संघ सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुंबई में पुणे के एक संगठन ‘ग्लोबल स्ट्रेटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन’ द्वारा 6 सितबर को आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ‘इस्लाम आक्रांताओं के साथ आया. यह इतिहास है और इसे उसी रूप में बताया जाना चाहिए.’
अब जब संघियों द्वारा ‘परमपूज्य’ के रूप में पूजित गुरु जी का ही सारा जीवन झूठ और घृणा को समर्पित रहा तो उनके शिष्यगण सत्यवादी तथा प्रेम करने वाले कैसे हो सकते हैं ? उन्हें तो हर हाल में परमपूज्य गुरुजी के चरणचिह्नों पर चलते हुए असत्य को प्रतिष्ठित करते रहना है क्योंकि इसी से हिंदुओं की धार्मिक आस्था और देश की राजसत्ता का एकछत्र अधिष्ठाता देवता बनने की संघियों की परंपरागत महत्वाकांक्षा पूर्ण होने की उम्मीद है.
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि कोडुंगालुर (केरल) के तत्कालीन शासक चेरामन पेरुमल इस्लाम के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद के समकालीन थे. बताया जाता है कि चेरामन पेरुमल ने मक्का की यात्रा के दौरान इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था और फिर उसने ही भारत में इस्लाम का प्रचार करने के लिए मक्का के लोगों को आमंत्रित किया था. उसके न्योते पर मलिक बिन दीनार और मलिक बिन हबीब भारत आए थे. उनके माध्यम से इस्लाम का ईसवी सन् 629 में भारत आगमन हुआ था.
इसी के साथ भारत की पहली मस्जिद हजरत मोहम्मद के जीवन के दौरान ही 629 ईस्वी में मलिक बिन दीनार द्वारा केरल के कोडुंगालुर में बनाई गई थी. इस मस्जिद को दुनिया की दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद बताया जाता है, जिसे राजा चेरामन पेरुमल के नाम से ‘चेरामन मस्जिद’ कहा जाता है.
यह मस्जिद पहले लकड़ी से बनाई गई थी, लेकिन बाद में समय-समय पर इसकी मरम्मत और बदलाब होते रहने से अब यह बिल्कुल नये रूप में है. मस्जिद के पीछे की ओर मलिक बिन हबीब, मलिक बिन दीनार और उसकी बहन की कब्र भी मौजूद हैं. कहा जाता है कि कोडुंगालुर भारत का पहला और विश्व में दूसरा ऐसा स्थान है, जहां जुमा की नमाज शुरू हुई थी.
इस तरह संघी बिरादरी अपने निहित स्वार्थ के कारण यह प्रचारित करती है कि बगदाद के हज्जाज बिन युसुफ़ ने 17 साल की उम्र के बिन कासिम को सिंध के राजा दाहिर से सन् 711 ईसवी में युद्ध के लिए भेजा था और उसकी पराजय के साथ ही भारत में इस्लाम का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ.
देश के बहुसंख्यक समाज हिंदुओं के बीच मुसलमानों के विरुद्ध घृणा और हिंसा का भाव फैलाकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए संघ बिरादरी इस तथ्य को भुला देना चाहती है कि सन् 711 के उस युद्ध से 85 वर्ष पहले ही इस्लाम का आगमन इस्लामी प्रचारकों के माध्यम से केरल में हो चुका था और वहां पर संसार की दूसरी मस्जिद का निर्माण किया जा चुका था.
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