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INS विक्रांत के पुर्जे-पुर्जे में नेहरू और झूठा मोदी की मक्कारी

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INS विक्रांत के पुर्जे-पुर्जे में नेहरू और झूठा मोदी की मक्कारी
INS विक्रांत के पुर्जे-पुर्जे में नेहरू और झूठा मोदी की मक्कारी

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने वर्षों पहले कहा था कि मोदी मनोरोगी है. बीते 8 साल में मोदी ने यह साबित कर दिया है कि वह एक मनोरोगी है. गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पर बैठाये गये ट्रोल जितना ही अधिक मोदीगान गा रहा है मोदी का यह रोग उतना ही अधिक उभर कर सामने आ रहा है. अभी नया माजरा आईएनएस विक्रांत को लेकर सामने आया है जब गोदी मीडिया और सोशल मीडिया के संघी गुंडे इसे मोदी की उपलब्धि के बतौर गान गा रहा है. ऐसे में प्रेम पाण्डेय सच्चाई बताते हुए कहते हैं कि यह मोदी की नहीं नेहरू की उपलब्धि है. आगे वे लिखते हैं –

टीवी मीडिया आपको नहीं बताएगा. मोदी समर्थकों के लिए तो ऐसा पहली बार हुआ है. जार्गन उड़ेलने वाले मोदी समर्थकों के लिए यह उपनिवेशवाद से मुक्ति का मुद्दा है इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि INS विक्रांत बनाने में सार्वजनिक क्षेत्र की जिन कंपनियों ने योगदान दिया, वो सबकी सब कांग्रेस के शासनकाल में स्थापित की गई थीं. पंडित नेहरू का नाम फिर से लेना ही पड़ेगा. मॉडर्न इंडिया का महापंडित अगर इतना दूरदर्शी नहीं होता तो मोदी जी को फोटू खिंचाने का मौका नहीं मिलता.

INS विक्रांत का –

  • डिज़ाइन तैयार किया था Directorate of Naval Design ने जिसकी बुनियाद नेहरू के कार्यकाल 1954 में रखी गई थी. बाद में 1964 में इसका विस्तार किया गया.
  • नाम बदलकर क्रेडिट लूटने में माहिर मोदी सरकार ने पिछले महीने अगस्त में ही इसका नाम बदलकर Warship Design Bureau कर दिया. सोचिए उपनिवेशवादी मानसिकता से मुक्ति में मोदी ने कितना बड़ा योगदान दिया !
  • डिज़ाइनिंग से लेकर कमिशनिंग तक में DRDO शामिल था. DRDO की स्थापना 1958 में की गई थी. बताने की ज़रूरत नहीं कि तब नेहरू ही प्रधानमंत्री थे. आज DRDO सार्वजनिक क्षेत्र का गौरव है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को मोदी सरकार गुड़-तेल के भाव बेच रही है – यह भी बताने की ज़रूरत नहीं.
  • INS विक्रांत बनाने में जो उच्च गुणवत्ता का स्टील लगा वो SAIL ने दिया. SAIL की स्थापना 1954 में नेहरू ने की.
  • INS विक्रांत के लिए इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट सिस्टम तैयार किया BHEL ने जिसका रजिस्ट्रेशन नेहरू के कार्यकाल में हुआ. लाल बहादुर के वक्त कंपनी तैयार होकर खड़ी हो गई.
  • निजी क्षेत्र की कंपनियां मसलन लार्सन एंड टर्बो, किर्लोस्टकर आदि का जिक्र इसलिए नहीं कर रहा हू्ं क्यूंकि इनके बारे में टीवी मीडिया ने बता ही दिया होगा कि मोदी की देशभक्ति से प्रेरणा लेकर किस तरह प्राइवेट कंपनियों ने INS विक्रांत के जरिए आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया जैसे (सुपर फ्लॉप) अभियानों में अपना योगदान दिया.
  • INS विक्रांत को मोदी सरकार आत्मनिर्भर भारत की उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर रही है लेकिन यह नेहरू ने आधुनिक भारत के लिए जो सपना देखा था उसका प्रतिफलन है.

मोदी समर्थकों के साथ-साथ कोई भी बता सकता है कि पिछले आठ साल में सिवाय फोटू खिंचवाने, जनता को आपस में लड़वाने और धनबल, एजेंसियों के दुरुपयोग के जरिए चुनी हुई सरकारें गिराने के अलावा मोदी सरकार ने ऐसा क्या किया है जिसका लाभ भारत की आने वाली पीढ़ियों को मिलेगा ?

दरअसल मोदी का पूरा जीवन ही झूठ, विश्वासघात और हत्याओं से भरा पड़ा है. पत्रकार कृष्णकांत लिखते हैं कि अब इस रहस्य से पर्दा उठना चाहिए कि मोदी जी ने क्या-क्या किया है ? यह पहली बार है जब देश के प्रधानमंत्री के जीवन का कोई ठिकाना नहीं है. वे हर बार नया दावा कर देते हैं और इस महान देश के 140 करोड़ महान लोग बुग्गा की तरह देखते रहते हैं. गोदी मीडिया को कभी यह जानने की इच्छा नहीं होती कि उनके गप्प की पड़ताल की जाए और सच बताया जाए.

