हिमांशु कुमार, गांधीवादी कार्यकर्त्ता
मैं बुराई पर अच्छाई की जीत वाली कहानी को सच नहीं मान सकता. बुद्धि से और आंख खोल कर बिना भावुक हुए देखते हैं तो साफ़ दिखाई दे जाता है कि झगड़ा तो नस्लों के बीच में था. अगर आप एक ही नस्ल का बताया हुआ वर्णन सुनेंगे तो आपको उसमें दूसरी नस्लों के बारे में गलत और भ्रामक बातें बताई जायेंगी, क्योंकि आपका इतिहास जीतने वाले का इतिहास है इसलिए जो हार गया, उसे बुरा कहा गया और आपने खुद के लोगों को अच्छा कहा.
जीत और हार से अच्छे बुरे का फैसला नहीं होता क्योंकि अच्छे भी हारते हैं और बुरे भी जीत जाते हैं. हम बहुत समय से अपनी जीत और दूसरों की हार का जश्न मनाते रहे हैं और उन्हें हम अपना त्यौहार कहते हैं. लेकिन जब तक हमारे पास सत्ता थी और पैसा था और हम अलग-अलग रहते थे तब तक तो इसे किसी ने चुनौती नहीं दी लेकिन अब लोकतंत्र आ गया है. अब सभी नस्लों के लोग एक साथ-साथ रहने लगे हैं.
संविधान लागू होने के बाद अब सबके अधिकार भी बराबर मान लिए गये हैं. अब दूसरी हारी हुई नस्लें भी पढ़-लिख रही हैं. पैसा कमा रही हैं. अब यह हारी हुई नस्लें अपना इतिहास खोज रही हैं. असुर, राक्षस, दानव जातियां खोज ली गई हैं. यह सभी आदिवासी लोग हैं.
यह भी खोज हुई है कि शुरू में यज्ञ जंगल जला कर घास के मैदान और बस्तियां बसाने को कहा जाता था. आर्यों के इस यज्ञ की अग्नि को आदिवासी यानी असुर बुझा देते थे क्योंकि आदिवासी जंगलों पर आश्रित थे. तो यह संसाधनों के लिए लड़ाई थी. इसमें आदिवासी हार गये और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों में जंगलों में रहने चले गये, समतल ज़मीनों पर युद्ध में जीते हुए लोगों ने कब्ज़े कर लिए.
युद्धों में हरा कर जिनको पकड लिया गया, उन्हें दास बना कर शूद्र बना दिया गया. उनकी अलग बस्तियां बना कर उनका धर्म सेवा बना दिया गया. ज़मीनों पर विजेता जातियों का कब्ज़ा हो गया इसीलिए आज भी भारत के अस्सी प्रतिशत दलित भूमिहीन हैं.
अब पुरानी बातों को याद करके नए झगड़े नहीं बढाने चाहियें लेकिन आप अगर आज भी कहेंगे कि यह नीच है या छोटा है तो झगड़ा तो फिर बढने वाला है. और अगर आप झगड़ा बढ़ाएंगे तो सारी पुरानी बातें ज़रूर खुलेंगी. आपके बड़े होने के पुराने कारण खोज कर उनका खुलासा किया जाएगा. उन्हें चुनौती दी जायेगी.
जो लोग सच और न्याय की तरफ हैं, वे लोग आपकी गलती का विरोध भी करेंगे. आप यह नहीं कर सकते कि इतिहास से आपको मिली ऊंची हैसियत का तो मज़ा लूटें लेकिन जब कोई उसका असली इतिहास आपको बता दे तो आप कहें कि यह तो झगड़ा बढ़ा रहा है. आप अपनी तरफ भी तो देखिये.
बंद कीजिये युद्ध में जीत के त्यौहार और पुतले जलाना
त्यौहार को अपनी जाति के विचार को छोड़ने के रूप में मनाइए. सभी इंसानों की समता की शपथ लेने के रूप में नाचिये गाईए. दलित बस्तियों में जाकर उनके आंगन में बैठिये. उनकी तकलीफें सुनिए. उनके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाइये. स्वीकार कीजिये कि आपके पुरखों से अन्याय हुआ था लेकिन अब आप उस अन्याय को मिटायेंगे. अगर आप यह करते हैं तब तो समाज की शान्ति, लोकतंत्र और समानता व न्याय बचेगा वरना असमानता, नफरत लूट और अशांति ही बढ़ेगी.
मैंने बहुत सालों पहले ही जीत की खुशी मनाने वाले त्यौहारों को पुराने रूप में बंद कर दिया है. मैं तो खैर दिल्ली छोड़ कर आदिवासियों के बीच रहने ही चला गया था लेकिन भाजपा सरकार ने मुझ पर ज़ोरदार हमला करके मुझे आदिवासियों के बीच से हटा दिया. देश के निर्माण में बहुत समय लगता है. भारत अभी बन ही रहा है. इसे बनाना या टुकड़े कर देना आपके हाथ में है.
आपकी सोच और आपके काम ही इस देश की किस्मत का फैसला करेंगे.
