हाथरस में दलित युवती के साथ गैंगरेप, उसकी हत्या के बाद उठे तुफानों का रुख मोड़ने के लिए आदतन गुंडा अजय कुमार बिष्ठा की सरकार ने जिस तरह एक मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉक्टर राजकुमारी बंसल को नक्सली घोषित करने की कबायद की गई, उससे एक बात तो दिन की उजाले की तरह साफ हो गई कि नक्सल और अर्बन नक्सल देश के सच्चे सिपाही हैं, जो देश की विशाल जनता के हित में लड़ते हैं. दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यह नक्सल, अर्बन नक्सल और माओवादी देश के गरीबों, पिछड़ों, उत्पीड़ित, दुखी जनमानस के लिए ईश्वर हैं, जो अपनी जान की परवाह किये गये दुखियों की मदद में पहुंच जाते हैं, जबकि केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकार एक हैबान की तरह लोगों पर जुल्म ढ़ा रही है. राजकुमारी बंसल के नक्सल कनेक्शन के बहाने मुद्दों की पड़ताल कर रहे हैं शून्यकाल डॉटकॉम के सम्पादक भंवर मेघवंशी.
फ़ासीवादी सत्ता इस समय पीड़ितों को ही अपराधी साबित कर देने के डिजायन पर काम कर रही है. जो भी वंचितों व उत्पीडितों के पक्ष में बोलेगा, लिखेगा या साथ देगा, उन सबको अर्बन नक्सली बता कर फंसाया जा रहा है. सरकार अपने ही देश के पीड़ित नागरिकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ चुकी है. इससे ज़्यादा अलोकतंत्रिक और अमानवीय बात क्या हो सकती है ?
उत्तरप्रदेश के हाथरस ज़िले के बोलगढ़ी गांंव में एक दलित बालिका के साथ हुई हैवानियत और उसके बाद राज्य प्रायोजित अमानवीयता के घटना क्रम से सारा देश वाक़िफ़ है. जिसने भी इस दरिदंगी के बारे में सुना है, उनकी पीड़ितों के प्रति हमदर्दी जगना स्वाभाविक ही है. देश भर से लोग पीडिता के परिवार से मिलने गये और उनको ढाढ़स बंधाया.
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्मी और वर्तमान में जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र मेडिकल कोलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर राजकुमारी बंसल को भी हाथरस की घटना ने बुरी तरह विचलित कर दिया. वे कईं दिन बैचेन रही. रातों में सो नहीं पाई. मीडिया रिपोर्ट्स को देखकर उनको लगा कि पीड़ित परिवार से जाकर मिलना चाहिए और उनको हिम्मत देनी चाहिये और भी यथासम्भव जो मदद हो सके, वह की जानी चाहिये. यह सोचकर डॉक्टर राजकुमारी बंसल ने मेडिकल कॉलेज से अवकाश लिया और ट्रेन से आगरा के लिए निकल पड़ी.
वे चार अक्तूबर से छह अक्तूबर की दोपहर दो बजे तक पीड़ित परिवार के साथ रही. उनको हौंसला दिया. अपनी एक महीने की सैलेरी भी पीड़िता के परिवार को दी. उनसे यह भी कहा कि आपकी एक बेटी चली गई तो यह दूसरी बेटी आ गई है, जो कि डॉक्टर भी है. इंसाफ़ की लड़ाई में आपके साथ है. डॉक्टर राजकुमारी छह को हाथरस से निकली और सात अक्टूबर को अपने घर जबलपुर आ गई.
डॉक्टर राजकुमारी एक मेडिकल डॉक्टर होने के साथ साथ सामाजिक रूप से काफ़ी सक्रिय हैं और बेहद मुखर भी. वे व्यक्तिगत रूप से भी और अपने एक फ़ाउण्डेशन के ज़रिये भी समाज सेवा करती रहती हैं. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान भी राशन वितरण व लोगों को आजीविका चलाने के लिए मदद की. वे अन्याय व अत्याचार के मामलों पर भी खुलकर आवाज़ उठाती रही है. उनका कहना है कि – ‘केवल नौकरी करने के लिये मैंने एजूकेशन नहीं ली, अगर मैं ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठा सकूंं तो मेरे शिक्षित होने का क्या फ़ायदा ?’
