Home लघुकथा पत्थलगड़ी

पत्थलगड़ी

1 min read
0
0
289
पत्थलगड़ी
पत्थलगड़ी
कमलेश

बिसराम बेदिया सब जानता है. नदी-नाला, जंगल-पहाड़ और पेड़-पौधे सबके बारे में. आप छोटानागपुर के किसी भी इलाके के किसी भी जंगल से कोई पत्ता उठाकर ले आइये और बिसराम बेदिया के सामने रख दीजिये. वह आंख बंद करेगा, पत्ते को छुएगा और ऐसे सहलाएगा जैसे कोई मां अपने नवजात बच्चे को सहला रही हो. इसके बाद आंख बंद किये हुए ही बता देगा कि यह पत्ता किस तरह के पेड़ का है. कई बार तो वह यह भी बता देता है कि ये पेड़ किस दिशा में ज्यादा पाए जाते हैं. वह कहता भी है कि सूंघकर या चखकर तो कोई भी बता सकता है लेकिन कोई केवल छूकर बता दे तो वह जान जाए. उसने यह कला अपने पिता से सीखी है जो कहता था कि आदिवासी तभी तक है जब तक जंगल है, पेड़ है, पहाड़ है और नदियां हैं. वह कहता था कि जो लोग आदिवासियों को लड़कर नहीं हरा सके वे लोग जंगल और पेड़ काटकर, पहाड़ों को खोद कर और नदियों को सुखाकर उन्हें मारना चाहते हैं.

बिसराम बेदिया हुंडरू ओर दशम के जलप्रपात से लेकर झारखंड की नदियों पर बने सारे डैम के बारे में सबकुछ जानता है. साल के पेड़ों को काट कर बनने वाली सड़कों का तो इतिहास और भूगोल सबकुछ उसे पता है. वह अंगुली पर गिनकर बता सकता है कि फलां सड़क कब बनी और इसके लिए कितने और कौन से पेड़ काटे गये. वह कभी गाड़ी पर नहीं चढ़ा लेकिन आपको बता सकता है कि यदि आप हुंडरू के पास वाले स्कूल से होकर निकली पतली सड़क का उपयोग कीजिएगा तो रांची पहुंचने में आपका आधा घंटा बच जाएगा. वह रांची के ठीक बगल के हुंडरू के जलप्रपात के आसपास घूमता रहता है तो कभी दशम के जलप्रपात के पास की पत्थलगड़ी के पास मिल जाता है. कभी पंचघाघ तो कभी जोन्हा में भी उदास भाव से पानी को देखता रहता है. पता नहीं किस चीज से चलता है. ऐसा लगता है जैसे कभी थकता ही नहीं. कभी जलप्रपात की उन पहाड़ियों के बीच निडर भाव से खड़ा होता है जहां से सैकड़ों फीट नीचे पानी गिर रहा होता है. जंगली झाड़ियों में ऐसे घुसता है जैसे हिरण. ना सांप-बिच्छू का भय और ना ही जंगली जानवरों का डर. वह आपको पहाड़ी से नीचे गिर चुके पानी और पहाड़ी के ऊपर पाये जाने वाले पानी के स्वाद के बीच का जब अंतर बताता है तो आप हैरत से उसका चेहरा देखने लगते हैं- बाप रे. यह बूढ़ा आदिवासी पागल है कि वैज्ञानिक. वह आपको दशम का अर्थ बताते हुए कहता है- ‘दशम नहीं बाबू दसम. दसम माने दस नहीं. द माने पानी और स माने चावल को कूटना. जैसे चावल को कूटा जाता है वैसे पानी पत्थर को कूटता है. इसीलिए द और स. बाकी तो आपलोगों की सरकार ने जोड़ दिया बाबू.’

जब हंड़िया का नशा कुछ ज्यादा चढ़ जाता है तो वह झूम-झूम कर गाना शुरू करता है-

टन-टन-टाना, टाना बाबा टाना
भूत-भुतनी के टाना, टाना बाबा टाना
कोना-कुची भूत- भुतनी के टाना
टाना बाबा टाना
लुकल-छिपल भूत-भुतनी के टाना…

पूछने पर बताता है कि यह गीत जतरा भगत गाते थे, जिन्होंने अंग्रेजों को यहां से बाहर भगाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी थी. अभी भी ये गीत टाना भगत लोग गाते हैं जो गांधी बाबा के कहे के अनुसार चलते हैं. उसने यह गीत टाना भगतों से ही सीखा है. नये लड़कों को वह इस गीत का अर्थ भी बताता है- ‘हे पिता, आदिवासियों को लूटने वाले भूत-भुतनियों को यहां से खींच कर बाहर करने में हमारी मदद करो.’

लेकिन बिसराम के साथ एक समस्या है. वह सब कुछ जानता है इसीलिए दूसरों की बात नहीं सुनना चाहता. किसी को बोलने ही नहीं देता. बाहर से आये बड़े-बड़े पढ़े-लिखे लोग जब भी हुंडरू या दशम आते हैं और ज्ञान की बातें करते हैं तो वह उन्हें रोक देता है- ‘नहीं, पहले आप मेरी बात सुनिये.’

कोई उसको झिड़क कर भगा देता है तो कोई उसका मजाक उड़ाता है. हां, नई उमर के लड़के कई बार उसकी बात गंभीरता से सुनते हैं. कई बार अपनी बात कहने के दौरान वह फूट-फूट कर रोता है. जलप्रपात देखने आने वाले लोगों से कहता है- ‘सुबरनरेखा को मार दिया लोगों ने. कांची को भी सुखाना चाहते हैं. एक दौर था बाबू, जब हुंडरू के जलप्रपात से पानी गिरता था तो लगता था कि सैकड़ों हाथी एक साथ गरज रहे हों. लेकिन अब तो पानी की आवाज ऊपर तक नहीं आ पाती. कान लगाइये तो सुनाई देती है.’

