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NRC-CAA : ब्राह्मण विदेशी हैं ?

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‘बात निकलेगी तो दूर तलाक जायेगी’ के अनुसार आज जब एनआरसी-सीएए जैसे गैर-जरूरी कानूनों के जरिये संघी शासक जब देश में विदेशी और देशी का बहस छेड़ दिया है तब लाजिमी है कि बहस इस दिशा की ओर भी जायेगी कि ब्राह्मण विदेशी है या देशी ? यह बहस इसलिए भी लाजिमी तौर पर उठेगी कि सत्ता के शीर्ष से लेकर नीति निर्धारक हर तंत्र पर ब्राह्मण समाज के लोग मौजूद हैं और वे विदेशी-देशी के इस बहस को तूल दे रहे हैं और ‘विदेशियों’ को देश से ‘भगाने’ अथवा उसे डिटेंशन कैम्पों में तिलतिल मरने के लिए छोड़ देने को देशभक्ति का पैमाना मान रहे हैं.

असल में एनआरसी और सीएए के जरिये देश की तकरीबन 102 करोड़ लोगों से यह ब्राह्मणवादी संघी शासक उसकी नागरिकता को छीन कर उसे मताधिकार समेत सम्पत्ति रखने, सरकारी तंत्रों में नौकरी पाने, सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने जैसे मौलिक अधिकार से वंचित करना चाह रही है. दूसरे शब्दों में कहें तो इन 102 करोड़ लोगों से जिन्दा रहने तक के अधिकार को छीना जा रहा है या जिन्दा रहने के लिए देश के ‘नागरिक’ बने बचे हुए 23 करोड़ लोगों के रहमोकरम पर निर्भर रहेंगे. यानी यह नये दौर की ‘दास-प्रथा’ की पुनर्वापसी है.

यह तो साफ तौर पर स्पष्ट है कि देश के 102 करोड़ नागरिकता से वंचित लोगों का न तो सामूहिक नरसंहार किया जा सकता है और न ही हिन्द महासागर में डुबोकर मारा जा सकता है, न ही इतनी बड़ी आबादी को डिटेंशन कैम्पों में रखा जा सकता है और न ही कोई देश इतनी बड़ी आबादी को शरण ही दे सकता है. तब इस बड़ी आबादी का क्या होगा ?? ये सब 102 करोड़ नागरिकता के अधिकार से वंचित लोग दास होंगे, जो शेष 23 करोड़ ब्राह्मण और सवर्ण मालिक के मातहत होंगे (अगर वर्तमान की जनसंख्या को 125 करोड़ माना जाये).

दास-मालिक प्रथा को भारत में स्थापित करने का श्रेय इन्हीं ब्राह्मण आर्यों को जाता है जब वह भारत के प्राचीन निवासियों को पराजित कर इस देश के शासक बने और इस देश प्राचीन निवासी उसके दास बना दिये गये, जिसे वह आज भी ‘सत युग’ के नाम से याद करते हैं और उसकी पुनर्वापसी के लिए दिन-रात विभिन्न प्रचार माध्यमों का सहारा लेकर लोगों को भ्रमित करते रहते हैं

ये ब्राह्मण आर्य जो इस देश को पूरी तरह जकड़े हुए हैं, विदेशी हैं, इसे उसके ही ग्रंथों और उसके विद्वानों के कथनों से समझा जा सकता है, जिसे मदारी मेहतर सोशल मीडिया पर लिखे एक पोस्ट में संकलित किया है. उनके लिखे अनुसार,

1. ऋग्वेद के श्लोक 10 में लिखा है कि ‘हम (वैदिक ब्राह्मण) उत्तर ध्रुव से आये हुए लोग हैं, जब आर्य और अनार्यों के बीच युद्ध हुआ था.’

2. ‘The Arctic Home At The Vedas’ बालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारा लिखी पुस्तक में मानते हैं कि ‘हम बाहर आए हुए लोग हैं.’

