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‘मैल्कम एक्स’ के जन्मदिन पर – ‘स्वतंत्रता की कीमत मृत्यु है’

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'मैल्कम एक्स' के जन्मदिन पर - 'स्वतंत्रता की कीमत मृत्यु है'
‘मैल्कम एक्स’ के जन्मदिन पर – ‘स्वतंत्रता की कीमत मृत्यु है’
मनीष आजाद

दुनिया जितना ‘मार्टिन लूथर किंग’ को जानती है, उतना उन्हीं के समकालीन ब्लैक लीडर ‘मैल्कम एक्स’ को नहीं जानती जबकि आज उनके विचार कहीं ज्यादा प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं. 1966 में शुरु हुआ ब्लैक पैंथर आन्दोलन सीधे-सीधे ‘मैल्कम एक्स’ के विचारों और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित रहा है. ब्लैक पैंथर की स्थापना के ठीक एक साल पहले 21 फरवरी 1965 को मैल्कम एक्स को उस समय 15 गोलियां मारी गयी, जब वे ‘हरलेम’ में एक लेक्चर देने जा रहे थे.

मैल्कम एक्स के बारे में जानना इसलिए भी जरुरी है कि मैल्कम एक्स का पूरा जीवन व उनके विचार काले लोगों के दूसरे महान नेता ‘मार्टिन लूथर किंग’ का एक तरह से ‘एण्टी थीसिस’ रचता है. दोनों के विचारों व व्यक्तित्व की छाया थोड़ा बदले रुप में हमारे यहां के दलित आन्दोलन में भी दिखाई पड़ती है इसलिए मैल्कम एक्स को समझने का प्रयास कहीं ना कहीं अपने देश के दलित आन्दोलन को भी समझने का प्रयास है.

मैल्कम एक्स का जन्म 19 मई 1925 को अमेरिका के ‘ओमाहा’ में एक गरीब परिवार में हुआ था. इनके पिता एक राजनीतिक व्यक्ति थे और काले लोगों के आन्दोलन में सक्रिय हिस्सेदार थे. इसके अलावा प्रसिद्ध ब्लैक लीडर और ‘ब्लैक इज ब्यूटीफुल’ अभियान के जनक ‘मारकस गारवे’ (Marcus Garvey) के समर्थक थे. इसी कारण से वे गोरों के प्रतिक्रियावादी गुप्त संगठन ‘कू क्लक्स क्लान’ (Ku Klux Klan) के निशाने पर थे.

अन्ततः जब मैल्कम एक्स महज 6 साल के थे तो 1931 में उनके पिता की हत्या इसी संगठन के कुछ लोगों ने कर दी. इस घटना ने मैल्कम को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया और गोरों के प्रति नफरत के बीज बो दिये. इसके अलावा एक अन्य घटना ने मैल्कम को बुरी तरह हिला दिया था. एक बार उनके घर में आग लग गयी. फायर ब्रिगेड को बुलाया गया. फायर ब्रिगेड वालों ने जब देखा कि आग एक काले के घर में लगी है तो बिना आग बुझाये ही वापस लौट गये. बाद में अमरीकी लोकतंत्र के प्रति उनके जो विध्वंसक विचार बने, उनमें इन घटनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

जब वह किशोरावस्था में थे तो उन्हें किसी छोटे अपराध के लिए 6 साल जेल की सजा काटनी पड़ी. अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है कि मैंने अपने जीवन की अधिकांश पढ़ाई इसी दौरान की. जेल से निकलने के बाद उनकी राजनीतिक यात्रा शुरु होती है. सबसे पहले उन्होेंने ईसाई धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म ग्रहण कर लिया और काले मुस्लिम लोगों के संगठन ‘नेशन ऑफ इस्लाम’ के सदस्य हो गये. उस दौरान ईसाई धर्म को गोरों के साथ जोड़ कर देखा जाता था. इसी कारण इस दौरान बहुत से काले लोगों ने सामूहिक तौर पर प्रतिक्रियास्वरुप ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया. यहीं से मैल्कम एक्स के समाजवाद के प्रति झुकाव की भी शुरुआत होती है.

