राष्ट्रीयता और नागरिकता दो शब्द हैं जो अक्सर दो शब्दों के रूप में उलझन में हैं, जो वास्तव में एक अर्थ देते हैं. वास्तव में, उनके बीच एक अंतर है. इस अंतर के परिणामस्वरूप जो राष्ट्रीयता और नागरिकता के बीच मौजूद है, उन्हें अलग तरह से समझा जाना चाहिए और अंतर-विवाद नहीं होना चाहिए. राष्ट्र कहते हैं एक जन समूह को जिनकी एक पहचान होती है, जो कि उन्हें उस राष्ट्र से जोङती है. इस परिभाषा से तात्पर्य है कि वह जन समूह साधारणतः समान भाषा, धर्म, इतिहास, नैतिक आचार या मूल उद्गम से होता है.
‘राजृ-दीप्तो’ अर्थात ‘राजृ’ धातु से कर्म में ‘ष्ट्रन्’ प्रत्यय करने से संस्कृत में ‘राष्ट्र’ शब्द बनता है अर्थात विविध संसाधनों से समृद्ध सांस्कृतिक पहचान वाला देश ही एक राष्ट्र होता है. देश शब्द की उत्पत्ति ‘दिश’ यानि दिशा या देशांतर से हुआ जिसका अर्थ भूगोल और सीमाओं से है. देश विभाजनकारी अभिव्यक्ति है जबकि राष्ट्र, जीवंत, सार्वभौमिक, युगांतकारी और हर विविधताओं को समाहित करने की क्षमता रखने वाला एक दर्शन होता है.
सामान्य अर्थों में राष्ट्र शब्द देश का पर्यायवाची बन जाता है, जबकि दोनों एक नहीं होते हैं, यह बात स्पष्ट है. एक राष्ट्र कई राज्यों में बंटा हो सकता है तथा वे एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं जिसे राष्ट्र कहा जाता है. देश को अपने रहने वालों की रक्षा भी करनी होती है. राष्ट्रीयता और नागरिकता में भी वास्तव में ये दोनों शब्द एक-दूसरे से कई तरह से भिन्न हैं.
भारतीय संविधान में नागरिकता से सम्बंधित प्रावधान संविधान के भाग- 2 में अनुच्छेद 5 से 11 तक दिए गए हैं. नागरिकता अधिनियम, 1955 भारत में नागरिकता प्राप्त करने के 5 तरीके बताता है –
- जन्म के आधार पर
- वंश के आधार पर
- पंजीकरण के आधार पर
- प्राकृतिक रूप से
- किसी क्षेत्र विशेष के अधिकरण के आधार पर
राष्ट्रीयता की परिभाषा
किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता से उसकी जन्मभूमि का पता चलता है या यह पता चलता है कि व्यक्ति किस मूल का है. राष्ट्रीयता एक व्यक्ति को कुछ अधिकारों और कर्तव्यों को प्रदान करती है. एक राष्ट्र अपने नागरिकों को विदेशी आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है, जिसके बदले में वह नागरिकों से यह उम्मीद करता है कि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का भी पालन करें. अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुसार, हर संप्रभु देश अपने देश के कानून के अनुसार यह तय कर सकता है कि कौन व्यक्ति उस देश का सदस्य बन सकता है.
नागरिकता की परिभाषा
किसी व्यक्ति को किसी देश की नागरिकता उसे देश की सरकार द्वारा तब दी जाती है जब वह व्यक्ति कानूनी औपचारिकताओं का अनुपालन करता है. इस प्रकार नागरिकता के आधार पर किसी व्यक्ति की जन्म भूमि का पता नहीं लगाया जा सकता है.
एक बार जब कोई व्यक्ति किसी देश का नागरिक बन जाता है, तो उसे देश के राष्ट्रीय आयोजनों जैसे वोट डालने का अधिकार, नौकरी करने का अधिकार, देश में मकान खरीदने और रहने का अधिकार मिल जाता है.
भारतीय संविधान में नागरिकों को अधिकार देने के साथ साथ कुछ कर्तव्यों पर भी जोर दिया गया है, जैसे करों का भुगतान, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान, राष्ट्रगान का सम्मान, महिलाओं की अस्मिता की रक्षा और जरुरत पड़ने पर देश की रक्षा के लिए लड़ना इत्यादि.
राष्ट्रीयता और नागरिकता के बीच प्रमुख अंतर
राष्ट्रीयता और नागरिकता के बीच कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं –
- राष्ट्रीयता एक व्यक्तिगत सदस्यता है जो कि व्यक्ति को देश में जन्म लेने के साथ ही मिल जाती है. दूसरी ओर नागरिकता राजनीतिक/कानूनी स्थिति है, जो कि किसी व्यक्ति को कुछ औपचारिकताओं को पूरा करने के साथ ही मिल जाती है.
