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106 वर्ष पुराने पटना संग्रहालय को निजी हाथों में सौंपने के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिवाद संगठित करो !

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106 वर्ष पुराने पटना संग्रहालय को निजी हाथों में सौंपने के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिवाद संगठित करो !
106 वर्ष पुराने पटना संग्रहालय को निजी हाथों में सौंपने के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिवाद संगठित करो !

बुद्धिस्ट पुरातत्वों के लिए प्रसिद्ध 106 वर्ष प्राचीन विश्व ख्याति के संग्रहालय को राज्यपोषित आक्रमण से बचाया जाए. 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय का स्वामित्व सोसायटी एक्ट के अंतर्गत संचालित एनजीओ बिहार संग्रहालय समिति को सौंपना गैर-कानूनी और जुर्म है.

संविधान सभा के अध्यक्ष, बिहार निर्माता सच्चिदानंद सिन्हा जिस संग्रहालय के प्रस्तावक रहे हों, प्रसिद्ध इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल जिस संग्रहालय के संस्थापक हों, महान यायावर ज्ञानी राहुल सांकृत्यायन जिस संग्रहालय के दानदाता व उद्धारक रहे हों, उस 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय को एक अवकाश प्राप्त नौकरशाह के द्वारा संचालित बिहार संग्रहालय समिति नामक एनजीओ को सुपर्द करना जुल्म है. बिहार सरकार की यह कार्रवाई इतिहास, पुरातत्व की राष्ट्रीय संपदा के लिए खतरनाक है.

सुरंग का प्रवेश मार्ग बनाने के लिए पटना की सबसे खूबसूरत ईमारत (हेरिटेज बिल्डिंग) पटना, संग्रहालय भवन के पिछले हिस्से को तोड़ने की योजना पर रोक लगाई जाए.

12 मार्च 2023 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर में पटना संग्रहालय के एडिशनल डायरेक्टर के हवाले से खबर छपी है कि पटना संग्रहालय के मेन बिल्डिंग को रिनोवेट कर ‘U’ आकार दिया जाएगा. यह ख़बर चिंताजनक है. इंडो-सारा-सैनी शैली की पटना की सबसे खूबसूरत इमारत जिसके सौन्दर्य से अविभूत होकर लोगबाग उसे ‘जादूघर’ के नाम से पुकारते हों, उस जादूघर को इंडो-सारा-सैनी शैली के स्थापत्य से अनभिज्ञ बिहार सरकार के भवन विभाग के इंजीनियरों की निगरानी में रिनोवेशन उसके सौन्दर्य को नष्ट करेगा.

बिहार के जादूघर (पटना संग्रहालय के तीन खंभे (स्तंभ), भारत के तीन महान विभूति डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा, डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल, महापंडित राहुल सांकृत्यायन.

पटना संग्रहालय से बिहार संग्रहालय को जोड़ने के लिए 373 करोड़ की लागत से सुरंग बनाने का निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिवालियापन का प्रतीक है. गरीब प्रदेश में बेवजह सुरंग बनाने की योजना जनता के पैसों की बर्बादी है. इस सुरंग के निर्माण से इतिहास, पुरातत्व व संग्रहालय का रत्ती सा भी विकास संभव नहीं है. इस सुरंग निर्माण योजना को तत्काल रद्द किया जाए.

राज्य की जनता को सुरँग में दौड़ा कर मनोरंजित कर जय-जयकारा ही सरकार का उद्देश्य है तो सुरंग कहीं भी बनाया जा सकता है।सुरंग बनाने के लिए 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय के भवन पर आक्रमण क्यों ? इंडो-सारा-सैनी शैली से निर्मित राजधानी की सबसे खूबसूरत ईमारत जिसे ‘जादूघर’ की प्रतिष्ठा प्राप्त है, इस जादूघर के सौंदर्य और गरिमा को बचाना समाज और राष्ट्र की जिम्मेवारी है.

