Home गेस्ट ब्लॉग न्यूटन का नियम और दुनिया की मशहूर बैंक डकैतियां

न्यूटन का नियम और दुनिया की मशहूर बैंक डकैतियां

4 second read
0
0
45
न्यूटन का नियम और दुनिया की मशहूर बैंक डकैतियां
न्यूटन का नियम और दुनिया की मशहूर बैंक डकैतियां

जी हां, लगातार चुनावी बकझक और राजा बाबू के सुरंग एडवेंचर की खबरों से तंग आ गए हों तो इधर आइये, और तनिक सामान्य ज्ञान बढाइये. हम बताएंगे, आपको दुनिया की कुछ मशहूर बैंक डकैतियों के बारे में. दसवें और नवें नम्बर की चिन्दी चोरी के बारे में बात नहीं होगी. हमारा काउंट सीधे आठवें नम्बर पर आता है. 18.9 मिलियन डॉलर की रॉबरी, जो यूएस में डनबर में हुई थी. 1997 में यहां छह हथियारबंद डकैतों ने जो लूट की.

सातवें नम्बर पर 1972 की यूनाइटेड कैलिफोर्निया बैंक की डकैती है जिसमें 30 मिलियन लूटे गए थे. छै लुटेरों ने बैंक की चेस्ट को डाइनामाइट से उड़ाया और ट्रक में रुपया लादकर फरार हो गए.

ब्रिटिश बैंक ऑफ मिडिल ईस्ट की लेबनान शाखा में 1976 में पड़ी 50 मिलियन की डकैती, हमारे छठवें पायदान पर है. जबकि 2005 में ब्राजील फोर्टालेजा के बैंकों सेंट्रल में 71.1 मिलियन की डकैती पांचवें पायदान पर आती है. लुटेरों ने बैंक के नीचे सुरंग खोदकर ये पैसे चुराए.

लूट का अगला रिकार्ड बना ब्रिटेन के केंट में, जब बैंक मैनेजर को सपरिवार किडनैप कर उसे काबू में कर लिया गया, उसे तिजोरी तक ले जाकर 83 मिलियन लूट लिए.

चौथे पायदान पर 1987 में इटली के नाइट्सब्रिज में पड़ी डकैती है. एक बन्दा बैंक में वाल्ट लेने के लिए पहुचा और जब उसे लॉकर रूम में ले जाया गया, उसने छुपे हथियार निकाल दूसरों के वाल्ट खुलवा लिए और जो माल लूटा उसका मूल्य पूरे 97 मिलियन डॉलर था.

तीसरे पायदान की डकैती सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे. बगदाद में दार’उर’सलाम बैंक में डकैती हुई. 2007 में इस बैंक से कुल 282 मिलियन लूट लिये गए. बगदाद का रिकार्ड कोई तोड़ नहीं सकता था, सिवाय बगदाद के. औऱ लूटने वाला कोई औऱ नहीं खुद राष्ट्रपति सद्दाम थे.

यह वक्त उनकी सत्ता के जाने का था, और सेंट्रल बैंक के सामने ट्रक आकर रुके. उसमें आये गार्ड्स के पास कैश ट्रान्सफर के वैलिड पेपर थे, ताकि उस पैसे को दुश्मन के हाथों से बचाया जा सके. जो पैसा ट्रकों में लादकर ले जाया गया, उसकी कीमत 920 मिलियन थी.

कहते हैं कि काफी हिस्सा रिकवर हो गया, जो अमेरिकी अफसर खा गए. दुनिया इसे सबसे बड़ी बैंक डकैती मानती है लेकिन इंपॉसिबल सेज, आई एम पॉसिबल.

जहां चाह होती है, वहां राह भी होती है. और ये हुआ श्रीलंका की राजधानी कोलंबो…से कोई तीन हजार किलोमीटर उत्तर पश्चिम में बसे एक शहर में जहां के रिजर्व बैंक को लूट लिया गया. लूट का हिसाब मैं लगा नहीं पा रहा. 100 मिलियन का मतलब 750 करोड़ होता है.

