पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
धार्मिक अंधविश्वासों और पाखंडी ढोंगों का कोई अंत नहीं है. ये सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अलग-अलग रूपों में मौजूद है. कत्तई जरूरी नहीं कि सिर्फ भारतीय ही ढोंगों और ढकोसलों को पोषित करते हैं. ये तो दुनियाभर में अलग-अलग रूपों में फैला एक ऐसा अंंधेर का जाल है जिसमें एक बार आप फंसे तो फिर इससे निकल नहीं सकते.
ढोंग और पाखंड की श्रृंखला में आज ब्रिटेन के एक ऐसे पेड़ में बारे में बता रहा हूंं जिसमे पैसे ही पैसे लगे हैं आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि ‘पैसे क्या पेड़ पर उगते हैं’, पैसे भले ही पेड़ पर उगते न हो लेकिन लगाये तो जा ही सकते है न.
ब्रिटेन के स्कॉटिश हाईलैंड के पीक डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट में. वेल्स के पोर्टमेरियन गांव में मौजूद ये पेड़ अब अंधविश्वासियों के लिये एक मशहूर टूरिस्ट स्पॉट बन चुका है, जहांं विकसित देशों के उच्च शिक्षित मुर्ख अंधविश्वासी आकर सिक्के लगाते हैं. वैसे शिक्षा का अंधविश्वास से कोई ताल्लुक नहीं है और इसका एक उदाहरण- सेटेलाइट और उपग्रह प्रक्षेपित करने वाले पढ़े-लिखे वैज्ञानिक भी उन्हें अंतरिक्ष में भेजने से पहले क्रियाकांड करवाते हैं. ये सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में हो रहा है (अपवादों को छोड़कर). वे सभी अपने-अपने धर्म के अनुसार क्रियाकांड करते हैं.
सिक्को वाला पेड़ ब्रिटेन का ऐसा अंधविश्वास है जिसके बारे में ब्रिटेन में आने वाले विदेशी सैलानियों के लिये भी सरकारी तौर पर इसको टूरिज्म बुक में निर्दिष्ट किया गया है. (हो सकता है ये प्रोपेगेंडा ब्रिटेन सरकार ने ही चलाया हो, टूरिस्ट बढ़ाने के लिये. आखिर 200 साल भारत में राज किया है इतना तो वे हमसे सीख ही गये होंगे.)
पेड़ के बारे प्रचारित किया गया है कि ये पेड़ 1700 साल पुराना है जबकि दुनिया के सबसे पुराने पेड़ों के संकलन में इसका कोई नाम नहीं है. विश्व के अब तक के सबसे पुराने ज्ञात पेड़ों में ओल्ड टीजिक्को में है, जो स्वीडन के डलारना प्रांत में है, जो 9550 वर्षो से जीवित है अर्थात हरा-भरा है. इसके बाद 9000 वर्ष, 5660 वर्ष और 375 वर्ष पुराने पेड़ों (सभी स्वीडन में ही) की भी पहचान की जा चुकी है. इससे पहले अर्थात इन पेड़ों की खोज और जांंच से पहले दुनिया के सबसे पुराने पेड़ो के रूप में उत्तरी अमेरिका के देवदार के 5000 वर्ष और 4000 वर्ष वाले थे लेकिन इसमें ब्रिटेन का 1700 वर्ष वाला पेड़ कहीं भी नहीं है (सभी वृक्षों की जांंच अमेरिका के फ्लोरिडा और मियामी शहर की प्रयोगशालाओं में की गई थी).
वक़्त के साथ ब्रिटेन का ये पाखंड इतना फेमस हो चुका है कि विदेशी सैलानी विशेष तौर पर अपनी मान्यताओं की पूर्ति के लिये ब्रिटेन आते हैं. समय के साथ-साथ इससे जुडी अंधी मान्यतायें भी बढ़ती ही जा रही है. पहले ये सिर्फ गुडलक की मान्यता से जुड़ा था मगर अब लम्बी आयु, बीमारी से छुटकारा, प्रेम की प्राप्ति, सुख-समृद्धि, मन की मुराद, प्रेमी-जोड़ों के रिश्तोंं में ठहराव, तनाव मुक्ति और हर परेशानी से छुटकारा भी दिलाता है (भारत में ये सभी काम बंगाली बाबा करते हैं). क्रिसमस के मौके पर तो ईसाई धर्म के अंधविश्वासी लोग यहां मिठाइयां और गिफ्ट्स भी रखते हैं.
कुछ लोग तो इसमें ईश्वर का वास मानते हैं तो कुछ भूत का. कुछ इसमें डिवाइन पावर मानते हैं तो कुछ कोई सकारात्मक शक्ति. कुल मिलाकर अन्धविश्वास इतना गहरा हो चुका है कि पेड़ में कोई ऐसी जगह नहीं बची है जहां पर सिक्के न लगे हों. सिक्के भी सिर्फ यूके के नहीं बल्कि दुनियाभर के देशों के लगे हुए हैं. सिक्के लगाने से भी ज्यादा अन्धविश्वास सिक्के निकालने के बारे में है. अतः भूख से मरता व्यक्ति भी वहां से सिक्के नहीं निकालता.
दुनियाभर में फैले पाखंडों और धार्मिक ढोंगों को देखकर एक बात तो स्पष्ट समझ में आती है कि इन सबका का कारण है – अभाव. अभावग्रस्त व्यक्ति जब डिप्रेशन में डूबा होता है तब आशा की किरण के रूप में ये धार्मिक अंध-आस्थायें और पाखंड मुख्य भूमिका निभाते हैं. और तब तो सोने पे सुहागा हो जाता है जब एक ही तरह का डिप्रेशन लम्बे समय तक अलग-अलग लोगों में लगातार हो. फिर तो ये सिलसिला दिनों या महीनों नहीं, बल्कि सैकड़ो-हज़ारों सालों तक चलता है.
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