विश्वविद्यालय शिक्षण संस्थान का उच्चतम रुप होता है, जहां अंतिम तौर पर देश के भविष्य के नीति-नियंताओं को गढ़ा जाता है. यहां से निकलने वाले युवा ही भविष्य का निर्धारण करते हैं. विगत के एक दशक से विश्वविद्यालयों से जिस तरह के नीति-नियंताओं का निर्माण कर देश में डाला जा रहा है, उसकी एक झलक साफ-साफ अब दीख रही है. भविष्य के ये नीति-नियंताओं में जिस तरह के तत्वों का उत्पादन हुआ है, उसमें बलात्कारियों का महिमामंडन तो ही है, साथ ही अब क्रांतिकारियों को कलंकित करने का अभियान भी चलाया जा रहा है.
उत्तर प्रदेश, जहां भाजपा-आरएसएस का प्रत्यक्ष शासन है, वहां बलात्कारियों का महिमामंडन शुरु हो चुका है. बीएचयू प्रशासन ने बीएचयू की छात्रा के साथ गैंगरेप के खिलाफ आंदोलन करने के कारण बीएचयू के तेरह छात्रों को निलंबित कर दिया है. बीएचयू प्रशासन का आरोप है कि निलंबित छात्र आदतन अपराधी है, अशिष्ट है और उन लोगों ने विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है. यह तेरह लोग वास्तव में बीजेपी-आरएसएस और विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानियों के खिलाफ मुखर रूप से बोलते रहे हैं. 2 निलंबित छात्र तो धरनास्थल पर मौजूद भी नहीं थे.
इस घटना से साफ है कि बीएचयू प्रशासन बलात्कारियों के साथ खड़ा है. और बलात्कारियों का विरोध करना ‘आदतन अपराधी’ होना है. यानी, बलात्कार एक महान कार्य है, ऐसा बीएचयू प्रशासन मानता है. और बलात्कार का विरोध करने से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा ‘धूमिल’ होती है. और बलात्कार करने से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा में चार-चांद लगता है. ज्ञात हो कि गैंगरेप यानी सामूहिक बलात्कार के तीनों अपराधी बीजेपी आईटी सेल के पदाधिकारी है.
आईआईटी बीएचयू में 1 नवंबर 2023 को गैंगरेप जैसा अपराध करने के बाद तीनों आराम से मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार करते रहे. सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से पहचान होते हुए भी इनकी गिरफ्तारी 2 महीने बाद हुई. एक तरफ 8 महीने के अंदर ही अगस्त 2024 में 2 अपराधियों को जमानत भी मिल गई है. वहीं, दूसरी तरफ इसी गैंगरेप का विरोध करने पर बीएचयू प्रशासन और जिला प्रशासन ने ABVP के माध्यम से आंदोलनकारियों पर हमला करवाया.
हमला करवाने के बाद पुलिस ने उल्टा आंदोलनकारियों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कर दिया. जबकि जिन पर हमला हुआ, उनका पुलिस ने अब तक एफआईआर दर्ज नहीं किया है. यानी, बीएचयू कैंपस से विरोध की आवाज़ को खत्म और बलात्कारियों का खुले रूप से समर्थन किया जा रहा है. यानी, विश्वविद्यालय अब बलात्कार का महिमामंडन करने का काम कर रहा है.
वहीं, दूसरी ओर मध्यप्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी जिसे पहले भोपाल यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता था, 24 सितंबर को विश्वविद्यालय के छात्रों ने कुलपति से लिखित रूप में आग्रह किया कि विश्वविद्यालय के असेम्बली हाल में 28 सितंबर को भगत सिंह जन्म दिवस मनाने के लिए दे दिया जाए, जिस पर कुलपति ने कहा कि ‘ऊपर से आदेश है हम यूनिवर्सिटी में भगत सिंह जन्म दिवस मनाने की आज्ञा नहीं दे सकते.’
कुलपति यहीं पर नहीं रुके उन्होंने कहा कि ‘आखिर भगत सिंह ने किया ही क्या था.’ इस मामले ने मध्यप्रदेश की राजनीति में थोड़ी बहुत गर्माहट तो पैदा की लेकिन जब सारे ‘सनातनी संस्कारी लोगों का एक ही सरदार हो तो फिर ऊपर से आदेश देने वाले का आगे ही दंडवत होना है. इस घटना ने यह भी साबित किया कि देश के विश्वविद्यालयों में किस स्तर के बिना रीढ़ के कुलपतियों की खेप थोप दी गई है.
