फरीदी अल हसन तनवीर
एक जाट था परमवीर ! दाढ़ी वाले बाबा का भक्त था. पत्नी और बेटी को भी उनका भक्त बनवा दिया था. अमूमन बाबा जैसे चरित्र के होते हैं, यह बाबा भी बुढौती में उस जाट की नाबालिग लड़की को भूत-प्रेत से निजात दिलाने के नाम पर अपने साधकों/साध्वियों के माध्यम से अपनी कुटिया में बुलाता है.
जाट परमवीर और उसकी पत्नी खुद नाबालिग बिटिया को उसकी कुटिया में छोड़कर आते हैं. वहां बाबा उस नाबालिग लड़की की शलवार में हाथ डालता है, उसे किस करता है, उसके प्राइवेट पार्ट्स को छेड़ता और छूता है. नाबालिग बच्ची का यौन शोषण करता है. बच्ची बाहर आकर अपने मां-बाप को सच बता देती है. अब चूंकि पिता जाट था तो अपने जाट तेवर के साथ वह अपने ईश्वर समान गुरु के विरुद्ध ताल ठोंक देता है.
वैसे ही जैसे आज कल जंतर-मंतर पर जाट पहलवान लड़कियां और उनके अभिभावक, समाज व अन्य समर्थक यौन शोषण के विरुद्ध ताल ठोंके पड़े हैं. जाटों के अतिरिक्त अन्य भारतीय समाजों के माता-पिता और बढ़े-बूढ़े ऐसे यौन शोषण के मामलों पर इज़्ज़त की दुहाई देकर कौन सा चुप्पी छाप स्टैंड लेते हैं, इसे समझना हम सब भारतवासियों के लिए कोई राकेट साइंस नहीं है. बिरले माता-पिता और समुदाय ही ऐसी परिस्थति में ताल ठोंक कर समुदाय की लड़की के विरुद्ध अत्याचार करने वाले बड़े आदमी, godman या सत्ताधारी के विरुद्ध खड़े होते हैं.
बाबा के सम्प्रदाय के लोग बाबा को बचाने के लिए राम जेठमलानी जैसा बड़ा वकील करते हैं. धर्म के रक्षक के रूप में स्थापित सुब्रमण्यम स्वामी सरीखा राष्ट्रीय स्तर का बड़का कानून विद भी मुक़दमें से बाबा को सेम आइडियोलॉजी और अंतरराष्ट्रीय भर्त्सना से बचाने के नाम पर आ जाता है कोर्ट में.
गवाहों के कत्ल किये जाते हैं, डराया जाता है, रिश्वत देकर खरीदा जाता है, वकील खरीद लिए जाते हैं. धर्म, हिंदुत्व, विचारधारा, राष्ट्रीयता, बाबा के सामाजिक कार्यों की दुहाई दी जाती है. लड़की को बालिग साबित करने के प्रपंच रचे जाते हैं. उसका चरित्र बिगाड़ा जाता है. लड़की और वकील को धर्म और समाज विरोधी साबित किया जाता है.
उस जाट परिवार के अतिरिक्त एक अस्थावान धार्मिक हिन्दू वकील सोलंकी उनके साथ आ जुटता है. वकील छोटा है लेकिन अपने काम को जानता है और सत्य के प्रति प्रतिबद्ध है.
यही एक धर्मनिष्ठ आदमी ‘एक अकेला काफी है’ पड़ता है, पूरे राष्ट्र के बहुसंख्य की भ्रष्ट आस्था के विरुद्ध लड़ने के लिए. हालांकि ऐसे ही एक मामले में भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका बहुसंख्य आस्था भले ही गलत हो, के विरुद्ध जाने से दर्य गयी थी. समझ तो गए न आप ?
वकील की कुछ दलीलें पर नज़र डालिये…! बाबा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल चलाता है तो क्या उसे लाइसेंस मिल गया है नाबालिग का बलात्कार करने का ?’ इस उक्ति को चिन्मयानंद के मुमुक्षु आश्रम के चूतड़ मालिश कांड पर रख कर देखिए.
