Home गेस्ट ब्लॉग नालन्दा विश्वविद्यालय

नालन्दा विश्वविद्यालय

14 second read
0
0
255
नालन्दा विश्वविद्यालय
नालन्दा विश्वविद्यालय

नालन्दा पटना से दक्षिण की ओर 50 मील की दूरी पर है, जिसका इतिहास 450 ई. से शुरू होता है क्योंकि 410 के लगभग आये चीनी यात्री फ़ाहियान ने यहां किसी विश्वविद्यालय का उल्लेख नहीं किया, जबकि वह नालन्दा की यात्रा पर गया था. नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त सम्राट कुमारगुप्त शक्रादित्य ने किया था (414-445 ई.). नरसिंह गुप्त और बुधगुप्त के भी बनवाये विहार यहां मिले हैं. यशोवर्मा के दान-अभिलेख भी हैं.

खुदाई में यहां 7 विशाल व्याख्यान कक्ष और 300 छोटे कमरे मिले हैं. ह्वेनसांग का जीवनीकार ह्यू ली के अनुसार विहारों के शिखर गगनचुंबी थे जो कि बरसात में बादलों को छूकर बादलों के आकार बदल देते थे (उसने बढ़ा-चढ़ाकर लिखा है). यहां से अबतक 13 विहार मिल चुके हैं. यशोवर्मा (कन्नौज का 731ई., इसके दरबारी थे प्रसिद्ध संस्कृत साहित्य रचनाकार भवभूति, महत्वपूर्ण है कि यशोवर्मा द्वारा विंध्याचल की विंध्यवासिनी देवी के पूजा का साक्ष्य मिलता है) के अभिलेख में भी इन इमारतों का भव्य वर्णन मिलता है.

प्रत्येक विद्यार्थी के लिए यहां एक चौकी, दीपक और किताबें रखने के लिए आले बने थे और हर विहार के कोने में एक कुआं था. इस विश्वविद्यालय के खर्चे के लिए 100 और बाद में 200 गांवों का दान किया गया था. नालन्दा के सामान्य विद्यार्थियों में जो कि अधिकांश हिन्दू (सनातन समझिये या ब्राह्मण धर्म के) थे, उनकी भी शिक्षा फ्री थी क्योंकि अनेक हिंदुओं ने यहां व्यक्तिगत रूप से दान किया था. (बौद्ध विद्यार्थी भिक्षु थे इसलिए इनका शुल्क लगने का कोई सवाल ही नहीं).

यहां विद्यार्थियों की संख्या 3 हजार, 5 हजार और 10 हजार बताई गयी है, जिसमें 5 हजार की संख्या सही लगता है. ह्वेनसांग अलग से यहां के हजारों भिक्षुओं की संख्या भी बताता है. यहां पर तीन पुस्तकालय थे जहां से चीनी यात्री इतसिंग ने 400 संस्कृत पुस्तकों का चीनी अनुवाद कर अपने देश ले गया. शान्तरक्षित, पद्मसंभव, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, शीलभद्र आदि यहां के विद्वान रहे हैं.

नालन्दा के विहार तो महायान बौद्धों के थे लेकिन हीनयान के किताबों को भी यहां पढ़ाया जाता था इसलिए पालि का अध्ययन भी अनिवार्य था. नालन्दा का आदर्श था ज्ञान प्राप्त करने की स्वतंत्रता, चाहे वो किसी ओर से, किसी सम्प्रदाय या धर्म से मिले सबका स्वागत था. यहां कोई भी साम्प्रदायिक या वर्गीय पाठशाला न थी. वाद-विवाद की गोष्ठियों के द्वारा सबको मौका था अपने सम्प्रदाय के विचारों को रखने का. हिन्दू दर्शन के साथ लोकायत दर्शन के भी चालीस सिद्धांत का उल्लेख यहां मिलता है.

यहां बुद्ध धर्म शिक्षा (Buddhism) के साथ-साथ गणित, खगोल विज्ञान (Astronomy), दर्शनशास्त्र (Philosphy), औषधि (Medicine) और व्याकरण (Grammar) जैसे विषयों की शिक्षा भी दी जाती थी. यहां पढ़ने वालों से किसी भी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता था. यहां पढ़ने वालों में हर्षवर्धन, वासुबंधू, धर्मपाल, नागार्जुन, ह्यून सांग, पद्मसंभव जैसे बड़े-बड़े नाम शामिल हैं. ऐसा भी माना जाता है प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट इस विश्विद्यालय के विद्यार्थी रहे थे.

