हत्यारे के ख़ून से सने
हाथों में आप
मसले हुए गुलाब की
लाली भी देख सकते हैं
ज़मीन पर पड़े
ख़ून के थक्के
आपको किसी क्षय रोगी का
बलगम भी समझ सकते हैं
इसी तरह
बलात्कार को
आपसी सहमति से किया गया
नियोग भी समझ सकते हैं
आप माई बाप हैं हुज़ूर
आपकी समझ तक पहुँच पाना
साधारण लोगों के बस में नहीं है
घर में अपनी जवान बहू बेटियों को
राम भरोसे छोड़ कर
काम की तलाश में भटकने वाले
अगर आपकी समझ की कद्र न करें
तो और करें भी क्या
सबूत नहीं मिले
ग़लती तो उस लड़की की है
जिसने अपना बलात्कार होते समय
वीडियो नहीं बनाया
जैसे तुमने उस दिन बनाया था
जब उस पर किसी हत्यारे ने
भरे बाज़ार सोलह बार
चाकुओं से गोद दिया था
वह लड़की भी नाबालिग थी
लेकिन, चूंकि यह हत्या का मामला था
और हत्यारा कोई सरकार नहीं थी
इसलिए उसके ग़रीब बाप पर
अपनी बेटी के खिलाफ
गवाही देने का दवाब भी नहीं था
बहुत मुश्किल होता है
अपनी बेटी की आंखों में आंखें डालकर
सबूत मिटाना
नहीं समझोगे तुम
अपने वजूद को कितना मिटाना पड़ता है
किसी भी अपराध का
सबूत मिटाने के लिए
तब जा कर कहीं
अख़बारों की सुर्ख़ियों में आता है कि
सबूत नहीं मिले…
- सुब्रतो चटर्जी
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