दरअसल राजकुमारी बंसल एक अम्बेडकरवादी डॉक्टर हैं, वे पे बैक टू सोसायटी के अम्बेडकराइट्स विचार में विश्वास करती है. हालांंकि उनका पीड़ित परिवार से कोई रक्त सम्बंध नहीं है, यह सिर्फ़ दर्द का ही रिश्ता है. वे वाल्मीकि समाज से भी नहीं है, लेकिन पीड़ित परिवार के साथ लगातार हो रही नाइंसाफ़ी ने उनको हाथरस पहुंंचने पर विवश किया और वे तमाम ख़तरे उठाते हुये न केवल उस गांंव पहुंंची, बल्कि पीड़ित परिजनों के साथ रहकर उनको हौंसला दिया और यथासम्भव मदद भी की. यह उन्होंने अपनी संवेदनशीलता व उदातत् मानवता का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया.
पीड़ित परिवार तक पहुंंचना व वहांं उनके साथ रहना सरल काम नहीं था. वे आगरा से बस लेकर उस गांंव तक पहुंंची, जहांं भारी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात थे. उनसे भी पहचान पूछी गई. आइडी देखे गये, यात्रा के टिकट तक चेक किये गये और यह जानने की कोशिश की गई कि वे वहांं क्यों आई हैं ? डॉक्टर राजकुमारी ने यूपी पुलिस को साफ़ जवाब दिया कि – ‘मैं एक मेडिकल डॉक्टर हूंं और फ़ोरेंसिक एक्सपर्ट भी. मैं पीड़ित परिवार की रिश्तेदार नहीं हूंं. मैं अन्याय के ख़िलाफ़ न्याय के पक्ष में यहांं इन लोगों को हिम्मत देने के लिए आई हूंं.’
डॉक्टर राजकुमारी के पीड़ित पक्ष से मिलकर वापस लौटने के बाद एक कहानी रची गई और उस झूठ को मीडिया व जांंच एजेंसियांं प्रचारित करके मामले से लोगों का ध्यान भटकाने की असफल कोशिश कर रही है. वैसे तो यूपी सरकार ने दंगे भड़काने की साज़िश, योगी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की कोशिश और भीम आर्मी व पोपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया के मध्य सम्बंध होने तथा सौ करोड़ का विदेशी फ़ंड आने जैसे झूठ बुने गये हैं, पर ताज़ा झूठ यह रचा गया है कि हाथरस कांड का ‘नक्सली कनेक्शन’ मिल गया है, इस घटना के तार नक्सलवादियों से जुड़े हुये हैं.
मनुस्ट्रीम मीडिया और उत्तर प्रदेश एसआईटी का आरोप है कि डॉक्टर राजकुमारी बंसल के तार अर्बन नक्सल से जुड़े हुये हैं. वे हाथरस में पीड़ित परिवार के साथ भाभी बनकर दो बार रही हैं. वे पहले सोलह सितम्बर से उनतीस सितम्बर तक और फिर तीन से सात अक्तूबर तक पीड़ित परिवार की रिश्तेदार बन कर पीड़ित परिवार में रही और उनको भड़काया, उकसाया और साज़िश रची.
इसके बाद दलित बहुजन विरोधी मीडिया ‘नक्सली भाभी’ की स्टोरी चलाने लगा कि जबलपुर की एक डॉक्टर घूंंघट निकाल कर पीडिता की भाभी बनकर मीडिया व आगंतुकों से बात कर रही थी.
