मनीष आजाद
जैसे-जैसे फासीवाद हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को अपने आगोश में लेता जा रहा है, बुद्धिजीवियों के बीच जर्मन ‘दार्शनिक’ नीत्शे का प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है. फेसबुक पर और तमाम पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेखों में नीत्शे को सकारात्मक तरीके से उद्धृत किया जा रहा है.
नीत्शे के प्रसिद्ध उद्धरण ‘ईश्वर मर चुका है’ को लोग एक क्रांतिकारी विचार के तौर पर अक्सर उद्धृत करते रहते हैं. जबकि नीत्शे अपने इस कथन के बहाने यूरोप के प्रबोधनकाल (Age of Enlightenment/Age of Reason) की सभी उपलब्धियों को नकार रहा था और ईश्वर की ‘अनुपस्थिति’ के बहाने इसके विकल्प के रूप में पतनशील बर्जुआ वर्ग से महामानव की अवधारणा को स्थापित कर रहा था. हिटलर इसी प्रतिक्रियावादी विचार का मूर्त रूप था.
समाजवाद, बराबरी, उदारता के विचारों का पुरजोर विरोधी नीत्शे के महिला संबंधी विचार तो बेहद आपत्तिजनक और प्रतिक्रियावादी थे. एक जगह उसने यहां तक लिखा है कि जब भी आप किसी महिला से मिलने जाएं तो अपना चाबुक साथ ले जाए ! नीचे नीत्शे के महिला विरोधी विचारों पर एक शानदार वीडियो है, उसे देखा जा सकता है.
मशहूर मार्क्सवादी विचारक ‘जार्ज लूकाच’ ने नीत्शे के बारे में यह शानदार सूत्रीकरण किया है- ‘Nietzsche as Founder of Irrationalism in the Imperialist Period. (साम्राज्यवादी काल में अतार्किकता के संस्थापक के रूप में नीत्शे.)
तो जो साथी जानबूझकर नीत्शे की शरण में जा रहे हैं, उनसे मुझे कुछ भी नहीं कहना है लेकिन जो साथी नासमझी में ऐसा कर रहे हैं, उनसे मेरा निवेदन है कि एक बार धैर्य से नीत्शे को पढ़ ले और फिर अपनी राय बनाएं. बिना संदर्भ के ‘अच्छी बात’ का कोई मतलब नहीं होता. संदर्भों से काटकर तो आप हिटलर के Mein Kampf में भी ‘अच्छी बात’ ढूंढ सकते हैं.
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