महात्मा बुद्ध का अस्थि कलश, 200 मिलियन वर्ष प्राचीन 53 फीट लंबा देश का सबसे बड़ा फॉसिल्स ट्री, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में लिखे गए महापंडित राहुल सांकृत्यायन के द्वारा भारतीय इतिहास की तिब्बत से लाई गई 6 हजार से ज्यादा दुर्लभ पांडुलिपि, मोहनजोदड़ो के पुरातत्वों, सबसे बड़े पुरामुद्रा बैंक, यक्षिणी और बुद्धिस्ट पुरातत्वों की वजह से पटना संग्रहालय दुनियां में विशिष्ट व चर्चित रहा है.

ज्ञात हो कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन पटना संग्रहालय के सबसे बड़े दानदाता हैं और दानदाता की पुत्री जया सांकृत्यायन ने पटना संग्रहालय की रक्षा के लिए 2017 और 2023 में अब तक मुख्यमंत्री के पास दो बार पत्र भेजे हैं.

7 मार्च 2023 को बिहार सरकार के गजट के द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार पटना संग्रहालय के सबसे बड़े दानदाता महापंडित राहुल सांकृत्यायन से प्राप्त पुरातत्वों के बारे में किसी तरह का जिक्र ना करने और मुख्यमंत्री के पास दानदाता की पुत्री के द्वारा प्रेषित दो पत्रों का कोई जवाब नहीं देना, दानदाता परिवार से मुख्यमंत्री की संवादहीनता, महापंडित से प्राप्त पुरातत्वों के बारे में सरकार की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है.

पटना संग्रहालय के अधिग्रहण के बावजूद कला संस्कृति विभाग के सचिव का यह कहना कि राहुल सांकृत्यायन कलेक्शन सुरक्षित है, संदेह उपस्थित करता है. गैर कानूनी तरीके से 106 वर्षीय राजकीय संग्रहालय का स्वामित्व एनजीओ के हाथों में सौंपने के बाद राहुल सांकृत्यायन कलेक्शन का भविष्य क्या होगा ? क्या बिहार संग्रहालय समिति के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह बौद्ध दर्शन, पालि, तिब्बती के ज्ञानी हैं कि उनकी ज्ञान आभा से महापण्डित कलेक्शन का उद्धार संभव है.

बिहार सरकार अगर महापंडित राहुल सांकृत्यायन की पुत्री के पत्रों की उपेक्षा कर रही है तो मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या दानदाता परिवार पटना संग्रहालय में स्थित सांकृत्यायन कलेक्शन के बेहतर उपयोग के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार करें. (दानदाता ने जिस संग्रहालय को दान दिया, उस संग्रहालय को निजी हाथों में सौंपने के बाद दानदाता परिवार के पास दान सामग्री वापस करने का कानूनी प्रावधान है.)

दानदाता परिवार और महापंडित राहुल सांकृत्यायन के दुनियां भर के अध्येता पटना संग्रहालय के निजीकरण के बाद राहुल सांकृत्यायन संग्रह सहित तमाम स्थानांतरित पुरातत्वों की सुरक्षा के प्रति चिंतित और परेशान हैं. दानदाता सांकृत्यायन परिवार की ओर से आपत्ति दर्ज कराने के बावजूद पटना संग्रहालय का स्वामित्व कॉरपोरेट सदृश एनजीओ को सौंपना अलोकतांत्रिक, अवैधानिक और पूर्णतः तानाशाही कदम है.

यक्षिणी अपने पुराने घर में-राजमहल की रानी

अपहरण के बाद नीतीश कुमार की नौकरानी (यक्षिणी)

ब्रिटिश शासन में जेल से रिहा होते ही राहुल सांकृत्यायन ज्ञान संपदा की खोज में तिब्बत की यात्रा में निकल जाते थे. ब्रिटिश शासन की कड़ी निगरानी से छुपकर 4 साहसिक तकलीफदेह यात्राओं में राहुल सांकृत्यायन काष्ठ और तालपत्रों में दर्ज भारतीय ज्ञान को बहुत मुश्किल से साथ लाने में सफल हुए. ज्ञान के खोज की यह यात्रा राहुल सांकृत्यायन को दूसरे यात्रियों से अलग खड़ा करती है. इस यात्रा की महत्ता पर इतिहास-विज्ञान की विश्व की शिखर शोध संस्थाओं में शोध हो रहे हैं. (राहुल जी ने भिखारी और साधु के वेश में यात्रा के दौरान अपनी रक्षा की.)

