हिमांशु कुमार
पिछले दिनों मुझे युवा लड़के लड़कियों के एक प्रशिक्षण शिविर में बुलाया गया. मुझे राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता पर बोलने के लिए कहा गया. मैंने वहां मौजूद ग्रामीण शिक्षित युवाओं से पूछा कि ‘बताइये दुनिया का सबसे अच्छा राष्ट्र कौन-सा है ?’ सबने एक स्वर में कहा – ‘भारत.’
मैंने अगला सवाल पूछा कि – ‘अच्छा बताओ कि सबसे अच्छा धर्म कौन-सा है ?’ सबने कहा – ‘हिंदू धर्म.’ मैंने पूछा कि ‘अच्छा बताओ सबसे अच्छी भाषा कौन-सी है ?’ कुछ ने जवाब दिया कि ‘हिन्दी.’ कुछ युवाओं ने जवाब दिया कि संस्कृत सर्वश्रेष्ठ भाषा है. मैंने उन युवाओं से पूछा – ‘अच्छा अब बताओ कि दुनिया का सबसे बुरा देश कौन सा है ?’ सारे युवाओं ने कहा – ‘पाकिस्तान.’ मैंने पूछा सबसे बेकार धर्म कौन-सा है ? उन्होंने कहा- ‘इस्लाम.’
मैंने इन युवाओं से पूछा कि ‘क्या उन्होंने जन्म लेने के लिए अपने मां-बाप का खुद चुने थे ?’ सबने कहा – ‘नहीं.’ मैंने पूछा कि ‘क्या आपने जन्म के लिए भारत को या हिंदू धर्म को खुद चुना था ?’ सबने कहा ‘नहीं.’ मैंने कहा – यानी, आपका इस देश में या इस धर्म में या इस भाषा में जन्म महज़ एक इत्तिफाक है ?’ सबने कहा – ‘हां, ये तो सच है.’
मैंने अगला सवाल किया कि – ‘क्या आपका जन्म पाकिस्तान में किसी मुसलमान के घर में होता और मैं आपसे यही वाले सवाल पूछता तो आप क्या जवाब देते ? क्या आप तब भी हिंदू धर्म को सबसे अच्छा बताते ?’ सभी युवाओं ने कहा – ‘नहीं, इस्लाम को सबसे अच्छा बताते.’
मैंने पूछा – ‘अगर पाकिस्तान में आपका जन्म होता और तब मैं आपसे पूछता कि सबसे अच्छा देश कौन-सा है तब भी क्या आप भारत को सबसे अच्छा राष्ट्र कहते ?’ सबने कहा – ‘नहीं तब तो हम पाकिस्तान को सबसे अच्छा देश कहते.’
मैंने कहा – ‘इसका मतलब यह है कि हम ने जहां जन्म लिया है हम उसी धर्म और उसी देश को सबसे अच्छा मानते हैं. लेकिन ज़रूरी नहीं है कि वह असल में ही वो सबसे अच्छा हो ?’ सबने कहा – ‘हां, ये तो सच है.’
मैंने कहा – ‘तो अब हमारा फ़र्ज़ यह है कि हमने जहां जन्म लिया है उस देश में और उस धर्म में जो बुराइयां हैं उन्हें खोजें और उन बुराइयों को ठीक करने का काम करें.’ सभी युवाओं ने कहा – ‘हां, ये तो ठीक बात है.’
इसके बाद मैंने उन्हें संघ द्वारा देश भर में फैलाए गए साम्प्रदायिक ज़हर और उसकी आड़ में भारत की सत्ता पर कब्ज़ा करने और फिर भारत के संसाधनों को अमीर उद्योगपतियों को सौंपने की उनकी राजनीति के बारे में समझाया. मैंने उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर भारत में अपने ही देशवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों के बारे में बताया.
मैंने उन्हें आदिवासियों, पूर्वोत्तर के नागरिकों, कश्मीरियों पर किये जाने वाले हमारे अपने ही अत्याचारों के बारे में बताया. मैंने उन्हें हिटलर द्वारा श्रेष्ठ नस्ल और राष्ट्रवाद के नाम पर किये गये लाखों कत्लों के बारे में बताया. मैंने उन्हें यह भी बताया कि किस तरह से संघ उस हत्यारे हिटलर को अपना आदर्श मानता है. मैंने उन्हें बताया कि असल में हमारी राजनीति का लक्ष्य सबको न्याय और समता हासिल करवाना होना चाहिए. हमने भारत के संविधान की भी चर्चा की.
इन युवाओं में काफी सारे मोदी के भक्त भी थे. लेकिन इस प्रशिक्षण के बाद वे मेरे पास आये और उन्होंने कहा कि आज आपकी बातें सुनने के बाद हमारी आंखें खुल गयी हैं.
असल हमें इस तरह से सोचने के लिए ना तो हमारे घर में सिखाया गया था, ना ही हमारे स्कूल या कालेज में इस तरह की बातें बताई गयी थीं. मुझे लगता है कि हमें युवाओं के बीच उनका दिमाग साफ़ करने का काम बड़े पैमाने पर करना चाहिए. क्योंकि उनका दिमाग खराब करने का काम भी बड़े पैमाने पर चल रहा है.
Read Also –
अडानी-मोदी क्रोनी कैपिटलिज़्म : यह कैसा राष्ट्रवाद है तुम्हारा ?
‘एकात्म मानववाद’ का ‘डिस्टोपिया’ : राजसत्ता के नकारात्मक विकास की प्रवृत्तियां यानी फासीवादी ब्राह्मणवादी राष्ट्रवाद
ओ फर्जी हिंदू राष्ट्रवादी भगवाधारियों, लाशों के बीच स्वर्ग बनाओगे ?
देशवासियों को लूटकर खा जाने की आजादी नया राष्ट्रवाद हैपेगासस और आरएसएस : जासूसों का राष्ट्रवाद
धर्म और राष्ट्रवाद के गोद में पलते लुटेरे और हत्यारे
मोदी विफलताओं और साम्प्रदायिक विद्वेष की राजनीति का जीता-जागता स्मारक
देश में उभरता साम्प्रदायिक फासीवाद और उसके खतरे
महान शहीदों की कलम से – साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]