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एक हिमालय दो पहाड़ी

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एक हिमालय दो पहाड़ी
एक हिमालय दो पहाड़ी

देखे हैं अक्सर दुखती रग पर
हाथ धरने वाले
देखा पहली बार दुखते दिलों पर
मरहम लगाने वाले

वो रास्तों पर भटकते हैं
घरों में हाल पूछते हैं
सालों से यही करते हैं
आए दिन सडकों पर
खुले आम बोलते हैं
समझाते हैं आवाम को
हिमाल बिक रहा है
टूट रहा है सब
लुट रहा है सब

फिर भी कोई सुनता नहीं
मानता न था कोई भी
उनके तर्क, बात
और चेतावनी
टूटने के पहाड की
लुटने की बाजार की

जोशीमठ टूट रहा है
लूट की खातिर
बरसों से घात लगा रहे थे
आओ बचाओ हिमाल
बचाओ घरबार अपने
तब सब चुप थे

आज मान रहे हैं
‘अतुल सती और इंद्रेश मौखरी’
की बात
आज हिमाल टूट की
आवाज सब देख रहे हैं
समझ रहे हैं
उनके साथ खड़े हैं
बचाने के लिए
हिमाल जोशीमठ

यह जोशीमठ प्रतीक है
आने वाले समय की टूट का
भयंकर लूट का
दरकते पहाड की आवाज का
धसते जमी का गाड-गधेरों का
पाटों, पुगडों, खेत-खलिहान का
बुग्यालों की लूट का
घाटियों की महक की कैद का
जल का जमीन का
जंगल के सौदे का
मिट्टी कंकड के मसौदे का
बाजार बाघ की खाल का
सौदा जानवरों की चाल का

वो खेत की फसल बिकेगी
औने पौने दाम में
देवता बिकेगा मठ थान
सब दाम पर दिखेगा
आलवैदर रोड पर रपटेगी
पैसों की गाडी
फाइव स्टार मंदिर
सजेंगे बाजारों के लिए

सब लुटेगा सब बिकेगा
सब टूटेगा सब धंसेगा
पानी,पनायरा,घट-बगड
हवा सांसें
पहाड़ की आहें

लडो मिलकर संग खड़े होकर
अतुल और इंद्रेश के साथ
क्योंकि उनमें…
एक हिमालय के दो पहाड़ी बसते हैं…

  • डा. नवीन जोशी

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