पटना संग्रहालय का स्वामित्व स्थानांतरण के साथ गजट में इस बात का जिक्र है कि अंतरराष्ट्रीय मानक से पटना संग्रहालय को व्यवस्थित करने के लिए पटना संग्रहालय को बिहार संग्रहालय समिति नामक एनजीओ के हाथों सुपुर्द किया जा रहा है. इस गजट में इस बात का जिक्र नहीं है कि किस कानून के तहत 106 वर्ष प्राचीन राजकीय संग्रहालय के स्वामित्व एनजीओ को सौंपा गया.(जाहिर है कि ऐसा कोई कानून उपलब्ध ही नहीं है, जिससे एक राजकीय संग्रहालय का स्वामित्व एक एनजीओ को सौंप दिया जाए.

मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि पटना संग्रहालय क्या क्षेत्रीय मानक पर स्थापित किया गया था ? जिस संग्रहालय के प्रस्तावक डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा और काशी प्रसाद जायसवाल अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बैरिस्टर रहे हों. बुद्धिस्ट पुरातत्वों के लिए जो विश्व का अकेला संग्रहालय हो, जिसके संस्थापक प्रसिद्ध इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल खुद भारतीय मुद्राशास्त्र के अध्यक्ष और मुद्राशास्त्र के अंतरराष्ट्रीय विद्वान रहे हों, जिस संग्रहालय के पास ब्रिटिश सरकार ने नेशनल क्वायन्स कमिटी गठित कर भारतीय पुरातात्विक मुद्राओं का देश का सबसे बड़ा क्वायन्स बैंक स्थापित किया गया हो, जिस संग्रहालय की संस्थापक बिहार रिसर्च सोसायटी के इतिहास शोध और जर्नल को वैश्विक स्थान प्राप्त हो, उस प्रसिद्ध इतिहास शोध संस्थान से संपन्न पटना संग्रहालय को क्षेत्रीय मानकर उसे अंतरराष्ट्रीय मानक प्रदान करने की घोषणा सरकार के बौद्धिक पिछड़ापन को प्रदर्शित करता है.

ज्ञात हो कि पटना संग्रहालय के क्यूरेटर बिहार प्रशासनिक सेवा आयोग से चयनित होते हैं. जबकि बिहार संग्रहालय के क्यूरेटर एक अवकाश प्राप्त नौकरशाह की अनुकंपा से नियुक्त होते हैं. पटना संग्रहालय के एक-एक क्यूरेटर पुरातत्व के बड़े-बड़े विशेषज्ञ रहे हैं. पटना संग्रहालय की स्थापना काल के क्यूरेटरों ने अविभाजित भारत मे चप्पे-चप्पे से ढूंढ कर पुरातत्वों का संग्रह किया था. बिहार संग्रहालय के कोई क्यूरेटर अब तक बिहार संग्रहालय के लिए एक भी पुरातत्व संग्रहित करने में सफल नहीं हो पाए. पटना संग्रहालय के क्यूरेटरों के द्वारा संग्रहित पुरातत्वों को अवैधानिक तरीके से बिहार संग्रहालय में प्रदर्शित करना अगर भारतीय पुरातत्व संरक्षण कानून का उलंघन है तो संग्रहालयों के अंतरराष्ट्रीय मानक को भी कलंकित करता है.

अगर बिहार प्रशासनिक सेवा के द्वारा चयनित क्यूरेटरों के कार्य में बिहार सरकार को मानक नहीं दिखता है तो अच्छा हो कि बिहार सरकार बीपीएससी को बंद कर दे.

ब्रिटिश शासन काल में स्थापित पटना संग्रहालय का बिहार सरकार केयर टेकर है, स्वामी नहीं है. बिहार सरकार जिस संग्रहालय की संस्थापक नहीं हो, जिन पुरातत्वों का स्वामित्व बिहार सरकार के पास नहीं हो, उस संग्रहालय के पुरातत्वों को पहले एनजीओ को सौंपना फिर उस ऐतिहासिक संग्रहालय के स्वामित्व को दूसरे हाथों में सौंपना बिहार सरकार की नादानी और इतिहास विरोधी कार्रवाई है.

