विष्णु नागर
ओ, धर्मसंसदी, भगवाधारियों यह बताओ कि तुम्हें मालूम है न कि देश में एक ही संसद है और उसमें अभी तुम्हारा आका शीर्ष पर बैठा है, फिर तुम्हें इस फर्जी संसद की जरूरत क्यों पड़ी ? तुम्हारे आका ने कहा क्या कि चुनी हुई संसद मेरे किसी काम की नहीं ! वह पता नहीं कब मुझे ज़लील कर दे, हटा दे, मेरा बिस्तर गोल कर दे. जरा नफरती संसद का जलवा इसे दिखाओ तो !
और कहा है उसने तो उससे कहो कि परेशान क्यों होता है. आ जा, हमारे साथ. हम तुझे अपना आजीवन प्रधानमंत्री बनाते हैं. वैसे भी अभी वह जहां बैठा है, उसके काबिल है नहीं. उसे कपड़े बदलने और बकने, घटियापन दिखाने के अलावा कुछ आता-जाता नहीं. वह तुम्हारे बीच खूब फबेगा. अंधों में काना राजा लगेगा.
बाकी इसके सभी बंधु-बांधवों को भी साथ ले जाओ, सबको मंत्री बना दो. किसी को गाय मंत्री, किसी को भैंस मंत्री, किसी को गोमूत्र मंत्री, किसी को गोबर मंत्री, किसी को चारा मंत्री, किसी को चरागाह मंत्री, किसी को पंचगव्य मंत्री, किसी को जनसंहार मंत्री, किसी को लवजिहाद मंत्री. तुम्हारी फर्जी संसद में फर्जी चार चांद लग जाएंगे और भारत इनसे मुक्त हो जाएगा.
इन्हें, जितनी जल्दी से जल्दी ले जा सको, ले जाओ. इस देश पर कृपा करो. हिंदू राष्ट्र के लिए तुम्हारे साथ ये भी जेल जाएं. जो फर्जी हिन्दू राष्ट्र, ये फर्जी तुमसे बनवाना चाहता है, उसके लिए खुद भी सुख-आराम त्यागे. खून पसीना बहाए, बलिदान दे ! बच-बचकर कब तक खेल खेलता रहेगा ?
कहो कि भाई तू जहां बैठा है, वहां से बैठकर हिन्दू राष्ट्र नहीं बन सकता. वहां तो तुझे झूठमूठ संविधान-संविधान, लोकतंत्र-लोकतंत्र, गांधी-गाँंधी, अंबेडकर-अंबेडकर करना पड़ता है. चुनाव-चुनाव करना पड़ता है. आ और हमारे साथ और सच्चे दिल की सच्ची बात बोल. और बोल नहीं सकता तो हमारे भगवा को खून से मत रंगवा. हमारे भगवा पर खून के दाग लगें और तू सफेद कुर्ते और चूड़ीदार पायजामे में बेदाग निकल ले, यह नहीं हो सकता.
कहो उससे कि हां हूं, देखता-सोचता हूं, नहीं चलेगा. झोला उठा और चल. तुझे अपना झोला उठाने में शर्म आती हो, तो हम उठा लेंगे पर तू चल और अभी चल. काल करे, सो आज कर, आज करे, सो अब. हम भी देखना चाहते हैं, ये कितना बहादुर है. जरा से में तो हाय मर गया, मार दिया गया, चीखने लगता है !
चलो छोड़ो ये बातें. अच्छा ये बताओ ये मारो-काटो की जो बातें तुम इस फर्जी संसद में कर रहे हो, तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारे इस हिन्दू राष्ट्र के लिए सारे हिंदू तुम्हारे साथ हैं ? 50 प्रतिशत ? 30 प्रतिशत ? 20 प्रतिशत ? 10 प्रतिशत ? मुंह से हिंदू राष्ट्र की फकफक करना अलग बात है, असल में मारकाट करना अलग बात.