अगर दुनिया के लोग यह चाहें कि जीवन सरल हो, झगड़ों से मुक्त हो. एक ऐसा जीवन जहां तनाव ना हो, दूसरों से आगे निकलने की आपाधापी ना हो, एक ऐसी जिंदगी जहां खुद के मजहब, खुद की जात को दूसरों से बेहतर साबित करने की होड़ ना हो, जहां खुद को दूसरे से ज्यादा अमीर बनाने की हवस ना हो, जहां सिर्फ जरूरत के हिसाब से प्रकृति को इस्तेमाल किया जाए और लालच के लिए ज्यादा इकट्ठा ना किया जाए, जहां दूसरों से नफरत करने की हमारे पास कोई वजह ना बचे. एक ऐसी दुनिया बिल्कुल मुमकिन है.
इस दुनिया को नफरत, लड़ाइयां, आपाधापी, छीन झपट, दूसरे को नीचा दिखाना यह सब हम ही ने बनाया है. मुश्किल है कि यह हमारे पिता श्री, अब्बा जान और फादर साहब ने हमें यह सिखाया है. हमारा मज़हब, हमारी राजनीति इस सब को सही बताने और इसे जीवन की शान और हमारे सम्मान और हमारी पहचान के लिए जरूरी बताते रहे हैं.
असल में हमारा दिमाग प्राकृतिक और ओरिजिनल न रहकर बहुत ज्यादा सड़ी हुई मान्यताओं धारणाओं विचारों से भरा हुआ है और हम में से ज्यादातर लोगों में यह साहस नहीं है कि वह इन सब पर सवाल खड़े कर सके, और एक सच्चे इंसान की तरह बिल्कुल प्राकृतिक सच्चा साफ सुथरा तरीका सोचने का अपनाएं. अपनी और इस संसार की पूरी तकलीफ को समझें और बदलें.
हमें तो अपने सैकड़ों साल पुराने मजहब चाहिए ! उनकी किताबें हमें सच्ची लगती हैं ! हमें पुराने विचार पुरानी धारणाएं पुरानी मान्यताएं और अतीत बड़ा प्यारा है. ताजी नजर ताजी सोच अपनी समझ पैदा करना हमें बिल्कुल असंभव, पाप, गुनाह और नामुमकिन लगता है. लेकिन ताजी नजर ताजी सोच और अपनी समझ के बिना जो भी इंसान इस दुनिया में जिएगा. वह इस दुनिया को बदतर ख़राब बदसूरत और हिंसा से भरा हुआ बनाएगा.
यह दुनिया मजहबी, पूंजीवादी सोच और राजनीति की वजह से तबाह हो जाएगी और उसका नामोनिशान मिट जाएगा या इसमें ताजी और साफ-सुथरी समझ के लोग पैदा होंगे और वह मजहब राजनीति लालच पूंजीवाद से आजाद होकर सोचेंगे. इस बात पर इस दुनिया का भविष्य निर्भर है. इस दुनिया का खत्म हो जाना या इसका बचा रहना दोनों ही हमारे अपने सोचने के तरीके और कामों पर निर्भर है. आपको क्या लगता है हमें ज्यादा मजहबी पूंजीवादी जातिवादी लोगों की जरूरत है या ताजी सोच और ताजे दिमाग वाले बच्चों की ?
एक युद्ध जारी है
आप बिना मेहनत किये अमीर बन जाते हैं. मेहनतकश मजदूर किसान कड़ी मेहनत के बाद भी गरीब बना रहता है. यह मेहनत की लूट है. आपके बाप दादा ने ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया था इसलिए आज आप ज़मीन के मालिक हैं और अमीर हैं. मजदूर और किसान जब भी अपना अधिकार मांगता है तो आपकी पुलिस मजदूरों और किसानों को मारती है, यह एक तरह का युद्ध है.
आपने गरीब के खिलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है. आप मेहनत और संसाधनों पर गैरकानूनी कब्ज़े के बल पर अमीर बने बैठे हैं इसलिए जो गरीब हैं वो अपनी गलती से गरीब नही हैं, उन्हें गरीब बने रहने पर मजबूर किया गया है. गरीबों के विरुद्ध एक युद्ध जारी है. आप लगातार गरीबों पर हमला कर रहे हैं. आपके ज्यादातर अर्ध सैनिक बल गरीबों के और आदिवासियों के इलाकों में भेज दिए गए हैं.
भगत सिंह ने कहा था कि हां हम इस युद्ध में शामिल हैं. हम जनता की तरफ से आपको इस युद्ध का जवाब दे रहे हैं. भगत सिंह ने कहा था कि आप हमें युद्ध बंदी मानिये और हमें फांसी देने की बजाय गोली से उड़ा दीजिए. भगत सिंह ने कहा था यह युद्ध अंग्रेजों के जाने के बाद भी चलता रहेगा, जब तक मेहनतकश की मेहनत और उत्पादन के साधनों पर अमीरों की लूट जारी है, यह युद्ध जारी रहेगा.
अब फैसला आपको करना है कि आप इस युद्ध में किसकी तरफ हैं ? आप अगर मज़े में हैं और देश के करोड़ों गरीबों की हालत से आपको कोई फर्क नही पड़ता
तो आप हमलावरों के साथ हैं. युद्ध में निष्पक्ष कोई नही होता. निष्पक्ष होना भी चालाकी भरा एक राजनैतिक फैसला होता है.
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