पटना संग्रहालय के पुरातत्वों का कानूनी स्वामित्व किसका है ?

संग्रह या पुरावशेष संविधान के समवर्ती सूची का विषय है. पुरावशेष और कलानिधि संरक्षण (Antiquities & Artifacts Protection act) अधिनियम के अनुसार किसी भी पुरावशेष के status में किसी भी प्रकार का परिवर्तन भारत सरकार के सक्षम प्राधिकार के अनुमति के बिना असंवैधानिक है. इसी तरह किसी भी पुरावशेष का स्वामित्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारत सरकार का है. पटना संग्रहालय को प्राप्त 80 प्रतिशत संग्रह ऋण या उपहारस्वरूप या सशर्त उपहार के रूप में प्राप्त है. ऋण के रूप में प्राप्त सामग्री को दोबारा किसी को ऋण के रूप में देना नियमानुकूल नहीं है, वह भी मूल स्वामी की अनुमति के बिना.

व्यक्ति के रूप में पटना संग्रहालय को जिस एक व्यक्ति से 6 हजार से ज्यादा पुरातत्व व कलानिधि प्राप्त हुए, वह दानदाता राहुल सांकृत्यायन हैं. 2007 में बिहार रिसर्च सोसायटी का अधिग्रहण करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने विधि विभाग से राय लिए बिना बिहार रिसर्च सोसायटी को राहुल सांकृत्यायन की तिब्बत यात्रा से प्राप्त पांडुलिपियों को दानदाता परिवार से सहमति, स्वीकृति के बिना पटना संग्रहालय को सौंप दिया था.

जाहिर है कि बिहार के मुख्यमंत्री अपने जिन नौकरशाह को कबीना दर्जा देकर सलाहकार बनाए हुए हैं, उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारत सरकार और राहुल सांकृत्यायन से दान में प्राप्त पुरातत्वों के स्वामित्व और उनके साथ जुड़े कानूनी मसलों से मुख्यमंत्री को अनभिज्ञ रखा.)

पटना संग्रहालय के प्रति बिहार सरकार का यह रवैया बिहार निर्माता सच्चिदानंद सिन्हा, महान इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल, महापंडित राहुल सांकृत्यायन के त्याग, समर्पण और उनकी विरासत का घोर अपमान है.

पटना संग्रहालय परिसर में नव-निर्मित इमारतों से मुख्य संग्रहालय भवन के सौंदर्य की समीक्षा के लिए भारतीय स्थापत्यकला व संग्रहालय विज्ञान से जुड़े उच्चस्तरीय संस्थान के विशेषज्ञ समूह को आमंत्रित किया जाए.

ब्रिटिश शासन काल में स्थापित पटना संग्रहालय से स्थानांतरित हजारों पुरातत्वों को बिहार संग्रहालय से तत्काल पटना संग्रहालय में पुनर्वसित किया जाए.

ज्ञात हो कि पटना संग्रहालय में ब्रिटिश काल में National Coins committee गठित कर 28 हजार Coins संग्रहित किया गया था. पटना संग्रहालय के सभी Coins गैर-कानूनी तरीके से बिहार संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिए गए हैं.

यह SOP क्या है ? धोखा है

सूचना अधिकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार पटना संग्रहालय के Coins Bank से जिस तरह SOP के आधार पर सभी Coins व्यक्तिगत संपदा की तरह सुपुर्द कर दिया. इसे गृह मंत्रालय, भारत सरकार गंभीरता से ले.

SOP (Standard Operating Procedure) के तहत कोविड काल में कोर्ट ऑनलाइन कार्य करने लगा. SOP से अगर अदालतों ने किसी को सजा नहीं दी, SOP से अगर अदालतों ने कोई निर्णय नहीं सुनाए तो SOP के आधार पर एक शताब्दी प्राचीन संग्रहालय के लगभग 60 हजार पुरातत्वों को स्थानांतरण की सजा क्यों ? SOP के तहत संग्रहालय का निजीकरण किस तरह मुमकिन है ?