यहां जावा-सुमात्रा, कोरिया तक के विद्वान और विद्यार्थी आते थे, जिनके नाम मिलते हैं. इसी विश्वविद्यालय से तिब्बती भाषा में अनुवाद कर बौद्ध पुस्तकों द्वारा तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया गया था. ह्वेनसांग बताता है कि इन गांवों से प्रतिदिन सैकड़ों मन चावल और दूध-माखन बैलगाड़ियों से भरकर आता था. नालन्दा से कई मुहरें भी मिली हैं जिनमें प्रमुख है – श्रीनालन्दा महाविहार आर्य भिक्षु संघस्य.

इतसिंग ने नालन्दा में 450 संस्कृत पुस्तकों की प्रतिलिपियां तैयार की थीं. चीनी यात्रियों के अनुसार नालन्दा विश्वविद्यालय में तीन भवनों के पुस्तकालय थे जिनके नाम हैं – रत्नसागर, रत्नोधि और रत्नरंजक.

नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि नालंदा पर एक नहीं तीन आक्रमण हुए थे. पहले दो आक्रमण के बाद इसे दुबारा बना लिया गया था, लेकिन तीसरा आक्रमण इसके लिए घातक सिद्ध हुआ.

सबसे पहला आक्रमण स्कन्दगुप्त के समय (455-467 AD) मिहिरकुल के नेतृत्व में हून ने किया था. हून मध्य एशिया के कबीले के एक समूह को कहते हैं, जो ख्य्बर पास के रास्ते भारत में प्रवेश करते हैं 4 और 6 ई.पू. हुन लोगों ने भारत पर आक्रमण किया था लेकिन स्कन्दगुप्त के वंशजों ने न सिर्फ नालंदा को दुबारा बनाया बल्कि इसे पहले से भी बड़ा और मजबूत बनाया.

नालंदा पर दूसरा आक्रमण 7 वीं शताब्दी में बंगाल के गौदास राजवंश के द्वारा किया गया था. इस आक्रमण के बाद बौद्ध राजा हर्षवर्धन इसे दुबारा बनवाते हैं।

नालंदा पर तीसरा आक्रमण किया था 1193 AD में तुर्की के शासक बख्तियार खिलजी ने. बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया. ठीक इसी तरह के विक्रमशिला विश्वविद्यालय विहार के नष्ट करने का वर्णन तबकात-ए-नासिरी में मिन्हाजुद्दीन सिराज विस्तार से करता है –

‘यहां के निवासी अधिकांश ब्राह्मण (बौद्ध भिक्षुओं को भी ब्राह्मण कहता हैं) थे, जो सभी मुंडन कराये रखते थे. इन सबको तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया. हिंदुओं की भारी संख्या में किताबें पड़ी थी. इस पर जब मुसलमानों की दृष्टि पड़ी तो उन्होंने उनका अर्थ जानने के लिए कुछ हिंदुओं को बुलाया लेकिन जानकार तो मारे गए थे, फिर भी कुछ सूचनाएं मिलने पर यह पता चला कि यह सारा दुर्ग और नगर तो एक विद्यापीठ थी, जिसे हमने राजसी दुर्ग समझ कर नष्ट कर दिया.’

विक्रमशिला के महास्थविर शाक्य श्रीभद्र अपने कुछ साथियों के साथ कुछ पांडुलिपियां लेकर पहले ही जान बचाकर तिब्बत की ओर भाग चुके थे. इस तरह पांडुलिपियों के इन भंडारगृहों का दुःखद अंत हो गया.

11वीं सदी से जब विक्रमशिला विश्वविद्यालय को नालन्दा से अधिक राजाश्रय मिलने लगा तो नालन्दा का महत्व घटने लगा. तिब्बती इतिहासकार तारानाथ (14वीं सदी) ने लिखा है कि पाल राजाओं द्वारा विक्रमशिला के आचार्यों को अब नालन्दा का निरीक्षक नियुक्त किया जाने लगा, मतलब साफ है अब नालन्दा का महत्व घट गया था.

तिब्बती ऐतिहासिक सूत्रों से ये जानकारी पुष्ट होती है कि इस काल में बौद्धों में तंत्रविद्या का घोर प्रचार हो गया था. इससे भी इसके अध्ययन सम्बंधित कार्यों का बहुत नुकसान हुआ, मठों में व्यभिचार बढ़ने लगे.

