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नरेन्द्र मोदी, भारत में अमेरिकी एजेंट है ?

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नरेन्द्र मोदी, भारत में अमेरिकी एजेंट है ?
नरेन्द्र मोदी, भारत में अमेरिकी एजेंट है ?

भारत जैसे बहुराष्ट्रीय देश में शुद्नों-मुसलमानों के खिलाफ नफ़रतों के घोड़े पर सवार होकर नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह भारतीयों को दुनिया भर में अपमानजनक हालत में पहुंचा दिया है, उससे सीसे की तरह साफ़ हो गया है कि नरेन्द्र मोदी ने भारत को अमेरिका का गुलाम बना दिया है. कि भारत की सम्प्रभुता ख़त्म कर दिया है. कि नरेन्द्र मोदी ने 140 करोड़ भारतीयों को दुनिया के सामने अपमानित कर दिया है, जब ट्रंप प्रशासन ने सैकड़ों अवैध भारतीय अप्रवासियों को ज़ंजीरों में बांधकर डिपोर्ट कर दिया है और हज़ारों लोगों को ज़ंजीरों में बांधकर डिपोर्ट करने की तैयारी में है.

एन. आर. मोहंती सोशल मीडिया पेज पर लिखते हैं कि ‘क्या आपने देखा कि कल अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री का कैसे अपमान किया ? मोदी से मिलने से कुछ घंटे पहले ही ट्रंप ने ‘प्रतिस्परधात्मक शुल्क’ (reciprocal tariff) का फरमान जारी किया, जिसमें उन्होंने विशेष रूप से भारत की ऊंची शुल्क दरों की निंदा की और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को गंभीर परिणामों की धमकी दी, यदि उसने अपनी नीतियों में बदलाव नहीं किया.

’यही सब नहीं था. दोनों नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखिए, प्रधानमंत्री मोदी लगभग 10 मिनट तक राष्ट्रपति ट्रंप की शानदार जीत और उनके पिछले तीन हफ्तों की नीतियों की तारीफों के पुल बांधते रहे. ट्रंप की प्रतिक्रिया क्या थी ? उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को महज 30 सेकंड में एक वाक्य के जरिए निपटा दिया.

‘मानो यह अपमान पर्याप्त नहीं था, ट्रंप के कार्यालय द्वारा जारी प्रेस बयान में दुनिया को बताया गया कि मोदी के नेतृत्व वाला भारत अमेरिका से बड़ी मात्रा में तेल और गैस खरीदने के लिए सहमत हो गया है. अपमान पर और नमक छिड़कते हुए यह भी कहा गया कि भारत को अमेरिका को अपने सबसे बड़े तेल और गैस आपूर्तिकर्ता के रूप में स्वीकार करना होगा, चाहे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कुछ भी हों.

’हमने रूस से तेल इसलिए खरीदा क्योंकि वह युद्धग्रस्त देश हमें रियायती दरों पर बेचने को तैयार था, लेकिन अब अमेरिका हमारी कीमत और मात्रा दोनों तय करेगा. ट्रंप ने केवल तेल और गैस थोपने तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि खुलेआम घोषणा की कि भारत को व्यापार घाटे को संतुलित करने के लिए एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए मजबूर किया जाएगा.

’प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा का यह स्पष्ट परिणाम है, भारत के हितों का शर्मनाक आत्मसमर्पण. हमारे नेता की अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की हताशा ने हमारे देश को इस स्थिति में पहुंचा दिया है. जब नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया और प्रधानमंत्री मोदी को ऐसा कोई निमंत्रण नहीं मिला, तो हमारे नेता ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को वॉशिंगटन डीसी भेजा ताकि देर से ही सही, निमंत्रण प्राप्त किया जा सके. लेकिन ट्रंप ने मना कर दिया.

‘शी जिनपिंग की आत्म-सम्मान की भावना देखिए, ट्रंप का आमंत्रण और व्यक्तिगत फोन कॉल मिलने के बावजूद, उन्होंने समारोह में जाने के बजाय अपने उपराष्ट्रपति को भेजा. यही एक आत्मनिर्भर नेता का आत्मविश्वास होता है.