पटना संग्रहालय के पुरातत्वों की सुरक्षा के मसले पर महालेखाकार, भारत सरकार ने 2014-15 में गंभीर आपत्ति जताई थी. CAG की उक्त रिपोर्ट में एक्सेशन रजिस्टर गायब होने और बहुत सारे पुरातत्वों का भौतिक सत्यापन ना होने का जिक्र किया था. CAG की रिपोर्ट के आलोक में सकारात्मक कार्रवाई की बजाय पटना संग्रहालय से देश के सबसे बड़े Coins Bank को खाली कर देने और पुरातत्व संरक्षण कानून की अवहेलना करते हुए SOP के आधार पर यक्षिणी सहित हजारों पुरातत्वों को सोसायटी एक्ट से संचालित बिहार संग्रहालय में भेजने से इन दुर्लभ पुरातत्वों की सुरक्षा पर खतरा बढ़ गया है.

भारतीय सौन्दर्य शास्त्र और मूर्ति कला में सबसे खूबसूरत प्रतिमा दीदारगंज यक्षिणी के एक अंतर्राष्ट्रीय पुरातत्व प्रदर्शनी में यूरोप से वापसी के बाद नेशनल म्यूजियम दिल्ली में रखा गया था, पर संसद में बहस के बाद पटना संग्रहालय को यक्षिणी का अपना घर बताते हुए मुआवजा सहित केंद्र सरकार ने पटना संग्रहालय में पुनर्वसित किया था. यह गौरतलब है कि अगर 1989 में केंद्र सरकार को नेशनल म्यूजियम से यक्षिणी को अगर मुआवजा के साथ पटना संग्रहालय भेजना पड़ा तो यक्षिणी सहित तमाम पुरातत्वों का राज्य पोषित स्थानांतरण इतना सहज कैसे हो गया ?

गृह मंत्रालय सीबीआई और उच्चस्तरीय निगरानी में बिहार संग्रहालय में स्थित पुरातत्वों को Rescue करे और अगर किसी पुरातत्व के किसी Coins में हेराफेरी हुई है तो दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए. गैर-कानूनी तरीके से पटना संग्रहालय के पुरातत्वों के स्थानांतरण के लिए दोषी प्रशासकों, अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो. पटना संग्रहालय को सोसायटी एक्ट से संचालित बिहार संग्रहालय के द्वारा अधीन संचालित करने के अध्यादेश को रद्द किया जाए.