सुबरनरेखा मतलब स्वर्णरेखा नदी. कई बार तो वह चुपचाप इस नदी को घंटों देखता है तो कभी उससे बात भी करने लगता है. बिसराम बेदिया की उमर लगभग सत्तर साल होगी. पतला-दुबला एक काठी की देह. काली भुजंग देह पर सफेद बाल. हमेशा नंगे बदन. घुटनों तक लुंगी और कंधे पर गमछेनुमा कपड़ा. इस उमर में भी जलप्रपात के चट्टानों पर इतनी तेजी से चढ़ता-उतरता है कि देखने वाले सिहर जाते हैं. वह लोगों को रास्ता भी बताता है- ‘नहीं…… पहले मेरी बात सुनिये बाबू. इधर से चढ़िये. एकदम खतरा नहीं है. पानी ही तो देखना है बाबू. ऊपर से ही देख लीजिये. इसके लिए नीचे जाने की क्या जरूरत है.’

लेकिन उसके सबकुछ जानने से ही उसका बेटा सोगराम डरता है. जब भी वह बिसराम बेदिया को बोलते हुए देखता है, उसे अपने दादा आलसाराम बेदिया की बात याद आ जाती है. आलसाराम भी बहुत ज्ञानी था. सबकुछ जानने वाला. वह ओझा था और हुंडरू की इन पहाड़ियों पर पूजा-पाठ कराता था. पता नहीं बिसराइत था या कुछ और. लेकिन इन पहाड़ियों पर जानवरों की बलि देने का विरोध करता था. गांव के लोगों से कहता कि जानवर मत काटो. वे तो तुम्हारे परिवार की लोगों की तरह हैं.

वह और भी कुछ कहता जैसे- पेड़ काटने वाले तुम्हारे दुश्मन हैं. अपने स्वार्थ के लिए पेड़ काट रहे हैं. देवता इससे नाराज होगा. पेड़ मत काटने दो. उसने तो सुबरनरेखा पर डैम बनने का भी विरोध किया था. चिल्ला-चिल्ला कर कहता था कि सुबरनरेखा हम आदिवासियों की मां है. इसको मत रोको. आदिवासी उसकी बात सुनते थे. वे उसके पास देवता को पूजा देने आते तो कहता- देवता को पूजा मत दो लेकिन सुबरनरेखा को बचाओ. उसकी बात पर किसी ने अमल किया या नहीं ये तो सोगराम को नहीं पता लेकिन आलसा राम को अपनी जान गंवानी पड़ी.

लोग बताते हैं कि एक दिन आलसाराम हुंडरू की इन्हीं पहाड़ियों में कहीं मरा हुआ पाया गया. उसकी लाश पर कई जगह चोट के निशान थे. सोगराम को उसकी दादी बताती थी कि आलसाराम के मरने के पहले कई नये चेहरे हुंडरू के आसपास मंडराते थे. जहां भी आलसाराम जाता वे उसके पीछे-पीछे जाते थे. आलसाराम की मौत के बाद ये चेहरे अचानक गायब हो गये थे. ऐसे ही नये चेहरे अब एक बार फिर हुंडरू में मंडराने लगे हैं. ये चेहरे कभी हुंडरू का जलप्रपात नहीं देखते. वे बिसराम बेदिया के पीछे लगे रहते हैं. सोगराम को डर है कि दादा की तरह कहीं उसके पिता की भी लाश किसी पहाड़ी पर फेंकी हुई या यहां तैरती हुई नहीं मिले. इसीलिए वह लोगों से यह भी कहता है कि वे उसके पिता की बातों पर ध्यान ना दें. वह तो ऐसे ही हंड़िया पीकर बकता रहता है.

सोगराम का अपने बाप बिसराम बेदिया के अलावा और कोई नहीं. मां बहुत पहले मर गई. रात दिन बिसराम बेदिया के पीछे भागती. हमेशा खांसती रहती और अपने पति बिसराम बेदिया को कोसती रहती. एक रात सोई तो सुबह उठी ही नहीं. किसी ने कहा बीमारी से मर गई तो किसी का कहना था कि देवता का कोप पड़ गया. सोगराम की बीबी तो भली चंगी थी. जंगल से लकड़ी लाने गई थी और ठनका गिर गया. तड़प-तड़प कर मरी. लोगों ने लाख कहा लेकिन सोगराम ने दूसरी शादी नहीं की. हुंडरू में उसने छोटी-सी दुकान खोल ली है जिसमें वह छोटी-मोटी चीजें बेचकर गुजारा करता है.

हां, अपने बाप का पूरा ख्याल रखता है. लेकिन बिसराम को तो मानो उसकी कोई चिंता ही नहीं. वह सुबह होते ही हंड़िया के चक्कर में पड़ जाता है. सोगराम को ये अच्छा नहीं लगता लेकिन करे क्या. सुबह में लोग दे ही देते हैं. हालांकि उसका दादा आलसाराम आदिवासियों को कहता था कि वे हंड़िया नहीं पीएं और जानवरों का मांस नहीं खाएं. लेकिन बिसराम बेदिया कहता है कि अगर वह हंड़िया नहीं पीए तो मर जाएगा.

जब वह नशे में नहीं होता तो उसे यहां के जंगलों और पहाड़ियों में अजीब-अजीब सी चीजें दिखाई पड़ती है. कई बार इन पहाड़ियों में उसे अपने पिता आलसा राम भी दिखाई देते हैं- जंगलों के गीत गाते और लोगों को समझाते- बिरसा की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. कुछ लोग अपने ऐशो आराम के लिए हमारे पेड़ काट रहे हैं, हमारी नदियों का पानी रोक रहे हैं और हमारे पहाड़ी इलाके खोद रहे हैं. वह घबराकर हंड़िया पीने बैठता है और तब तक पीता है जबतक कि उसकी आंखों के सामने से उसके पिता की तस्वीर धुंधली नहीं पड़ जाती. नशे में आते ही जैसे आलसाराम उसके भीतर बैठ जाता है और वह अपने बाप की भाषा बोलने लगता है.

अब उसी दिन वह अपने बेटे की दुकान के आगे दोनों पांवों को मोड़कर बैठा था और उसके सामने बैठे थे नई उमर के लड़के और लड़कियां. ये लड़के जलप्रपात देखने आये थे. बिसराम बेदिया उन्हें ऐसी जगह ले गया जहां से पूरा जलप्रपात आसानी से दिख जाए. इसके बाद उसने उन्हें अपने सामने बैठा लिया. वह उन्हें किसी शिक्षक की तरह बता रहा था- ‘देखिये, पहले आपलोग मेरी बात सुनिये. जमीन हमारी, पेड़ हमारे, जंगल हमारे बाप-दादों के. फिर ये कंपनी वाले उन्हें काटने और खोदने वाले कौन. ये सारे जलप्रपात हम आदिवासियों के हैं. सरकार ने इन पर कब्जा कर लिया है. वह इन सबसे पैसे कमा रही है और हम भूखे मर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि हम आदिवासियों ने इसका विरोध नहीं किया. तुमलोग दसम जलप्रपात के आसपास के गांवों में जाओ. वहां लोगों ने पत्थलगड़ी की है.’

