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पटना में बाढ़ जैसे हालात, आम ज़िन्दगी और सरकार

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पटना में बाढ़ जैसे हालात, आम ज़िन्दगी और सरकार

Md. Belalमो. बेलाल आलम, सामाजिक कार्यकर्ता, हेल्पिंग हैंड, पटना

27 सितंबर की रात से हुई लगातार 3 दिनों की बारिश ने आम जन जीवन को इस प्रकार प्रभावित किया जैसा किसी ने सपनों में भी नहीं सोचा होगा. तेज़ बारिश और तूफान ने अपने सामने आने वाले सभी चीज़ों को तबाह कर डाला और एक वीरान-सी खामोशियों ने सबको समेट लिया.

लगातार 3 दिनों की बारिश से चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी दिख रहा था. रोड और गलियोंं के साथ-साथ मकानों में भी पानी घुस चुके थे. अपनी आंखों से देखा हुआ वो तबाही का मंजर बहुत ही भयभीत कर देने वाला था. बारिश के पानी के साथ-साथ जब बिजली कट जाने से पीने के पानी की जबरदस्त समस्या पैदा हुई तो तब पटना की सड़कों पर अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया.

लोग बेतहाशा बाल्टी और बर्तन लेकर पानी के लिए दौड़ रहे थे. आलम ये हो चुका था कि 15 लीटर पानी का एक गैैैलन 200 रुपए में बिक रहा था, जो आम दिनों में 20-25 रुपये में मिला करता था. मेरे आंंखों से देखा हुआ वो वक़्त बहुत दुःख दिलाता है.

हमारा पटना एक शहर है. यहांं न तो चापाकल देखने को मिलेगा और न ही कुआंं. ऐसे में यहां हमारी ज़िंदगी केवल बिजली पर निर्भर करती है. बिजली नहीं तो ज़िन्दगी का आधार ही खत्म हो जाता है. एक तरफ बारिश की तबाही और दूसरी तरफ बिजली का न रहना. ऐसा मालूम होता था कि ज़िन्दगी फ़ना-सी हो गई है.

हैल्पिंग हैंड्स के कार्यकर्ता

3 दिनों बाद जब बारिश का कहर रुका तब तक सड़कों और गलियों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए थे. लोग अपने घरों में बंदियों की तरह कैद नज़र आए. पटना के कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ चुकी थी. कंकड़बाग, हनुमान नगर, कुम्हरार, राजेन्द्र नगर, सैदपुर, बज़ार समिति, सब्जीबाग, लंगर टोली या कहे तो पूरा पटना पानी में डुुब चुका था.

पटना के राजेन्द्र नगर का आंंखों देखा हाल मैं क्या बताऊंं. तीसरे दिन जब बारिश थमी तो मेरी राहत टीम (हेल्पिंग हैंड्स) राजेन्द्र नगर की ओर रवाना हुई. जैसे-जैसे दिनकर गोलम्बर की तरफ आगे बढ़ता गया, पानी का स्तर भी बढ़ता जा रहा था. हमारी हेल्पिंग हैंड्स युवा टीम पटना ने हिम्मत और साहस के साथ एक जुट होकर आपदा से लड़ा और लोगों तक हर संभव मदद पहुंंचाई.

दिन 4 – राजेन्द्र नगर के रोड न. 3, 4, 5, 7, 8 में पानी का स्तर गर्दन तक था और कई इलाकों में तो सर से ऊपर पानी था.

बाढ़ जैसी हालात में पीने को पानी नहीं, न खाने को खाना. भूखे-प्यासे लोग अपने घरों के छतों पर और बालकोनियों में इसी आशा के साथ खड़े थे कि कोई रहनुमा आकर उनकी मदद करेगा.

वे मासूम बच्चे जो रोज़ अपनी गलियों में खेला करते थे, उनके हंसी न जाने कहां खो-सी गई थी. वे जवान और बूढ़े लोग हालात से जूझ रहे थे. महिलाओं का रो-रो कर बुरा हाल था. जैसे ही कोई मदद के लिए खाने-पीने का सामान ले कर आता, सभी लोग अपने-अपने घरों के आगे आ जाते थे.

बात सिर्फ यही तक ही सीमित नहीं रही. कई लोग तो अपना घर और समान सब कुछ छोड़ कर पलायन कर गए. पटना के सभी छात्र अपने-अपने घरों को लौट गए. हालत तो खराब रही उन सभी छात्रावासों की, जहांं लड़कियांं रहती थी. पटना के सभी गर्ल्स हॉस्टल जहांं पानी सर तक पहुंंच गया था, वहांं की लड़कियों का भूख और प्यास से बुरा हाल था.

