राम चन्द्र शुक्ल
20 साल हो गये देश के तीन नये राज्यों को बने हुए. इन नये राज्यों का निर्माण उसी दल के लोगों द्वारा किया गया जिनकी वर्तमान समय में केंद्र में सरकार है. इन तीनों राज्यों में से मात्र उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए आन्दोलन होने की बात मेरे संज्ञान में है, बाकी दोनों राज्यों के निर्माण के लिए जनता द्वारा कोई मांग की गयी हो या आन्दोलन किया गया हो – ऐसा कुछ मुझे तो याद नही है.*
मेरी तो कल्पना यह थी कि उत्तर प्रदेश को काटकर बनाये गये उत्तराखंड, बिहार को काटकर बनाये गये झारखंड तथा मध्य प्रदेश से काटकर नया राज्य बने छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी ही धरती, अपने ही गांवों, अपने ही प्रखंडों तथा अपने ही जिलों व नगरों में रोजी रोजगार हासिल होगा, पर इन 20 सालों की अवधि में ऐसा कुछ होता हुआ नही दिखा है.
झारखंड तथा छत्तीसगढ़ आदिवासियों किसानों व मेहनतकशों की भूमि है, जहां झारखंड भूमिगत खनिज सम्पदा व वन सम्पदा से समृद्ध भूमि वाला है, वहीं छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता रहा है. ये दोनों नये राज्य किस तर्क व कारणों के आधार पर बनाये गये यह बात आज तक अपनी समझ से बाहर है.
झारखंड के लोगों से तो नही पर छत्तीसगढ़ के मेहनतकशों से नजदीक से परिचित होने का अवसर मिला है. अपने क्षेत्र के ईंट भट्ठों पर छत्तीसगढ़ के ‘परोसी’ मेहनतकश लोगों को काम करते देखा है. उत्तर प्रदेश व बिहार के मजदूरों की तुलना में छत्तीसगढ़ के मेहनतकश बेहद खुद्दार ईमानदार तथा परिश्रमी होते हैं.
यद्यपि नये बने राज्य छत्तीसगढ़ में कई जिले व शहर शामिल हैं परंतु उत्तर प्रदेश के मध्य व पूर्वी भाग में छत्तीसगढ़ के लोगों को विलासपुरी कहा जाता है. वर्ष 2000 ई. के पूर्व बिलासपुर मध्य प्रदेश के एक बड़े जिले के रूप में जाना जाता था, पर नये छत्तीसगढ़ राज्य के बनने के बाद संभवतः इस जिले को दो या तीन हिस्सों में बांटकर नये जिले बना दिए गए हैं.
कवर्धा (कबीरधाम) जिला भी बिलासपुर को विभाजित कर बनाया गया नया जिला है. छत्तीसगढ़ के मेहनतकशों का इस राज्य से पलायन तो 20 साल बाद भी जारी है. 2005 के जून से अगस्त के बीच जब लखनऊ में दो कमरों के आवास का निर्माण किया तो कवर्धा के मेहनत कशों (मिस्त्री व बेलदारों) ने अपना घर बनाया था. इनमें से पति यदि मिस्त्री के रूप में काम करता था तो पत्नी मजदूर के रूप में ईंटें ढोने मोरंग बालू तथा सीमेंट को मिलाकर मसाला बनाने व ढोने का काम करती थी. इसके परिश्रम तथा ईमानदारी का नजदीक से परिचय इसी दौरान हुआ था.
29 अगस्त, 2005 को जब गृह प्रवेश के उपलक्ष्य में एक छोटा सा प्रीतिभोज आयोजित हुआ था तो सबसे पहले घर के निर्माण कार्य में दो ढाई महीने से लगे रहे कवर्धा जिले के इन परोसियों को हीभोजन करा कर प्रीतिभोज की शुरुआत हुई थी. आज भी इनमें से कई मिस्त्री व मजदूर अपने संपर्क में हैं तथा आज भी वे लखनऊ के विभिन्न हिस्सों में चल रहे निर्माण कार्यों में लगे रहकर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं.
लखनऊ में छत्तीसगढ़ के मजदूर झुग्गी झोपड़ी बनाकर रहते हैं. इनकी झोपड़ियां अक्सर खाली पड़े आवासीय भूखंडों में बनी होती हैं, जिनमें पानी की व्यवस्था तो किसी तरह उपलब्ध होती है, पर शौचालय का इंतजाम अक्सर नही होता. देश भर में लगे लाकडाउन के पहले तक लखनऊ में रहकर अपनी रोजी-रोटी कमाने वाले छत्तीसगढ़ के हजारों लोगों को देखते हुए यह कह सकता हूं कि जिस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर यह नया राज्य बनाया गया है, वह लक्ष्य अभी तक हासिल नही हो सका है.
*(झारखण्ड राज्य के निर्माण के लिए आन्दोलन काफी समय से जारी रहा है. शिबु सोरेन इसी आन्दोलन का एक प्रतिनिधि थे. यह आन्दोलन संभवतः आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था. हलांकि भाजपा सरकार झारखण्ड राज्य के निर्माण के वजाय वनांचल नामक राज्य का निर्माण करना चाहती थी, जो वह भारी विरोध के कारण नहीं कर सका था. वनांचल राज्य के निर्माण के अपने लक्ष्य के दौरान भाजपा ने बिहार की राजधानी पटना से एक इसी नाम से एक रेलगाड़ी चलाई थी, जिसका नामकरण वनांचल किया गया था. वाबजूद इसके भाजपा की अथक साजिश के वाबजूद वनांचल की जगह झारखण्ड का नामकरण ही स्वीकार हुआ.)
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