वकील की एक और दलील देखिए. इस बाबा ने चूंकि धर्म की आड़ में साधु वेश धारण कर रावण जैसा कृत्य किया है…, जिसके दुष्प्रभाव युगों-युगों तक सनातन संस्कृति पर पड़ते रहेंगे इसलिये जिस प्रकार महादेव तक ने अपने अनन्य भक्त रावण को मरणोपरांत माफी मांगने तक पर माफी/क्षमा/मोक्ष से वंचित कर दिया था, उसी प्रकार इस बाबा को भी बेल से वंचित कर मृत्युदंड दिया जाना चाहिए.
आप सोच रहे होंगे अरे ये तो सिरसा डेरे कांड की कहानी है. नहीं-नहीं, ये तो बापू आसाराम के आश्रम की कहानी है. अरे ये तो शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम की वायरल वीडियो की कहानी है. अरे नहीं-नहीं, ये तो जम्मू के मंदिर में नाबालिग के बलात्कार और हत्या की कहानी है.
आप सैकड़ों कहानियां जो यहां-वहां बिखरी पड़ी हैं. रोज़ अखबार नई कहानियां बता रहे हैं लेकिन सब कहानियों का लब्बोलुआब ये होगा कि विक्टिम भले ही किसी समुदाय का हो लेकिन शोषक एक विचारधारा विशेष का वैसे ही होगा. जैसे भारत में पकड़ा गया हर आतंकी मुसलमान क्यों होता है, वाला फूहड़ तर्क दिया जाता है. आप बाबा को उसके गेटअप, उसके चोगे के रंग, उसके पहनावे से उसी प्रकार पहचान सकते हैं जैसे मोदी जी कपड़ों से दंगाइयों को पहचान लेते हैं. हालांकि पोस्ट का लेखक इस तरीके में विश्वास नहीं रखता.
लेकिन आखिरी बात जो पुड़िया में बांध कर अलग रखी है, वो ये है कि ये कहानी किसी वास्तविक चरित्र की न होकर काल्पनिक का डिस्क्लेमर देने वाली फिल्म ‘एक अकेला ही काफी है’ की है. वैसे ही जैसे केरल स्टोरी की कहानी थी.
तो अब आप इसे हॉल दर हॉल टैक्स फ्री कर पाएंगे ? देश का प्रधानमंत्री इसे प्रोमोट कर पायेगा ? आप देश के बहुसंख्य नागरिक जिनकी बेटियां आपके कारण किसी कुटिया में यौन शोषित हो रही हैं, हॉल से निकलते हुए इस काल्पनिक फ़िल्म के दिये तथ्यों पर बहस कर पाएंगे ? गुस्सा हो पाएंगे ? आपसे नहीं हो पायेगा न ?अभी-अभी ज़बरदस्ती जगाए गए धर्मिक से तो बिल्कुल न हो पायेगा. ऐसा मेरा भी विश्वास है.
आप बाबाओं के लिए अभिशप्त हैं…! सरकारें इसीलिए आपकी सेवा के लिए बाबे लॉन्च करती हैं. फिलहाल एक नया सरकारी बाबा लांच हुआ है, ‘y’ श्रेणी की सरकारी सुरक्षा के साथ. बिहारी उसकी चरण पादुकाओं पर लहालोट हुये जा रहे हैं. अपने घर की महिलाओं, बेटियों और नाबालिग बच्चों को ले जाकर आधी-आधी रात में उसके दरबार की रौनक बन रहे हैं.
ख़ैर आपका मामला है आप सुलट लोगे…! बस फ़िल्म देख मेरे मन में तीन सवाल आये –
- जाट परमवीर सपरिवार बाबे के आश्रम में क्यों गया और अपनी पुत्री क्यों भेजी ?
- जाट ही अन्याय के विरुद्ध क्यों लामबंद हो गया ? हालांकि शोषित तो और लोग भी थे.
- और लेखक/ निर्देशक ने इस विद्रोही चरित्र के लिए जाट परिवार को ही क्यों दिखाया ?
कहानी काल्पनिक है…लेकिन फिर भी कोई इन तथ्यों को समझ समझा पाएं तो स्वागत है.
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