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धर्म के उत्थान की बात सिर्फ उल्लू बनाने की राष्ट्रीय परियोजना

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धर्म के उत्थान की बात सिर्फ उल्लू बनाने की राष्ट्रीय परियोजना

कृष्णकांत

धर्म जनता से अलग नहीं है. वह जनता की ही आस्था है. अगर जनता का पतन हो रहा है, देश का आर्थिक पतन हो रहा है तो धर्म के उत्थान की बात सिर्फ उल्लू बनाने की राष्ट्रीय परियोजना है.

आज सपने में एक बाबा ने दर्शन दिया. बाबा सलवार समीज पहने था और कंधे पर बड़की दीदी की स्टाइल में दुपट्टा ओढ़े था. बाबा एक ऊंचे मंच पर था. वहां पर खूब पब्लिक थी. बाबा कह रहा था कि एक उपचुनाव में छोटे से झटके से पेट्रोल 5 रुपये सस्ता हो गया. इस हिसाब से अगर पेट्रोल 35 रुपये लीटर पर लाना है तो अगले विधानसभा से लेकर लोकसभा तक तगड़े-तगड़े कई झटके देने पड़ेंगे, तभी कल्याण होगा. पब्लिक ने खूब ताली बजाई. लेकिन सपने से बाहर की कहानी इसके ठीक उलट है.

बबवा असली ठग था. अध्यात्म, धर्म, योग, स्वास्थ्य सबकी खिचड़ी बनाकर अपनी चमत्कारी ब्रांडिंग की फिर उस ब्रांड का सियासी इस्तेमाल किया. थोड़े समय के लिए अर्थशास्त्री बन गया और पब्लिक को 35 रूपये पेट्रोल का लालच दिया. पब्लिक झांसे में आ गई और उसके कहने पर वोट किया. जब अपनी पार्टी की सरकार बन गई तो बाबा को फ्री जमीनें मिलीं, तमाम सरकारी सहयोग मिला. बबवा का व्यवसाय बेतहाशा फैला, हजारों करोड़ का मुनाफा हुआ. पार्टी का भी फायदा, बाबा का भी फायदा.

फिर बाबा अर्थशास्त्री से योगशास्त्री हो गया और बोला- आंख बंद करो, सांस अंदर खींचो, पेट्रोल के दाम, काला धन, महंगाई, तेल, दाल, चावल, चीनी आदि सांसारिक वस्तुओं के बारे में नहीं सोचना है.

अब हालत ये है कि काला कुर्सी की ओर जा रहा है, धन बाबा कमा रहा है और जनता कभी ताली बजाती है, कभी थाली बजाती है, कभी तेल के आंसू रोती है, कभी किसी और सर्कस में बिजी रहती है. नेता की सत्ता, पूंजीपति को पैसा और जनता को फोकट की खुशी नसीब हुई. इस तरह सबका राजपाट हो गया.

पिछले कुछ महीनों में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं. 21 राज्यों के पास मनरेगा का बजट माइनस में चला गया है. अर्थव्यवस्था माइइस मे गोते लगा रही है. गरीबी बढ़ रही है. बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. महंगाई ने जनता को इस लायक नहीं छोड़ा है कि वह दीवाली पर जी भर दिया जला सके लेकिन एक नेता 11 लाख दीये जला रहा है.

जनता को इस लायक नहीं छोड़ा कि वह आराम से अपना उदराभिषेक यानी पेटपूजा कर सके लेकिन एक नेता रुद्राभिषेक कर रहा है. वे कुछ योजनाओं का उद्घाटन, शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण और धर्म-आस्था की खिचड़ी पका रहे हैं. उन्हें जनता ने देश सेवा के लिए चुना, लेकिन वे इसमें बुरी तरह असफल हैं इसलिए धर्म को ढाल बना रहे हैं.