3. जवाहर लाल नेहरु ने (कश्मीरी पंडित) अपनी किताब Discovery of India में लिखा है कि ‘हम मध्य एशिया से आये हुए लोग हैं.’ यह बात कभी भूलना नहीं चाहिए. ऐसे 30 पत्र इंदिरा जी को लिखे जब वो होस्टल में पढ़ रही थी.

4. वोल्गा टू गंगा में राहुल सांस्कृत्यायन (केदारनाथ के पाण्डेय ब्राहम्ण) ने लिखा है कि ‘हम बाहर से आये हुए लोग हैं’ और यह भी बताया की वोल्गा से गंगा तट (भारत) कैसे आए.

5. विनायक सावरकर (ब्राम्हण) ने सहा सोनरी पाने इस मराठी किताब में लिखा की ‘हम भारत के बाहर से आये लोग हैं.’

6. इक़बाल (कश्मीरी पंडित) ने भी जिसने ‘सारे जहांं से अच्छा’ गीत लिखा था, ने माना कि ‘हम बाहर से आए हुए लोग हैं.’

7. राजा राम मोहन राय ने इग्लैंड में जाकर अपने भाषणों में बोला था कि ‘आज मैं मेरी पितृभूमि यानि अपने घर वापस आया हूंं.’

8. मोहन दास करम चन्द गांधी (वैश्य) ने 1894 में दक्षिणी अफ्रीका के विधान सभा में लिखे एक पत्र के अनुसार ‘हम भारतीय होने के साथ साथ युरोशियन हैं. हमारी नस्ल एक ही है इसलिए अंंग्रेज शासक से अच्छे बर्ताव की अपेक्षा रखते हैं.’

9. ब्रह्मसमाज के नेता सुबचन्द्र सेन ने 1877 में कलकत्ता की एक सभा में कहा था कि ‘अंग्रेजों के आने से हम सदियों से बिछड़े चचेरे भाइयों (आर्य ब्राह्मण और अंग्रेजों) का पुनर्मिलन हुआ है.’

इस सन्दर्भ में अमेरिका के Salt lake City स्थित युताहा विश्वविधालय (University of Utaha’ USA) के मानव वंश विभाग के वैज्ञानिक माइकल बमशाद और आंध्र प्रदेश के विश्व विद्यापीठ, विशाखापट्टनम के Anthropology विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त तरीकों से 1995 से 2001 तक लगातार 6 साल तक भारत के विविध जाति-धर्मोंं और विदेशी देश के लोगों के खून पर किये गये DNA के परिक्षण से एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें बता गया कि भारत देश की ब्राह्मण जाति के लोगों का DNA 99:96 %, क्षत्रिय जाति के लोगों का DNA 99.88% और वैश्य-बनिया जाति के लोगों का DNA 99:86% मध्य यूरेशिया स्थित ‘काला सागर (Black Sea)’ के लोगों से मिलता है.

इस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकालता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-बनिया विदेशी लोग हैं और एससी, एसटी और ओबीसी में बंटे लोग (कुल 6743 जातियां) और भारत के धर्म परिवर्तित मुसलमान, सिख, बौद्ध, ईसाई आदि धर्मों के लोगों का DNA आपस में मिलता है, जिससे साबित होता है कि एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोग भारत के मूलनिवासी हैं.

इससे यह भी पता चलता है कि एससी, एसटी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोग एक ही वंश के लोग हैं. एससी, एसटी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोगों को आपस में जाति के आधार पर बांंटकर ब्राह्मणों ने सभी मूलनिवासियों पर झूठी धार्मिक गुलामी थोप रखी है. 1900 के शुरुआत से आर्य समाज ब्राह्मण 3% ब्राह्मण, 85% मूलनिवासी भारतीयों पर पिछ्ले कई सदियों से राज करते आ रहे हैं.