तो ‘दो लाख दस हजार आठ सौ चौहत्तर करोड़’ के कितने मिलियन होगें ?? जित्ते भी होते है, ये वाला रेकॉर्ड बनाने के लिए कम से कम 100 सद्दाम हुसैन की जरूरत पड़ती. पर ये काम एक अकेले चौकीदार ने, अपने खास आदमी को बैंक का गवर्नर बनाकर कर लिया. एकदम प्यार से !!! खबर की कटिंग लगा दी है.

मजे की बात, कि यह बैंक बिना शोरगुल के पिछले 10 साल में 4 बार लूटा जा चुका है. कुल मिलाकर 12 लाख करोड़ रुपये इस बैंक से उठा लिए गए हैं. बैंक को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया कहते हैं.

इस बैंक का काम करेंसी छापना और उसे रेगुलेट करना है. इससे बना सरप्लस 70 साल तक बैंक के पास ही रहता था. उस रिजर्व की धनराशि से वह भारतीय मुद्रा की कीमत में स्थिरता लाने, और मुद्रास्फीति महंगाई आदि के नियंत्रण के जतन करता था.

पहली बार 2016 में चतुर वकील अरुण जेटली ने इस बैंक से कहा-हैंड्स अप. जरा भी हिलने की कोशिश की, तो RBI क्लॉज 7 इवोक कर दूंगा. अब चुपचाप सारा सरप्लस सरकार को दे दो. तब के गवर्नर ने हील हुज्जत की, तो उन्हें निकाल बाहर किया गया. काफी बवेला हुआ, लेकिन नये गवर्नर ने आखिरकर चार लाख करोड़ दे दिए. तब से यह चौथी बार है, और अबकी बार फिर से, 2,10,874 करोड़ रुपये मिल गए हैं.

इस पैसे को बजट में प्राप्त औऱ व्यय करने की स्वीकृति बजट में तो कहीं नही दिखी थी. पर अब ये सब सवाल मायने नहीं रखते. जनता तो कुम्भ में नहा रही है और चुपचाप ऐसी सरकार चुनने का पाप काट रही है. बहरहाल, आप कुम्भ में नहाए हो, या न नहाए हों, ज्ञान की इस गंगा में डुबकी लगाकर, विश्व की सबसे बड़ी बैंक डकैतियो के बारे में आपकी जानकारी काफी बढ़ चुकी है.

न्यूटन का सातवां नियम

सवाल है कि RBI कैसे कमाता है ? इसके 2 प्रमुख सोर्स हैं –

  1. वह सरकारी लाइसेंस से सादे कागज पर नोट छापता है. लाइसेंस के कारण वो छापे तो वैध, आप छापें तो अपराध होता है. तो समझिए कि 1000 के नोट की छपाई पर 5 रुपये खर्च होते हैं. अब इस 5 रुपये की चीज को 4% ब्याज पर वह बैंकों को लोन देता है (इस ब्याज को रेपो रेट कहते है). याने 1000 रुपये का 4% याने 40 रुपया साल का. ये हुई कमाई.
  2. डॉलर, अन्य करेंसी, और गोल्ड रिजर्व में रखा सोना का वैल्यूएशन बढ़ने से जो धन बढ़ा. वह भी सरप्लस है.

हालांकि बैंक का काम है कि यह वैल्यूएशन घटे बढ़े नहीं लेकिन न्यूटन के सातवें नियम के अनुसार, सरकारी संस्थानों को अपना काम करने में असफल रहने पर काफी फायदा होता है. गजब है न कि असफल होने से फायदा मिलता है. पर सरकार का सिस्टम ही, आपके आम जीवन से उल्टा है.