वे पुजारियों और संतों का चोला ओढ़कर आपसे कहना चाहते हैं कि हमारी असफलता पर बात मत करो. इस पर बात करो कि मैं कितना बड़ा भक्त हूं. वे अपनी आस्था के लिए ऐसा नहीं करते. वे भगवान भोलेनाथ के धाम में मंदिर के अंदर भी कैमरा लेकर जाते हैं. वे एकांत गुफा में भी कैमरा ले जाते हैं, उसका प्रसारण होता है ताकि दुनिया को दिखा सकें. कहा जा रहा है कि धर्म का उत्थान हो रहा है.

धर्म का उत्थान तो इसमें होगा कि आम जनता भी जब चाहे केदारनाथ धाम जाकर रुद्राभिषेक कर सके. वे जनता को अपंग बना रहे हैं, अपनी तानाशाही को जनता पर थोप कर दावा कर रहे हैं कि धर्म का और हिंदुओं का उत्थान हो रहा है. वे अपनी आस्था के लिए ऐसा करते तो कोई दिक्कत नहीं थी. वे मंदिर में कैमरा ले जाकर पूजा भी आपको उल्लू बनाने के लिए कर रहे हैं ताकि आपको लगे कि वे बड़े धार्मिक हैं, वे आप जैसे हैं, वे सच्चे हिंदू हैं.

उनकी ड्यूटी क्या है ? अपने को सच्चा हिंदू साबित करना या इस देश को प्रगति के रास्ते पर लाना ? पिछले दो साल में आर्थिक हालात सुधारने के क्या उपाय हुए ? वे चुने गए हैं देश चलाने के लिए, वे आस्था और पाखंड का कारोबार चला रहे हैं.

इसी तरह एक दिल्ली वाले भूतपूर्व क्रांतिकारी सर जी हैं. कहते हैं कि मैं सत्ता में आऊंगा तो सबको चारधाम यात्रा कराऊंगा. आप इस वादे पर खुश होते हैं. वे नहीं कहते कि यूपी को ऐसा प्रदेश बनना चाहिए जहां दोबारा कोरोना आ जाए तो गंगा की धारा और गंगा के तट लाशों से न पट जाएं. वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भरोसा है कि हम सब धर्म के नाम पर ठगे जा सकते हैं.

सोचिए कि मैं नौकरी करता हूं. मैं अगर चाहूं तो अपनी एक-दो महीने की सैलरी बचाकर पूरा भारत घूम सकता हूं. मुझे ज़रूरत नौकरी की है या सरकारी तीर्थयात्रा योजना की है ? मेरे पास नौकरी है तो अपने माता-पिता को भी चारोंधाम तीर्थयात्रा ले जा सकता हूं.
अगर जनता की माली हालत सही है तो वे तीर्थ और हज अपने से कर लेंगे. सरकार को इससे क्या लेना देना ?

लेकिन नेता चारधाम यात्रा कराने का वादा करते घूम रहे हैं. वे मंदिर, मस्जिद, हिंदू, मुसलमान से आगे न सोच रहे हैं और न आपको सोचने देना चाहते हैं. वे सोचते हैं कि इस तरह धार्मिक इवेंट से आप प्रसन्न होंगे और उन्हें वोट देंगे. पूरे देश का मीडिया इस पर सवाल नहीं करता, कवरेज करता है.

मेरे किसान पिता के सीमित संसाधनों और सरकारी शिक्षा व्यवस्था की कृपा से मैं पढ़ सका और अब नौकरी कर रहा हूं. मैं जहां चाहूं घूम सकता हूं. दर्शन, पूजा, कर्मकांड, अध्यात्म सब सम्पन्न कर सकता हूं. मेरे जैसे युवाओं को शिक्षा और रोजगार चाहिए, वे कह रहे हैं तीर्थयात्रा कराएंगे.

नेता हमारी हालत सुधारने की जगह हमें धर्म-कर्म, आस्था और सियासी पाखंड में क्यों उलझा रहे हैं ? आप जनता को मानसिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाइए. धर्म और संस्कृति अपने आप मजबूत हो जाएंगे लेकिन इस विचार में चुनावी उन्माद नहीं है, इसलिए ऐसी बातें आपको भी अच्छी नहीं लगतीं. नेताओं का 90 फीसदी धंधा इसलिए चल रहा है क्योंकि आप हर कदम पर मूर्ख बनने को राजी हैं. वह समय कब आएगा जब हम आप उल्लू बनने से इनकार करेंगे ?