ये हिंदू राष्ट्र के लिए मर पाएंगे, कट पांँगे ? हत्यारे हिंदू राष्ट्र में ये रह पाएंगे ? लाशों के बीच स्वर्ग बना पाएंगे ? हिंदू तो हिंदू, वे मनुष्य भी रह पाएंगे ? जानवर की तरह भी लाशों के सड़न के बीच रह पाएंगे ? और जिन बौद्धों, सिखों, जैनों को तुम हिन्दू राष्ट्र का सदस्य मानकर चल रहे हो, उनसे भी पूछकर देख लेना ! बाद में मत कहना कि हमारे साध धोखा हो गया.
अच्छा चलो, यह भी छोड़ो. मान लो, तुमने हिंदू राष्ट्र बना लिया. जिस राष्ट्र की कल्पना नरसंहार पर आधारित है, वह बना लिया. मुसलमानों को मार दिया, काट दिया, भगा दिया. इससे तुम खुश हो जाओगे ? फिर नफरत किससे करोगे ? नफरत करने के लिए तुम्हें फिर किसी की जरूरत पड़ेगी क्योंकि वह तुम्हारे स्वभाव में है, संस्कार में है.
फिर नफरत तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी. कटखने कुत्ते की तरह तुम्हारे पीछे पड़ जाएगी. फिर तुम्हें फलांमुक्त, फलांमुक्त हिंदू राष्ट्र बनाने के मिशन पर लगाती रहेगी. इसके बगैर तुम्हारी आत्मा को चौन नहीं मिलेगा और एक दिन यह नफरत तुम्हें तुम्हारी हड्डियों समेत चबा जाएगी. खून चाट जाएगी. तैयार हो इसके लिए ?
और क्या तुम सोचते हो कि तुम मारते चले जाओगे और बाकी मरते चले जाएंगे ? आदमी, आदमी होता है, मुर्गा-मुर्गी नहीं, भेड़-बकरी नहीं कि वे कुछ नहीं कर पाएंगे. आत्मरक्षा में तो एक कीड़ा भी आक्रामक हो जाता है.
चलो यह भी छोड़ो. मान लो किसी तरह किसी युग में तुमने हिन्दू राष्ट्र बना लिया. मारकर खुश होने का जिगर भी पैदा कर लिया. फिर क्या तुम्हारे छाप हिन्दू , हमेशा बल्ले-बल्ले करता रहेगा ? कितने दिन करेगा ? दो दिन, तीन दिन ? फिर ? रोटी मांगेगा या नहीं ? हिंदू राष्ट्र में वह भूखा रह कर भजन करेगा ? घर मांगेंगा या नही ? या कहेगा कि अब तो हमारा हिंदू राष्ट्र बन गया, खुले आसमान के नीचे खून सनी मिट्टी में भी रह लेंगे ? पर तुमने तो कभी हिंदू राष्ट्र के आगे की बात ही नहीं की. तुम्हें तो इसके आगे का रास्ता पता ही नहीं.
और ओ, हिंदू राष्ट्रवादी भगवाधारियों, अभी तुम्हारा भगवा चोला देखकर साधारण लोग तुम्हें सम्मान देते हैं, चरण छूते हैं, भोजन करवाते हैं, तुम्हारे उपदेश सुनते हैं, कल तुम पर हत्यारे गैंग के सदस्य होने का शक करेंगे तो, तुम्हें देखकर कोई चीख पड़ेगा तो तुम्हें अच्छा लगेगा ? तुम्हें देख, दरवाजे बंद कर लेगा तो अच्छा लगेगा ? तुम्हें बंद दरवाजे चाहिए या सम्मान से खुलनेवाले दरवाजे ?
2
‘टॉक्स विद नेहरू’ के लेखक नॉर्मन कजिंस ने इस घटना का विवरण दिया है. सन 1948 के शुरुआती दिनों में दिल्ली में पहले प्रधानमंत्री नेहरू का सामना एक दंगाई भीड़ से हुआ, जो कुछ मुसलमानों का क़त्ल करने पर आमदा थी. नेहरू उस भीड़ में घुस गए.मुसलमानों को कवर करते हुए खुद को भीड़ के हवाले किया. बेहद ग़ुस्से में वे दंगाइयों पर चिल्लाए – ‘हिम्मत है तो मेरे ऊपर हमला करो.’ भीड़ ने नेहरू को पहचान लिया. हक्की-बक्की रह गई और वापिस लौट गई.
