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बिल गेट्स के इशारे पर देश में नाइट कर्फ्यू ?

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बिल गेट्स के इशारे पर देश में नाइट कर्फ्यू ?

girish malviyaगिरीश मालवीय

कोरोना के खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं बिल गेट्स. ध्यान दीजिए कि जैसे ही ओमिक्रोन को लेकर बिल गेट्स का बयान आया, उसके अगले दिन से ही देश में नाइट कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लागू होना शुरू हो गया. भारत सरकार द्वारा कल जिन दो नई कोविड वैक्सीन (कोर्बेवैक्स और कोवोवैक्स) को आपातकालीन मंजूरी के तहत इस्तेमाल करने की मंजूरी मिल गई है, इन दोनों वैक्सीन की फंडिंग बिलगेट्स ने ही की है.

कल सुबह स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने ट्वीट किया कि ‘CORBEVAX वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दे रहे हैं. यह भारत की पहला स्वदेशी ‘RBD प्रोटीन सब-यूनिट’ वैक्सीन है. यह भारत में विकसित तीसरा टीका है ! इसे हैदराबाद स्थित बायोलॉजिकल-ई ने बनाया है.’

खबरों में बताया जा रहा है कि बायोलॉजिकल-ई ने यह टीका अमेरिका के टेक्सास स्थित बेलॉर कॉलेज ऑफ मेडिसीन के साथ साझेदारी कर विकसित किया है लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि इसके पीछे सबसे बड़ी फंडिंग बिल गेट्स की संस्था BMGF (बिल एंड मिलेन्दा गेट्स फाउंडेशन) की है.

भारत में दी जा रही हर वैक्सीन के पीछे बिल गेट्स की फंडिंग है. जी हां ! कोवेक्सीन के निर्माता भारत बायोटेक को नवंबर 2019 में ही BMGF से $19 मिलियन प्राप्त हो चुके थे. अदार पूनावाला का सीरम इंस्टीट्यूट यानी SII नवंबर 2012 से BMGF से फंड प्राप्त कर रहा है, इसे अक्टूबर 2020 में $4 मिलियन की अतिरिक्त अनुदान राशि प्राप्त हुई. सीरम द्वारा बनाई गई कोवोवैक्स को कल इमरजेंसी अप्रूवल मिला है.

अब आते हैं बायोलॉजिकल-ई पर. बायोलॉजिकल-ई लिमिटेड 2013 से बिल गेट्स फाउंडेशन से अनुदान प्राप्त कर रहा है. इसने अप्रैल 2021 में बीएमजीएफ से 37 मिलियन डॉलर का फंड प्राप्त किया है. सीरम और भारत बायोटेक के बारे में सब जानते हैं, अब जरा बायोलॉजिकल-ई को जान लीजिए.

तेलंगाना में स्थित इसकी फैक्टरी का दौरा बिल गेट्स 2013 में ही कर चुके हैं. जब बायोलॉजिकल-ई ने कोरोना वैक्सीन बनाने की शुरूआत ही की थी, तभी भारत की मोदी सरकार ने 30 करोड़ कोरोना वैक्सीन डोज़ के लिए ऑर्डर भी कर दिया था, वह भी तब जब इसके सिर्फ ट्रायल ही चल रहे थे. न इसके एफिकेसी डेटा का पता था, न अन्य किसी डेटा का.

और तो और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बायोलॉजिकल-ई को कोरोना वैक्सीन के 1500 करोड़ रुपए का अग्रिम भुगतान भी कर दिया. भारत में बिल गेट्स की प्रतिनिधि वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग बायोलॉजिकल-ई की लॉबिंग कर रही थी, उन्हीं की अनुशंसा पर उसे यह रकम दी गयी.

बायोलॉजिकल-ई की वैक्सीन के ट्रायल के डेटा किसी भी प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुए हैं. यह एक नई तकनीक की वैक्सीन है, जिसका पहली बार इस्तेमाल किया जाएगा. ऐसे में एक बार फिर भारत की जनता गिनी पिग बनने जा रही है.