धान कटनी के टाइम आंधी-बारिश की वजह से किसानों की ज्यादातर फसल खेत में ही सड़ गई. पका हुआ धान जमीन में पसर गया, भीगा और सड़ गया. फसल घर तक नहीं पहुंची. जो फसल ऊंचाई पर थी वही बची. जहां जहां पानी लग गया, वहां सब तबाह हो गया. किसी की दस फीसदी फसल बच पाई, किसी की बीस-फीसदी. धान की खेती में लागत ज्यादा आती है. मेरे जिले में कोई ऐसा किसान नहीं बचा है जिसकी पूरी लागत वापस आई हो.

अब नम्बर वन प्रदेश के कागजी शेरों का शेरों की सरकार का हाल सुनिए. किसानों को इस दैवीय नुकसान का मुआवजा देना तो दूर, अभी तक धान खरीद केंद्र तक चालू नहीं हुए हैं. अगले 15 दिन खरीद केंद्र खुलने की कोई संभावना नहीं है. बेचारे किसान का जो कुछ बचा है, अब उसे संभाल कर रखने की चुनौती है. भीगी हुई पकी फसल अगर एक बार और भीगी तो किसी काम की नहीं रहेगी.  ऐसे में किसान क्या करेगा ? इनका कहना है कि आढ़ती हजार रुपये में खरीद रहा है. उसी को बेच देंगे, नहीं तो जो हाथ आया है वो भी जाएगा.

अब यूपी सरकार मुफ्त राशन के साथ गरीबों को 1 किलो खाद्य तेल, 1 किलो दाल और 1 किलो नमक और चीनी भी देगी. वे बस आपको इस लायक नहीं छोड़ेंगे कि आप खुद कमाएं-खाएं और खुद्दार जिंदगी जिएं. पहले उद्योग चौपट करेंगे, रोजगार छीनेंगे, करोड़ो की संख्या में लोगों को गरीबी रेखा से नीचे पहुंचा देंगे। आपके हाथ मे कटोरा थमा देंगे फिर दानी राजा बन जाएंगे. आपको लगेगा कि वाह ! वे तो सच मे विष्णु के अवतार हैं ! वे दरअसल आधुनिक लोकतंत्र के सामंत हैं.

एक तरफ कह रहे हैं कि इस घोषणा का लाभ 15 करोड़ गरीबों को मिलेगा. दूसरी ओर कह रहे हैं कि प्रदेश में गरीबी और बेरोजगारी नहीं है. 23 करोड़ की जनसंख्या में से 15 करोड़ को गरीब मानकर मुफ्त राशन दिया जाएगा, लेकिन गरीबी और बेरोजगारी नहीं है, ये जादू भी कमाल है. जिस प्रदेश में 65 प्रतिशत आबादी को जिंदा रखने के लिए मुफ्त राशन वितरित करना पड़े, उस प्रदेश का मुखिया लगातार दावा करता है कि हमारे यहां बेरोजगारी नहीं है.

धान का समर्थन मूल्य 1940 रुपये घोषित है. कागज में और भाषण में किसान अम्बानी हो गए हैं लेकिन जमीनी सच ये है कि जिसने एक लाख भर्ती लगाई, उसका 50 हजार भी नहीं लौटेगा. किसी किसी की सारी लागत डूब गई. खेत में हंसिया तक नहीं गई. 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की मुनादी सात साल से चल रही है. 2021 का आखिरी चल रहा है और उसकी लागत भी डूब चुकी है.

किसान दस महीने से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन डेढ़ लोगों की सरकार कह रही है कि अडानी के लिए बना कानून लागू हो जाये तो नरेंद्र मोदी को मोक्ष प्राप्त हो जाए. ये सब बातें बहुत बोरिंग है ना ? ध्यान मत दीजिए. आपके लिए हिंदू-मुस्लिम सिलेबस ही ठीक है. ये किसान-पिसान, रोटी-धोती की बातों में वो मजा कहां !

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