गोरों की राष्ट्रीयता के विरुद्ध ‘नेशन ऑफ इस्लाम’, ‘ब्लैक नेशनलिज्म’ की बात करता था. इसलिए नौजवानों के बीच यह बेहद लोकप्रिय था. नेशन ऑफ इस्लाम के लीडर ‘इलीजाह मुहम्मद’ की कथनी और करनी में अन्तर देखने और खुद समाजवाद की तरफ झुकने के कारण दोनों में काफी तनाव आ गया और अन्ततः मैल्कम एक्स ने नेशन ऑफ इस्लाम छोड़कर ‘मुस्लिम मास्क’ की स्थापना की और अन्ततः सेक्यूलर विचारधारा तक पहुंचते हुए अपनी मृत्यु के कुछ ही समय पहले ‘आर्गनाइजेशन ऑफ अफ्रो-अमरीकन यूनिटी’ की स्थापना की.

इसी समय मार्टिन लूथर किंग जूनियर भी सक्रिय थे. उनका ‘सिविल राइट्स मूवमेन्ट’ अपने उभार पर था. कालों के मताधिकार को व्यवहार में हासिल करने के लिए प्रसिद्ध ‘सेल्मा मार्च’ 1964 में ही हुआ था. इस घटना के 50 साल होने पर ‘सेल्मा’ नाम से एक फिल्म भी रिलीज हुई थी, जो काफी चर्चित हुई थी.

बहरहाल ‘मैल्कम एक्स’ और ‘मार्टिन लूथर’ दोनों ही समस्या और समाधान को दो विपरीत नजरिये से देख रहे थे. मार्टिन लूथर किंग को अमेरिकी लोकतंत्र के मूल्यों में काफी विश्वास था और वे इन मूल्यों और अमरीकी राजनीति के बीच एक अन्तरविरोध व तनाव देख रहे थे. सरल शब्दों में कहें तो वे इसी व्यवस्था में अमरीकी लोकतंत्र के ‘मूल्यों’ को जमीन पर उतारते हुए काले लोगोें के अधिकारों की गारंटी चाहते थे. जबकि मैल्कम ऐसे किसी अमरीकी मूल्य के अस्तित्व से ही इंकार करते थे.

बल्कि अमरीकी लोकतंत्र को ‘मैल्कम एक्स’ एक साम्राज्य के रुप में देखते थे. और इसके विध्वंस में ही काले लोगों की मुक्ति देखते थे. बाद में समाजवाद की ओर झुकने के बाद उन्होंने काले लोगों की मुक्ति को गोरे उत्पीडि़त मजदूरों व अन्य शोषित समुदायों के साथ जोड़कर देखना शुरु किया.

मैल्कम एक्स का कहना था कि अमरीका विदेशों में ही नहीं बल्कि देश के अन्दर भी एक उपनिवेश बनाये हुए हैं, जिसमें मुख्यतः काले लोग और यहां के मूल निवासी ‘रेड इंडियन्स’ हैं. मैल्कम एक्स का यह कथन सत्य के काफी करीब है. कोलम्बस के आने के समय आज के अमरीका में वहां के मूल निवासियों की संख्या करीब 1 करोड़ 50 लाख थी.

1890 तक आते आते यह महज 2 लाख 50 हजार तक रह गयी. यानी 98 प्रतिशत लोग यूरोपियन लोगों की क्रूरता के शिकार हो गये. इस पर एक बहुत ही प्रामाणिक डाकूमेन्ट्री ‘दी कैनरी इफेक्ट’ है. ‘हावर्ड जिन’ ने अपनी किताब A People’s History of the United States में साफ बताया है कि अमेरिकी लोकतंत्र वहां के मूल निवासियों के जनसंहार और काले लोगों की गुलामी पर खड़ा है. मैल्कम एक्स इसी अर्थ में ‘भीतरी उपनिवेश’ की बात कर रहे थे. ऐसा ही भीतरी उपनिवेश आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में भी है. आस्ट्रेलिया के इस भीतरी उपनिवेश पर ‘जाॅन पिल्जर’ ने बहुत ही बेहतरीन फिल्म ‘यूटोपिया’ बनायी है.

