच से डरती है और झूठा दुष्प्रचार उसके लिए कुर्सी पर टिके रहने का सहारा है. फ़ोन टैपिंग का यह मामला मोदी सरकार को ज़रा भी हिलाने वाला नहीं है, क्योंकि उसकी खाल मोटी है और शर्म, नैतिकता उनकी डिक्शनरी में नहीं है. वह चाहेगी कि इससे सच बोलने वालों में ख़ौफ़ फैले. वे ज़ुबां बंद रखें लेकिन क्या सच इससे पराजित होगा ? बिल्कुल नहीं.
मणिपुर की लायचोबाम एरेन्द्रो ने भी गौमूत्र और गोबर से कोविड ठीक न होने को लेकर फेसबुक में सच लिखा. सरकार ने उन्हें रासुका लगाकर जेल में भर दिया. क्या हुआ ? आज शाम तक लायचोबाम की रिहाई के आदेश दिए गए हैं, ये संघी सरकार की हार है.
ऐसी ही छोटी-छोटी लड़ाइयां एक दिन बड़ी लड़ाई बन जाती हैं. इंसान बेख़ौफ़ हो जाता है. वह और मजबूती से सवाल उठाता है. लायचोबाम की राह पर चलने के लिए तमाम सुविधाओं की कुर्बानी देनी होगी, कर सकेंगे ? हम ऐसे फ़ोन टैपिंग से नहीं डरने वाले. हमारा सच और भी मज़बूत और बुलंद होगा. यही मेरा सच है और यही खबर है.
स्नूपगेट की क्रिमिनोलॉजी को ऐसे समझें
जासूसी के लिए इजराइली पेगासस स्पाईवेयर का एक लाइसेंस 70 लाख का पड़ता है. 2016 में इजराइली कंपनी NSO ने भारत में 10 लोगों की जासूसी के लिए 9 करोड़ रुपये वसूले. अब पेगासस प्रोजेक्ट में मोदी सरकार की जासूसी का शिकार बने 210 नाम सामने आये हैं यानी नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश में लोकतंत्र को ख़त्म करने के लिए 2000 करोड़ फूंक दिए.
आम जनता के टैक्स से आये इस पैसे से 120 केंद्रीय विद्यालय, 2 AIIMS या 500 सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र बन सकते थे लेकिन मोदी को विकास थोड़े न करना है, उसे तो देश बेचना है.
फ्रांसीसी अखबार ‘ला मोंड’ लिखता है कि नरेंद्र मोदी जब जुलाई 2017 में इजरायल गया था, तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति बेंजामिन नेतान्याहू से उसकी लंबी मुलाकात हुई थी. इसके बाद ही पेगासस स्पाईवेयर का भारत में इस्तेमाल शुरू हुआ, जो आतंकवाद और अपराध से लड़ने के लिए 70 लाख डॉलर में खरीदा गया था.
‘खरीदा गया था’ इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि दुनिया के 45 से ज़्यादा देशों में इसका इस्तेमाल होता है, फिर भारत पर ही निशाना क्यों ? यानी नकल तो सब मार रहे हैं, लेकिन सिर्फ मुझे ही सज़ा क्यों ?
मोदी सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल सिर्फ अपने ही लोगों पर नहीं, बल्कि चीन, नेपाल, पाकिस्तान, ब्रिटेन के उच्चायोगों और अमेरिका की CDC के दो कर्मचारियों की जासूसी तक में किया. हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार ने कई राजनयिकों और विदेशी NGO के कर्मचारियों की भी जासूसी की.
पेगासस का लाइसेंस अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत मिलता है और इसका बेज़ा इस्तेमाल कर मोदी सरकार ने नियमों को तोड़ा है. पेगासस की कंपनी NSO को भारत सरकार से स्पाईवेयर का लाइसेंस तुरंत रद्द कर देना चाहिए.
राजनयिकों और उच्चायोगों की जासूसी एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है. देखना यह है कि वैश्विक बिरादरी भारत सरकार के खिलाफ क्या कदम उठाती है. अमित शाह को इस मामले में बलि का बकरा बनाना ठीक नहीं. ज़िम्मेदार तो नरेंद्र मोदी है, इस्तीफा उसे ही देना होगा.
पं. किशन गोलछा जैन, सौमित्र राय एवं अन्य