मनमीत
दुनिया में भगवान की उत्पत्ति ये ही लगभग तीन हजार साल पहले की होगी. उससे एक हजार साल पहले आत्माओं को पूजा जाता था और अलग-अलग इलाकों की अलग-अलग तांत्रिक अनुष्ठान (भारत मे पौन और तिब्बत में बौन अनुष्ठान) थे. कुल मिलाकर साधना, आराधना, पूजा और पाठ का इतिहास इंसानी तारीख में कोई चार हजार साल से पुराना नहीं है.
कितना ? चार हजार साल बस. तो इंसान भी इस दुनिया में चार हजार साल पहले ही आया ? नहीं. इंसान को दुनिया में आये बहुत ही कम समय हुआ है. कम इसलिए, क्योंकि लाज़मी है कि इंसानों से पहले पृथ्वी का निर्माण हुआ होगा और उससे भी पहले ब्रह्माण्ड का, यानी फार्मेशन ऑफ कॉस्मोलॉजी.
ब्रह्मांड का निर्माण लगभग 1380 करोड़ साल पहले हुआ. कैसे हुआ ? वैज्ञानिकों के अनुसार, एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ और पृथ्वी समेत तमाम आकाशगंगा उस तरह अस्तित्व में आई जैसे आज है. इसे ‘Big Bang Theory’ कहा गया. जबकि पृथ्वी का जन्म 480 करोड़ साल पहले हुआ.
इंसानों का पृथ्वी में जन्म महज 70 लाख साल पहले की है. इसे लगभग में मान लें. यानी भगवान से 69.97 लाख साल पहले इंसान पृथ्वी में आ चुका था. इन 70 लाख सालों में इंसान के जीवन चक्र में कई ऐसी जिज्ञासा थी, जिसके जवाब उसे बेचैन करते थे इसलिए अपने जवाब के सरलीकरण और सुविधा युक्त बनाने के लिए उसने अस्थाओं को गढ़ा. मतलब, जहां जहां इंसानी कदम पड़े, कालांतर में वहीं भगवान की लॉन्चिंग हुई.
अब क्योंकि इंसान लाखों साल तक अंटार्टिका और आर्कटिक जैसे दुर्गम इलाकों में नहीं पहुंच पाया तो वहां भगवान नहीं पहुंच सके. इसलिए न तो नार्थ पोल और न ही साउथ पोल में कोई मन्दिर है, न चर्च और न कोई मस्जिद. यहां तक कि जब इंसान चन्द्रमा में पहली पहल पहुंचा तो वहां भी कुछ नहीं था.
भगवान वहीं है, जहां इंसान है. और अपने 65 लाख सालों की विषमताओं से भरी जीवन की यात्रा भी इंसान ने बिना भगवान के की और वहां पहुंचा जहां उसने पहले पहल भगवान को स्थापित किया.
तो उसे भगवान की जरूरत क्यों पड़ी ? क्योंकि तब तक वो अनाज उगाना सीख चुका था. अब उसका पेट अन्न से भरपेट भरने लगा था. उसे जंगलों में सैकड़ों किलोमीटर किसी जानवर के पीछे भागना नहीं पड़ रहा था. उसके बच्चे कुपोषण से मर नहीं रहे थे. अब जब उसका पेट उसे परेशान नहीं कर रहा था और उसके गोदामों में महीनों का राशन भरा पड़ा था और ‘खाली पेट न भजन गोपाला’ का फार्मूला उस पर लागू नहीं हो रहा था तो वो घण्टों खाली बैठने लगा.
यहीं से उसकी कल्पनाओं ने उड़ान भरी और दुनिया के पहले दार्शनिक पैदा हुए. अब उसे जवाब चाहिए थे. मसलन, इंसान मरता क्यों है ? सर्दी के बाद गर्मी क्यों आती है ? रात के बाद सुबह क्यों होती है ? आदि आदि.
और इन्ही दार्शनिकों ने पहले पहल भगवान की उत्पत्ति की. लोगों को जैसे भी, लेकिन इन दार्शनिकों से जवाब मिलने लगे. फिर हर नए क्षेत्र में एक नया दार्शनिक पैदा हुआ और उसने एक नया दर्शन दिया. यही शुरुआती दर्शन बाद में धर्म की शक्ल लेने लगे.
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