जीतेगा तो वही
जिसमें क्लियर्टी हो
जो क्लीयर नहीं है
जीतेगा भी तो उसे
खो देगा बहुत जल्दी
मोहन भागवत को
मालुम है
कब क्या बोलना है
कब क्या नहीं
बोलना है
मोदी को भी
मालुम है
संघ भाजपा को भी
मालुम है
कब नहीं बोलना है
हमारे अपने तो
क्या बोलना है
क्या नहीं बोलना
कब नहीं बोलना से
परे युगपुरुष हैं
बोलना ही बोलना है
कभी गांधी गोडसे को
एक-सा बताते हुए
कभी तुलसी को
महानायक बताते हुए
कभी मार्क्स तुलसी को
एक बताते हुए
कभी संघ के पक्ष में
कभी उसके विपक्ष में
कभी कांग्रेस के पक्ष में
कभी उसके विपक्ष में
हर समय बोलते रहना है
बोलने में ऐसे महारथी
अपने पक्ष में कभी भी
उनकी कोई क्लियर्टी नहीं
बोलना है तो बोलना है
सभी के लिए बोलना है
सभी पार्टी के पक्ष में बोलना है
सभी के विपक्ष में बोलना है
अपने विचार के पक्ष में
अपनी पार्टी के लिए
बोलना क्या गप्पशप
कभी इधर की कभी उधर की
ऐसे होकर लागलपेट में
बहुत बहुत बोलना है
जंतर मंतर दिल्ली का सिंहासन
यहां भी वहां वहां सभी जगह
अपनी जगह अपनी जमीन से
उखड़े उखड़े सभी जगह धंसे धंसे
संघ संगठन क्लियर्टी में
भाजपा नेता क्लियर्टी में
बिना लाग लपेट के
अपनी जमीन में साफ साफ
बाकी सब संतुलन साधते
नट की तरह जमीन पर नहीं
बंधी हुई रस्सी में अधर में चलते
बात क्लियर्टी की है
पार्टनर पहले क्लीयर हो जाओ
आखिर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है !
- बुद्धि लाल पाल
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