इसी संदर्भ में मैल्कम एक्स ने अल्जीरिया के क्रान्तिकारी ‘फ्रेन्ज फेनन’ की बहुचर्चित किताब The Wretched of the Earth का कई बार जिक्र किया है. इसी अर्थ में एक जगह मैल्कम एक्स ने लिखा है- ‘यदि गोरों की वर्तमान पीढ़ी को उनका सच्चा इतिहास पढ़ाया जाय तो वे खुद ‘गोरे-विरोधी’ हो जायेंगे.’ इस कथन के बहुत ही गहन मायने हैं. हम भी भारत के संदर्भ में कह सकते हैं कि यदि ब्राहमणों और ऊंची जाति की वर्तमान पीढ़ी को उसका सच्चा इतिहास पढ़ाया जाय तो वे भी ‘ब्राहमणवाद विरोधी’ हो जायेंगी.

मार्टिन लूथर किंग जहां काले लोगों के गोरों के साथ एकीकरण के हिमायती थे, वहीं मैल्कम इसके खिलाफ थे और वर्तमान व्यवस्था में इसे असंभव मानते थे. इसलिए वे हर क्षेत्र में कालों की ‘अलग पहचान’ के हिमायती थे. काले लोगों में पैदा हुए मध्य वर्ग के वे मुखर आलोचक थे. उनके अनुसार यही वर्ग गोरे लोगों के साथ एकीकरण के लिए लालायित रहता है. भले ही इसके लिए उसे अपनी आत्मा ही क्यो ना बेचनी पड़े.

पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की तरफ से देखे तो यह एकीकरण काले लोगों के एक हिस्से को राजनीतिक रुप से नपुंसक बनाने की साजिश है. इस सन्दर्भ में मैल्कम एक्स ने एक बहुत ही अच्छा रुपक दिया है. उन्होंने कहा कि जब आप मछली पकड़ने के लिए चारा डालते हैं तो मछलियों को लग सकता है कि आप उनके दोस्त है और उनके लिए चारा डाल रहे हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता होता कि चारे की ऊपर एक हुक भी लगा है जो उन्हें अपने समुदाय से अलग करके उनकी जान ले लेगा. मैल्कम एक्स के इस कथन को हम अपने देश में भी लागू करके इसकी सच्चाई को परख सकते हैं.

हिंसा-अहिंसा के सवाल पर भी इन दोनों के रास्ते अलग थे. मार्टिन लूथर जहां अहिंसा के पुजारी थे और साधन को साध्य से ज्यादा पवित्र मानते थे. वहीं मैल्कम एक्स इस जड़ता से मुक्त थे और इस संदर्भ में उनका रुख काफी लचीला था. उनका कहना था कि स्वतंत्रता के लिए ‘हिंसा सहित जो भी जरुरी साधन हो’ उसका प्रयोग किया जाना चाहिए. ‘स्व रक्षा’ के लिए हथियारबन्द होने का भी नारा मैल्कम एक्स ने दिया. ब्लैक पैंथर पार्टी पर इसका काफी असर हुआ. विशेषकर ब्लैक पैंथर पार्टी के संस्थापक ‘बाबी सील’ पर इसका काफी असर हुआ. ब्लैक पैंथर पार्टी का पहला ही प्रदर्शन सशस्त्र था, जिस पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.

मैल्कम एक्स अपने अन्तिम समय में काले लोगों की मुक्ति को दुनिया के तमाम शोषितों के साथ जोड़ कर देख सके. पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की उनकी समझ लगभग वही थी जो उस समय के तमाम कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की थी इसीलिए वे कालों व अन्य शोषित लोगों की मुक्ति को इस व्यवस्था में असंभव मानते थे. इस पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के ध्वंस पर ही शोषितों की असली स्वतंत्रता कायम होनी है. इसी संदर्भ में अपनी मृत्यु के कुछ ही समय पहले ही मैल्कम एक्स ने कहा था कि स्वतंत्रता की कीमत मृत्यु है.

मैल्कम एक्स ने अपनी जीवनी ‘रूट्स’ नामक मशहूर किताब के लेखक ‘एलेक्स हेली’ को बोलकर लिखवायी, जो काफी चर्चित हुई. आज हम जिन समस्याओं से रूबरू हैं, उसमे मैल्कम एक्स का जीवन और उनके विचार पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं.

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ROHIT SHARMA

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