‘पत्थलगड़ी मतलब ?’ एक नई उमर के लड़के ने बिसराम को रोका.

‘पत्थलगड़ी मतलब हम आदिवासियों का ऐलान. इन पत्थरों पर लिखा है कि ये पूरा जंगल, और नदियां हमारी हैं लेकिन सरकार ने इनपर धोखे से कब्जा कर लिया है. आज नहीं तो कल सरकार को इसे खाली करना होगा.’ बिसराम बेदिया यह बात कहते हुए जैसे थर-थर कांपने लगा.

एक लड़की हंसी- ‘अरे बाबा, क्या केवल पत्थर गाड़ने से सरकार इन्हें आदिवासियों को दे देगी. और आदिवासी इन्हें लेकर करेंगे क्या ? सरकार ने तो इनका विकास किया है. इसे घूमने लायक बना दिया है.’

बिसराम बेदिया उठा और उस लड़की के पास जाकर खड़ा हो गया- ‘घूमने लायक तो बना. बाहर से आये लोगों ने यहां दुकानें बना ली. बड़ी-बड़ी गाड़ियां दौड़ने लगी लेकिन हम आदिवासियों को क्या मिला ? सब चीज हमारी फिर भी हम दास के दास.’

सोगराम ने देखा कि बिसराम बेदिया जब उन लड़कों को ये बात बता रहा था उस समय तीन चार लोग आकर आसपास खड़े हो गये थे. वे गौर से बिसराम की बात सुन रहे थे. उसमें से एक ने अपना मोबाइल फोन निकाला और किसी से कुछ बात की. इसके बाद उसने अपने साथ आये लोगों को बिसराम की ओर इशारा करके कुछ कहा.

सोगराम डर गया. उसने जाकर बिसराम बेदिया का हाथ पकड़ कर खींचा और लड़कों से कहा- ‘क्यों आपलोग इस पियक्कड़ की बातों को सुनते हैं ? ये तो हंड़िया पीते ही नशे में बकबक करने लगता है. अरे, इसकी बातों का कोई मतलब नहीं है. आपलोग जाइये और मौज मस्ती कीजिए.’ इसके बाद बिसराम को अपनी झोपड़ी के भीतर लाते ही उसे खाट पर पटका- ‘क्यों अपने बाप की ही तरह अपनी भी जान देने पर तुले हो ? तुम्हारे चलते मेरे साथ-साथ टोले के सभी लोग किसी मुश्किल में पड़ जाएंगे. अरे दो-चार साल और जीना है. खुद भी चैन से जीओ और हमें भी चैन से जीने दो.’

बिसराम चुपचाप खाट पर सो गया था. लेकिन शाम होते ही जैसे ही हंड़िया के दो गिलास उसके हलक के नीचे उतरे वह जलप्रपात के पास पहुंचा और देखने वालों के आसपास मंडराने लगा. जैसे ही उनलोगों ने जलप्रपात की सुंदरता का बखान शुरू किया उसने जोर से कहा- ‘नहीं पहले आप मेरी बात सुनिये. यहां की सुंदरता खत्म हो रही है. कुछ लोग इसे नष्ट कर रहे हैं.’

‘कौन नष्ट कर रहा है ?’ एक आदमी ने हैरत से उसे देखा.

‘आप जानते हैं वे उसी तरह जंगल में घुस रहे हैं जैसे कभी अंगरेज घुसे थे. अंगरेजों ने भी हमारे पेड़ काटे और अब वे भी काट रहे हैं. हमारी उन पहाड़ियों को खोद रहे हैं जिनकी हम पूजा करते हैं. हमें जंगलों से निकाल रहे हैं.’

‘अरे ये बूढ़ा तो पूरा माओवादी लगता है ? कहां इसके फेरे में पड़े हो यार ? फॉल देखो और साथ में जो लाए हो उसे खाओ-पीओ.’ समूह में आये एक उम्रदराज व्यक्ति ने कहा.

‘लेकिन कुछ तो सच है. कल ही मैंने अखबार में पढ़ा कि सड़कों को बनाने के लिए पूरे झारखंड राज्य में पौने तीन लाख पेड़ काटे जाएंगे.’ एक नई उमर के लड़के ने धीरे से कहा.

‘तो ? पेड़ नहीं काटे जाएंगे ? विकास कैसे होगा ? बड़े-बड़े प्रोजेक्ट कैसे आएंगे ? सड़कें कहां बनेंगी ? पर्यावरणवादियों की तरह मत बको. सोचो तो जरा, जंगल नहीं काटे गये होते तो दुनिया इतनी सुंदर कैसे बनती ?’ यह बात कहने वाला शायद उस नई उमर के लड़के का पिता था.

‘नहीं आप पहले मेरी बात सुनिये…’ इतना ही कह पाया बिसराम बेदिया. अचानक तेज झटका लगा और पहाड़ी के बीच में जा गिरा. वह तो गनीमत थी कि उसका सिर दो चट्टानों के बीच दरार में पड़ा वरना वहीं टें बोल जाता बूढ़ा. वह अपने गिरने का कारण समझने की कोशिश करता तभी उसके पेट में लात का एक जोरदार वार पड़ा और उसकी आंखें बंद हो गई. उसने बोलने के लिए मुंह खोला लेकिन आवाज नहीं निकल पाई.

जब वह रात में घर पहुंचा तो उसका पेट किसी घाव की तरह जोर से दर्द कर रहा था और पूरा चेहरा सूज गया था. गालों के सूज जाने के कारण आंखों से ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था. उसके बेटे सोगराम ने उसकी हालत देखी और समझ गया कि आसपास मंडराने वाले नये चेहरों का यह पहला हमला है. अगर अब भी उसका बाप नहीं सुधरा तो जान से जाएगा. उसने सोचा कि कल से वह बिसराम बेदिया का पांव बांधकर रखेगा. ना तो वह कहीं बाहर निकलेगा और ना ही किसी के लिए समस्या बनेगा.