जैसे आप पर महंगाई बढ़ती है, जेब कटती है, तो सरकार का फायदा है. आपका टैक्स बढ़े, जेब कटे, तो सरकार का फायदा है. आपकी सैलरी बढ़े तो उसकी देनदारी चढेगी, आपको लतिया कर निकाला तो उसका खर्च घटा. लेकिन सरकार अपने खर्च घटाए, और आपसे कम टैक्स ले, तो उसका नुकसान, आपका फायदा है.

राजनीतिक दृष्टि से नागरिक को इसलिए हमेशा विपक्ष के साथ होना चाहिए, पर हम तो धार्मिक दृष्टि से सरकार के साथ है. च्युतिये हैं न..! साधारण नहीं, सुपरलेटिव कैटगरी के च्युतिया श्रेष्ठ है. जो धर्मभक्त और देशभक्त होने के नाम पे अनावश्यक पैसा देते है, त्याग करते है, पेट काटते हैं, और कमेंट बॉक्स में गाली देते हैं और सरकार उस पैसे से ठेकेदार को तिगुना दाम देती है, उससे रेल, पोर्ट, हवाई अड्डे बनाती है. खुद कमीशन कमाने के बाद…! आगे और लूटने के लिए अडानी को दे देती है.

इसलिए न्यूटन के सातवें नियम के अनुसार जब किसी देश में च्युतियों की संख्या 38% से ज्यादा हो जाए तो वहां सरकार को अपने काम मे असफल रहने से बहुत फायदा होता है.

न्यूटन का पांचवां नियम

जापान और चीन के प्रधानमंत्री की गरिमा करेंसी गिरने के साथ बढ़ती है, इसलिए कि वे एक्सपोर्ट ड्रिवन नेशन है. उनका माल वैश्विक मार्किट में सस्ता हो जाएगा. उनकी बल्ले बल्ले हो जाती है. यह न्यूटन का पांचवा नियम है.

हमारी गल्ले गल्ले हो जाती है, क्योंकि हम इम्पोर्ट ड्रिवन नेशन हैं. हमारे देश की करेंसी गिरने से आयात महंगे हो जाएंगे. हर चीज की कीमत बढ़ेगी. इसलिए भारत के प्रधानमंत्री की गरिमा रुपये के साथ गिरती है. यह न्यूटन का छठवा नियम है. पुराना नियम है, अब इसमें संशोधन आ चुका है क्योंकि हम मजदूर निर्यात करते हैं. यूपी से बाबाजी मिस्त्री बढई और लेबर, अरब नेशन में भेजें या बाकी के इंडिया वाले आईआईटी, आईआईएम से पढ़े हुए मजदूरों को सिलिकन वैली में.

अब जब ये लोग वहां से पेट काटकर, घरवालों को पैसे भेजते है, तो रुपया गिरने के कारण यहां उनके परिवार की बल्ले बल्ले हो जाती है. उनके कन्वर्शन के पैसे बढ़ जाते हैं. इसलिए जहां जहां मोदी जी विदेशों में जाते है, एनआरआई कूद कूद कर उनका सर्कस देखने आते हैं. छूकर रो देते है, विव्हल हो जाते हैं, पागल हो जाते हैं. आखिर यही एकमात्र शख्स है जो एक दिन, उन्हें एक डॉलर के बदले 200 रुपये दिलाने का माद्दा रखता है. भला क्यों न सपोर्ट करें !

और यहां हम लोग विदेशों के वीडियो देखकर भारी प्रसन्न होते है. विश्वगुरु की ठाठें मारती लोकप्रियता की खुशी में अपना दुख भूलकर फिर से मोदी जी को वोट करते हैं. तो च्युतियो के देश में पीएम की गरिमा गिरे, या उठे, वोट हमेशा बढ़ते है. यह न्यूटन का साढ़े पांचवां नियम है.

  • मनीष सिंह 

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate

 

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

‘सीबीआई, जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करें’ – 13 वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने सीजेआई को लिखा पत्र

आज एक भरोसेमंद पत्रकार अपने ब्लॉग में बता रहे थे कि सरकार के अंदरूनी वरिष्ठ अधिकारियों ने …