1
वैष्णो देवी की चढ़ाई चढ़ते हुए पास से गुजरती पालकी उठाये 4 निरीह युवकों पर बच्चे की नजर पड़ी. वे एक ही तरह के सस्ते सैंडिल पहने एक ही पद लय में पसीना बहाते, गर्दन झुकाए, एक श्रद्धालु को चढ़ाई चढ़ाते हुए ढो रहे थे.
बच्चे ने अपने पिता से पूछा- ‘पापा ये मुसलमान हैं या हिन्दू ?’
पिता ने ठंडी आह छोड़ते हुए कहा – ‘ये न हिन्दू हैं, न मुसलमान. ये गरीब लोग हैं बेटा !’
2
‘पापा, शक्ल से तो ये मुसलमान लग रहे हैं !’
‘हम्म…’ पिता ने संक्षिप्त जवाब दिया.
‘पापा, हम अपना बोझ तक नहीं उठा पा रहे, ये एक आदमी को उठा कर चढ़ाई चढ़ रहे हैं !’
पिता खामोश रहा.
‘ऊपर बैठा आदमी, कैसा धार्मिक है पापा ?’
पिता ने उंगली मुंह पर रखकर बेटे को चुप होने को कहा.
‘पापा, लास्ट सवाल’.
‘हम्म, बोल’ – पिता ने हांफते हुए कहा
‘माता रानी इस यात्रा का फल पालकी ढोते मुसलमान को देंगी या ऊपर बैठे हिन्दू को ?’
पिता अपने बेटे को भरी आंखों से देखता रहा. बोल कुछ नहीं सका.
3
‘पापा, जब पूरे देश में हिन्दू मुसलमान हो रहा है, तो ये लोग हिन्दू को पूरी सेफ्टी के साथ कैसे ले जाते हैं ऊपर ? इनके भीतर भी तो नफरत उफनती होगी ?’
पिता जवाब जानता था, लेकिन पूरे देश की हालत को देखते समझते हुये, वह पालकी उठाये मुसलमान के प्रति अदब से झुक गया ! बच्चे ने देखा, पिता ने मुसलमान का धन्यवाद किया है. बच्चे को सवाल का जवाब स्वतः मिल गया था.
- वीरेंदर भाटिया
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