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अमीरों का मसीहा कोई नहीं

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अभी तक कम से कम पांच लाख ‘गरीबों के मसीहा’ हो चुके होंगे. चक्रवर्ती सम्राट को पांच लाख एकवां मान सकते हैं. 74 साल हो गए आजादी मिले, 75 वां साल ‘अमृत काल’ ठहराया जा चुका है, फिर भी आज तक हम अमीरों का एक मसीहा तक पैदा नहीं कर पाए ! अब तो चक्रवर्ती सम्राट ने भी अपने 71 वें जन्मदिन पर अमीरों से अपना दामन झाड़ लिया है, गरीबों के मसीहा का ताज पहन लिया है.

अमीरों का मसीहा कोई नहीं

विष्णु नागर

आजादी के बाद से आज तक इस देश में गरीबों के मसीहा अनेक हुए हैं. लेटेस्ट हमारे चक्रवर्ती सम्राट हैं. हर प्रधानमंत्री, हर मुख्यमंत्री, हर सांसद, हर विधायक अपने समय में गरीबों का मसीहा हुआ करता है. यह उसका धंधा है, उसका शौक है, उसकी विवशता है, उसका धर्म है. अगले सौ वर्षों तक यह स्थिति रहेगी.

अभी तक कम से कम पांच लाख ‘गरीबों के मसीहा’ हो चुके होंगे. चक्रवर्ती सम्राट को पांच लाख एकवां मान सकते हैं. वैसे अपना गणित बहुत खराब है, चक्रवर्ती सम्राट से भी अधिक खराब. दूधवाले का एक महीने का हिसाब लगाने में ही पसीने छूट जाते हैं.

मुझे तकलीफ़ केवल इस बात की है कि 74 साल हो गए आजादी मिले, 75 वां साल ‘अमृत काल’ ठहराया जा चुका है, फिर भी आज तक हम अमीरों का एक मसीहा तक पैदा नहीं कर पाए !

अब तो चक्रवर्ती सम्राट ने भी अपने 71 वें जन्मदिन पर अमीरों से अपना दामन झाड़ लिया है, गरीबों के मसीहा का ताज पहन लिया है. उन जैसा मन, वचन, कर्म से अमीरों के लिए प्रतिबद्ध ऐसा करे तो आप खुद सोचिए कि अमीरों को इससे कितनी सच्ची वेदना हुई होगी !

मेरे अलावा आज तक किसी ने इस पर सोचा तक नहीं !आज अमीरों की तरफ आंख उठाकर देखनेवाला तक कोई नहीं रहा. जी तो करता है भेंएं करके रो पड़ूं, मगर यह काम भी चक्रवर्ती जी ने हथिया रखा है. सभी कुछ वे कर लेते हैं, ये तो गलत बात है न !

मां कसम, मेरी तो बड़ी इच्छा थी कि जिन अमीरों का आज कोई नहीं, उनका मसीहा बनकर मैं दिखा दूं ! दुनिया को बता दूं कि जिनका कोई नहीं होता, उनका भी कोई होता है. आओ अमीरों, हताश मत होओ. एक है अभी इस भारत में, जो तुम्हें गले से लगाने को तैयार है. मैं तुम्हारी आंखों में आंसू देख नहीं सकता.

यह मत सोचना कि इस दुनिया से दया-धरम उठ गया है. अभी हैं मेरे जैसे चंद लोग ! मैंने इस तरह के तमाम डायलॉग और एक्शन सीन सोच लिए थे. रिहर्सल भी कर ली थी. तभी खयाल आया कि अगर ऐसी कोई घोषणा मैंने की तो अमीर तो मेरा भुर्ता बाद में बनाएंगे, सबसे पहले संघ-भाजपावाले मुझे सरेराह धुन देंगे. कहेंगे, साला, दो कौड़ी का लेखक, अमीरों का चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहता है ? शकल देखी है अपनी कभी आईने में !चक्रवर्ती सम्राट की बराबरी करेगा, हरामखोर !