लेकिन अगली सुबह. सोगराम के सोकर उठने के पहले ही बिसराम बेदिया गांव में निकल गया था. रोज की तरह आसपास के जंगलों में पेड़-पौधों से बतियाता, पत्तों और फलों को सहलाता. पहाड़ों के ऊपर से गिरने वाले पानी को सूंघता और चखता. उसके साथ इलाके के कई बूढ़े थे. ये वैसे लोग थे जिन्होंने बिसराम बेदिया के बाप को देखा था और उन्हें पता था कि वह गलत नहीं बोलता था. कुछ दूर निकलते ही सारे लोग चौंके. जंगलों में खूब चहल-पहल है. नई-नई और बड़ी-बड़ी गाड़ियां. इन गाड़ियों से उतरते देशी और विदेशी लोग. कुछ लड़के-लड़कियां तो कुछ उम्रदराज लोग भी. साथ में बंदूकें लिए खतरनाक दिखने वाले लोग. सब के सब जंगल में जैसे इधर से उधर दौड़ रहे थे. जंगल की फोटो उतारते और पास की पहाड़ी तक जाने का रास्ता बनाते.

किसी ने बिसराम को बताया कि ये कंपनी वाले लोग हैं. बहुत दूर से आए हैं. इन्हें पता चला है कि पास की पहाड़ी में सोने की खान हो सकती है. पहाड़ी की खुदाई होगी. लेकिन पहाड़ी तक गाड़ियों के आने-जाने के लिए रास्ता बनाना होगा और इसके लिए पेड़ काटने होंगे. जाहिर है, पहले पेड़ कटेंगे और इसके बाद सड़क बनेगी. सरकार का मानना है कि खान की खुदाई होगी तो राज्य में खुशहाली आएगी और लोगों को रोजगार मिलेगा. दो चार दिनों के बाद पेड़ों को काटने का काम शुरू होगा. इसके लिए गांव के लोगों को खोजा जा रहा है. उन्हें यहां काम मिलेगा.

बिसराम चुपचाप सुन रहा था. उसे एक बार फिर बाप आलसाराम नजर आने लगा. इस बार आलसाराम जंगलों के गीत नहीं गा रहा था. बिसराम को लगा कि आलसराम गुस्से में है. उसकी आंखें लाल-लाल हैं और पूरा बदन कांप रहा है. ऐसा तो तभी होता था जब उसके पिता की देह पर देवता सवार हो जाते थे. बिसराम बेदिया कभी अपने साथ चल रहे गांव के लोगों को देखता तो कभी बाहर से आये हुए लोगों को तो कभी अपने बाप को. उसने अपना सिर झुकाया और चुपचाप टोले में वापस आ गया. घर के बगल की झोपड़ी में किसी भी वक्त उसे हंड़िया मिल सकती थी. झोपड़ी के बाहर के साल के पेड़ के नीचे पालथी मारकर बैठा, दो गिलास हंड़िया के उड़ेले और इसके बाद धीरे से बुदबुदाया- ‘साले अंगरेज फिर आ गये हैं. पेड़ काटेंगे, पहाड़ी खोदेंगे और सब कुछ खत्म कर देंगे. लेकिन इन्हें जंगल से भगायेगा कौन ? अब ना तो जतरा भगत हैं और ना ही बिरसा भगवान.’

अचानक उसने अपने कंधे पर किसी के हाथ का दबाव महसूस किया. उसने मुड़कर देखा- यह गेतला भगत था. हुंडरू का ओझा. बिसराम की ही उमर लेकिन लम्बा-चौड़ा कद. गरदन तक झूलते लम्बे बाल जिनमें गांठे पड़ गई थी. बड़ी-बड़ी दाढ़ी और मूंछे जिनमें अब काले बाल गिनती के ही नजर आते हैं. गरदन में तरह-तरह की माला और हाथ में लाठी. लाठी के ऊपर एक गोला जिसे देखकर कई बार खोपड़ी लगे होने का अहसास होता. गांव के लोगों का मानना था कि एक साथ बीस भूतों को बांधने में माहिर है गेतला भगत. कितनी भी भयानक डायन का टोना हो, गेतला का एक मंतर उसे हरा सकता था.

हुंडरू की पहाड़ियों पर जानवरों की बलि देने वाला गेतला भगत गंड़ासे के एक वार से मोटे से मोटे बकरे या सुअर का सिर धड़ से अलग कर देता. कई बार जब उस पर देवता आता तो वह मारे गये जानवर का धड़ दोनों हाथों से उठाकर अपने मुंह से लगा लेता. उसका पूरा मुंह खून से भर जाता. सारा कपड़ा और उसके बाल, दाढ़ी सब खून से सन जाते. बलि देने वाला अगाध श्रद्धा से भर जाता. उसे लगता देवता ने उसकी बलि स्वीकार कर ली है. वह भगत के पैरों पर गिरता, अपनी नाक रगड़ता और देवता की ओर से जो भी मांग होती उसे अर्पित कर देता.

लेकिन बिसराम बेदिया को गेतला भगत एक आंख नहीं सुहाता. वह जानता है कि भगत छल करता है. बलि से उसे काफी मांस, शराब, चावल और पैसे मिलते हैं. इसीलिए वह अपने धंधे को बनाये रखने के लिए नौटंकी करता है. अरे पाहन तो उसका पिता आलसाराम भी था लेकिन वह कहां जानवरों की बलि देने की बात करता था.

गेतला भगत उसके बगल में बैठा, हंड़िया का पूरा गिलास पेट के अंदर डाला और फिर धीरे से कहा- ‘कौन आ गया है बिसराम और जतरा भगत को क्यों याद कर रहे हो ?’

बिसराम ने हिकारत भरी नजरों से उसे देखा और ऐसे बोला जैसे चेतावनी दे रहा हो- ‘तुम्हारा भी धंधा ज्यादा दिन तक चलने वाला नहीं है गेतला. अरे जब आदिवासी ही नहीं रहेंगे तो तुमसे देवता की पूजा कौन करवायेगा ? बलि कौन दिलवायेगा ? शहर से आकर यहां धंधा पानी करने वाले लोग तो तुम्हें भाव देने से रहे.’

