
इन्दरा राठौर
मोटे तौर पर आवारा और दलाल पूंजी का ख़ुद का अपना कुछ भी नहीं है परन्तु वह ताकत के बल पर मिश्रित अर्थव्यवस्था की फिलासफी को नकारता है तथा जल, जंगल और जमीन पर आधिपत्य जमाता है. यद्यपि यह किसी राज्य तक सीमित नहीं है, देश और देश से परे वैश्विक है और इस वैश्विक संघर्ष में सोनी सोरी जो कि छत्तीसगढ़ के सूदूर बस्तर से हैं, आदिवासियों के हित और अधिकार को लेकर लगातार संघर्षरत हैं. वे सूदूर बस्तर में आदिवासियों के मुक्ति संघर्ष की कामना में एक आवाज़ बनी हुई हैं.
उनके इस संघर्ष में कारपोरेट पूंजी और सत्ता की दलाली तथा सांठगांठ ही मुख्य केन्द्र में है. इस साहसिक प्रतिरोध की आवाज़ को दबाने और कुचलने में शासक वर्ग की अमानवीय क्रूरता और बर्बरता का नमूना उनके गुप्तांग में पत्थर डाल देने की परिणिति तक में देखा गया, पर साथी न हिलीं न डिगीं बल्कि और प्रखर हुईं. आज उनका जन्म दिन है. उनके इस अदम्य साहस और प्रतिरोध को लाल सलाम. सोनी सोरी के इस अभूतपूर्व साहस को हमारे समय के जरूरी कवि, एक्टिविस्ट साथी वंदना टेटे कैसे दर्ज कर रही हैं, देखा जाना चाहिए –
आरपार के युद्ध से घबराए हुए
कायर लोग
सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की
छद्म लड़ाई लड़ते हैं
अपने एथनिक और धार्मिक प्रभुत्व को
बचाए रखने के लिए
उदारता और प्रगतिशीलता की आड़ में
सब कोई खतरे में है
जैसा नारा उछालते हैं
ये वही लोग हैं
जो पिछले तीन हजार सालों से
आदिवासियों और स्त्रियों को
नाअक्ल बताते हैं
फेसबुक पर लड़कियों की
देह खुरचते हैं
आदिवासियों की जीभ खींचकर
पहाड़ों-झरनों के साथ
मुस्कुराती हुई सेल्फी टांगते हैं
जब चाहते हैं
स्त्रियों और आदिवासियों को
घर की देहरी
और इलाके से खदेड़ देते हैं
हम आदिवासी इनका चेहरा देख पाते हैं
आप भी चश्मा उतारिए
देखिए क्या कह रहा है असम
क्या कह रही हैं औरतें
और क्या कह रहे हैं आदिवासी
अपनी गैर-अनुसूचित भाषाओं में
तुम्हारा चेहरा
तुम्हारा चेहरा
जामुन हो गया है सोनी
इसकी मिठास और बढ़ गयी है
इसका अर्क
असाध्य रोगों की अचूक दवा है
नहीं जानते हैं वे
जिन्होंने बना दिया है तुमको जामुन
तुम मत सोचना सोनी
चेहरा खराब हो गया है तुम्हारा
उस समाज की बेटी हो तुम
जिसमें कोई चेहरा बदसूरत नहीं होता
हम आदिवासी औरतों को यह सत्ता
सिर्फ देह से जानती है
या फिर लड़ाकु हौंसले से
चेहरा हमारा
सदियों से सूर्पनखा है बहन
और इतिहास हमारी नाक
जिसे काटते रहते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम
और उनके भाईबंद रिश्तेदार
तुम अब पहले से कहीं ज्यादा
फल उठी हो जामुन सी
देश के जंगल दहक रहे हैं
तुम्हारी जामुनी आभा से
तुम्हारे चेहरे का जामुनी रंग
बदल देगा व्यवस्था का कसैला स्वाद
देश का भविष्य मीठा होगा ही एक दिन
कह रहे हैं गांव
कह रहे हैं जंगल
कह रहा है हर जामुनी चेहरा
आओ, आज के दिन हम हो जाएं जला चेहरा
तुमने ठीक ही कहा
तुम बस्तर
और आदिवासी भारत का
जला हुआ चेहरा हो
पर यह चेहरा जुगनुओं की मानिंद
हत्यारों के स्याह चेहरों पर
टिमटिमा रहा है
सूरज की हजारों हजार किरणों की
गरमी और आभा लिए
अपने आंचल में सहेज रहा है देश
तुम्हारी गरमी तुम्हारी ऊर्जा
तुम अपने दीप्त खूबसूरत चेहरे के साथ
हमेशा उमड़ती रहोगी
देश के ह्रदय में
जब भी मुक्ति का प्रसंग आएगा
अणु अणु जुगनुओं सा मुस्कुराता तुम्हारा चेहरा
देश को बदल देगा एक पहाड़ में
हम जानते हैं
हम जानते हैं
तुम्हारे पास आसमान को छुपा देने
जितना हथियारों का जखीरा है
हम जानते हैं
तुम्हारे पास धरती को ढक देने
जितनी विशाल फौज है
हम जानते हैं
तुम्हारे पास ग्रह के अनंत शून्य जितना
लालच, अहंकार और अमानवीयता है
पर तुम नहीं जानते
हमारे पास धड़कता
नाचता-गाता हुआ दिल है
पाताल से आसमान तक को भेदते
साल के पेड़ हैं
पुरखा लड़ाकों की आत्माएं हैं
पूरा का पूरा दिन है
समूची की समूची रात है
सूरज है
चांद है
और हैं सितारे
सभी ग्रह, नक्षत्रों, सौर मंडलों
और जानी-अनजानी दुनिया के साथ
अलावा इसके इस संदर्भ में साथी लेखक आभा शुक्ला का यह वक्तव्य भी गौरतलब है – ‘यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.’
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जहां अन्याय है, वहां शांति संभव ही नहीं है !
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