’लेकिन हमारा असुरक्षित नेतृत्व, जो उद्घाटन समारोह के निमंत्रण से वंचित रह गया था, दूसरे देशों के नेताओं से आगे निकलने के लिए ट्रंप के पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद उनसे मिलने को आतुर था. जयशंकर ने फिर से वॉशिंगटन में लॉबिंग की, और इस बार ट्रंप ने निराश नहीं किया. उन्हें पता था कि एक हताश मोदी से अपनी शर्तें मनवाई जा सकती हैं और भारत के प्रधानमंत्री के पास उन पर हस्ताक्षर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

‘यही हमने कल देखा, 140 करोड़ भारतीयों के नेता का एक अहंकारी ट्रंप के सामने घुटने टेकने का दयनीय दृश्य. हम भारतीयों को शर्म से सिर झुका लेना चाहिए.’ लेकिन बातें यहीं तक नहीं रुकी है. आगे की स्थिति और भी ज़्यादा शर्मनाक है. लेकिन आगे बढ़े इससे पहले यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर मोदी इतनी दयनीय हालत में पहुंचा कैसे ?

दरअसल अमेरिकी अदालतों में अडानी के खिलाफ घूस देने का मुक़दमा दर्ज है, जिसे मोदी ‘व्यक्तिगत’ मामला बताते हैं. वहीं अमेरिकी नागरिक पन्नु के की हत्या कराने के लिए सुपारी देने का आरोप अमेरिकी अदालतों में लंबित है, जिसमें नरेन्द्र मोदी के साथ साथ अमित शाह, डोभाल जैसों का भी नाम दर्ज है. ज़ाहिर है यही सब लोग है जो भारत में मोदी सत्ता का आधार स्तंभ है, जिसको बचाने के लिए मोदी ने भारत की सम्प्रभूता को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के चरणों में गिरवी रख दिया है.

दूसरे शब्दों में कहें तो ट्रंप के हाथों में मोदी का गर्दन है. और उसी तरह मोदी के हाथों में भारत के 140 करोड़ लोगों की क़िस्मत है, जिसका सौदा मोदी ने ट्रंप के साथ किया है, सिर्फ़ अडानी को बचाने के लिए.

इतना ही नहीं अब ट्रंप सरकार में नम्बर दो की हैसियत रखने वाले दुनिया के सबसे अमीर एलन मस्क के इस घोषणा ने भी मोदी का विदीर्ण चेहरा उजागर कर दिया कि वह भारत में चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिका से मिलने वाली 182 करोड़ रुपये की धनराशि बंद कर रहा है. यानी, इससे एक चीज़ पूरी तरह साफ़ हो गई है कि मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने में अमेरिका की भूमिका है.

इसके साथ ही अमेरिका की ओर से एक और खुलासा में यह स्पष्ट हो गया है कि मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बनाने के लिए ट्रेनिंग भी अमेरिका में दिया गया है, जिसकी अब पुख़्ता जानकारी मिल रही है. यानी, मोदी को भारत के सत्ता पर बिठाने और भारत की नीतियों को अमेरिकापरस्त बनाने के लिए भारत के चुनावों में अमेरिका की भूमिका थी क्योंकि भारत की नीतियां अपने मूल स्वरूप में ही सोवियत संघ (अब रुस) के काफ़ी नज़दीक रही है. ऐसे में सीधे शब्दों में कहें तो नरेन्द्र मोदी, भाजपा, आरएसएस भारत में अमेरिकी एजेंट है और अब यह कोई छिपी हुई बात नहीं रह गई है.

ऐसे में भारत को औपनिवेशिक ज़ंजीरों में बांधने की अमेरिकी साम्राज्यवादी साज़िशों से बचने का एक मात्र रास्ता है अमेरिकी एजेंट नरेन्द्र मोदी और आरएसएस को भारत की सत्ता से बेदख़ल करना और भारत की आज़ादी को बचाये रखने के लिए आंदोलन का रास्ता अख़्तियार करना.

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