आभा शुक्ला
जिसके रक्त पीने पर कोई विवाद नही है, ये अघोरी उसका सिगरेट पीते फोटो दिखाके भड़का रहे हैं.
– हेमन्त मालवीय
फिल्ममेकर लीना मनिमेकलाई ने सोशल मीडिया पर अपनी फिल्म का पोस्टर शेयर किया है, जिस पर जमकर बवाल हो रहा है.. यह एक डॉक्युमेंट्री फिल्म है, जिसका टाइटल ‘काली’ है.. और इसके विवादित पोस्टर में माता काली को सिगरेट पीते दिखाया गया है.. इतना ही नहीं काली माता के हाथ में LGBT का झंडा भी दिखाया गया है.. पोस्टर के आउट होते ही लोग इसका न केवल जमकर विरोध कर रहे हैं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से इस पर जरूरी कार्रवाई की मांग भी कर रहे हैं…
काली माता के लिए धुर दक्षिणपंथी समूह का ये सम्मान मुझे अचरज में डाल जाता है… अच्छे अच्छे मां काली के भक्त अपने घर में काली बहू नही लाना चाहते… काली माता को चाहें जितना मानते हों पर पर काली लड़की स्वीकार नहीं है… बेटे के लिए बहू लाना हो तो गोरी त्वचा की लड़की ही चलेगी की धारणा रखने वाले लोग मां काली का इतना सम्मान कबसे करने लगे… शर्म करिए,आप वही लोग हैं जो काली रंगत की लड़की को समाज में कभी चैन से जीने नही देते..
हमारे पितृसत्तात्मक समाज में तो मां काली फिट ही नही बैठती… अगर मां काली एकाएक प्रकट हो जाएं तो भारतीय पुरुष प्रधान समाज की भावनाएं तो आत्महत्या कर लेंगी मां काली के आचरण के कारण… हमारे समाज में महिलाओं के शरीर को सिर से लेकर पांव तक ढकना अनिवार्य माना जाता है… लेकिन दूसरी ओर नग्न रूप में रहने वाली मां काली की पूजा की जाती है…यदि कोई महिला अपनी जीभ दिखा रही है, तो उसे अपमानजनक माना जाता है ..लेकिन मां काली को हमेशा अपनी जीभ दिखाते हुए देखा जा सकता है..कई धार्मिक तस्वीरों में काली मां को अपने पति (शिव) की छाती पर पैर रखते देखा गया है ..लेकिन महिलाओं को अपने पति की पूजा करना सिखाया जाता है..हमारे तथाकथित समाज में केवल निष्पक्ष चमड़ी वाली महिलाओं को भाग्यशाली माना जाता है.. लेकिन मां काली चमड़ी वाली काली अपने आप में भाग्यशाली हैं..
यानी मां काली का स्वरूप और उनका आचरण हर कदम पर भारतीय पितृसत्ता से बगावत का है… घर की बहू और बेटी में अगर मां काली का एक भी गुण आ जाए तो समाज उसको कभी भी अच्छा नहीं मानेगा..शर्त लगा सकती हूं मैं कि धुर दक्षिणपंथी लोग कभी मां काली के स्वरूप और स्वभाव को स्वीकार नहीं कर सकते… वो सिर्फ भावनाएं आहत होने का दिखावा कर सकते हैं और कुछ नही… मै अक्सर कहती हूं न कि हमारी धार्मिक भावनाएं बड़ी द्विअर्थी होती हैं.. बिलकुल सच है ये… खैर फिलहाल तो काली मां में आस्था और उनके लिए भावनाएं आहत दिखाने वाला अपना ड्रामा बंद करो… जिसदिन तुम्हारे घर में काली मां ने जन्म ले लिया और खड़ी हो गई अपने पति की छाती पर पैर रखकर उस दिन पता नही क्या कर जाओगे क्रोध में तुम… बाकी अगर सच में मां काली में आस्था रखते हो तो काली रंगत की लड़कियों का उपहास उड़ाना बंद कर दो, बड़ा एहसान होगा.
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काल्बे कबीर लिखते हैं –
सांगानेर को सांगो बाबो
जयपुर को हनुमान
आम्बेर की शिला माता
ल्यायो राजा मान !
जिन नव-हिंदुओं की भावनाएं मां काली के मुंह में सिगरेट का पोस्टर देखकर आहत हो रही है, उनको शायद पता नहीं कि जयपुर के राजा मानसिंह द्वारा 1604 में बांग्लादेश के जसौर से जिस महिषासुर मर्दिनी दुर्गा की काले पत्थर की मूर्ति को लाकर आंबेर में स्थापित किया गया था – उस पर मदिरा चढ़ाई जाती है. बिना मदिरा के शिला देवी प्रसन्न नहीं होती.
मदिरा ही नहीं, कभी यहां नरबलि का भी प्रचलन था. नरबलि जब बंद की गई तो शिला देवी नाराज़ हो गई थीं और अपना चेहरा मोड़ लिया था उसके बाद पशुबलि दी जाती थी, जिसे अदालत के आदेश से 1971 में बंद किया गया.
यहां गांव गांव में हर वर्ष जो रामलीलाएं होती हैं, उनमें राम लक्ष्मण हनुमान की भूमिका करने वाले कलाकार बीड़ी/सिगरेट/चिलम पीते हुए रामलीला के अलावा भी मनोरंजन करते हैं. हिंदुस्तान के सारे बहुरूपिए हमारे देवताओं का हर रोज़ स्वांग निकालते हैं. हमारे देवताओं पर बहुत-सी मनोरंजक कथाएं बनी हुई हैं.
हिंदू धर्म उस तरह से धर्म नहीं है, जिस तरह इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म है. हिंदू धर्म का कोई एक ईश्वर नहीं है, यहां तैंतीस कोटि के देवी देवता हैं. यहां आस्तिक भी हिंदू है और नास्तिक भी. हिंदू धर्म को डा. राधाकृष्णन ने ठीक ही जीवन शैली कहा था. यह कहीं ठहरती नहीं, एक सनातन बहती धारा है.
हिंदू धर्म कोई एक आसमानी किताब नहीं है, हिंदू धर्म सदियों से सदियों तक एक होती हुई जिरह है, एक होता हुआ संवाद है, एक लिखी जा रही किताब है. एक सनातन/अनवरत उपनिषद !
हिंदू देवताओं का अपमान नामुमकिन है. हमारे सारे देवता अपमान-प्रूफ हैं और न हिंदुओं की भावनाएं कोई आहत कर सकता है. जिन हिंदुओं की भावनाएं एक फ़िल्म पोस्टर से आहत हो जाए, वह हिंदू नहीं हो सकता. वह या तो किसी पॉलिटिकल एजेंडा को आगे बढ़ाने वाला जड़-भक्त है या किसी न्यूज़ चैनल का मूर्ख एंकर/एंकरानी अथवा हिंदुत्व का अग्निवीर.
जिन कथित हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं, उन्हें प्रसिद्ध बांग्ला पत्रिका देश के पिछले पचास वर्षों के दुर्गापूजा विशेषांकों के आवरण देखने चाहिए, जहां देश के विख्यात कलाकारों ने महिषासुर मर्दिनी को विभिन्न रूपों में चित्रित किया है. एक बार तो किसी कलाकार ने मां दुर्गा के हाथ में एके 47 बन्दूक थमा दी थी. कोई बताए कि शिवलिंग को फव्वारा कहना शिवलिंग का अपमान कैसे हो गया ?
सच्चे हिंदुओं की भावना किसी भड़भूजे की भट्टी नहीं है, जिसे कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा भड़का दे !
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