पुलिस जब तक पहुंचेगी, तब तक मेरे पूरे शरीर पर प्लास्टर चढ़ चुका होगा और अंतिम सांसें जैसा कुछ चल रहा होगा, बाकी की तो साध अधूरी रह जाएगी. जूते मारने की इच्छा से भरे हुए लोग मन मसोस कर रह जाएंगे. पुलिस की इच्छा भी अधूरी रह जाएगी.

वामपंथी लेखक संगठनों की ओर से जब तक मेरी भर्त्सना करते हुए वक्तव्य जारी होगा, तब तक मेरे मरणासन्न होने की खबर आ चुकी होगी. मानवीयता से गले-गले तक भरे लोग कहेंगे, पहले ही बंदा मरा पड़ा-सा है. कब संसार से उठ जाए, पता नहीं और ये ऊपर से उस पर सवारी गांठ रहे हैं ! ये तो उसे केवल शब्दों से पीटते, उन्होंने तो इसे सशरीर पीट दिया है, और क्या चाहिए इन्हें ? इन्हें तो उसे प्लास्टर बंधवाने वालों की निंदा करना चाहिए था और ये उस गरीब की निंदा कर रहे हैं !

तो हाथ जोड़कर निवेदन है चक्रवर्ती सम्राट जी आपसे कि आप गरीबों के मसीहाई का खयाल छोड़, अमीरों का मसीहा बनो. कब तक कांग्रेसी लकीर पीटते रहोगे, अपनी खींच कर दिखाओ ! भगवान की सोच, बहुत विश्वसनीय लगोगे. अपनी इमेज के इस पक्ष पर अब ध्यान दो. अमीर बेचारे चुप रहते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप उनका शोषण करते रहो. आपमें यह बदलाव अगर आया तो भारत के सारे अमीर आप पर धन की वर्षा कर देंगे. आपकी इंटरनेशनल प्रेस्टीज को जो धक्का लगा है, उसकी मरम्मत कर देंगे.

जहां तक भक्तों का सवाल है, आप गरीबों के मसीहा बनो या अमीरों के, वे हमेशा साथ रहेंगे. मेरे सुझाव में थोड़ा-सा खतरा जरूर है पर आप तो ठहरे खतरों के खिलाड़ी ! उतर पड़ो मैदान में, बाकी गोदी मीडिया संभाल लेगा. जो बचेगा, वह काम आईटी निबटा देगा. इसलिए प्लीज़ गरीबों का मसीहा बनने का प्लान तत्काल कैंसिल करो. जन्मदिन पर गरीबों को खिचड़ी-विचड़ी बंटवा दो.

एक शुभचिंतक की सलाह मानने में ही आपका भला है. आप तो ओस की बूंदों में नमक जैसे कुछ को इकट्ठा कर नहाने-कपड़े धोने जैसे विलक्षण चमत्कार बचपन में ही दिखा चुके हो तो अब अमीरों का मसीहा बनने जैसे चमत्कार से क्या घबराना ! उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतना है या नहीं आपको, जीतना हो तो कूद पड़ो. अमीर आपकी प्रतीक्षा में हैं.

बाकी तो आप जानते हो कि अपन किसी पर दबाव डालते नहीं . बीवी -बच्चों पर दबाव नहीं डाला तो आप तो सम्राट हो और वह भी चक्रवर्ती ! अपना तो सरनेम तक में चक्रवर्ती नहीं ! अपन आप पर दबाव कैसे डाल सकते हैं !

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कोरोना के भय के कारण जब आपसे- हमसे कहा जा रहा था कि हम घर से बाहर न निकलें, घर से अधिक सुरक्षित जगह दूसरी कोई नहीं, तब देश भर में गरीबों के घर उजाड़े जा रहे थे. जब वे रोजगार से महरूम थे, जब उनकी रोटी के लाले पड़े हुए थे, जब कोरोना उनकी भी जान ले रहा था, उसी दौरान कम से कम ढाई लाख लोगों के छोटे-मोटे घर, उनकी झुग्गियां उजाड़ी गईं. जब उनके हक में बोलनेवाल़े चंद लोग, थोड़े से संगठनों के थोड़े से लोग भी उनके साथ आने के लिए स्वतंत्र नहीं थे, तब उन्हें बेघर, बेदरोदीवार किया गया.