बाद में कजिंस ने नेहरू से पूछा कि ‘उन्होंने इस तरह अपनी जान को ख़तरे में क्यों डाला ?’ जिसे कर्त्तव्य से ज़्यादा जान की फ़िक्र हो, उसे भारत जैसे देश में बड़ी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए. कोट के बटन में लगे गुलाब के फूल को छूते हुए नेहरू ने अपनी धीमी और गम्भीर आवाज़ में उत्तर दिया.
नेहरू, गांधीजी को अपना पथ प्रदर्शक मानते थे. गोडसे सावरकर का अनुयायी था. गोडसे आखि़री सफल हमले के पहले भी दो बार गांधी जी की जान लेने की गम्भीर कोशिश कर चुका था. 1944 की उसकी ऐसी एक कोशिश के बाद बापू ने उसे बातचीत के लिए बुलाया था.
20 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा में हुए बम विस्फोट के बाद भारत सरकार ने गांधी से प्रार्थना की – ‘अब तो अपनी सुरक्षा का कुछ प्रबंध करने की इजाज़त दीजिए.’ गांधीजी ने मुस्कुराते हुए कहा, – ‘अगर सरकार जबरन सुरक्षा देने की कोशिश करेगी तो मैं दिल्ली में रहूंगा ही नहीं. किसी गांव देहात में चला जाऊंगा. अगर अपने ही देशवासियों से डरना होगा तो जीकर ही क्या करूंगा.
गांधी, नेहरू देवता नहीं थे. हाड़ मांस के इंसान ही थे. उनकी कई बातों से हम असहमत रहेंगे, आलोचना भी करेंगे लेकिन इस बात का गर्व भी रहेगा कि हमारे पुरखे अपने कौल और ईमान के पक्के लोग थे.
3
इस पद पर पहले बैठे सभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री कोई आदर्श नेता नहीं थे मगर एक न्यूनतम गरिमा से संपन्न फिर भी थे. कम से कम छिछोरे नहीं थे. आलोचना उन पर देरसबेर असर दिखाती थी. मगर ये तो हद है. इसे न पद की गरिमा से कोई मतलब है, न व्यक्तित्व में कोई गहराई है. केवल छिछोरापन, घटिया प्रचार की सतत चाह है, फैशनपरस्ती है, प्रदर्शनप्रियता है. इस आदमी की किसी बात का कोई मतलब नहीं.
ये गांधी, अंबेडकर, सरदार पटेल का गाना जरूर गाहेबगाहे गाता है मगर इसे इनमें से किसी से कोई लेना-देना नहीं. इसका कोई आदर्श नहीं. अपना आदर्श यह स्वयं है. इसे देश, धर्म, किसान, गरीब किसी से कोई लेना-देना नहीं. यह किसी का नेता नहीं. यह भ्रम है कि यह देश का नेता है. इमेज है कि यह देश का नेता है. यह क्रूरतम है. नीरो है. हिटलर है. ये सब अपने लिए थे. ये भी केवल अपने लिए है. ये किसी को भी लात कभी भी मार सकता है. कायर आदमी सबसे क्रूर होता है.
व्यक्ति, देश, धर्म, मनुष्यता, सब इसके इस्तेमाल की चीजें हैं-व्यक्तिगत उपयोग की. इसके लिए ये साबुन, तेल, तौलिया, कपड़े हैं. काम निबटा और फेंका. इसके फर्जी प्रोफाइल, पब्लिसिटी पर फिदा लोग इस देश के सबसे बदकिस्मत लोग हैं. बदकिस्मत हम भी हैं मगर हमसे ज्यादा वो हैं, जो इसे अपना समझते हैं, जो इसे देश का रखवाला समझते हैं. मैं ईश्वर में विश्वास करनेवाला होता तो उससे इनके लिए प्रार्थना करता. गांधी होता तो अपना दूसरा गाल इनकी ओर इनका थप्पड़ खाने के लिए कर देता.
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