‘क्यों ? यहां के लोग कहां भागे जा रहे हैं ? अकाल या सूखा पड़ने वाला है का ?’ गेतला पर हंड़िया का असर तुरंत दिखाई पड़ने लगा.

हंसा बिसराम- ‘अरे बिपत उससे भी भयानक आने वाली है. और जंगलों में रहने वाले लोग खुद नहीं भागेंगे तो भगाये जाएंगे. अब पहाड़ी पर खान खोदी जाएगी. अरे, वही पहाड़ी जिसमें तुम्हारा देवता सिंगबोंगा रहता है. पहाड़ी खोदी जाएगी तो कहां रहेगा देवता ? इसके लिए सड़क बनेगी और सड़क बनने के लिए पेड़ काटे जाएंगे. पेड़ कटेंगे तो जंगल खत्म होंगे. और जंगल खत्म होंगे तो हमलोग…?’ अपनी बात अधूरी छोड़कर बिसराम वहीं पसर गया.

गेतला भगत बेवकूफों की तरह उसका चेहरा देखने लगा. उसे बिसराम भगत का चेहरा उसके बाप आलसाराम की तरह नजर आने लगा. वह भी तो इसी तरह की बात करता था. गेतला ने सामने पत्तल के दोने में पड़े चना के दानों को उठाया और मुंह में डाला. उन्हें चबाते हुए कहा- ‘तो इसमें हमलोग क्या कर सकते हैं बिसराम ? जंगल तो सरकार का ही है न ? अब सरकार चाहे तो उसे रखे या काट डाले. और रही मेरी धंधे की बात तो यह कभी बंद नहीं होगा.’

‘सरकार का जंगल ? जंगल तो हमारा माई-बाप है ना ? और पहाड़ी ? तुम ही ना लोगों से कहते हो कि उसकी पूजा करो. हर साल वहां मेला लगवाते हो तुम ओझा लोग ? ये सब यहां रहने वालों का है. अब कोई छीन रहा है तो आसानी से छोड़ रहे हो.’ बिसराम की देह फिर कांपने लगी.

‘बिसराम तो पागल है. वह तो ऐसी बातें करता है जो समझ में ही नहीं आती. जंगलों को कौन बचा सकता है ? सरकार से कौन लड़ सकता है ? कंपनी वालों से लड़ना आसान बात है का ? अरे समझदारी इसी में है कि कंपनी वालों के साथ मिलकर काम करो और कुछ तुम भी खाओ कुछ उन्हें भी खाने दो.’ बोलने वाला कार्तिक महतो था.

बिसराम ने घूरकर उसका चेहरा देखा. चालीस साल का कार्तिक पक्का दलाल है. रात दिन बलौक आफिस पर पड़ा रहता है. बीडीओ-सीओ के सामने हमेशा चिरौरी करते हुए. किसी को इंदिरा आवास का पैसा दिलवाना है तो किसी को शौचालय का. सबमें कमीशन खाता है. बिसराम ने उसका चेहरा देखा और एक तरफ थूक दिया.

‘अरे तुम्हारे लिए जंगल और नदी का क्या मतलब ? आदिवासी होकर उनसे ही कमीशन खाते हो ? दिनभर पैसा कमाने में लगे रहते हो और शाम होते ही हंड़िया पीकर टून्न हो जाते हो. अरे जंगल में बाहर के लोग आयेंगे तो ना तो तुम्हारी रोटी बचेगी और ना ही बेटी.’ सुखन उरांव ने कार्तिक की ओर देखते हुए कहा.

बिसराम को लगा उसे सहारा मिला. उसने अपने गिलास में बचे हंड़िया को एक सांस में खत्म कर डाला. इसके बाद लड़खड़ाती देह के साथ उठने की कोशिश की. सुखन ने उसे सहारा देते हुए कहा- ‘लेकिन इस बार पहाड़ी खोदना आसान नहीं होगा. पहाड़ी के नीचे गांवों के रहने वालों ने पूरा हल्ला मचा दिया है. उनका कहना है कि वे पहाड़ी को खोदने नहीं देंगे. इससे उनके देवता नाराज हो जाएंगे. मैंने सुना है उनको समझाने के लिए रांची से कुछ अफसर कल जाने वाले हैं.’

‘ये अफसर किसके हैं सुखन ? आदिवासियों पर बड़ी से बड़ी विपत आ जाए लेकिन इन पर कोई असर नहीं पड़ता. जैसे ही कंपनी फेरे में पड़ती है इनके हाथ-पांव फूल जाते हैं.’ बिसराम ने मद्धिम स्वर में कहा. फिर उसने गेतला भगत के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराते हुए कहा- ‘तुमने हवाई भूतों को भगाने के लिए दर्जनों मंतर सीख लिए. कुछ मंतर इन भूतों को भगाने के लिए भी सीखा होता.’ कहने के साथ जैसे उसे कुछ याद आया. वह झटके के साथ उठा, वापस घर जाने के लिए झुका लेकिन फिर घूम कर वापस आ गया और हंसते हुए कहा- ‘गांव वालों को मनाने के लिए अफसर जा रहे हैं ना ? तुमलोग देखना. अगर लोग अफसर की बात नहीं सुनेंगे तो फिर पुलिस वाले जाएंगे. मारेंगे, पीटेंगे और जरूरत पड़ी तो गांव वालों को निकाल बाहर करेंगे. लेकिन हमेशा की तरह वे जंगल काटेंगे, पहाड़ी खोदेंगे और जरूरत पड़ी तो नदियों को भी रोकेंगे.’

गेतला भगत ने आधी बंद हो चुकी अपनी आंखों से बिसराम बेदिया को देखा और वहीं जमीन पर लेट गया. फिर धीरे से कहा- ‘लेकिन इस बार लोग मानने वाले नहीं हैं. कल लोग आये थे पूजा देने. कह रहे थे कि देवता का घर उजड़ने नहीं देंगे. इसके लिए जान लड़ा देंगे. माने इस बार फिर लड़ाई बरियार होने वाली है. जरूरत पड़ी तो पत्थलगड़ी भी करेंगे.’

बिसराम बेदिया ने अपना चेहरा ऊपर किया और साल के पेड़ की टहनियों को देखा. फिर होंठों में ही कुछ बुदबुदाने लगा. गोया साल के पेड़ों से कुछ बात कर रहा हो.

