कनक तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़
अमरावती की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा अपनी सियासी और कानूनी नासमझी के चलते लगातार भद्द पिटवा रहे हैं. नवनीत निर्दलीय सांसद हैं लेकिन मन, वचन, कर्म से भाजपा की गोदपुत्री हैं. विधायक पति रवि भी उसी रंग में हैं. देश में हिन्दू धर्म के असाधारण प्रतीक भक्त हनुमान का धार्मिक और सियासी शोषण किया जा रहा है. उस उद्दाम में नवनीत राणा कड़ाही में पकते दूध की मलाई उतारकर राष्ट्रनेत्री बनने का ख्वाब लिये अचानक सियासी मैदान में कूद पड़ीं.
उन्होंने अकारण लेकिन तयशुदा रणनीति के तहत ऐलान किया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निवास ‘मातोश्री’ के सामने दलबल और गाजे-बाजे के साथ हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ करेंगी. देश के तथाकथित हिन्दुत्व समर्थक राजनीतिज्ञ अपने घर पर रोज़ हनुमान चालीसा या रामायण का पाठ करते हैं, इसमें तो संदेह है. लेकिन राम और हनुमान फिलहाल हिन्दू- मुसलमान अनेकता के नकली सांप्रदायिक संघर्ष में वीर मुद्रा में नेताओं द्वारा अपने राजनीतिक महत्व के लिए रोल माॅडल बना दिए गए हैं. केन्द्र की भाजपा सरकार को उद्धव की अगुआई वाली अघाड़ी सरकार फूटी आंखों नहीं सुहाती इसलिए राणा दंपत्ति ने सोचा होगा कि इस मामले में भी ‘फिसल पड़े तो हरगंगा’ कर लिया जाए.
मामला लेकिन उल्टा पड़ गया. शिवसेना, एक पार्टी के रूप में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके जैसे अन्य राजनीतिक दलों की तरह नहीं है. हिन्दुत्व की यात्रा में वह सहयोगी भाजपा के साथ हमसफर रही है. शिवसेना के खिलाफ हनुमान चालीसा की आड़ में हिन्दुत्व को तुरुप का इक्का बनाकर खेलना सरल नहीं रहा. उद्धव सरकार ने राणा दंपत्ति को तुरत-फुरत गिरफ्तार किया. उसके पहले उग्र शिवसैनिकों ने सांसद निवास पर जबर्दस्त प्रदर्शन किया और सार्थक संकेत दिये. राणा दंपत्ति को लगातार कमजोर कानूनी सलाह दी जाती रही. आनन फानन में हाईकोर्ट में प्रथम सूचना पत्र को खारिज करने की उन्होंने गुहार लगाई, लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका ही खारिज कर दी.
अलबत्ता टोका जिनके पास बडे़े पद हैं, उन्हें समझना चाहिए कि उनकी जिम्मेदारी भी बड़ी ह. लौटकर राणा दंपत्ति ने निचली अदालत में जमानत की अर्जी दी, वह भी खारिज हो गई. उन्होंने देश के गृहमंत्री से महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ गुहार लगाई, जबकि कानूनन ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. नवनीत ने सांसद होने की हैसियत में लोकसभा स्पीकर को लिखा कि गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उन्हें पानी तक पीने नहीं दिया. उनके साथ बदसलूकी की गई. पुलिस ने जवाब में वीडियो जारी किया, जिसमें राणा दंपत्ति को पानी तो क्या चाय भी पिलाई जा रही थी.
अब एक और कमजो़र कोशिश राणा दंपत्ति ने की है. सत्र न्यायालय से अनुरोध किया है कि उन्हें जेल प्रवास में घर का बना खाना खिलाया जाए. वे जेल में बना खाना बाकी कैदियों की तरह खाने में असमर्थ हैं. अजीब है. वे कभी हिन्दू हैं. कभी दलित हैं. कभी पुलिस प्रताड़ित हैं. कभी प्यासी हैं. अब उनमें आभिजात्य फूट पड़ा है. वे नफासत में रहकर घर का बना खाना खाएंगी. भले ही जेल नियमों में वह बहुत अपवाद की हालत में ही स्वास्थ्यवर्धक कारणों से संभव हो सकता है.
मुझे इंदिरा गांधी के जीवन की घटना याद आ रही है. तरुण अवस्था में इंदिरा गांधी को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करते वक्त गिरफ्तार किया गया था. जेल पहुंचने पर उन्हें किस श्रेणी का कैदी माना जाए, इसका कोई वर्गीकरण नहीं हो पाया. उन्हें आंदोलन करने के शक के भी कारण गिरफ्तार करना बताया गया. गिरफ्तारी के वक्त इंदिरा गांधी को तेज़ बुखार था. लखनऊ से सरकारी डाॅक्टर ने आकर जांच की और उन्हें विशेष किस्म का भोजन देने की सिफारिश की जिसमें अंडे, ओवल्टीन और फल वगैरह ज़रूरी बताया. जैसे ही डाक्टर जेल से गया, एंग्लो इंडियन जेलर ने डाॅक्टर की पर्ची फाड़कर फेंक दी और कहा कि तुम्हारे घर से जो आम आए थे, वे सब हमने खा लिए. सब बेहद स्वादिष्ट थे.
इंदिरा गांधी को 22 अन्य महिलाओं के साथ एक बड़े बैरकनुमा कमरे में बंद किया गया. उसमें खिड़कियों में भी लोहे की जाली लगी थी. भरी गर्मी से निजात पाने का कोई प्रबंध नहीं था. बैरक निहायत मामूली सुविधाओं वाला धर्मशाला या सराय से भी गया बीता था. इंदिरा गांधी को ‘ए क्लास’ या ‘क’ श्रेणी का कैदी नहीं माना गया था, जो नवनीत राणा दंपत्ति को माना गया होगा. इंदिरा जी को बाहर से पत्र या पार्सल तक पाने की इजाज़त नहीं थी. उन्हें बाहर के किसी व्यक्ति को इंटरव्यू देने की भी इजाज़त नहीं थी. इस बदहाली में इंदिरा गांधी जेल में 13 महीने बंद रही.
नेहरू ने अपनी ‘आत्मकथा’ में लिखा है कि ‘अंगरेज हुक्काम जानबूझकर महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बहुत तकलीफ देते थे, जिससे वे उनमें डर पैदा कर सकें कि उन्हें आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लेना है. जेल से छूटने के बाद भी इंदिरा गांधी डरी नहीं और आजा़दी की जद्दोजहद में लगी रहीं. इस बात का जिक्र मशहूर पत्रकार वैलेस हैन्गेन ने अपनी क्लासिक हो चुकी किताब ‘आफ्टर नेहरू हू’ में किया है. कहां राजा भोज और कहां……! राणा दम्पत्ति की मूर्खता के तरकश में अभी कई भगवा नस्ल के तीर और होंगे न !
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]