पीएम मोदी जी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर का संचालन लंदन कि एक कंपनी को सौंप दिया, जिस के मालिक अंग्रेज हैं. अब मंदिर के सभी निर्णय वे अंग्रेज करेंगे, जिन्हें मोदी जी ने अपने विशेष आमंत्रण पर भारत बुलाया है.
1942 में देश में भारत छोडो का आंदोलन चला था और आज मोदी जी अंग्रेजों को वापिस बुला कर जमा जमाया करोड़ों रुपये का धंधा भी उन्हें सौंप रहें हैं. मंदिर में दान दक्षिणा व चढावे का सारा हिसाब अंग्रेजों के पास रहेगा, किसे पुजारी रखना है किसे नहीं, ये सब उन्होंने ने तय करना है. इन परिस्थितियों को मध्यनजर रखते हुए वहां के पंडे-पुजारियों में रोषपूर्ण माहौल का बनना जायज है.
मोदी जी के इस फैसले को देखते हुए देश भर के बडे-बडे मंदिरों के पंडे-पुजारियों में अपने रोजगार को लेकर डर का माहौल बनना भी लाजमी है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत के कुछ ही मंदिरों की कमाई देश के कुल बजट से कई गुणा अधिक है.
मंदिरों में दिया गया दान देश की अर्थ-व्यवस्था के लिए बहुत अधिक घातक है. यदि मंदिरों में किये गये दान का सारा पैसा सरकुलेट होता तो देश की अर्थ-व्यवस्था बहुत ऊपर होती और देश के सभी लोग खुशहाल सम्पन्न व समृद्ध होते लेकिन देश के अधिकांश पढे-लिखे लोग भी इस अहम मुद्दे पर ना कभी चर्चा करते ना ही ध्यान नहीं देते.
मोदी जी की गिद्ध नजर मंदिरों में दिये जाने वाले दान दक्षिणा व चढावे पर टिकी हूई है जिस की शुरुआत उन्होंने अपने ही संसदीय क्षेत्र बनारस से करके अपने मालिकों के प्रति वफादारी निभाई है. देश के मंदिरों की जमीन और उन्हें बनाने में आम जनता का पैसा खर्च होता है, फिर आम जनता से पूछे बिना अकेला मोदी अंग्रेजों की एक कंपनी को यह मंदिर कैसे सौंप रहा है ? यह सवाल सारे देश के लिए है.
देश के पंडे-पुजारियों में आगे बढ कर उस से सवाल करने की हिम्मत नहीं है और ना ही यह वर्ग सडकों पर आकर आंदोलन कर सकता क्योंकि इन कामों के लिए इन्होंने हमेशा एससी-एसटी-ओबीसी का समय-समय पर इस्तेमाल किया है. मंदिरों के पंडे-पुजारी दलितों को मंदिरों में प्रवेश नहीं करने देते. कई मंदिरों म़ें उन के प्रवेश को लेकर उन्हें मारने पिटने के विडिओ भी वायरल होते रहते हैं, उन्हें अछूत कहा जाता है.
अपने ही देश म़ें विदेशी आर्यों द्वारा स्वयं के लिए ऐसा तिस्कार असहनीय पीड़ा से भरा होता है जिसे भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी सहन किया है. अब मोदी जी काशी विश्वनाथ मंदिर को अंग्रेजों के हवाले मंदिर कर रहें है, क्यों नहीं पंडे-पुजारी मोदी के खिलाफ सडकों पर आ रहे ? क्या केवल दलितों को मारने के लिए शेर बनते हैं ?
क्या कभी किसी ओबीसी के सुशिक्षित व्यक्ति को देश के किसी बडे मंदिर का मेन कर्ताधर्ता या पुजारी बनाया है ? नहीं. क्योंकि ऐसी तुम्हारी सोच ही नहीं है, तभी ये सब लोग आज तुम्हारे साथ नहीं खडे हैं और मोदी को इस का भरपूर फायदा मिल रहा है. देखते हैं अब इन पंडे पुजारियों की मदद करने कौन सा काल्पनिक देवता सामने आता है ?
देश के सभी एससी-एसटी-ओबीसी के लोगों के लिए यह एक सबक होना चाहिए. यदि ये सभी काल्पनिक देवी-देवता मिलकर भी इन पंडे -पुजारियों के काम नहीं आए तो फिर अंधभक्तों तुम्हारे काम कैसे आएंगे ? इस विषय पर गहराई से सोचना.
मोदी के इस फैसले को देखते हुए सभी पंडे-पुजारियों को कोई नया काम-धंधा ढूंढ लेना चाहिए क्योंकि अब तक पंडे-पुजारी जो धंधा करते आ रहे हैं, वह भविष्य में चलने वाला नहीं है. वैसे भी ऐसा काम किसी धंधे की श्रेणी में नहीं आता बल्कि भोले भाले लोगों को झूठ तूफान बोल कर यह ठगने का काम है. उन की खून-पसिने की कमाई को छल कपट से छिनने का काम है और ऐसे धूर्तों के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्यवाही होनी चाहिये.
आज देश का मूलनिवासी वर्ग जागरूक हो चुका है. आने वाले समय में ये लोग इन पंडे-पुजारियों के बहकावे में आने वाले नहीं हैं बल्कि झूठ बोल कर किसी के साथ धोखेबाजी करके उस का पैसा एंठने वालों के खिलाफ 420 या अन्य केस दर्ज भी होंगे.
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