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अब झंडा के नाम पर देशभक्ति का फासीवादी सनक

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हमारे देश ने पिछले आठ वर्षों में ‘विकास की जिस उच्चतर अवस्था’ को प्राप्त किया है, उसमें देशभक्ति भी सरकारी आदेश से करवाई जा रही है. भाषा जो भी हो, स्पष्ट आदेश यह है कि देश के छब्बीस (पहले लक्ष्य बीस था) करोड़ घरों के लोगों को अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए 13 से 15 अगस्त तक घर पर तिरंगा लगाना है. आदेश-निर्देश अमित शाह के गृह मंत्रालय का है तो उसकी गंभीरता बढ़ जाती है.

आदेश में यह नहीं कहा गया है कि झंडा नहीं लगाया तो आप देशद्रोही मान लिये जाएंगे मगर आजकल जो नहीं कहा जाता, वही तो सबसे अधिक कहा जाता है. कभी यह नहीं कहा गया कि यह देश हिन्दू राष्ट्र बन चुका है. कभी यह भी नहीं कहा गया कि संविधान-कानून को ताक पर रख दिया गया है. कभी यह भी नहीं कहा गया कि पुलिस-राज लाया जा चुका है, मगर सच्चाई सामने है.

कर्नाटक के एक मंत्री लालकिले पर भगवा फहराने की बात भी कह चुके हैं, इस पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की चुप्पी काबिलेगौर है. आजकल इन चुप्पियों में ही सबकुछ छुपा होता है. भाषण को नहीं, उसमें छुपी चुप्पियों को सुना और पढ़ा जाना चाहिए. ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ की सारी हकीकत सामने आ जाएगी.

तो जो सरकार की नज़र में अपने को देशभक्त साबित करना चाहते हैं, उनके लिए यह स्वर्ण अवसर है. इसके लिए इस महंगाई में आपको पच्चीस से पचास रुपए का बलिदान करके एक झंडा खरीदना और उसे घर पर लगाना है. इतने से सिद्ध हो जाएगा कि आप देशभक्त हैं लेकिन ठहरिए, पूरी तरह नहीं. आपको तिरंगे के साथ सेल्फी भी लेनी होगी और उसे वेबसाइट पर अपलोड करना होगा. देशभक्ति, असंदिग्ध अवस्था तो तब प्राप्त करेगी, जब आप फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्स एप आदि पर भी झंडा अपलोड करेंगे. इसके अलावा जयश्री राम भी करें तो अति उत्तम !

जिन्हें आजकल धर्म-विशेष के लोग कहने का फैशन है, वे सावधान रहें. इतना करने पर भी उनकी देशभक्ति संदिग्ध रहेगी, फिर भी दुर्घटना से सावधानी भली. वैसे सावधानी की वजह से भी अनेक बार दुर्घटनाएं घट जाती हैं, इसका उदाहरण मैं एक ताजी सड़क दुर्घटना से दूंगा. इंदौर से एक बस महाराष्ट्र की ओर जा रही थी. रांग साइड से अचानक दो बाइक सवार आए. उनको बचाने के चक्कर में ड्राइवर से ऐसी गफलत हुई कि बस नदी पर बने पुल से सौ फीट नीचे गिर गई और सभी बारह सवारों की मृत्यु हो गई.

इसका मतलब यह नहीं कि सावधानी बरती न जाए. इसका मतबल केवल यह है कि इसके बाद बाकी सब सरकार बहादुर की इच्छा पर छोड़ दिया जाए क‌्योंकि उनकी इच्छा सुप्रीम है. वैसे भी देशभक्ति और देशद्रोह के प्रमाणपत्र विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू सेना आदि के पास है. ये किसे मिल सकते हैं, किसे नहीं, यह बताने की जरूरत नहीं. हर हिन्दू को मिल जाएगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं.

इस सरकार की एक ‘उपलब्धि’ यह है कि इसने देशभक्ति और देशद्रोह की परिभाषा का बेहद आसान बना दिया है. हर मान्य संघी-भाजपाई देशभक्त है और हर विरोधी देशद्रोही होने की भरपूर संभावनाओं से युक्त है. हर नफरतिया, हर झूठा, हर जुमलेबाज देशभक्त है और हर विचारवान-संवेदनशील आदमी देशद्रोही होने की तमाम शर्तों को पूरा करता है.

हर ऐसा हिंदू देशभक्त है, जो अपनी भावनाओं पर दिन में कम से कम दस बार चोट लगवाए बिना आराम नहीं पाता।. देशभक्ति की परिभाषा के इस सरलीकरण के लिए कम से एक बार तो मोदी जी को धन्यवाद दीजिए ! कहिए धन्यवाद मोदी जी, कहिए वरना वह खुद कह देंगे – धन्यवाद मोदी जी !

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आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के क्रम में संघ, भाजपा और मोदी सरकार ने 15 अगस्त, 2022 को भारत के बीस करोड़ लोगों के लिए बीस करोड़ राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया है. ध्वज के लिए 1300 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. भारत में कुल मिलाकर करीब 140 करोड़ लोग हैं. प्रति व्यक्ति के हिसाब से तो झंडा भी 140 करोड़ फहराया जाना चाहिए. पर फहराया जाएगा सिर्फ 20 करोड़. आखिर ऐसा क्यों ? बाकी के 120 करोड़ लोग क्या विदेशी हैं या उनकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह है ?

अगर सरकार के स्तर पर ऐसी सोच है तो यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि सरकार राष्ट्रीय झंडे के माध्यम से भी अपनी सांप्रदायिक और संकीर्ण मानसिकता को ही प्रदर्शित कर रही है. सस्ती लोकप्रियता के लिए यह फासीवादी सरकार ऐसे ही उटपटांग और अनर्गल काम करने में विश्वास करती है. यह कुछ नहीं सरकारी कोष की लूट और बर्बादी है. कम से कम स्वतंत्रता दिवस और राष्ट्रीय झंडे के साथ तो ऐसा प्रहसन नहीं किया जाना चाहिए.

  • विष्णु नागर और राम अयोध्या सिंह

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