Home गेस्ट ब्लॉग 9 मार्च 1952, अलेक्सन्द्र कोलेन्ताई स्मृति दिवस पर…

9 मार्च 1952, अलेक्सन्द्र कोलेन्ताई स्मृति दिवस पर…

3 second read
0
0
481
9 मार्च 1952, अलेक्सन्द्र कोलेन्ताई स्मृति दिवस पर...

1920 में सोवियत संघ दुनिया का पहला राज्य बना जहाँ महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया गया. वहाँ के अस्पतालों में गर्भपात की व्यवस्था नि:शुल्क थी. यानी पहली बार महिलाओं को अपने शरीर पर अधिकार मिला. इसके पीछे जो विचार और श्रम था, उसमे अलेक्सन्द्र कोलेन्ताई (Alexandra Kollontai) की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी.

नई सोवियत सरकार में उनके पास महिला और सामाजिक कल्याण विभाग था.
उन्होंने महिलाओं को किचन के बोरिंग और जड़ काम से निजात दिलाने के लिए सामुदायिक किचन और सामुदायिक लांड्री को व्यवहार में लाने के लिए अथक प्रयास किये. महिलाओं की शिक्षा और उनके आर्थिक स्वावलंबन पर उनका बहुत जोर था.

कोलेन्ताई के ‘फ्री लव’ के विचार को अक्सर गलत समझ लिया जाता है और उसे बुर्जुआ ‘फ्री सेक्स’ के समकक्ष रख दिया जाता है. लेकिन उनका ‘फ्री लव’ का विचार काफी रैडिकल था. इसका मतलब था कि प्यार को किसी भी तरीके के आर्थिक-सामाजिक-धार्मिक…..बन्धनों से आज़ाद होना चाहिए.

यानी कि सच्चा प्यार इन बन्धनों के खिलाफ लड़ते हुए ही हासिल किया जा सकता है. इसे ही उन्होंने ‘रेड लव’ कहा. उनका कहना था कि दो लोगो के प्यार में राज्य का भी कोई दखल नही होना चाहिए. आज के ‘लव जेहाद’ के समय मे उनके ये विचार काफी महत्वपूर्ण हैं.

कोलेन्ताई ने अपने क्रांतिकारी जीवन में कुछ गलत राजनीतिक निर्णय लिए. काफी समय तक वो मेंशेविकों के साथ रही, लेकिन क्रांति से पहले वो बोल्शेविकों के साथ आ गयी. त्रात्स्की की लाइन पर चलते हुए उन्होंने जर्मनी के साथ सन्धि (ब्रेस्त्त लितोस्क संधि) का विरोध किया. कुछ समय तक वे त्रात्स्की के ‘आपोज़िशन ग्रुप’ के साथ भी रही लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि वे हर बार गलत लाइन को छोड़कर सही लाइन के साथ खड़ी हुई.

लेकिन इन राजनीतिक गलतियों के कारण परंपरागत कम्युनिस्टों ने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया. दूसरी ओर उनके क्रांतिकारी भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण बुर्जुआ नारीवादी आन्दोलनों ने भी उन्हें हाशिये पर धकेल दिया. इस त्रासदी के कारण इतिहास में उन्हें वो मुकाम हासिल नही हो पाया, जिसकी वे हकदार हैं.

रोजा लक्समबर्ग की चंद राजनीतिक कमियों के बहाने उन्हें खारिज करने वालो पर हमला करते हुए लेनिन ने जो कहा था, वह कोलेन्ताई पर भी बखूबी लागू होता है. लेनिन ने कहा- ‘बाज कभी कभी मुर्गे की ऊँचाई पर भी उड़ लेता है, लेकिन मुर्गे कभी भी बाज की ऊँचाई हासिल नही कर सकते.’

कोलेन्ताई अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी महिला आन्दोलन की बाज हैं. उन्हें याद करने का मतलब समाजवाद की उन उपलब्धियों को याद करना है, जिसने यह साबित कर दिया है कि महिला और पुरूष के बीच समानता और सम्मान का रिश्ता न सिर्फ संभव है, बल्कि यही हमारा भविष्य भी है.

  • मनीषआज़ाद

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…