सरकार की तरफ से एनडीआरएफ की टीम केवल एक दिन, 5वें दिन फ़ूड पैकेट हेलिकॉप्टर से आपदा ग्रसित इलाकों में गिराया लेकिन ये तो सिर्फ नाम का काम था. 50 से 60 फीट की ऊंंचाई से गिराया गया समान या तो उस जगह गिरा जहां पानी था या तो छतों पर गिर कर फट गया, जो बचा और लोगों ने जब पैकेट खोला तो वो खाने के लायक नहीं था.

अगर बात करें SDD के टीम की तो वो सिर्फ मेडिकल बोट ले कर घूम रहे थे और कुछ खास लोगों के लिए ही बोट सेवा उपलब्ध थी.

पर इन सब मतलबी लोगों के बीच कुछ निजी और स्थानीय मसीहा भी थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना बाढ़ जैसे पानी से लोगों को निकाला और उन तक खाने का सामान और पीने का पानी पहुंंचाया. धीरे-धीरे ये राजनीति मुद्दा बनने लगा और सभी राजनीतिक पार्टियां सड़कों पर आने लगी, पर जिसकी सरकार है उसकी पार्टी का कोई पता ही नहीं था.

सरकारी तंत्र पर सवाल खड़ा करते लोग

दिन 8वें, राजेन्द्र नगर, बिहार सरकार ने पूरी तरह मान लिया कि वो नाकाम हो चुकी है. ड्रेनेज का नक्शा भूला चुका है और उसके बस में पानी के दलदल से लोगों को निकालना मुश्किल हो चुका है. लेकिन ये कह देना लोगों के मसले का हल नहीं है.

जैसे जैसे धूप की गर्मी से पानी का स्तर कम हो रहा है, वैसे-वैसे महामारी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. नौबत ये आ चुकी है कि कई लोग इस महामारी का शिकार हो चुके हैंं.

जब मैं 5 अक्टूबर को राजेन्द्र नगर में गया तो पानी का स्तर कम तो दिखा पर पानी के बदबू ने सांस रोकने पर मजबूर कर दिया. इसके बावजूद हमारी टीम ने कई जगहों पर फंसे लोगों तक खाने का सामान और पीने का पानी, दूध, बिस्कुट, ब्रेड पहुंंचाया, पर न जाने सब कुछ जानते हुए भी सरकार खामोश क्यों है ?

सिर्फ विचार और बातें ऊंंची. हकीकत ज़मीन पर नज़र आती है. किस आधार पर बिहार सरकार स्मार्ट सिटी की बात करती है ? जब हमारे पास पानी निकालने का साधन नहींं है तो वो तमाम मशीनें, वैज्ञानिक और इंजीनियर सब के सब बेकार है, जो दावा करते हैं इंडिया को डिजिटल इंडिया बनाने का.

बात यही पर खत्म नहींं होती है. राजेन्द्र नगर में जमे हुए पानी का हाल ऐसा हो चुका है कि अगले कई महीनों तक इसके प्रकोप से राजेन्द्रनगर निकल नहीं पायेगा. पानी में मरे जानवर और कचरे सड़-गल कर बेतहाशा बदबू पैदा कर रहा है. नगर निगम पूरी तरह नाकाम है. करोड़ों और अरबों का सफाई बजट दिखाने वाली नगर निगम की हकीकत सामने आ चुकी है. हर तरफ आप को कचरा ही दिखेगा.

जैसे-जैसे लोग पानी के बदबू से अपने घरों को, दफ्तरों को और छात्रावासों को छोड़ रहे हैं, वैसे-वैसे चोरियांं भी बढ़ती जा रही है. चोर खुलेआम घूम रहे हैं. दीवारों को तोड़कर घरों में घुस कर चोरी कर रहे हैं और नाकाम प्रशासन आंंखों को बंद किये सोई है.

जब पटना की सड़कों पर चालान काटने की बात थी, तब आपने देखा था 1 या 2 नहीं, 10, 20, 50 की संख्या में पुलिस से लेकर CRPF तक, पटना क्या पूरे देश की जनता को पीट-पीट कर चालान काट रही थी लेकिन बाढ़ जैसी हालात आते ही मानो सबको सांप सूंघ गया है. हमारे DGP साहब गुप्तेश्वर पांडे जी ने भी मौन धारण कर लिया. नीतीश-मोदी की सरकार ने हाथ खड़े कर दिए और सरकार की गलती को आपदा घोषित कर दिया.

ये लोकतंत्र का देश सत्तावादी के कारण मानो बिखरने लगा है, जहां सरकार का अर्थ केवल जनता को विभिन्न तरीकों से लूटना और पीटना भर रह गया है. जनता की आपदाओं, जरुरतों के वक्त उसके अपने हाल पर छोड़ देना है क्योंकि सरकार जानती है सामाजिक कार्यकर्ता तो आयेंगे ही जनता की सहायता करने.

(लेखक हेल्पिंग हैंड्स के कार्यकर्ता हैं, जो पटना के कुछ सामाजिक उत्साही नौजवानों के द्वारा निजी तौर पर चलाया जा रहा है.)

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