Home पुस्तक / फिल्म समीक्षा पलामू की धरती पर

पलामू की धरती पर

15 second read
0
0
1,536

पलामू की धरती पर Palamu ki dharti par

काव्य संग्रह – अभिजीत राय
प्रकाशक – प्रतिभा प्रकाशन, पटना
मूल्य – 50 रूपये मात्र

झारखण्ड प्रदेश …., हिन्दुस्तान के पटल पर प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित प्रदेश, प्राकृतिक संसाधनों से धनी प्रदेश और यही खूबसूरती, यही खासियत इस प्रदेश के लिए काल बन गया. लूट, छूट, भोग और शोषण पर आधारित इस मुल्क के दलाल खेवनहार शासकों की नजर इस प्रदेश पर गड़ गई और इसके प्राकृतिक सौन्दर्य तथा प्रकृतिक संसाधनों की लूट हेतु देशी-विदेशी पूंजीपतियों, लूटेरों के साथ इनके मजबूत गठजोड़ बनने लगे.

झाखण्ड के मूल निवासी सदियों से प्रकृति पूजक व इसके रक्षक रहे हैं. प्रकृति की रक्षा में सिद्धु-कान्हू, बिरसा मुण्डा इनके आदर्श रहे हैं. इधर शासक वर्ग संसाधनों की लूट पर आमादा है तो उधर आदिवासी इनके संरक्षण के लिए समर्पित. स्वभाविक परिणति है – टकराव.

शासक वर्ग अपने सैनिक व हथियारों के बल पर उनके प्रतिरोध को दबाने के लिए एड़ी-चोटी एक किये हुए हैं. दूसरी तरफ आदिवासियों ने अपनी अस्मिता, अपने हक, जल-जंगल-जमीन की रक्षा की लड़ाई के लिए अपने हाथों में हथियार उठा लिया है. इस लड़ाई में हजारों लोगों ने शहादतें दी है.

कवि अभिजीत राय के दो शब्द देखें, ‘‘शासक वर्ग शोषण-दमन की चक्की को अनवरत् जारी रखने के लिए जिस प्रकार पुलिस-सेना का इस्तेमाल कर रही है, अपनी हथियारबन्द ताकतों का इस्तेमाल जिस प्रकार देश की विशाल आम पीड़ित जनता के खिलाफ कर रही है, निश्चय ही यह एक बड़े जनान्दोलन को नियंत्रित कर रही है – शायद गृहयुद्ध को. प्रस्तुत कवितायें जनता के बीच पनप रहे इसी गुस्से को प्रतिनिधित्व करता है.’’

पलामू, झारखण्ड का एक अतिसंवेदनशील क्षेत्र. आन्दोलन की भूमि, पुलिस के बूटों से रौंदाती हुई धरती, जनजीवन. हाड़तोड़ मेहनत करनेवाले लोग. पर उनके चेहरे सूखे, पेट-खाली, शरीर कुपोषित. अपनी अंतहीन गरीबी और एक खास वर्ग के लोगों की चमक-दमक जिंदगी पर सवाल खड़ा करने पर यह व्यवस्था उनके ऊपर दमन चलाती है, उनके ऊपर गोलियों दागी जाती है. जल-जंगल-जमीन हथियाने और बचाने की इस लड़ाई में सैकड़ों निर्दोष प्रतिदिन मारे जा रहे हैं मुठभेड़ के नाम पर. ‘मुठभेड़’ कविता की एक बानगी देखिए -ताजगी का आलम, वसंत की बौछार, कोयल की कुहूक, मंजरों की मादक खूशबू, चांदनी बहती रात, मनोहर एकांत क्षण …/परन्तु,/बेचैन-दुःखी-निराश,/वह नौजवान./इन्तजार करता किसी के आने का. /शायद किसी बहार का./प्रेम का मारा,/वह बिचारा./टिक….टिक…/समय बीतती रही,/पर लगे पंक्षी की तरह.
जैसे कोयल की कुहूक …/तभी,/िþजा में गूंजी,/पत्तों की सरसराहटें…/चेहरे पर जमाने भर की खुशियाँ समेटे,/मुड़ा ही था वह नौजवान /कि-/तीन गोलियाँ एक-एक कर /सीध दिल को छेदती गुजर गई./( 2 )/सुबह अखबार के पन्नों पर /छायी थी खबर -/‘एक खूंख्वार नक्सलवादी मारा गया,/पुलिस मुठभेड़ में.’

कवि ने इसी तरह के पुलिस मुठभेड़ में पलामू की धरती पर शहीद हुए साथी दघीची राय को इस काव्य संग्रह को समर्पित किया है, जिनके सपने आज भी जिन्दा हैं. कवि ने शुरूआत ही किया है ‘कविता’ से – ‘आइये – मैं भी सुनाता हूं एक कविता, भूख से बिलबिलाते लोगों के हिंसक प्रतिरोध का – मैं कवि नहीं, भुक्तभोगी हूं, नहीं ! मैं तो निमित्त मात्र हूं, भूख से बिलबिलाते लोगों का / एक प्रतिनिधि मात्र हूं …’. साथ ही ‘बीज’ कविता के माध्यम से कवि नई पौध को उगते हुए भी देखता है – वह मुझसे पूछ रही थी, क्या कर रहे हो ? मैंने कहा …, थोड़ी देर में आई एक पुलिस,/झटकारते डंडा अपना./मुझे डराया-धमकाया-समझाया /और कहा, ‘बंद करो,/खेतों में क्रांति का बीज /बोना.’/मैंने कहा, ‘उग सकता है अब इस खेत में,/क्रांति का ही पौध./वैज्ञानिकों ने बताया है./व्यवहार में सीखा है.’/उसने मुझे देशद्रोही कहा और/मुझे पीटने लगा./मेरा खून खेतों में गिरने लगा./गिरते-गिरते मैंने देखा-/खून से भींगी जमीन पर/बहुत तेजी से उग रहे थे,/क्रांति के पौधे.’

पलामू की धरती पर – काव्य संग्रह में कुल दस कवितायें हैं. सभी रचनाएं उम्दा स्तर की है. आग और अंगार की ये रचनायें सोये मन को झकझोड़ती है. एक बार पढ़ने के बाद मन तृप्त नहीं होता. कवितायें ऐसी है कि हरेक पंक्ति चलचित्र की भांति दृष्टिगोचर हो रही है. हर कविता मात्र कविता नहीं, भोगा हुआ सच प्रतीत होता है. ‘गुरिल्लों की रातें’ में कवि एक जन सैनिक के रूप में सामने खड़ा नजर आता है तो ‘और अंत में’ में कविता में गोली से उड़ा दिये गये बेटे से मुस्कुराहट के बीच क्रांति के सफलता की आभा को देखता है.

सुन्दर साज-सज्जा, बेहतर कम्पोज व प्रकाशन की बदौलत यह संग्रह संग्रहणीय है, जो पाठकों के मन में न केवल बार-बार पढ़ने की लालसा पैदा करता है बल्कि उस पर एक प्रभावकारी छाप भी छोड़ता है.

– संजय श्याम

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In पुस्तक / फिल्म समीक्षा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…