अगले दिन बिसराम हमेशा की तरह अहले सुबह निकला लेकिन दोपहर तक घर नहीं लौटा. रोज तो दोपहर में खाने के समय घर पहुंच ही जाता है. लेकिन आज कहां रह गया ? जब सूरज ढलने को आया तो सोगराम को चिंता हुई. पूरा जंगल छान मारा लेकिन कहीं पता नहीं चला. झख मारकर वापस लौट रहा था कि गेतला भगत मिला. आंखें लाल किये हुए. नशे में झूमता हुआ. पता नहीं क्या बड़बड़ा रहा था. अचानक सामने सोगराम को देखकर ठठा कर हंसा. फिर चीखते हुए कहा- ‘बाप को रोक पागल, बाप को. उसे सबसे बड़े भूत ने पकड़ लिया है. तुमको पता है वह क्या कर रहा है ?’

‘पता नहीं. सुबह से ही उसका कोई पता नहीं है. उसे खोजते हुए जंगल की तरफ गया था. वहां भी उसका कुछ पता नहीं है.’ सोगराम ने धीरे से कहा.

‘जंगल में कहां से मिलेगा ? पगलाया है साला. अब पूरे गांव को पागल बनाएगा. अकेले पत्थलगड़ी करेगा, पत्थलगड़ी. हा-हा-हा. पागल साला.’ गेतला भगत ने अपने दोनों हाथ उठाकर हवा में लहराये. इस तरह वह तब करता था जब बलि लेने के लिए देवताओं का आह्वान करता था.

‘पत्थलगड़ी ? किस बात की पत्थलगड़ी ? और अकेले पत्थलगड़ी कैसे करेगा ?’

‘क्यों ? तुझे नहीं मालूम ? जंगल के पार वाली पहाड़ी में सोने की खान मिली है. कंपनी वाले पहाड़ी खोद कर सोना निकालेंगे. इसके लिए सड़क बनायेंगे और सड़क बनाने के लिए जंगल साफ करेंगे.’ कहते-कहते धम्म से नीचे बैठ गया था गेतला.

‘तो ….. तो….. पत्थलगड़ी क्यों करेगा वह ?’ हकलाया सोगराम.

‘अपने बाप की मौत मरेगा साला. आज सुबह मेरे पास आया था. कह रहा था कि वह खूब सारे पत्थर जमा करेगा. मुझसे कह रहा था कि मैं उन पर लिख दूं कि कंपनी वालों जंगल से बाहर जाओ. इसके बाद वह इन पत्थरों को जंगल के हर कोने में गाड़ेगा. मैंने बहुत मना किया लेकिन नहीं माना. हुंडरू की पहाड़ियों में दौड़ रहा था और जंगल में गाड़ने लायक पत्थर खोज रहा था.’

सोगराम ने माथा पीट लिया. आज तो बगैर हंड़िया पीए ही पगला गया उसका बाप. अब कहां खोजे उसे. हुंडरू की पहाड़ियों में किसी को खोजना आसान काम है क्या ? इन्हीं पहाड़ियों में मारकर फेंक दिया था उसके दादा आलसाराम को. अब ये भी जान देने के लिए उतावला है. सोगराम ने अपनी लाठी उठाई और गेतला भगत के बताये रास्तों पर बाप को खोजने निकल पड़ा. लेकिन बाप कहीं हो तो मिले. रात हो आई और आसामान में चांद निकल आया लेकिन बिसराम नहीं मिला. खोजकर थक गया. थका हारा घर पहुंचा और खाट पर पसर गया. खुद जब हंड़िया की तलब होगी तो आएगा घर. कब उसे नींद आई पता ही नहीं चला.

अचानक देर रात तेज शोर से उसकी नींद खुली. धम-धमा-धम-धम-धम. अरे ये तो कोई उसकी झोपड़ी पर लगे टीन के दरवाजे को पीट रहा है. हड़बड़ा कर उठा सोगराम. सामने वाला तो जैसे दरवाजा ही तोड़ देना चाहता था. वह पूरी ताकत से चीखा- ‘ठहरो भाई. आता हूं. दरवाजा तोड़ोगे क्या ?’

दरवाजा खोलते ही चौंका सोगराम. सामने तीन-चार पुलिस के जवान. जीप की हेडलाइट से आती रोशनी के कारण पूरी तरह से आंख खोलना मुश्किल था. उसने अंधेरे से अनुमान लगाया- आधी रात के आसपास का वक्त है. और इस समय पुलिस वाले ? उसका दिल धड़का. बाप तो ठीक है ? तभी एक पुलिस वाला आगे बढ़ा- ‘बिसराम बेदिया का घर यही है ?’

‘जी…..जी. क्या बात है ? लेकिन वह तो अभी घर पर नहीं है.’ सोगराम की आवाज घबराहट से लटपटाने लगी.

‘नहीं. वह थाने में है. हमें घर की तलाशी लेनी है. तुम बाहर निकलो.’ कहने के साथ पुलिस वालों ने उसे इस तरह खींचकर बाहर निकाला जैसे उसे पटक रहे हों. इसके बाद वे खुद अंदर घुस गये. थोड़ी ही देर के बाद उसकी झोपड़ी लुटी-पिटी नजर आने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे पागल जंगली जानवरों का कोई झुंड उसकी झोपड़ी में घुस आया हो. सारे बरतन बिखरे पड़े थे. ओढ़ना-बिछावन झोपड़ी के बाहर और डब्बों में रखा हुआ अनाज मिट्टी में मिला दिया गया. सोगराम किसी बच्चे की तरह हैरत से सबकुछ देख रहा था. उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. थोड़ी देर के बाद पुलिस वाले घर के बाहर निकल गये. अचानक एक सिपाही लपका और उसने सोगराम का गला पकड़ लिया. उसे दो तमाचे लगाये और चीखा- ‘घर में कौन-कौन आता है ?:

‘जी….जी….. कोई नहीं. बस….. हम बाप और बेटा रहते हैं. और…और कौन आयेगा हमारे घर ?’ सोगराम को लग रहा था कि पुलिस वाला गला दबा कर उसकी जान ले लेगा.