परन्तु, भारत में बौद्धों के आने के बाद ब्राह्मणों की इस ब्राह्मणवादी गुलामी व्यवस्था पर भारी चोट पहुंची, जिसकी उपाय इन विदेशी ब्राह्मणों ने पुष्यमित्र शुंग के नेतृत्व में बौद्धों का कत्लेआम कर निकाला. इसके बाद तो मानों ब्राह्मणों की तूती बोलती गयी और देश में रह रहे शेष प्राचीन भारतीय यानी एससी, एसटी, ओबीसी समेत अन्य लोग वास्तव में दास बन गये. जो अंग्रेजों के आने तक जारी रहा. वयस्क मताधिकार अंगेजों की देन थी, जिसमें हर व्यक्ति को मत देने का अधिकार दिया, जिसका इन ब्राह्मणों ने जबर्दस्त विरोध किया, वाबजूद इसके अंग्रेजों ने इसे अपने उपनिवेश में लागू किया. जिस दिन वयस्क मताधिकार को अनिवार्य किया गया, तात्कालिक ब्राह्मणों ने इसे अपने स्वर्णकाल का अस्त माना और इसके काट के लिए बहुसंख्यक भारतीय को ‘हिन्दू’ का नाम देकर अपनी ढलती राजनीतिक सूर्य को अस्त होने से बचा तो लिया लेकिन इस वयस्क मताधिकार के अधिकार को खत्म करने के लिए लगातार प्रयासरत रहा.

2014 में जब से संघियों ने देश की सत्ता को काबिज किया है, वयस्क मताधिकार, जिसकी आयु घटकर 18 वर्ष कर दी गई है, के खिलाफ लगातार प्रयास किया. इसके लिए अनेक तरीके आजमाये गये. मसलन, संघ के राजनैतिक एजेंट भाजपा ने देश भर में मतों की खरीद-फरोख्त, विरोधी लोगों के मतों को मतदान केन्द्रों तक न पहुंचने देने के लिए उसे बरगलाया जाने लगा, उसके नाम मतदाता सूची से गायब किया जाने लगा वगैरह. परन्तु, दुबारा 2019 में देश की सत्ता में आने के बाद भाजपा ने एनआरसी और सीएए को बकायदा जबरन लागू कर देश की विशाल जनसंख्या को मताधिकार से वंचित कर देश में एक बार फिर से नये तरीके से दास-प्रथा को स्थापित किये जाने का उपाय किया जाने लगा है, जिसकी घोषणा भी चरणबद्ध तरीके से यह संघी लगातार कर रहा है. इस कड़ी में भाजपा महासचिव राम माधव ने सोमवार को कहा है  ‘एनआरसी से सभी अवैध प्रवासियों की पहचान सुनिश्चित हो सकेगी. अगल कदम ‘मिटाने’ का होगा, यानी अवैध प्रवासियों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे और उन्हें सभी सरकारी लाभों से वंचित कर दिया जाएगा.

आज जब एनआरसी-सीएए के माध्यम से देश में विदेशी नागरिकों की तलाश जोर-शोर की जा रही है, तब क्या ब्राह्मणों को देश से निकाल-बाहर करने की कोशिश की जायेगी, ताकि यह देश इस देश के मूल प्रचीन निवासियों के हवाले की जा सके ? यह यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब केन्द्र की सरकार को देना चाहिए.

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One Comment

  1. Anonymous

    January 20, 2021 at 5:37 pm

    Musalman videshi hai isliye musalman bhagao desh bachao
    Mujhe pata hai ki tum ek jihadi deshdrohi aatankwadi ho

    जिहादी अकसर ब्राह्मणों को कोसते हैं, विदेशी कहते हैं गालियां बकते हैं। पर बुद्ध ने आर्यधर्म को महान कहा है । अंबेडकर और बुद्ध आर्यों को विदेशी नहीं मानते, अपितु उसका खंडन करते हैं, यह हमने पीछे स्थापित कर दिया है। आगे धम्मपद के ब्राह्मण वग्गो १८ का प्रमाण लिखते हैं कि बुद्ध के ब्राह्मणों के प्रति क्या विचार थे।

