Home ब्लॉग नवम्बर 1971 : इतिहास जो भुलाया नहीं जा सकता

नवम्बर 1971 : इतिहास जो भुलाया नहीं जा सकता

4 second read
0
0
540

नवम्बर 1971 : इतिहास जो भुलाया नहीं जा सकता

आज जब एक अनपढ़ अपराधी नरेन्द्र मोदी देश की सत्ता पर बैठा तांडव कर रहा है और दुनिया या तो हंस रही है या उसके अपराध की जांच के लिए न्यायिक जांच (फ्रांस के एक जज द्वारा राफेल घोटाले की न्यायिक जांच) करवा रहा है, तभी इस देश की सबसे गौरवमयी प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने, जो दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की दादागिरी के खिलाफ उठ खड़ी हुई थी और शानदार जवाब दी थी – को याद किया जाना चाहिए.

संकट जैन ने इतिहास के एक दौर में इंदिरा गांधी को याद करते हुए एक आलेख लिखा है, जिसे हम यहां अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.

साल था 1971 और महीना नवंबर –

‘अगर भारत पाकिस्तान के मामले में उसकी नाक में उंगली करेगा तो अमेरिका अपनी आंख नहीं फेर लेगा,भारत को सबक सिखाया जाएगा.’

-रिचर्ड निक्सन.

‘भारत अमेरिका को दोस्त मानता है, बॉस नहीं. भारत अपनी किस्मत खुद लिखने में सक्षम है. हम जानते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक के साथ कैसे व्यवहार करना है ?’

– इंदिरा गांधी

भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ठीक यही शब्द व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ बैठकर, आंखों से आंख मिलाकर बिना पलक झपकाए व्यक्त किये थे. अपनी आत्मकथा में हेनरी किसिंजर जो उस समय अमरीका के NSA और सेक्रेटरी आफ स्टेट थे, ने इस ब्योरे को दर्ज़ किया है. वह दिन था जब भारत-यू.एस संयुक्त मीडिया संबोधन को इंदिरा गांधी ने रद्द कर दिया था, और अपने ही अनोखे अंदाज में व्हाइट हाउस से चली गईं थीं.

किसिंजर ने इंदिरा गांधी को उनकी कार में छोड़ते हुए कहा था, ‘मैडम प्रधानमंत्री, आप को नहीं लगता है कि आप को राष्ट्रपति के साथ थोड़ा और धैर्य के साथ काम लेना चाहिए था.’

इंदिरा गांधी ने उत्तर दिया, ‘धन्यवाद श्रीमान सचिव, आपके बहुमूल्य सुझाव के लिए. एक विकासशील देश होने के नाते, हमारी रीढ़ सीधी है – और सभी अत्याचारों से लड़ने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति और संसाधन हैं. हम साबित करेंगे कि वे दिन लद गए जब हजारों मील दूर बैठी कोई ‘शक्ति’ किसी भी राष्ट्र पर शासन कर सकती है और अक्सर उसे नियंत्रित कर सकती है.’

जैसे ही उनका एयर इंडिया बोइंग वापसी में दिल्ली के पालम रनवे पर उतरा, इंदिरा गांधी ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को तुरंत अपने आवास पर बुलाया. बंद दरवाजों के पीछे एक घंटे की चर्चा के बाद वाजपेयी जल्दी-जल्दी लौटते दिखे. इसके बाद यह ज्ञात हुआ कि वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे.

बीबीसी के डोनाल्ड पॉल ने वाजपेयी से सवाल पूछा, ‘इंदिरा जी आपको एक कट्टर आलोचक के रूप में मानती हैं, इसके बावजूद, क्या आप को नहीं लगता कि आप संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए मौजूदा सरकार के रुख़ के पक्ष में होंगे ?’

वाजपेयी ने प्रतिक्रिया दी थी कि ‘एक गुलाब एक बगीचे को सजाता है, और बगीचे को सजाने का काम लिली भी करती है. सभी इस विचार से घिरे हुए हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से सबसे सुंदर हैं. जब उद्यान संकट में पड़ता है, तो सभी को उसकी रक्षा करनी होती है. मैं आज बगीचे को बचाने आया हूं, इसे भारतीय लोकतंत्र कहा जाता है.’ परिणामी इतिहास हम सभी जानते हैं.

अमेरिका ने पाकिस्तान को 270 प्रसिद्ध पैटन टैंक भेजे. उन्होंने विश्व मीडिया को यह दिखाने के लिए बुलाया कि ये टैंक विशेष तकनीक के तहत बनाए गए थे और इस प्रकार अविनाशी हैं. इरादा बहुत साफ था. यह बाकी दुनिया के लिए एक चेतावनी संकेत था कि कोई भी भारत की मदद न करे.

अमेरिका यहीं नहीं रुका. भारत को तेल की आपूर्ति करने वाली एकमात्र अमेरिकी कंपनी बर्मा-शेल को बंद करने के लिए कहा गया. उन्हें अमेरिका द्वारा भारत के साथ अब और व्यापार बंद करने के लिए सख्ती से कहा गया था. उसके बाद भारत का इतिहास केवल वापस लड़ने के बारे में है. इंदिरा गांधी की तीक्ष्ण कूटनीति ने सुनिश्चित किया कि तेल यूक्रेन से आए.

सिर्फ एक दिन तक चली एक लड़ाई ने इन 270 पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया. नष्ट किए गए टैंकों को प्रदर्शन के लिए भारत लाया गया था जो राजस्थान के गर्म रेगिस्तान में आज भी एक गवाह के रूप में खड़े हैं, जहां यू.एस. का गौरव नष्ट हो गया था. इसके बाद अठारह दिनों तक चले युद्ध की परिणति में पाकिस्तान से 1.0 लाख युद्धबंदी बनाये गए. मुजीबर रहमान लाहौर जेल से रिहा हुए.

मार्च का महीना था – इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी.
वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को ‘मां दुर्गा’ कहकर संबोधित किया. इन घटनाओं के नतीजे इस प्रकार हैं –

  • भारत की अपनी तेल कंपनी, अर्थात इंडियन ऑयल अस्तित्व में आया.
  • भारत ने दुनिया की नजरों में खुद को ताकतवर राष्ट्र के रूप में सिद्ध किया.
  • भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का नेतृत्व किया.

इसका नेतृत्व निर्विवाद था. हालांकि ये सारी घटनाएं लोग भूल गए हैं, मगर इतिहास आज भी बुलंद खड़ा है, जिसको आगे वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया जाना चाहिए.

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…