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पद देखकर आपराधिकता तय नहीं हो पर जांच भी क्यों टले ?

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पद देखकर आपराधिकता तय नहीं हो पर जांच भी क्यों टले ?

पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे आरोप पर जो कार्रवाई हो रही है (और अन्य बातों से भी) यह मामला सुलझने की बजाय उलझता जा रहा है. मुख्य न्यायाधीश के अलावा यह मामला कार्यस्थल पर यौनशोषण का है और अगर सुप्रीम कोर्ट में यौनशोषण की शिकायत (और मुख्य न्यायाधीश पर आरोप) का निस्तारण सही तथा संतोषजनक ढंग से नहीं होगा तो कब होगा, किस मामले में होगा ? अगर देर हो गई – तो क्यों हुई ? क्या यह साजिश का हिस्सा नहीं है ? कैसे तय होगा ? जहां तक मुझे याद है, जज लोया की हत्या के आरोप की जांच से संबंधित एक मुकदमे में यह दलील दी गई थी कि उनकी मृत्यु हुई तो वे साथी जजों के साथ थे और जजों ने ही कहा है कि स्वाभाविक मौत है तो क्या जजों पर शक किया जाए (या ऐसा ही कुछ).

अपने आप में यह तर्क दमदार है पर इससे यह कहां सुनिश्चित होता है कि हत्या हुई होगी तो वह जज साहिबानों की जानकारी में होगी. मुमकिन है साजिश का पता जज साहिबानों को न हो. अगर अवमानना का मामला न हो तो आज ही गृहमंत्री का बयान (टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा है) क्या जेंडर प्रोफेसन पूछ कर गुनाह तय होगा ?

बिल्कुल सही है, पर पेशे के मद्देनजर किसी गुनाह की जांच न हो यह कैसे सही है ? जहां तक जज लोया की मौत की जांच नहीं होने का मुद्दा है, द वायर की एक खबर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में वकील इंदिरा जयसिंह ने जस्टिस अरुण मिश्रा को लोया की मौत का मामला मिलने पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि उनका पुराना इतिहास है कि उन्होंने गुजरात सरकार के पक्ष में फैसला दिया है, जो 20 साल से ज्यादा समय से सत्ता में है.

आज गृहमंत्री कह रहे हैं कि पद देखकर आपराधिकता तय नहीं होगी तो पद देखकर निर्दोष होना भी तय नहीं होना चाहिए. रंजन गोगोई के मामले में ही नहीं, जज लोया की मौत का मामला भी कम गंभीर नहीं है. अदालत ने जांच से इनकार किया है जबकि बांबे हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस बीजी कोल्से पाटिल ने लोया की मौत की जांच को पूरे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की बात बताई है. उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका की इज्जत दांव पर लगी है, जिसे सभी को और अदालत को मिलकर बचाना है. पर जांच नहीं हुई और आज यह दूसरा मामला.

रंजन गोगोई पर चल रहा, यौन शोषण का मामला बंद हुआ. जो न्यायपालिका अपने शीर्ष द्वारा उत्पीड़ित महिला को न्याय न दिला सके, वह बार बार जनता में खुद पर भरोसा रखने की बात कैसे कर सकती है ?

अन्तरावलोकन कीजिये, मेरे आका, आप ने अपनी खुद की ही अवमानना कर दी है.
अब यदि आप कार्टून, टिप्पणियों, आदि परिहास को भी अवमानना समझ कर फटाफट नोटिस जारी करते हैं तो वह सब आप की खीज होती है. थोड़ी पीठ टटोलियेगा, वहां जितना दम होगा, हमारा भरोसा भी उसी के अनुपात में होगा.

रंजन गोगोई को फंसाने का षड़यंत्र था यह, यह निष्कर्ष सही हो सकता है. पर यह षड़यंत्र किसका था ? रंजन गोगोई को फंसा कर किसे क्या लाभ मिल सकता था ? और इस यौन शोषण के षड़यंत्र तथा राज्यसभा की छोटी-सी कुर्सी के बीच का सूत्रधार कौन है ?

इन सब सवालों का उत्तर न खोजा जाना, अदालत की अवमानना हो सकती है, पर यह सब सवाल संविधान की कस्टोडियन सुप्रीम कोर्ट से पूछना, हर नागरिक का धर्म और अधिकार है.

  • विजय शंकर सिंह एवं संजय कुमार सिंह

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ROHIT SHARMA

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