डॉक्टर राजकुमारी बंसल इन आरोपों को बचकाना व हास्यास्पद बताती है. उनका कहना है कि वो क्यों घूंंघट निकाल कर बैठेगी और मीडिया से बात करेगी ? उनका कहना है कि वे दो बार नहीं बल्कि सिर्फ़ एक ही बार वहांं गई और इसके सबूत उनके पास है, ज़रूरत पड़ी तो वे इस दुश्प्रचार के ख़िलाफ़ न्यायपालिका में जायेगी.
डॉक्टर राजकुमारी बेख़ौफ़ यह कहने से भी नहीं हिचकती है कि – ‘अगर ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना अर्बन नक्सल कहलाता है तो मुझे कोई दिक़्क़त नहीं है कि मैं अर्बन नक्सल हूंं और आगे भी ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती रहूंंगी’
वे स्पष्ट रूप से कहती है कि मेरे सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र में कहीं नहीं लिखा है कि ‘मैं ग़लत के ख़िलाफ़ नहीं बोल सकती और ज़रूरतमंदों की मदद नहीं कर सकती. मेरे ख़िलाफ़ साज़िश की जा रही है. मैं हर जांंच का सामना करने को तैयार हूंं, पर लोगों के साथ किए जा रहे जुल्मों के ख़िलाफ़ बोलूंंगी.’
डॉक्टर राजकुमारी बंसल मूलतः ग्वालियर की है. वे यहीं जन्मी और पढ़ी लिखी. बाद में मेडिकल की पढ़ाई करने जबलपुर चली गई, जहांं पर नेताजी सुभाष चंद्र मेडिकल कोलेज से उन्होंने एमबीबीएस किया. उन्होंने डीओएमएस (नेत्र सम्बंधी) तथा एमडी औषधि विज्ञान में दो बार पीजी किया है और वर्ष 2018 से वे इसी मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं. वे एक अम्बेडकरवादी मानवतावादी डॉक्टर है, जो हर मुसीबतज़दा और ज़रूरतमंद की मदद करती है और अन्याय अत्याचार के ख़िलाफ़ जमकर बोलती हैं.
हाथरस में जिस तरह से गैंग रेप पीडिता के साथ हैवानियत की गई और बाद में पूरे सिस्टम ने हर स्तर पर पीड़िता व उनके परिजनों के साथ अमानवीयता की गई, उससे विचलित हो कर वे हाथरस गईं और पीड़ित परिवार को ढाढ़स बंधाया, मदद की. इसमें क्या अपराध कर दिया डॉक्टर राजकुमारी ने ?
लेकिन फ़ासीवादी सत्ता इस समय पीड़ितों को ही अपराधी साबित कर देने के डिजायन पर काम कर रही है. जो भी वंचितों व उत्पीडितों के पक्ष में बोलेगा, लिखेगा या साथ देगा, उन सबको अर्बन नक्सली बता कर फंसाया जा रहा है. सरकार अपने ही देश के पीड़ित नागरिकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ चुकी है. इससे ज़्यादा अलोकतंत्रिक और अमानवीय बात क्या हो सकती है ?
आख़िर डॉक्टर राजकुमारी बंसल ने हाथरस जा कर पीड़ित परिवार से मिलकर उनके साथ रहकर उनकी मदद करके उनको दिलासा देकर क्या अपराध कर दिया है, जो इस देश का मनुवादी मीडिया और सरकार उनके पीछे पड़े हैं और बिना किसी आधार के बदनाम कर रहे है ?
हम कब तक नक्सलवाद के नाम पर डराये जायेंगे ? कब तक हमारी इंसाफ़ की लड़ाइयांं साज़िशों की भेंट चढ़ती रहेगी ? हम कब तक चुप रहेंगे ? आज डॉक्टर राजकुमारी बंसल का नम्बर है, कल आपका, हमारा, हम सबका नंबर आने वाला है. सत्ता हर प्रतिरोध की आवाज़ को ख़ामोश कर देगी, फिर सन्नाटे के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा ! इसलिए यह वक़्त है पूरी ताक़त से डॉक्टर राजकुमारी बंसल के साथ खड़े होने का, बेख़ौफ़ बोलिये, मुंंह खोलिए.
Read Also –
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]