पडोस के घर में जोर शोर से आवाज़ आयी. दौड़ कर देखने गया. पडोसी की बुढ़ी मां हाथ में डंडा लेकर उनको पिट रही थी. बोल रही थी, ‘तुने कभी ऐसा किया ? बेटा हो तो उनके जैसा होना चाहिए.’
बेटा बोला – ‘मां कहो मुझे क्या करना है ? आप जो कहे वो मैं करने को तैयार हूं.’
मां बोली – ‘साल में एक बार तुझे मेरे पैर धोने पडेंगे. बड़े को भी बोल दे और छोटे को भी बोल दे. बैंगलोर और कलकत्ता से आकर उन्हें भी साल में एक बार पैर धोने पडेंगे. वो दिल्ली से आकर कैसे अपनी मां के पैर धोते हैं, देखो टीवी में. कुछ सीखो उनसे.’
आठ दस डंडे पडे थे तो पडोसी डर गया था. जल्द-जल्द बाजार गया. तांबे की थाली लाया. मां के पैर धोये. पानी को आंखों पर लगाया.
दूसरे दिन सुबह-सुबह फिर उस घर से जोर-जोर से आवाज़ आयी. जाकर देखा तो पता चला कि वो भाई पत्नी के और मां के गहने लेकर भाग गया है.
जाते-जाते चिठ्ठी लिखकर छोड़ गया कि कुछ साल चाय की किटली पर नौकरी करुंगा, बाद में हिमालय जाउंगा. बाद में कुछ साल भीख मांग कर खाउंगा. उनको फोलो करना है तो पूरी तरह फोलो करुंगा. उन्होंने जो-जो किया वो सब करुंगा.
अब बुढ़िया जोर-जोर से रो रही थी. सब उसे कोस रहे थे. अगर बुढ़िया ने उनके जैसा करने की जिद ना की होती तो आज ये दिन ना देखने पड़ते.
- शैलेन्द्र पाण्डेय
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