कम्बोडिया, वियतनाम, थाईलैंड, सुमात्रा, म्यांमार, लाओस, सिंगापुर, इंडोनेशिया, बेबीलोन आदि देशों की अप्सराएंं, जिन्हें सामान्य भाषा में नाचने-गाने वाली तवायफें, वेश्या, रंडी, अप्सराहरु, अफसरेसारा, आसना, डायन, डायना, डाकिन नचनैया, गांधार्वी, नगरवधू, बाजारु औरत आदि नाम से पुकारा जाता है, ये धन के लिये अपने तन के कपड़े उतारकर नाच-गाना करती थी, और तन-मन से राजा-महाराजों व धनवान लोगों की शारीरिक सेवाएं करती हैं. बेबीलोन मेसोपोटामिया में Minoan सभ्यता की पाई गयी. बिना कपड़े पहने और गहने पहने हुए नंगी दो शेरांवाली पत्थर की मूर्ति को सैक्स की देवी ‘इस्तार’ कहा जाता है.
भारतीय संस्कृति-संस्कार की तरह खुशी के अवसरों पर वेश्याओं (रंडी/अप्सराओं) को नग्न व अर्द्धनग्न नचाया जाता है. कम्बोडिया, थाईलैंड जैसे देशों में राणा-राजा व धनवान व्यक्ति के मरने पर, उसके जनाजे (लाश यात्रा) के समय मुंह मांगी कीमत पर अप्सराओं से अश्लील व कामुक अवस्था में नाच करवाया जाता है. इसके अतिरिक्त खमेर-राजाओं के समाधि (मंदिरों) में आधी नंगी/नंगी अप्सराओं की मूर्तियांं बनाई जाती रही हैं.
बेबीलोन- मेसोपोटामिया की ‘इस्तार’ को सबसे पुरानी अप्सरा (तवायफ/वेश्या) माना जाता है. इस नंग-धड़ंग तवायफ के साथ शेर व ऊल्लु की मूर्ति को सैक्स की देवी के नाम से भी जाना जाता है. इस सैक्स की देवी इस्तार का वाहन शेर है व बगल में दो उल्लू भी बनाए हुए हैं.
थाईलैंड सहित थाईलैंड उपमहाद्वीप के इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, सुमात्रा, सिंगापुर, ताईवान, म्यांमार आदि देशों की वेश्याओं (अप्सराओं, देवियों) के अलग-अलग पहनावे व अलग-अलग मुकुट हैं, जबकि अधिकांश अप्सराओं के घुटनों तक धोती तथा स्तन, पेट सहित ऊपरी भाग नंगा होता था. और वे अपने शरीर पर सोने या सोने जैसे गहने पहनने वाली नंग-धड़ंग अप्सराएंं अर्थात तवायफें होती हैं. इसके अलावा बिना कपड़ों के नंग-धड़ंग अप्सराएंं भी होती हैं.
इंद्रलोक (राजदरबार) में उन्हें गहने के सिवाय बदन के ऊपरी हिस्से को ढ़कने हेतु कपड़े पहनने का अधिकार नहीं था, जबकि वे अधिक से अधिक सोने के गहने पहन सकती थी. थाई पहनावा, स्वर्ण मुकुट व अश्लील अवस्था में विभिन्न तवायफें ‘भारत में आपको विभिन्न देवियां मूर्तियों व तस्वीरों में देखने को मिल जाती हैं.’ भारत की पहली बोलती ‘आलम आरा’ फिल्म में हिरोइन जुबेदा को बिना कपड़ों के आईने के सामने केवल गहने पहने हुए दिखाया गया है.
विडम्बना है कि अज्ञानता अथवा साजिश की वजह से थाईलैंड उपमहाद्वीप की तवायफों को भारत में विभिन्न देवियांं मानकर पूजन कर रहे हैं. विष्णु के पैर दबाकर तन-मन से शारीरिक सेवा करने वाली लक्ष्मी दरअसल कम्बोडिया की अप्सरा (तवायफ) मानी जाती है, जो धन के लिये धनवानों को शारीरिक सुख देकर आज भी धंधा कर रही हैं. थाई व कम्बोडिया की प्राचीन मूर्ति में विष्णु के पैर दबाते हुए दिखाई गयी तीन नोक का मुकुट पहनने वाली, कम्बोडिया की वेश्याओं (अप्सराओं) की मूल पहचान है.
सैक्स की देवी इस्तार सहित उपरोक्त देशों की अलग-अलग मुकुट व पहनावे पहनने वाली उस देश की नाचने-गाने व वेश्यावृत्ति का धंधा करने वाली तवायफों की पहचान होती हैं. ऐसे पहनावे किसी भी देश की पारिवारिक महिलाएंं नहीं पहनती हैं.
थाईलैंडी जैसे देश में लड़की पैदा होने पर, परिवार वाले बहुत खुशी मनाते हैं क्योंकि वे लड़की को धन की देवी लक्ष्मी मानते हैं. इसी कारण दुनियां में केवल थाईलैंड ही एक ऐसा देश है, जहां अधिकांश मां-बाप अपनी कन्याओं को अप्सराएंं यानि वेश्या, तवायफें बनाकर धन कमाते हैं. दुष्ट-गणिका, दुष्ट-वेश्या, दुराचारणी-गणिका को संक्षिप्त में दुर्गा माना जाता है. थाईलैंड की तवायफें अनेक हाथ-सिर के रुप में नाच-गाना करना इनकी मूल सांस्कृतिक की पहचान है.
थाईलैंडी सरकार ने वेश्यावृत्ति को एक उद्योग का दर्जा दिया हुआ है और इसका एक विशेष मंत्रालय भी है. जहां अप्सराएंं वेश्यावृत्ति के धंधे में शामिल होकर, अपने मालिक (इंद्र राणा-राजा) के आदेश पर किसी विरोधियों की तप-स्याह (ध्यान, उद्देश्य) भंगकर करती है जबकि भारत में इन्हें पूजनीय देवियांं माना जाता है.
इन अप्सराओं की एक झलक इन तस्वीरों में देखी जा सकती है.
- हर्श्चन्द्र
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