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पतनशील कारपोरेटवादी शिक्षा की दर्दनाक हकीकत

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वर्तमान दौर पतन की पराकाष्ठा का दौर है. इस दौर को पैदा भी बाजारवादियों ने ही किया है और पोषित भी कारपोरेटी व्यवस्था ही कर रही है. उसके द्वारा लागू शिक्षा प्रणाली केवल कारपोरेटों के लिए मैनेजर से लेकर उपभोक्ता तक पैदा कर रही है. शिक्षा प्रणाली के पाठ्यक्रम में पर्यावरण प्रकृति समाज और मानवता से प्यार करना नहीं सिखाया जाता बल्कि उनको रेस में दौङने वाले घोङों की तरह शिक्षित किया जाता है. जो जितना अधिक रटता है उसको उतना बड़ा पैकेज दिया जाता है, जहां वे लोग कारपोरेटों की तिजौरी भरने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते हैं.

समाज का इससे बड़ा पतन और क्या हो सकता है कि एक पढ़ा-लिखा व सुविधा-संपन्न बेटा अपनी बीमार व ब्रेन हैमरैज की शिकार बेसुध मां को अचेतावस्था में सिर्फ इसलिये कई मंजिल ऊंची छत से नीचे फेक कर मार डाले कि वह मां की देखभाल व इलाज से आजिज आ चुका था.

महात्मा गांधी और पीएम मोदी जी जैसी शख्सियतों की धरती गुजरात के राजकोट शहर के ‘गांधी ग्राम’ क्षेत्र के ‘दर्शन-एवेन्यू’ में रहने वाले शिक्षाविद प्रोफेसर संदीप नाथवानी ने अपनी बूढ़ी व बीमार मां जयश्री बेन नाथवानी को अपनी अपार्टंमेंट की छत से नीचे फेक कर बेरहमी से दर्दनाक मौत के घाट उतार डाला. बूढ़ी मां हत्या के दो महीने पहले ब्रेन हैमरेज की शिकार हो गई थी और तभी से बिस्तर के हवाले थी.

जो मां नौ महीने तक अपने बेटे को कोख में लेकर घूमती रही हो और अपने खून से उसकी सांसों की डोर को सींचती रही हो तथा हर दुःख-तकलीफ को हंसते-हंसते बर्दाश्त करती रही हो और साल-दर-साल अपने बेटे का लालन-पालन करने में अपनी खुद की खुशियों की बलि चढ़ाती रही हो, उसी मां की वह बेटा सिर्फ दो महीने भी देखभाल नहीं कर पाया और उससे छुटकारा पाने की जुगत भिड़ाने में लग गया. संदीप ने 27 सितंबर 2017 को अपनी लाचार व बेसुध मां को छत से फेंक कर सुनियोजित तरीके से हत्या कर दी.

पुलिस ने भी इसे सामान्य आत्महत्या का मामला मान कर केस की फाइल बंद कर दी थी लेकिन एक गुमनाम शिकायत पर जब पुलिस ने सोसायटी की सीसीटीवी फुटेज खंगाली तो इस कलयुगी बेटे की पूरी करतूत सबके सामने आ गई. फुटेज में यह नृशंस हत्यारा मां को छत पर ले कर जाता और नीचे फेंकता साफ दिखाई दिया.

पता नहीं कोई इंसान का बच्चा कैसे अपनी जीवनदायनी मां को ऐसे छलकपट से मारने के बारे में सोच सकता है ? किसी अनपढ़, जाहिल व गरीब आदमी से भी ऐसी घटिया हरकत की उम्मीद नहीं की जाती, जबकि एक उच्च शिक्षित व अच्छा-खासा पैसा कमाने वाले से तो ऐसी कमीनी हरकत की उम्मीद तो स्वप्न में भी नही की जा सकती. परन्तु यही इस कारपोरेटवादी शिक्षा की दर्दनाक हकीकत है.

– By Jaipal Nehra

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