बच्चों को वैक्सीन देने वाले फैसले गैर-वैज्ञानिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि हमारा कोरोना टीकाकरण प्रोग्राम पूरी तरह से साइंटिफिक रहा है लेकिन कल उनके इस दावे पर AIIMS के सीनियर डॉक्टर संजय के. राय ने बहुत बड़ा सवाल उठा दिया. उन्होंने मोदी के बच्चों को वैक्सीन देने वाले फैसले को अनसाइंटिफिक यानी गैर-वैज्ञानिक बताया.

सबसे बड़ी बात जो हमारा मीडिया ठीक से बता नहीं रहा है, वो यह है कि दिल्ली के एम्स में जिन बच्चों की कोरोना वैक्सीन का ट्रायल किया गया, उस क्लीनिकल ट्रायल की जिम्मेदारी डॉ. संजय राय की ही थी. बच्चों के लिए कोवेक्सीन के परीक्षण पटना के एम्स, भुवनेश्वर और दिल्ली में किया गया, जिसमें कुल 525 बच्चों पर यह ट्रायल किये गए.

डॉ संजय राय बच्चों पर ‘कोवैक्सीन’ टीके के ट्रायल के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर रहे हैं और आज वही शख्स बच्चों के लिए वैक्सीन की अनुमति देने के निर्णय को अवैज्ञानिक निर्णय बता रहा है, तो एक बार जानने की जरूरत है कि वह कहना क्या चाहते हैं ?

संजय के. राय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को टैग करते हुए ट्वीट किया, ‘मैं राष्ट्र की निःस्वार्थ सेवा और सही समय पर सही निर्णय लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का बड़ा प्रशंसक हूं. लेकिन मैं बच्चों के टीकाकरण के उनके अवैज्ञानिक निर्णय से पूरी तरह निराश हूं.’ डॉ. संजय राय का कहना है कि अभी तक ऐसी कोई स्टडी सामने नहीं आई जो ये साबित कर सके कि वैक्सीन बच्चों के लिए काफी प्रभावी होगी.

दरअसल डॉ. संजय राय कह रहे हैं कि बच्चों को वैक्सीन देने में खतरा ज्यादा है और फायदा कम है. बच्चों के मामले में इंफेक्शन की गंभीरता बहुत कम है और जो डेटा हमारे पास है, उसके मुताबिक 10 लाख आबादी में सिर्फ 2 मौतें दर्ज की गई हैं जबकि वयस्कों के मामले में अतिसंवेदनशील आबादी में कोविड​​​​-19 के कारण मृत्यु दर लगभग 1.5 प्रतिशत है, जिसका अर्थ है कि प्रति दस लाख जनसंख्या पर 15,000 मौतें.

इसके अलावा वैक्सीन देने में खतरा ज्यादा है. टीकाकरण के बाद एडवर्ड इफेक्ट प्रति दस लाख आबादी पर 10 से 15 नोट किये गए हैं. एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन से खून के थक्के जमने का खतरा 50,000 में एक को रहता है. क्या इसका एक अर्थ यह नही है कि बच्चों को वैक्सीन देना खतरनाक हो सकता है ?

अमरीका से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 5 से 14 साल के बच्चों में कोविड का खतरा अन्य बीमारियों जैसे फ्लू, निमोनिया, डूबना, दिल की बीमारी, हत्या, आत्महत्या, सड़क दुर्घटना और कैंसर से भी कम है. इनमें से अंतिम तीन में जान जाने का खतरा कोविड के मुकाबले 10 गुना ज्यादा है.

डॉ. संजय राय कह रहे हैं कि ‘भारत में हुए सिरॉलॉजिकल सर्वे के अनुसार 70 प्रतिशत बच्चे बाहरी सम्पर्क में पहले ही आ चुके हैं. यानी ज्यादातर बच्चों को वायरस संक्रमण हुआ, लेकिन अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण वे सुरक्षित रहे. जब 70 प्रतिशत बच्चों को कोरोना हो ही चुका है और वे हमें पता चले बिना ही ठीक भी हो गए, तो क्या बाकी के 30 प्रतिशत को वैक्सीन देना जरूरी है ? हमें अपने बच्चों को टीका लगाने से पहले उन देशों के आंकड़ों का विश्लेषण करना चाहिए, जहां पहले ही टीकाकरण किया जा चुका है.’

डॉ संजय राय ने बच्चों के वेक्सीनेशन प्रोग्राम पर बहुत बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं, इनका जवाब ढूंढना जरूरी है.

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