छत्रपति बनने से पहले शिवाजी महाराज राजा थे. वे बेहद कम लगान वसूली पर अपना राज्य चला रहे थे. मराठा सेना ने 1664 में मुग़ल साम्राज्य के बंदरगाह सूरत पर हमला कर दिया. सूरत के खजाने को लूटने की खबर मुग़ल बादशाह औरंगजेब को लगी तो उसने अपने सबसे खास मनसबदार राजपूत राजा जसवंत सिंह को 80,000 सैनिकों के साथ शिवाजी महाराज को सबक सिखाने के लिए भेजा.
1665 में शिवाजी महाराज पूरी तरह मुग़लों से घिर गए. उन्हें मजबूरन मुग़लों के आगे झुकना पड़ा. जिसका नतीजा यह हुआ उन्हें पुरंदर किले में संधि पर हस्ताक्षर करना पड़ा. पुरंदर संधि के अनुसार शिवाजी महाराज अपने 37 किलों में से 23 किले मुग़लों को सौंप देंगे. उनके बेटे संभाजी को मनसबदार की उपाधि दी गई और युद्घ में जरूरत पड़ने पर शिवाजी महाराज की सेना को मुग़लों की मदद करनी होगी.
इसी संधि के नियमों के तहत औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया. आगरा आने पर शिवाजी महाराज का राजपूत राजाओं की तरह राजशाही स्वागत नहीं हुआ. उनका स्वागत एक मुंशी ने किया. औरंगजेब के दरबार में उन्हें राजपूत मनसबदारों के पीछे खड़ा किया गया. शिवाजी महाराज ने इस अपमान का विरोध किया और दरबार छोड़कर चले गए लेकिन औरंगजेब ने उन्हें गिरफ्तार कर कैद कर लिया.
शिवाजी महाराज पांच महीने तक औरंगजेब के कैद में रहे. उन्होंने कुल चार चिट्ठी लिखी, यह सच है लेकिन यह माफीनामा नहीं था. केवल अपनी गैर-कानूनी कैद का विरोध कर अपनी रिहाई की मांग थी. शिवाजी महाराज चाहते तो अन्य राजपूतों की तरह दरबारी बन सकते थे लेकिन उन्हें मुग़लों की सरपरस्ती कबूल नहीं थी. वे आगरा में अपने कैदखाने से भाग निकले, जो इतिहास बन गया.
इसके बाद शिवाजी महाराज के आगे मुग़ल साम्राज्य नरम रुख अख्तियार कर लिया और बादशाह औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को राजा मान लिया. लेकिन शिवाजी महाराज यहीं तक नहीं रुके. उन्होंने धीरे-धीरे अपने मराठा साम्राज्य को बढ़ाया और अपने खोए हुए किलों पर दुबारा अधिकार स्थापित किया.
1674 में शिवाजी महाराज ने खुद को छत्रपति घोषित किया लेकिन कोंकण और पुणे के ब्राह्मणों ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करने से इंकार कर दिया. बनारस के पंडित गागा भट ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया और वे कहलाये छत्रपति शिवाजी महाराज.
छत्रपति शिवाजी महाराज की चार चिट्ठी की तुलना विनायक दामोदर सावरकर के माफीनामा से करना बेमानी है. विनायक दामोदर सावरकर के पास जेल से बाहर आने पर तीन विकल्प थे –
- निष्पक्ष होकर अपने काम से मतलब रखना,
- ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कार्य करना
- ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी करना.
सावरकर ने तीसरा विकल्प चुना. इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने सावरकर को 60 रुपए मासिक पेंशन दी. जाति के कारण छत्रपति शिवाजी महाराज का उदाहरण प्रस्तुत किया गया. नहीं तो आज तक बीजेपी के किसी नेता ने उन राजपूतों का नाम तक नहीं लिया जिन्होंने मुग़लों और ब्रिटिश दरबार में दलाली कर मलाई खाई थी.
- क्रांति कुमार
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