- राष्ट्रीयता उस स्थान या देश के बारे में बताती हैं जहां पर व्यक्ति का जन्म होता है जबकि नागरिकता सरकार द्वारा व्यक्ति को प्रदान की जाती है. जैसे – अदनान सामी (गायक) पाकिस्तानी मूल का नागरिक है लेकिन उसे कुछ औपचारिकतायें पूरी करने के कारण भारत की नागरिकता मिल गयी है. अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की राष्ट्रीयता भारतीय (माता या पिता किसी एक के भारतीय होने के कारण) है लेकिन वह अमेरिकी नागरिक हैं.
- राष्ट्रीयता की अवधारणा देशज या जातीय है, जबकि नागरिकता की अवधारणा कानूनी या न्यायिक प्रकृति की है.
- राष्ट्रीयता को जन्म और विरासत के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जबकि नागरिकता को जन्म, विरासत, प्राकृतिक रूप से और विवाह आदि से आधार पर प्राप्त किया जा सकता है.
- राष्ट्रीयता को बदला नहीं जा सकता जबकि नागरिकता को बदला जा सकता है क्योंकि एक व्यक्ति किसी दूसरे देश की नागरिकता ले सकता है.
- एक व्यक्ति के पास राष्ट्रीयता केवल एक देश की हो सकती है जबकि एक व्यक्ति एक से अधिक देशों का नागरिक बन सकता है.
- राष्ट्रीयता को छीना नही जा सकता है जबकि नागरिकता को छीना जा सकता है.
राष्ट्रीयता किसी भी व्यक्ति से साथ सदैव हेतु जुड़ जाती है लेकिन नागरिकता को कभी भी बदला जा सकता है. भारतीय संविधान में एकल नागरिकता की व्यवस्था की गयी है अर्थात यहां पर किसी व्यक्ति को नागरिकता देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है राज्यों को नहीं, जबकि अमेरिका में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था है अर्थात वहां पर नागरिकता देने का अधिकार राज्यों के पास भी है. इसके अलावा भारतीय संविधान में यह प्रावधान भी है कि यदि कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार कर लेता है तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः ख़त्म हो जाती है.
इस प्रकार हम कह सकते है कि राष्ट्रीयता (Nationality) किसी व्यक्ति और किसी संप्रभु राज्य (अक्सर देश) के बीच के क़ानूनी सम्बन्ध को कहा जाता हैं. राष्ट्रीयता उस राज्य को उस व्यक्ति के ऊपर कुछ अधिकार देती है और बदले में उस व्यक्ति को राज्य सुरक्षा व अन्य सुविधाएं लेने का अधिकार देता है. इन लिये व दिये जाने वाले अधिकारों की परिभाषा अलग-अलग राज्यों में भिन्न होती है.
आम तौर पर परम्परा व अंतरराष्ट्रीय समझौते हर राज्य को यह तय करने का अधिकार देते हैं कि कौन व्यक्ति उस राज्य की राष्ट्रीयता रखता है और कौन नहीं. साधारणतया राष्ट्रीयता निर्धारित करने के नियम राष्ट्रीयता क़ानून (nationality law) में लिखे जाते हैं. जबकि नागरिकता किसी व्यक्ति को देश के भीतरी जीवन में भाग लेने व वहां रहने के अधिकार देती है. राष्ट्रीयता इससे अलग है और इसका महत्व केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है और उस व्यक्ति को रक्षा व आने-जाने की पहचान देती है.
आधुनिक काल में जिसके पास नागरिकता होती है उसके पास राष्ट्रीयता भी होती है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि जिसके पास राष्ट्रीयता हो उसके पास नागरिकता भी हो. ऐसे व्यक्ति जिनके पास राष्ट्रीयता तो है लेकिन नागरिकता के पूर्ण अधिकार नहीं, उन्हें अक्सर ‘दूसरे दर्जे का नागरिक’ (second-class citizen) कहा जाता है.
उदाहरण के लिये ब्रिटेन के राष्ट्रीयता क़ानून में राष्ट्रीयता की छह श्रेणियां परिभाषित हैं और केवल सबसे उच्च श्रेणी के व्यक्तियों को ही ‘ब्रिटिश नागरिक’ कहते हैं. अन्य पांच दर्जों की ब्रिटिश राष्ट्रीयता रखने वालों को ब्रिटेन में बसने या काम करने का अधिकार नहीं है लेकिन उन्हें अगर वे किसी अन्य देश में कठिनाई में हों, तो ब्रिटिश सरकार से सहायता मांगने का हक है.
- निखिलेश मिश्र
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