12वीं सदी के अंत में मुहम्मद गोरी के साथ आने वाले आक्रमणकारियों ने मंदिरों, मूर्तियों सहित बौद्ध मठों को भी नष्ट कर दिया और नरसंहार तथा पुस्तकालयों में लगाये आग (इसके जलने के पुख्ता सबूत नहीं लेकिन बाद के समय में भी इल्तुतमिश, फिरोज तुगलक और सिकन्दर जैसे मुस्लिम शासकों द्वारा अन्य धार्मिक पुस्तकालय उजाड़ने और जलाने के सबूत हैं) ने इस विद्यालय को हमेशा के लिए मटियामेट कर दिया, जहां पर बाद के कालों में ग्रामीण बस्तियां बस गयी.

नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े कुछ तथ्य

  1. नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है. इस विश्वविद्यालय में 300 कमरे, 7 बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें एक समय 3 लाख से भी अधिक किताबें मौजूद होती थीं.
  2. नालंदा को तक्षशिला के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है. वहीं, आवासीय परिसर के तौर पर यह पहला विश्वविद्यालय था, जिसका.अस्तित्व 800 साल तक रहा.
  3. इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों का चयन मेरिट के आधार पर होता था और यहां छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी. इसके साथ उनका रहना और खाना भी पूरी तरह निःशुल्क होता था.
  4. इस विश्वविद्यालय में एक समय में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे और 2700 से ज्यादा अध्यापक उन्‍हें शिक्षा देते थे.
  5. नालंदा में सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ाई के लिए आते थे.
  6. नालंदा की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने की थी. इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला. नालंदा में खुदाई के दौरान ऐसी कई मुद्राएं भी मिली हैं, जिससे इस बात की पुष्टि भी होती है.
  7. इतिहास के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय में एक ‘धर्म गूंज’ नाम की एक लाइब्रेरी थी. इसका मतलब ‘सत्य का पर्वत’ से था. लाइब्रेरी के 9 मंजिलों में तीन भाग थे, जिनके नाम ‘रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’ थे.
  8. नालंदा में छात्रों को लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, लैंग्‍वेज साइंस, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषयों को पढ़ाया जाता था.
  9. इस विश्वविद्यालय में कई महान विद्वानों ने पढ़ाई की थी, जिसमें मुख्य रूप से हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद, नागार्जुन का नाम शामिल हैं.
  10. नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास चीन के हेनसांग और इत्सिंग ने खोजा था. ये दोनों 7वीं शताब्दी में भारत आए थे. इन दोनों ने चीन लौटने के बाद नालंदा के बारे में विस्‍तार से लिखा और इसे विश्‍व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया.
  11. इस विश्वविद्यालय की एक खास बात यह थी कि यहां लोकतान्त्रिक प्रणाली से सभी कार्य होता था. कोई भी फैसला सभी की सहमति से लिया जाता था. मतलब, सन्यासियों के साथ टीचर्स और स्टूडेंट्स भी अपनी राय देते थे.
  12. खुदाई के दौरान यहां 1.5 लाख वर्ग फीट में नालंदा यूनिवर्सिटी के अवशेष मिले हैं. ऐसा माना जाता है कि ये सिर्फ यूनिवर्सिटी का 10 प्रतिशत हिस्सा ही है.
  13. नालंदा शब्द संस्कृत के तीन शब्द ना +आलम +दा के संधि-विच्छेद से बना है, इसका अर्थ ‘ज्ञान रूपी उपहार पर कोई प्रतिबंध न रखना’ से है.
  14. नालंदा की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी बिहार के राजगीर में बनाई गई है, इसे 25 नवंबर, 2010 को स्थापित किया गया. 

Read Also –

नालंदा और तक्षशिला पर रोने वाला अपने समय की यूनिवर्सिटियों को खत्म करने पर अमादा है
106 वर्ष पुराने पटना संग्रहालय को निजी हाथों में सौंपने के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिवाद संगठित करो !
ब्राह्मणवादी दुष्ट संघियों का दुष्प्रचार और महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

किस चीज के लिए हुए हैं जम्मू-कश्मीर के चुनाव

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चली चुनाव प्रक्रिया खासी लंबी रही लेकिन इससे उसकी गहमागहमी और…