‘हमें शिकायत मिली है कि बिसराम का संबंध माओवादियों से है और वह अपनी झोपड़ी में दस्ते को टिकाता है. पुलिस थाने में पूछताछ कर रही है. अभी तो हमें कुछ मिला नहीं है लेकिन जल्दी ही हम फिर आयेंगे. अगर सबूत मिला तो तुमको भी हमारे साथ थाने चलना होगा.’

सिपाही ने गला छोड़ने के साथ इतनी जोर का धक्का दिया कि सोगराम नीचे गिर पड़ा. पुलिस वालों के चले जाने के बाद देर तक उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. अचानक वह मुड़ा और दौड़ते हुए गेतला भगत की झोपड़ी पर पहुंचा और उसका दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर तक दरवाजा पीटने के बाद अंदर से जोर-जोर से गाली बकने की आवाज आने लगी. सोगराम निश्चिंत हुआ. गाली बकने का मतलब था कि गेतला जग गया है. टीन का दरवाजा खुला और बिखरे बाल और लाल आंखों वाला गेतला भगत लगभग अधनंगी स्थिति में बाहर निकला. सामने सोगराम को देखकर चौंका. फिर धीरे से पूछा- ‘बिसराम तो ठीक है ?’

‘पुलिस ने पकड़ लिया है.’ सोगराम ने धीमे स्वर में कहा.

‘क्यों ?’ गेतला चौंका. ‘मैं साले से मना करता था कि फालतू काम के फेरे में नहीं पड़ो. अब भुगतो और पूरे गांव को फेरे में डालो.’ बड़बड़ाते हुए फिर से गेतला झोपड़ी के अंदर चला गया.

:पुलिस का कहना है कि माओवादी आता है गांव में. मेरे घर पर.’ सोगराम ने जरा ऊंची आवाज में कहा.

‘अरे अब तो सबसे रिश्ता जोड़ देगी पुलिस. ससुर पत्थलगड़ी करने निकले थे ? दिमाग खराब हो गया था.’ गेतला इस बार झोपड़ी से निकला तो उसने लुंगी के ऊपर चादर डाल लिया था. उसने सोगराम के कंधे पर हाथ रखा- ‘चिंता मत कर. मैं चलता हूं थाने. इस थाने का एक दारोगा एक बार बलि लेकर आया था मेरे पास. चलो उससे मिलते हैं.’

थाना लगभग तीन किलोमीटर दूर था. आधी रात और पैदल राह. पूरे रास्ते देवता को सुमिरता रहा सोगराम. संयोग अच्छा था. थाना पहुंचते ही उसी दारेागा से भेंट हो गई. वह गेतला को देखते ही चिल्लाया- ‘आओ-आओ भगतजी. आज इतनी रात में थाना कैसे ? चोरी हुई कि डाका पड़ गया ?’

‘जी सुना है कि हमारे गांव के बिसराम बेदिया को पकड़ा गया है. कोई गलती हुई है क्या ? पागल है ससुरा. हंड़िया पी लेने के बाद साले को कुछ बुझाता ही नहीं है. ऐसे है बड़ा सिधुआ आदमी.’ गेतला ने हाथ जोड़ लिया.

‘पागल है ? सिधुआ है ? अरे सिधुआ तो तुम हो भगतजी. पक्का माओवादी है इ बूढ़ा. खुफिया का इन्फारमेशन था. आज रेड हैंडेड पकड़ा गया है. पत्थर जमा कर रहा था, पत्थर. पत्थलगड़ी कौन करता है पता है न भगतजी ?’ दारोगा के चेहरे पर क्रूरता के भाव आ गये.

‘अइसा नहीं है हुजूर. जरा पागल है ससुरा. उसका बाप ओझा था. कुछ-कुछ गुन उसमें भी आ गया है. इ सोगराम है, उसका लड़का. एक बार मिला दिया जाता. हमलोग भी जान लेते कि बात क्या है.’ इस बार गेतला के साथ-साथ सोगराम ने भी हाथ जोड़ लिये थे.

‘तुम्हारा कहना कैसे टाले भगत ? क्या पता मुझपर ही दो-चार भूत भेज दो.’ कहते हुए उसने एक सिपाही को इशारा किया. सिपाही ने गेतला और सोगराम को अपने पीछे आने का इशारा किया. हवालात में कराहता हुआ लेटा था बिसराम बेदिया. उसके पिचके रहने वाले गाल इतने सूज गये थे कि आंखें दिखाई नहीं पड़ रही थी. माथे से निकल रही खून की धार अब सूख चुकी थी. दाहिना हाथ एक तरफ झूल रहा था. शायद टूट गया था. एकदम नीम बेहोशी में बड़बड़ा रहा था- ‘नहीं…… पहले आप… मेरी बात ….. सुनिये…….’ बुदबुदाते हुए अचानक चुप हो गया. शायद बेहोश हो गया था. गेतला भगत ने एक दो बार उसका नाम लेकर पुकारा लेकिन बिसराम पर उसका कोई असर नहीं पड़ा. सोगराम से तो बाप की यह हालत देखी नहीं गई और वह दूसरी तरफ मुंह करके फूट-फूट कर रोने लगा. गेतला ने उसे पकड़ा- ‘पागल मत बनो. हिम्मत रखो. पहले इसे छुड़ाने का उपाय करते हैं.’

‘भूल जाओ भगतजी. अब तो कल आएंगे एसपी साहेब. उ पूछताछ करेंगे और उसके बाद ही तय होगा कि इसका क्या होगा. जेल जाएगा जेल. केस चलेगा. वकील का इंतजाम कीजिए. माओवादियों की मदद करने का मामला है. हंसी-खेल थोड़े है ?’ दारोगा दोनों के पीछे ही खड़ा था.

‘अरे हमारे लिए तो वकील भी आप और जज भी आप ही हैं हुजूर. आप चाहे तो क्या नहीं हो सकता ?’ गेतला भगत गिड़गिड़ाया. उसने सोगराम को इशारा किया कि वह दारोगा का पांव पकड़ ले. सोगराम सीधे दारोगा के पांव में लोट गया.

‘अरे-अरे. छोड़ो-छोड़ो. इ सब का करते हो ? अब कुछ नहीं हो सकता है. चोरी-चमारी का मामला थोड़े है. और भगतजी…. अब तुम इसको लेकर जल्दी से यहां से निकल जाओ. भोर होने वाली है. कोई तुमको थाना में देख लेगा तो झुठो बवाल होगा कि दारोगाजी रात में थाना में ओझा-गुनी बुलाकर झाड़-फूंक कराते हैं.’