क्या ऐसा संभव है कि किसी व्यक्ति के जीवनकाल में कोई तारतम्यता न हो ? अहम घटनाओं के बारे में या कम से कम सर्टिफिकेट के वर्ष और संस्थान नामालूम हों ? झूठ की राष्ट्रीय फैक्ट्री का दावा है कि मोदी जी बचपन में मगरमच्छ से लड़ गए थे, लेकिन कब, कहां, कैसे लड़े, इसका कोई डिटेल नहीं है. पुराने जलाशयों, झरनों, नदियों में मगरमच्छ होते हैं. उन्हें ढेला मारने वाले लड़कों की तादाद इस देश में करोड़ में होगी, मोदी जी उन्हीं में से एक हो सकते हैं.

दावा ​है कि वे चाय बेचते थे. कहां बेचते थे, ये नहीं पता. उनकी चाय पीने वाला एक भी आदमी जिंदा नहीं पाया गया है, ऐसा कैसे संभव है ? उनको चाय बेचते देखने वाला एक भी व्यक्ति कभी सामने नहीं आया, क्या कोई जिंदा नहीं बचा ? जिस वडनगर स्टेशन पर उनके चाय बेचने की कहानी सुनाई जाती है, वहां स्टेशन ही 1973 में बना, जब उनकी उम्र 23 साल की रही होगी. उसके पहले वहां हाल्ट था जहां पर हफ्ते में दो तीन पैसेंजर ट्रेनें रुका करती थीं. ऐसे स्टेशन पर कोई चाय क्यों बेचेगा ? यह चाय बेचने वाली बात भी गप्प है. प्रवीण तोगड़िया ने सितंबर 2020 में बयान दिया कि उनकी नरेंद्र मोदी से 43 साल की दोस्ती है और नरेंद्र मोदी ने कभी चाय नहीं बेची है.

दावा है कि वे छोटी उम्र में विवेकानंद से प्रभावित होकर आरएसएस में आ गए थे. यह वर्ष कौन था ? pmindia.gov.in के मुताबिक मोदी 17 सितंबर 1950 को पैदा हुए. यह वेबसाइट लिखती है कि मोदी शुरुआती उम्र में ही आरएसएस से जुड़ गए ​थे. शुरुआती मतलब क्या ? दस साल ? पंद्रह साल ? किस साल ? कितनी उम्र में ? सरकार की यह वेबसाइट देश के प्रधानमंत्री के जीवनकाल के बारे में कोई डिटेल नहीं देती.

narendramodi.in के biography सेक्शन को क्लिक करते हैं ​तो एक पेज ​खुलता है जिसकी हेडिंग है, ‘जिस कश्मीर के लिए जेल गए थे नन्ना, मोदी ने पूरा किया वह सपना.’ कोई प्रकांड बताए कि यह कौन सी बायोग्राफी है ?

इस वेबसाइट के एक आर्टिकल में लिखा गया है, ‘When the war with Pakistan was at its peak he set out on the railway station and served tea to the Jawans who were going and coming from the border.’ कौन सा वॉर ? 1965 वाला या 1971 वाला ?

1971 का वॉर दो फ्रंट पर लड़ा गया. पूर्वी पाकिस्तान को भूल जाइए. पश्चिमी ​फ्रंट पर यह पंजाब सेक्टर और जम्मू कश्मीर सेक्टर में लड़ा गया. 1965 का युद्ध जम्मू कश्मीर और राजस्थान की सीमाओं पर लड़ा गया. वह कौन सा युद्ध था जिसमें सीमा पर लड़ रहे जवान वडनगर होकर आ रहे थे और जा रहे थे और मोदी जी उनको चाय-पानी पिला रहे थे ? लगता है भारतीय सेना को लेखक ने कावंरिया समझ लिया जो कहीं भी रास्ते में लंगर लगा दो, वे आ रहे हैं, जा रहे हैं, चाय-पानी पिला दो.

pmindia.gov.in पर एक लेख का लिंक है. क्लिक करने पर हम narendramodi.in पर पहुंचते हैं. यहां लिखा है कि उन्होंने 17 साल की उम्र में घर छोड़ दिया. देश भर का भ्रमण किया. 1972 में फुलटाइम आरएसएस के प्रचारक हो गए, फिर वे बांग्लादेश वॉर में लिबरेशन आर्मी की मदद करने कब गए थे ? अमित शाह द्वारा जारी उनकी डिग्रियों के मुताबिक, उन्होंने 1978 में बीए और 1983 में एंटायर एमए किया. 17 साल में घर छोड़ दिया, 35 साल तक भीख मांगी तो ये पढ़ाई कैसे संभव हुई ? इनमें से कोई तथ्य विश्वसनीय नहीं प्रतीत होता.

प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट और प्रधानमंत्री के नाम से चल रही वेबसाइट्स ऐसा फर्जीवाड़ा क्यों कर रही है ? इस पर कोई सवाल क्यों नहीं उठा रहा है ? भारत सरकार, भारत का प्रधानमंत्री कार्यालय भारत के प्रधानमंत्री के बारे में सही जानकारी क्यों नहीं देता कि वे कब पैदा हुए ? कब पढ़ाई की ? कब सार्वजनिक जीवन में आए ?