अपीलकर्ता –

  1. पद्मश्री उषा किरण खान, अवकाश प्राप्त प्राध्यापक, इतिहास, पटना
  2. पद्मश्री शेखर पाठक, प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता, नैनीताल
  3. प्रो.चमनलाल (अध्यक्ष, शहीद भगत सिंह अभिलेखागार, दिल्ली सरकार)
  4. सी.पी सिन्हा (अवकाश प्राप्त निदेशक, काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान)
  5. डॉ. उमेश कुमार सिंह (अ. प्रा., पुलिस महानिरीक्षक एवं अध्यक्ष, बिहार पुराविद परिषद)
  6. विजय बहादुर सिंह (आलोचक, भोपाल)
  7. हिमांशु कुमार (प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, छत्तीसगढ़)
  8. शिवमंगल सिद्धांतकर, वरिष्ठ साहित्यकार, अ.प्रा.प्रो., दिल्ली विश्वविद्यालय.
  9. मनमोहन (प्रतिष्ठित कवि एवं अ.प्रा.प्रो कुरुक्षेत्र विश्व, रोहतक)
  10. शुभा (प्रतिष्ठित कवि एवं अ.प्रा.प्रो कुरुक्षेत्र विश्व, रोहतक)
  11. प्रो.सुबोध मालाकार, जेएनयू, दिल्ली
  12. मणिका मोहिनी, वरिष्ठ कथाकार एवं अ. प्राप्त राजनयिक, भारतीय दूतावास, गयाना
  13. कर्नल बी.बी. सिंह (शिक्षाविद, बिहार)
  14. विकास नारायण राय (अवकाश प्राप्त डी. जी., हरियाणा पुलिस)
  15. सुधांशु रंजन (अ.प्रा.अपर महानिदेशक, प्रसार भारती)
  16. कैप्टन उदय दीक्षित, पटना
  17. मणिकांत ठाकुर (वरिष्ठ पत्रकार)
  18. रविन्द्र भारती (वरिष्ठ कवि, नाट्यकार)
  19. रघुपति (जयप्रकाश आंदोलन के सेनानी)
  20. शशिभूषण, अर्थशास्त्री, हैदराबाद
  21. प्रसन्न चौधरी, समाजशास्त्री, झारखंड
  22. सुब्रत बसु, अ.प्रा.संपादक (क्षेत्रीय) आनंद बाजार, कोलकाता
  23. अमिताभ कुमार दास (अवकाश प्राप्त आईपीएस, बिहार कैडर)
  24. प्रो. प्रियरंजन, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडी, देहरादून
  25. प्रह्लाद अग्रवाल, भारतीय फिल्मों के इतिहास लेखक, सतना
  26. अवधेश बाजपेयी, वरिष्ठ चित्रकार, जबलपुर
  27. मुकेश प्रत्यूष (वरिष्ठ कवि), पटना
  28. प्रो. सूर्यनारायण (हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
  29. जयप्रकाश धूमकेतु (सचिव, राहुल सांकृत्यायन पीठ, मऊ)
  30. कात्यायनी (प्रतिष्ठित कवि, जनचेतना, लखनऊ)
  31. सत्यम वर्मा, राहुल सांकृत्यायन फाउंडेशन, लखनऊ
  32. आशा काचरू (शिक्षाविद एवं जर्मन सिटी पार्लियामेंट में पूर्व काउंसलर मेंबर)
  33. डॉ. दिनेश मिश्र, प्रसिद्ध नदी विशेषज्ञ
  34. उषा तितिक्षु, वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर एवं संयोजक, बुद्ध परिपथ साइकिल यात्रा, काठमांडू, नेपाल
  35. वाचस्पति, साहित्यकार, वाराणसी
  36. प्रकाश चंद्रायन, अ. प्रा.फीचर संपादक, लोकमत समाचार, नागपुर
  37. श्रीराम तिवारी, वरिष्ठ कवि,पटना
  38. सुमंत शरण, वरिष्ठ कवि, पटना
  39. अरुण शाद्वल (कवि), पटना
  40. निर्निमेष (अवकाश प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार, द हिन्दू, दिल्ली)
  41. दिगंबर, विकल्प मंच, दिल्ली
  42. अनिल सिन्हा, वरिष्ट पत्रकार, दिल्ली
  43. दयाशंकर राय, वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ
  44. रणधीर संजीवनी, स्वतंत्र शोधकर्ता, लखनऊ
  45. मोनाली बैरागी,गायिका, कोलकाता
  46. संतोष दीक्षित (कथाकार, पटना)
  47. प्रो. चंद्रेश, भागलपुर
  48. बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता (वरिष्ठ कवि एवं सांस्कृतिक पत्रकार, पटना)
  49. रामजी यादव (संपादक, गांव के लोग), वाराणसी
  50. रंजीत वर्मा, कवि एवं वरिष्ठ पत्रकार, पटना.
  51. संजीव चंदन, संपादक, स्त्री काल
  52. गंगा प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक, जनसत्ता
  53. डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी, प्राध्यापक, हिंदी विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात
  54. मेरी स्टेला माइकल, निदेशक, स्त्री वन इंडिया, रांची
  55. गौतम कुमार प्रीतम, अखिल भारतीय अंगिका साहित्य विकास मंच, भागलपुर
  56. मृत्युंजय शर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी, नाट्यकार, पटना
  57. मोना झा, वरिष्ठ रंगकर्मी, पटना
  58. संजीव श्रीवास्तव (कवि, पटना)
  59. जया परहाक सांकृत्यायन, देहरादून
  60. पुष्पराज, (संयोजक, पटना संग्रहालय बचाओ समिति)

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