    १:-न ब्राह्नणस्स पहरेय्य नास्स मुञ्चेथ ब्राह्नणो।
    धी ब्राह्नणस्य हंतारं ततो धी यस्स मुञ्चति।।
    ( ब्राह्मणवग्गो श्लोक ३)
    ‘ब्राह्नण पर वार नहीं करना चाहिये। और ब्राह्मण को प्रहारकर्ता पर कोप नहीं करना चाहिये। ब्राह्मण पर प्रहार करने वाले पर धिक्कार है।’

    २:- ब्राह्मण कौन है:-
    यस्स कायेन वाचाय मनसा नत्थि दुक्कतं।
    संबुतं तीहि ठानेहि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
    ( श्लोक ५)
    ‘जिसने काया,वाणी और मन से कोई दुष्कृत्य नहीं करता,जो तीनों कर्मपथों में सुरक्षित है उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

    ३:- अक्कोधनं वतवन्तं सीलवंतं अनुस्सदं।
    दंतं अंतिमसारीरं तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
    अकक्कसं विञ्ञापनिं गिरं उदीरये।
    याय नाभिसजे किंचि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
    निधाय दंडभूतेसु तसेसु थावरेसु च।
    यो न हंति न घातेति तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
    ( श्लोक ७-९)
    ‘जो क्रोधरहित,व्रती,शीलवान,वितृष्ण है और दांत है, जिसका यह देह अंतिम है;जिससे कोई न डरे इस तरह अकर्कश,सार्थक और सत्यवाणी बोलता हो;जो चर अचर सभी के प्रति दंड का त्याग करके न किसी को मारता है न मारने की प्रेरणा करता है- उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूं।।’

    ४:- गुण कर्म स्वभाव की वर्णव्यवस्था:-
    न जटाहि न गोत्तेन न जच्चा होति ब्राह्मणो।
    यम्हि सच्च च धम्मो च से सुची सो च ब्राह्मणो।।
    ( श्लोक ११)
    ‘ न जन्म कारण है न गोत्र कारण है, न जटाधारण से कोई ब्राह्मण होता है। जिसमें सत्य है, जो पवित्र है वही ब्राह्मण होता है।।
    ५:- आर्य धर्म के प्रति विचार:-
    धम्मपद, अध्याय ३ सत्संगति प्रकरण :प्राग संज्ञा:-
    साहु दस्सवमरियानं सन् निवासो सदा सुखो।( श्लोक ५)
    “आर्यों का दर्शन सदा हितकर और सुखदायी है।”
    धीरं च पञ्ञं च बहुस्सुतं च धोरय्हसीलं वतवन्तमरियं।
    तं तादिसं सप्पुरिसं सुमेधं भजेथ नक्खत्तपथं व चंदिमा।।
    ( श्लोक ७)
    ” जैसे चंद्रमा नक्षत्र पथ का अनुसरण करता है, वैसे ही सत्पुरुष का जो धीर,प्राज्ञ,बहुश्रुत,नेतृत्वशील,व्रती आर्य तथा बुद्धिमान है- का अनुसरण करें।।”
    “तादिसं पंडितं भजे”- श्लोक ८
    वाक्ताड़न करने वाले पंडित की उपासना भी सदा कल्याण करने वाली है।।”एते तयो कम्मपथे विसोधये आराधये मग्गमिसिप्पवेदितं” ( धम्मपद ११ प्रज्ञायोग श्लोक ५) ” तीन कर्मपथों की शुद्धि करके ऋषियों के कहे मार्ग का अनुसरण करे”
    धम्मपद पंडित प्रकरण १५/ में ७७ पंडित लक्षणम् में श्लोक १:- “अरियप्पवेदिते धम्मे सदा रमति पंडितो।।” सज्जन लोग आर्योपदिष्ट धर्म में रत रहते हैं।”
    परिणाम:- भगवान महात्मा गौतम बुद्ध ने ब्राह्मणों की इतनी स्तुति की है तथा आर्य वैदिक धर्म का खुले रूप से गुणगान किया है। इसलिये बुद्ध के कहे अनुसार जिहादी को भी ब्राह्मणों और आर्यों का सम्मान करना चाहिये।
    ओ३म्।।

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