कहा जाता है कि उन्होंने बीए और एमए भी किया है. एमए किया एन्टायर पोलिटिकल साइंस में जो कोर्स कहीं पर वजूद में ही नहीं है. उनकी दो डिग्री टाइप का कोई कागज सार्वजनिक किया गया था, जिसकी भाषा और स्वरूप संदिग्ध है. बीए की डिग्रीनुमा कागज पर लिखा है – ‘1978 में उपाधि योग्य सिद्ध होने पर 1979 में उपाधि प्रदान की गई.’ अगर कोर्स 1978 में पूरा हुआ है तो डिग्री पर यह क्यों लिखा है कि 1979 में प्रदान की गई. यह भी लिख देना था कि यूनि​वर्सिटी में मोदी जी के चरण पहले और आखिरी दिन कब पड़े थे. ​यह किसी गधे ने फोटोशॉप किया होगा.

उन्होंने खुद दावा किया कि वे एनसीसी में कैडेट भी रहे. कब ? किस क्लास में ? किस कॉलेज में ? किस क्लास में ? कुछ नहीं पता.

उनका दावा है कि उन्होंने 35 साल भीख मांगी. उनकी उम्र 71 साल है. भिक्षाटन के 35 साल निकाल दीजिए तो बचे मात्र 36 साल. 20 साल से तो ये भाई साब मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हैं. 35 साल भिक्षाटन के, 20 साल पब्लिक लाइफ के, यानी 55 साल का हिसाब मिल गया. मात्र 16 साल बच रहे हैं. मोदी जी एनसीसी कैडेट कब हुए ? बीए कब किया ? एन्टायर पोलिटिक्स में एमए कब किया ? सीएम बनने के ​पहले कुछ साल संघ भाजपा संगठन में रहे होंगे, तो क्या सारी ‘बाललीलाएं’ 16 साल के पहले ही हो गई थीं ? इसका जवाब माननीय वेंकैया नायडू दे सकते हैं जिन्होंने पहली बार नरेंद्र मोदी को अवतार घोषित किया था !

यह पूरा देश और यहां के 140 करोड़ लोग झूठ के रैकेट में फंसे हैं. मैं किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता जो सार्वजनिक जीवन में हो और उसके बारे में, उसके जीवनकाल के बारे में ऐसी गप्प फैलाई जाए.

प्रधानमंत्री जी को महात्मा गांधी से प्रेरणा लेना चाहिए. जो हैं उसे स्वीकार करना चाहिए. आप पांचवीं पास हैं तो भी ठीक है, बल्कि यह तारीफ की बात है कि आप साधारण पृ​ष्ठभूमि से इतना आगे तक गए, लेकिन इतना झूठ क्यों बोलते हैं ? यह बेहद खतरनाक है. जो व्यक्ति खुद के प्रति ईमानदार नहीं रह सकता, वह किसी के प्रति ईमानदार नहीं रह सकता.

कृष्णकांत का यह विश्लेषण यहां समाप्त हो जाता है. इन दोनों विश्लेषणों से यह साफ हो जाता है कि भारत की सत्ता पर कब्जा जमाने वाले यह पदलोलुप नरेन्द्र मोदी न केवल झूठा और मक्कार ही है अपितु बेहद ही शातिर और हत्यारा भी है. इसने एक ओर जहां गुजरात दंगे में हजारों निर्दोष लोगों की बेरहमी से हत्या ही कराई है अपितु अपने राह में आने वाले तमाम सहयोगियों की भी हत्या कराई है.

अब जब इसके पापों को पिटारा भर चुका है तब यह अपने पापों को धोने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपने पिट्ठुओं को बैठा कर अपने तमाम पापों को सुप्रीम कोर्ट के मत्थे मढ़ने का काम कर रहा है. इसके साथ ही जिस नेहरु और गांधी को गालियां देते यह नहीं अघाता है, उसी नेहरु और गांधी की उपलब्धियों को अपना बताकर गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पर बिठाये अपने गुंडों के माध्यम से अपना पीठ थपथपा रहा है. यह भारत के 75 साल के इतिहास में पहला प्रधानमंत्री है जो अपने झूठ और मक्कारी के लिए पूरी दुनिया में कुख्यात हो चुका है फिर भी इसे लज्जा तक नहीं आती.

नेहरू के द्वारा स्थापित तमाम सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को जिस कदर मोदी मिट्टी के मोल बेच रहा है और जब नेहरु द्वारा स्थापित उसी सार्वजनिक उपक्रमों से निर्मित आईएनएस विक्रांत के निर्माण का श्रेय खुद ले रहा है तब इस निर्लज्ज मोदी को शर्म से आत्महत्या कर लेना चाहिए, मगर शर्म तो इसे आती नहीं आत्महत्या क्या करेगा. हां, लाखों लोग जरूर आत्महत्या कर चुके हैं और आगे भी कर रहे हैं.

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