दूसरी घटना उत्तराखंड से है जहां कुमाऊं के सबसे बड़े सरकारी महाविद्यालय में 28 सितंबर को भगतसिंह जन्म दिवस पर कार्यक्रम आयोजित कर रहे परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) के कार्यकर्ताओं पर ABVP के गुंडों ने हमला कर दिया. कार्यक्रम में रिपोर्टिंग के लिए आये पत्रकारों के साथ भी बदसलूकी करते हुए ABVP के ‘संस्कारी’ युवाओं ने जमकर बवाल काटा. तमाम लोकतांत्रिक व प्रगतिशील जनसंगठनो ने राज्य सरकार से ऐसे ऐसे तत्वों को गिरफ्तार कर जेल भेजने की मांग की है.
बहरहाल, अभी तक स्टालिन लेनिन मार्क्स को सनातनी शांति के लिए खतरा मानने वाले लोग अब भगत सिंह तक आ पहुंचे हैं, हालांकि ये तो देर सबेर होना ही था लेकिन जब विश्वगुरु देश अपने सियासी अमृतकाल के मजे लूट रहा है तब अपने ही देश के एक अंतर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी शहीद के नाम पर इतनी घिनौनी हरकतें होंगी इसका अनुमान नहीं था. ये तभी संभव है जब इस तरह के उपद्रव करने वाले तत्वों को इस बात से आश्वस्त कर दिया जाये कि ‘अब यही सत्ता अंतिम सनातनी शांति सत्ता है. इसे किसी भी ओर-छोर से कोई नहीं उखाड़ सकता. तुम जाओ और सनातनी शांति के बीच जो भी आये उसे साफ कर दो.’
देश के हताश नौजवानों में बेरोज़गारी का दंश इतना गहरा कर दिया गया है कि उसे दारू की एक पुड़िया के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार बना दिया गया है. इतिहास गवाह है ऐसे संकटकालीन राजनीतिक आहट का मतलब है देश के चाक चौराहों पर लगे आजादी के मतवालों व क्रांतिकारियों के स्टेच्यू, मूर्ति व प्रतीकों को ध्वस्त करने के मंसूबों पर आगे बढ़ना. देश भयावह राजनीतिक बवंडर के मुहाने पर जा रहा है.
दिल्ली की गार्गी कॉलेज से लेकर अब तक जिस तरह हिन्दुत्ववादी ताकतों ने बलात्कार के पक्ष में तथा बलात्कारियों की हिफाजत और उसके महिमामंडन में स्तुतिगान गाये हैं, खुलकर उसके पक्ष में सड़कों से लेकर न्यायालय तक लड़ाई लड़ा है, यहां तक की बलात्कारियों का मंदिर भी बनाया है, यह बताता है कि भारत में बलात्कार एक पुनीत कार्य है और बलात्कारी देवताओं की तरह पूजनीय है. सावरकर ऐसा ही भारत चाहता था. यानी, मनुस्मृति को धरातल पर उतारा जा रहा है.
दूसरी ओर, भाजपा-आरएसएस अपने घृणित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए देश के सबसे लोकप्रिय नेता भगत सिंह का एक ओर विरोध करने के लिए बयानबाजी करवा रही है तो दूसरी तरफ भगत सिंह के नाम पर कोई भी वाक्य खुद ही लिखकर सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित करवा रहा है. मसलन, अभी सोशल मीडिया पर भगत सिंह का एक उद्धरण बता कर धड़ल्ले से एक पोस्ट प्रसारित किया जा रहा है कि – ‘जो युवा ईश्वरवादी होते हैं, वह मेरी नजर में नामर्द हैं.’
हकीकत में भगत सिंह का यह वाक्यांश नहीं है. भगत सिंह ने अपने छोटे से जीवनकाल में काफी कुछ लिखा है, लेकिन इतना भी नहीं कि उसे खोजा न जा सके. वैसे दुनिया की आधी आबादी ‘नामर्द’ है, यानी वह मर्द नहीं है, स्त्री है. और बहुतायत स्त्री ईश्वर में सबसे ज्यादा यकीन करती है. जाहिर है, मर्द या नामर्द का ईश्वर में यकीन करने न करने से कोई संबंध नहीं है. जनता के लोकप्रिय नायकों के नाम पर कुछ भी लिख डालने का यह संघी ट्रेंड उन नायकों के नाम पर जनता को दिग्भ्रमित कर संघी एजेंडा लागू करना है. मनुस्मृति यानी ब्राह्मण धर्म को पुनर्जीवित करना है. देशवासियों को हर संभव तरीकों से इस अनर्थकारी ताकतों के खिलाफ एकजुट हो जाना चाहिए.
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