यह हकीकत कोई भी सरकार क्यों सामने लाएगी और आज भी हर अखबार क्यों छापेगा कि मार्च, 2020 से जुलाई, 2021के बीच हर घंटे औसतन 21 लोग उजाड़े गए ? इस सच्चाई को एक स्वयंसेवी संगठन सामने लाया.
कर्फ्यू जैसी स्थितियों से बेहतर लोगों को उजाड़ने का सुनहरा अवसर और क्या हो सकता था ? तब उनकी चीख सुनने वाले वे ही थे, जो खुद उजड़ने से चीख रहे थे. दिल्ली इसमें अग्रणी रही है हमेशा. आज भी लगभग रोज ऐसी खबरें आती हैं. यहां उजाड़ने वाली एजेंसियां भी बहुत हैं. दिल्ली विकास निगम (डीडीए) है, तीन नगर निगम हैं, एक है नई दिल्ली नगर निगम. रेलवे है और भी न जाने कितनी ऐसी एजेंसियां हैं.

बहरहाल कहा जाता है कि ये झुग्गियां सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनी हैं, बिल्कुल यह सच बात होगी, पर ये लोग-गांवों-कस्बों से उजड़कर दिल्ली, मुंबई आदि क्यों आए ? अपनी मर्जी से ? करियर बनाने के लिए ? दिल्ली आकर चायवाले की तरह एक दिन प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार करने के लिए ?

उन्हें धकेला गया है यहां. सरकार को अपनी माई -बाप समझ कर उन्होंने यहां किसी तरह अपने लिए न्यूनतम जगह बनाई. इसके लिए भी उन्हें भू-माफिया से जूझना पड़ा, जो सरकार से सुरक्षित है.

ऐसा नहीं है कि यहां सरकारी जमीन पर कब्जा करके अपना घर बना लेनेवालों के घर कभी कानूनी बनाए नहीं गये. त्रिलोकपुरी आदि दिल्ली की कालोनियां ऐसे ही उजड़े हुए लोगों की कालोनियां हैं. निम्न मध्यवर्गीय अनेक अवैध कालोनियों को वैध बनाने का श्रेय लेने के लिए दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव मेंं आम आदमी पार्टी और भाजपा में होड़ मची थी.

अब सिर्फ़ उजाड़ने की नीति है, बसाने की नहीं. गांव से मार खाकर गरीब रोजगार के लिए शहर आए. वहां फिर वह उजाड़ा जाता है, सरकार माई-बाप के द्वारा. वैसे कहने को गरीबों का दर्द समझने वाला प्रधानमंत्री इस देश में है मगर सब जानते हैं कि उन्हें किसका दर्द समझ में आता है. कोई अतीत में गरीब था, यह अपने आप में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उसे गरीबों का दर्द समझ में आएगा ही. उसे दर्द ही समझना है तो वह अपने अमीर दोस्तों का दर्द समझेगा ! आपने कभी सुना कि इस कृष्ण का कोई दोस्त सुदामा भी हुआ करता है ?

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अगर सत्ता आपको अपराधी साबित करना चाहती है तो बहाना कोई भी हो सकता है. आपका पांच भाषाओं का जानकर होना, काफी पढ़ा-लिखा होना, कुशल वक्ता होना, संतुलित तरीके से बात कहना, दंगों पर थीसिस लिखना, संबोधन की शुरुआत अस्सालाम-आलेकुम से करना, केंद्र में पूर्ण बहुमत से बीजेपी सरकार के फिर से आने पर हमें तीन तलाक, सीएए, एनआरसी मिलेंगे, यह कहना, सब दंगाई होने का प्रमाण मान लिया जाता है.

दूसरी तरफ पुलिस की बगल में खड़े होकर खुलेआम दंगे भड़काने की बात कहना भी आपको दंगाई नहीं बना सकता. यानी सत्ता के लिए किसी को अपराधी सिद्ध करवाने के लिए कुछ भी कहना-लिखना, पढ़ना लिखना पर्याप्त या अपर्याप्त हो सकता है. सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि आप सत्ता द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा के इस पार हैं या उस पार ?

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