किसान आन्दोलन से निकली ऊर्जा का प्रयोग सत्ता पर कब्जा करने में करने में करनी चाहिए, भले ही इसका माध्यम चुनाव ही क्यों न हो. आगामी पांच राज्यों की चुनाव में किसान आन्दोलनकारियों को सत्ता पर अगर कब्जा करने की कोशिश करनी चाहिए. अगर यह न की गई तो वह दिन दूर नहीं जब सत्ता अन्य तमाम आन्दोलनों की ही भांतिइस किसान आन्दोलन को भी कुचल डाले बल्कि सत्ता और भी भयानक खूंखार रूप धारण कर ले.
2011 के अन्ना आन्दोलन, जिसका महत्वपूर्ण प्रेरक शक्ति अरविन्द केजरीवाल थे, के दौरान निकली विशाल ऊर्जा का इस्तेमाल अपने एजेंट अन्ना हजारे के माध्यम से आरएसएस ने बखूबी कर लिया. आरएसएस इस विशाल ऊर्जा का इस्तेमाल कर भाजपा को देश की सत्ता पर काबिज कर समूचे देश को प्रतिक्रियावादी अंधेरे में झोंक दिया. ठीक यही हालत पिछले एक वर्ष से जारी किसान आन्देालन का साथ भी होने वाला है, यदि किसान आन्दोलन अपने आन्दोलन से निकली विशाल ऊर्जा का इस्तेमाल खुद कर देश की सत्ता पर काबिज होने का फैसला नहीं लेता.
दुनिया के इतिहास में सबसे लम्बा चलने वाले किसान आन्दोलन न केवल समूचे देश को ही अपितु सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है. इस आन्दोलन ने पूरी दुनिया में एक विशाल ऊर्जा का निर्माण किया है, जिसके इस्तेमाल के लिए भाजपा की ही तरह अन्य तमाम प्रतिक्रियावादी ताकतें मूंह बांये खड़ी है. क्या अखिलेश, क्या मायावती, क्या कांग्रेस, क्या बादल, क्या अमरिंदर सिंह … आदि आदि जैसे तमाम नरभेड़िया इस ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए अपना-अपना दाव लगा रहा है.
अन्ना आन्दोलन से निकली विशाल ऊर्जा का ही इस्तेमाल कर भाजपा ने देश की सत्ता को कब्जा किया, वहीं एक छोटा घड़ा, जो अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में था, इस ऊर्जा के एक छोटे हिस्से का ही इस्तेमाल कर पाया और एक आधे-अधूरे राज्य दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया. इस आधे-अधूरे राज्य की सत्ता पर कब्जा करन के बाद ही अरविन्द केजरीवाल ने देश समेत सारी दुनिया में एक मिसाल पेश किया था. अगर अरविन्द केजरीवाल अन्ना आन्दोलन से निकले समूची ऊर्जा का इस्तेमाल पूर्णतः कर पाते तो निःसंदेह देश आज मोदी सरकार के इस प्रतिक्रियावादी खेमे को न झेल रहा होता.
हर आन्दोलन का अंतिम लक्ष्य सत्ता हासिल करना होता है. अगर कोई आन्दोलन अपने लक्ष्य सत्ता को हासिल नहीं कर पाती है तो वह बेमौत मारी जाती है और प्रतिक्रियावादी शक्तियां और ज्यादा ताकतवर होकर उसे हद दर्जे तक कुचल डालती है. भारत के किसान आन्दोलनकारियों को इस ऐतिहासिक सीख से सबक हासिल करना ही होगा.
मौजूदा जारी किसान आन्दोलन अगर अब अपनी समूची ऊर्जा का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने की दिशा में नहीं कर पाती है, तो वह दिन दूर नहीं जब इस आन्दोलन से निकली ऊर्जा का इस्तेमाल प्रतिक्रियावादी शक्ति कर लेगा और सत्ता हासिल कर और ज्यादा निर्मम तरीके से किसाना आन्दोलन पर हमला कर किसान आन्दोलन को पूरी तरह कुचल डाले.
मौजूदा किसान आन्दोलन को देश के पांच राज्यों में होने वाले आगामी चुनावों में हिस्सा जरूर लेना चाहिए, ताकि प्रतिक्रियावादी शक्तियों को तो इस ऊर्जा के इस्तेमाल से तो रोका ही जा सके बल्कि एक कदम आगे बढ़कर आन्दोलन को एक नई गति से संचालित की जा सके, जो सत्ता पर काबिज होकर और भी बेहतरीन ढ़ंग से संचालित की जा सकती है.
हमें याद रखना चाहिए कि किसान आन्दोलन ने अपने एक वर्ष के दौरान जिस असीम ऊर्जा का उत्पादन किया है, उसका इस्तेमाल कर देश की सत्ता पर काबिज होना उसकी पहली प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए, वरना इस ऊर्जा का इस्तेमाल प्रतिक्रियावादी ताकतें कर लेंगी. क्योंकि हम सभी जानते हैं कि भारतीय प्रतिक्रियावादी राजसत्ता बेहद ताकतवर है. उसके पास काफी ज्यादा आधुनिक शस्त्रागार और संगठित सैन्य ताकतें हैं. उससे केवल फौजी तरीके से ही निपटना असंभव नहीं तो बेहद कठिन अवश्य है.
किसान आन्दोलन ने महान क्रांतिकारी चारू मजुमदार की इस उक्ति को सही साबित कर दिया है कि इस अर्द्ध-सामंती, अर्द्ध-औपनिवेशिक देश में कृषि क्रांति करनी होनी, जिसकी धुरी किसान होंगे. एक वर्ष से लगातार जारी किसान आन्दोलन ने संभवतः देश में पहली बार इस तथ्य को स्थापित भी कर दिया है.
हर क्रांति का पहला लक्ष्य सत्ता पर कब्जा करना होता है. अगर वह क्रांति सत्ता पर काबिज नहीं हो पाती है, तो वह चाहे कितना ही प्रगतिशील और ऊर्जावान क्यों न हो, वह न केवल खत्म हो जायेगी अपितु अपने कोख से हिटलर जैसे ख्ूांखार राक्षस को भी पैदा कर देगी. अन्ना आन्देालन इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है.
पिछले 5 दशक से जारी हथियारबंद आन्दोलन जो अपनी बेहतरीन नीतियों की बदौलत देश में क्रांति की आग तो जलाये हुए है हीं, लेकिन हर दिन अपनी शहादतों की लिस्ट लम्बी करने के बाद भी आज तक सत्ता से कोसों दूर खड़ी है, जहां वह हर कदम भारत की प्रतिक्रियावादी सत्ता के रक्त पिपाशु गिरोह की प्यास बुझा रही है और अपने बहादुर योद्धाओं को खो रही है.
ऐसे में निःसंदेह किसान आन्दोलन के अगुआ संयुक्त किसान मोर्चा को आगे बढ़कर सत्ता की चूले थाम लेनी चाहिए. आगामी पांच राज्यों की चुनावों में किसान आन्दोलन से निकली असीम ऊर्जा का इस्तेमाल कर सत्ता पर काबिज हो जाना ही किसान आन्दोलन की अगली रणनीति होनी चाहिए. इससे इतर हर कदम किसान आन्दोलन को न केवल रसातल में ही धकेलेगी, बल्कि भारतीय राजसत्ता को और ज्यादा खूंखार बनायेगी, एक और नये राक्षस के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी.
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