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पंडित जी के द्वारा ठाकुर साहिब की जूत पूजायी

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पंडित जी के द्वारा ठाकुर साहिब की जूत पूजायी

पंडित जी के द्वारा ठाकुर साहिब की जूत पूजायी पर इटावा रहने के दौरान एक मित्र द्वारा सुनाई आंखों देखी कहानी याद हो आयी. सोचा आप लोगों से भी बांट लूं.

मेरे कॉलेज, खेल और जिम के दौर के एक हम प्याला हम निवाला साथी हैं जयवीर सिंह भदौरिया. इटावा … वही सैंफई वाला … के मूल निवासी हैं. हम लोग करीब 30 वर्षों से तो एक दूसरे को जानते रहे हैं. एक दिन किसी दशहरे के दूसरे दिन एक दारू-मुर्गा पार्टी के दौरान उन्होंने बड़ा मज़ाकिया किस्सा सुनाया, जिसके वे आंखों देखे गवाह थे. वे उसी कार्यक्रम से लौट कर आये थे.




इटावा जमुना के किनारे ठाकुर बाहुल्य गांवों की बेल्ट के एक गांव में दशहरे के अवसर पर ठाकुर साहिबानों ने क्षत्रिय सम्मेलन आयोजित किया था. ज़िले भर के ठकुर साहिबान पगड़ियां बांध तिलक लगा घर भर की सभी राइफलें, दुनाली और तलवारें बटोर अपनी अपनी SUV पर भगवा झंडा लहराते समारोह स्थल पर पहुंचे. ज्ञात रहे इटावा उत्तर प्रदेश से लेकर भिंड होते हुए मुरैना तक हथियार लेकर SUV पर चलना स्टेटस सिंबल है. हो सकता है कि आदमी के पैर में जूते या चप्पल न हों, कंधे पर दुनाली अवश्य लटकी होगी.

वक्ताओं के वीरता से ओत-प्रोत भाषणों के बीच नारों के साथ जवाबी हवाई फायरिंग भी चल रही थी. हवन और शस्त्र पूजा का धुआं भी खूब वातावरण में तैर रहा था. समारोह का स्थल ठेठ ग्रामीण इलाके में कुछ खेतों को साफ कर बनाया गया था. वहां आस-पास पुराने जंगली पेड़ों पर गुस्सैल मधुमक्खियों के अनेक बड़े छत्ते भी थे. अभी वक़्ता अरावली पर आयोजित यज्ञ से उत्पन्न चार वीर पुरुषों से खुद की जाती को जोड़ते हुए खुद में देवत्व और वीरता की स्थापना करते पृथ्वी राज चौहान के अति वीरता वाले कारनामों का अतिशयोक्तिपूर्ण अलंकार में तारीफ कर ही रहे थे कि यकायक एक कांड हो गया.




किसी शैतान लौंडे ने पहले से फायरिंग, यज्ञ व पूजा के धुएं से क्रोधित मधुमक्खियों के छत्तों में या तो ढेला मार दिया या फायर झोंक दिया. क्रोधित मक्खियों ने फिर जो सर्जीकल स्ट्राइक दशहरा शास्त्र पूजन पर की तो आधा मिनट पहले जान की बाज़ी लगाकर युद्ध के मैदान में आ डटने का दावा करने वाले वीर ठाकुर साहिबान में भगदड़ मच गई. तकरीबन सभी मैदान से फरार हो गए. कुछ ने खुद को अपनी बंदूकों सहित अपनी ेनअ में बंद कर लिया. कुछ पास के अरहर के खेतों में फसलों के बीच लंबलेट हो गए. जो लंबी-लंबी पगड़ियां आन-बान-शान का प्रतीक थी, इस समय शरीर के खुले अंगों का कवच बनी हुई थी. कई योद्धा तो ज़मीन के नीचे बिछे फर्श के नीचे जा छिपे. कई सारे योद्धा तो पास के बम्बे के पानी में जा कूदे और सांस रोक दुर्योधन की तरह अंदर ही डुबकी मार गए, जैसे बाहर मधुमक्खी की जगह गदाधारी भीम खड़ा चैलेंज दे रहा हो.




मित्र जयवीर सिंह भदौरिया ने जब दूसरे दिन पैग पर चर्चा के दौरान ये आंखों देखा किस्सा क्षेत्र के अनेक बाहुबलियों के नाम ले-लेकर सुनाया, जिसमें विधायक, सांसद, नगरपालिका अध्यक्ष, सभासद, प्रधान और बाहुबली भी थे, तो VISUALIZE करते-करते हम लोगों के हंसते-हंसते पेट दुख गए.

2014 से तकरीबन दस साल पहले हम मित्र इतने लिबरल होते थे कि अपने ही समुदायों के जाति अहम की नॉनसेंस हरकतों को मित्रों के बीच सामूहिक रूप से सुना बता देते थे. आज कोई गर्वित ठाकुरों का लौंडा या कोई अन्य भी अपने अन्य समुदायों के दोस्तों को ऐसी घटना के बारे में बताते दस बार सोचेगा. हम सब अब गौरवान्वित हिन्दू, गौरवान्वित ब्राह्मण/क्षत्रिय/वैश्य/यादव/और न जाने क्या क्या बन गए हैं.

बस किसी घटना को तर्कपूर्ण तरीके से देखने और उसका जातीय व धार्मिक श्रेष्ठता के दम्भ से ऊपर उठकर सही परिप्रेक्ष्य में वर्णन करने वाले संतुलित इंसान मात्र नहीं रहे हैं. क्या क्षत्रिय/ठाकुर बताये जा रहे विधायक बघेल की जूत-पूजायी पर कोई पलटवार कर पाएंगे ? या मधुमक्खियों के डर से राइफल सहित बम्बे के पानी में कूद पनाह लेंगे ?

  • फरीदी अल हसन तनवीर





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