गेतला भगत ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया. उसने सोगराम का हाथ पकड़ा और खींचते हुए थाने के बाहर चला आया. धीरे से कहा- ‘दो दिनों तक दम धरो. देखो पुलिस क्या करती है. कुछ ना कुछ उपाय तो होगा ही.’

अहले सुबह झापेड़ी में पहुंचा सोगराम. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. पहले तो उसने अपने बाप को जी भर कर कोसा और पुलिस वालों को पेट भर कर गालियां दी. इसके बाद फूट-फूट कर रोने लगा. रोते-रोते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला. देर तक बेसुध सोता रहा. अचानक तेज शोर से झटके से आंख खुली. अचकचा कर उठा तो पता चला कि आवाज उसके घर के बाहर से आ रही है. उसने झटके से दरवाजा खोला.

सामने कल रात वाले वही तीन-चार पुलिस वाले खड़े थे. टोले के लोग उन्हें घेरे हुए थे. कोई कुछ नहीं बोल रहा था. सोगराम का दिल धड़का- तो क्या उसके बाप को छोड़ दिया इनलोगों ने ? लेकिन वह तो कहीं नजर नहीं आ रहा है ? उसने आसपास देखा. गेतला भगत माथे पर हाथ रखे चुपचाप बैठा था. तभी एक पुलिस वाले ने कहा- ‘रात थाने में तुम्हारे बाप की तबीयत खराब हो गई. उसे अस्पताल में भरती करा दिया था हमलोगों ने. आज सुबह मर गया. जाकर बाडी ले लो.’

‘क्या ?’ सोगराम को मानो लकवा मार गया. उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकली. वह पागलों की तरह उस पुलिस वाले का चेहरा देखे जा रहा था जिसने यह सूचना दी थी. अचानक पता नहीं कहां से उसके शरीर में ताकत आ गई. वह लपका और एक सिपाही की गरदन पकड़ ली. सिपाही की तो मानो सांस बंद होने लगी. उसके मुंह से गों-गों जैसी आवाज निकलने लगी. तभी दूसरे सिपाही ने डंडे का एक जोरदार वार सोगराम के माथे पर किया. माथे से खून की धार बह निकली लेकिन उसने सिपाही की गरदन नहीं छोड़ी. इसके बाद सारे सिपाही मिलकर उसपर टूट पड़े. किसी ने रायफल के कुंदे से तो किसी ने लाठी से तो किसी ने लात से उसे पीटना शुरू किया. सोगराम नीचे गिर गया इसके बावजूद सिपाही मारते रहे. अचानक गेतला भगत चिल्लाया- ‘हां-हां इसे भी मार डालो हत्यारों. पहले इसके बाप को मार डाला और अब इसे भी मार डालों. हत्यारों तुम्हें कोढ़ फूटेगा. देवता का शाप लगेगा. तुमलोगों ने एक सीधे-साधे आदमी को मार डाला.’

गेतला के इस शाप का असर पुलिस वालों पर नहीं पड़ा. सोगराम लगातार मार खाने के कारण एक तरफ निढ़ाल होकर पड़ा था. चारों सिपाही ऐसे हांफ रहे थे जैसे मीलों दौड़ कर आ रहे हों. धीरे-धीरे गांव भर के लोगों की भीड़ जुटती जा रही थी. सिपाहियों ने एक-दूसरे से आंखों-आंखों में बात की और सभी दौड़ते हुए जाकर जीप पर बैठ गये. उन्होंने चिल्लाकर जीप स्टार्ट करने को कहा. ड्राइवर ने इस तरह जीप स्टार्ट किया मानो उसके पीछे भूत लगा हो.

सोगराम के माथे और होंठ से खून बह रहा था. वह कभी आसमान की ओर देखता तो कभी हुंडरू की उन पहाड़ियों की तरफ जहां वर्षों पहले उसके दादा आलसाराम की लाश मिली थी. उसकी आंखों से ना तो आंसू निकल रहे थे और ना ही मुंह से आवाज. गेतला भगत ने उसे सहारा देकर उठाया – ‘चल बेटा, अस्पताल से बिसराम को ले आना है. उसे मिट्टी देनी है. अब तो जो होना है वो तो हो चुका. अस्पताल टोले से चार कोस होगा. अभी चलना होगा तो शाम तक लौट पाएंगे.’ किसी तरह उठा सोगराम और धीरे-धीरे गेतला भगत के साथ चल पड़ा. उन दोनों के पीछे पूरा टोला चल रहा था.

इस घटना के चार दिन बाद. गेतला भगत हुंडरू की पहाड़ियों पर एक बकरे को बलि देने के बाद उसके सिर को हाथ में लिए उतर रहा था. अचानक उसे एक जाना-पहचाना चेहरा दिखाई पड़ा. अरे सोगराम ? यहां क्या कर रहा है ? और अपने हाथ में छेनी-हथौड़ी क्यों लिये हुए है ? वह लपक कर उसके पास पहुंचा- ‘छेनी-हथौड़ी लेकर कहां जा रहा है बेटा ?’

‘पत्थलगड़ी करनी है चाचा. जमीन हमारी, जंगल हमारे, नदी और पहाड़ हमारे और हमें ही बेदखल किया जा रहा है. पत्थरों पर लिखना है- कंपनी वालों बाहर जाओ. फिर इन्हें जंगलों के कोने-कोने में लगाना है.’

गेतला भगत को झटका लगा. उसने गौर से सोगराम का चेहरा देखा. अरे….. अरे…….ये कैसे हुआ ? बिसराम बेदिया तो..? यह साला मरता क्यों नहीं ?

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • देश सेवा

    किसी देश में दो नेता रहते थे. एक बड़ा नेता था और एक छोटा नेता था. दोनों में बड़ा प्रेम था.…
  • अवध का एक गायक और एक नवाब

    उर्दू के विख्यात लेखक अब्दुल हलीम शरर की एक किताब ‘गुज़िश्ता लखनऊ’ है, जो हिंदी…
  • फकीर

    एक राज्य का राजा मर गया. अब समस्या आ गई कि नया राजा कौन हो ? तभी महल के बाहर से एक फ़क़ीर …
Load More In लघुकथा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…